संपदा ही बन गई अभिशाप

पर्यावरण प्रबंधन नीति की कमियों की वजह से आज 25 फीसदी इलाके में ही जंगल शेष बचे हैं। इससे पारिस्थिति असंतुलन बिगड़ा है। बारिश अनियमित हो गयी है। नदियां सूख रही हैं। स्वर्णरेखा, दामोदर, बराकर, करकरी, अजय जैसी नदियां मृत होने की राह पर हैं। ऊपर से स्टील, पावर प्लांट और अन्य कारखानों की गंदगी को नदियों में छोड़ा जा रहा है। फलतः राज्य की सभी नदियां मृतप्राय होने पर हैं। नदियों के किनारे बालू निकालने के कारोबार ने तो नदियों की हालत और भी खराब कर दी है।

खनिज संपदा की अधिकता झारखंड के लिए वरदान से ज्यादा अभिशाप साबित हुई है। जिस संपदा की बदौलत इसे देश का नंबर वन राज्य बनाने की कोशिश होनी थी, वह काली कमाई का सबसे बड़ा जरिया बन गई। एक पूर्व मुख्यमंत्री इसके कारण जेल में हैं। दर्जनों कंपनियां बिना लीज का नवीकरण कराए बेखौफ खनन कर रही हैं। वनों की कटाई कर खनन हो रहा है। वनाधिकार कानून के बावजूद जंगल बचने की बजाय घट रहे हैं। इससे पर्यावरण संकट बढ़ता जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार, 375 अरब टन लौह अयस्क का भंडार झारखंड में है। यह देश में उपलब्ध कुल भंडार का एक-तिहाई हिस्सा है। 72 अरब टन कोयले का भंडार भी यहां है। यह देश का 25 फीसदी है। कोकिंग कोल का 90 फीसदी हिस्सा यहां है। 12 करोड़ टन बॉक्साइट अकेले झारखंड में है।

देश में बॉक्साइट का कुल भंडार तीन अरब टन है। पर दुर्भाग्य से खनिजों के अवैध उत्खनन पर रोक लगाने के लिए अब तक कोई कारगर नीति नहीं बनी है। और यह इस राज्य में पर्यावरण प्रदूषण की सबसे बड़ी वजहों में से एक है। राज्य से प्रतिदिन करीब 3000 टन लौह अयस्क दूसरे प्रदेशों और विदेशों में भेजे जा रहे हैं। सरकार की योजना के अनुसार, खनिजों की अवैध ढुलाई पर रोक लगाने के लिए इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट बनाने का प्रस्ताव है। इसमें वाणिज्यकर विभाग नोडल डिपार्टमेंट होगा। खान और वन मंत्रालय के अधिकारी भी रहेंगे। पर इस काम को अब तक पूरी तरह लागू नहीं किया गया है। सारंडा से प्रतिदिन करीब 19 मिलियन टन लौह अयस्क का वैध उत्खनन होता है। इससे तीन गुणा अवैध उत्खनन किया जा रहा है।

दामोदर बचाओ आंदोलन के प्रणेता और पूर्व विधायक सरयू राय के अनुसार राज्य में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की सही एकाउंटिंग नहीं होना भी अवैध खनन का कारण है। सरकार दावा तो करती है कि राज्य में कहां-कहां कितनी खनिज संपदाएं हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि अब भी इसका सही आंकड़ा नहीं है। जितनी जमीन पर खनन करना है, उतनी जमीन संबंधित फर्म को देने की अनिवार्यता है ताकि वहां वृक्षारोपण किया जा सके। पर्यावरण संतुलन के लिए यह नियम बनाया गया है। कितनी जमीन दी गयी और कितने पर पेड़ लगे, इसका लेखा-जोखा नहीं है। पर्यावरणविद् डॉ. नीतीश प्रियदर्शी के मुताबिक सस्टेनेबल डेवलपमेंट प्लान यहां नहीं है। कल-कारखानों का खुलना अपनी जगह सही है पर पर्यावरण के संतुलन का ध्यान भी रखना था जो नहीं हुआ। 1947 के आसपास दक्षिणी बिहार के तकरीबन 45-50 फीसदी हिस्से में जंगल था।

पर्यावरण प्रबंधन नीति की कमियों की वजह से आज 25 फीसदी इलाके में ही जंगल शेष बचे हैं। इससे पारिस्थिति असंतुलन बिगड़ा है। बारिश अनियमित हो गयी है। नदियां सूख रही हैं। स्वर्णरेखा, दामोदर, बराकर, करकरी, अजय जैसी नदियां मृत होने की राह पर हैं। ऊपर से स्टील, पावर प्लांट और अन्य कारखानों की गंदगी को नदियों में छोड़ा जा रहा है। फलतः राज्य की सभी नदियां मृतप्राय होने पर हैं। नदियों के किनारे बालू निकालने के कारोबार ने तो नदियों की हालत और भी खराब कर दी है। अब तक प्राप्त सूचना के अनुसार फोर लेन बनाने के नाम पर 80,000 से ज्यादा पेड़ काटे जा चुके हैं।

इनके बदले पेड़ लगाए जाने के नियम पर अमल नहीं हुआ। झरिया, धनबाद जैसे इलाके में जमीन के नीचे 200 सालों से आग लगी है। मिथेन गैस के कारण उस इलाके में वायुमंडल को जबर्दस्त क्षति पहुंच रही है। उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अनुसार सरकार राज्य में खनिजों के अवैध उत्खनन पर रोक लगाने की दिशा में गंभीरता से काम कर रही है। उड़नदस्ते का गठन किया जा रहा है। इंटीग्रेटेड चेकपोस्ट बनाए जाने हैं। सरकारी नियम का सख्ती से पालन किए जाने पर जोर दिया जा रहा है। खनिज निकाल कर वहां भराई नहीं कराने वालों से अर्थदंड वसूलने और वृक्षारोपण सुनिश्चित किए जाने पर ध्यान दिया जा रहा है।

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