संपूर्ण स्वच्छता अभियान से बदली गांवों की तस्वीर

10 Aug 2014
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भारत की करीब 70 फीसदी से ज्यादा आबादी अभी भी गांवों में रहती है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ग्रामीण विकास का सपना पूरा करने में जुटी है। पहले सड़कें, बिजली, पानी की सुविधा उपलब्ध कराने के बाद अब स्वच्छता के मुद्दे पर गंभीरता दिखाई जा रही है। अब ग्रामीण इलाके में स्वच्छता एवं स्वच्छ पेयजल को लक्ष्य बनाकर सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है।

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए स्वच्छ एवं साफ- सुथरा वातावरण उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके तहत तमाम ऐसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनके जरिए गांवों की तस्वीर बदलने लगी है।

स्वच्छता अपनाने के लिए ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहित किया जा रहा है तो व्यक्तिगत स्तर पर भी लोगों को जागरूक करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। विद्यालयों के बच्चों से लेकर आम आदमी अब मानने लगा है कि स्वच्छता अपनाए बिना स्वस्थ नहीं रहा जा सकता है।

यही वजह है कि गांवों में लोग सरकारी योजनाओं के साथ ही अब व्यक्तिगत स्तर पर भी स्वच्छता अपनाने के लिए जागरूक हो गए हैं। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के अनुसार, स्वच्छता को 11वीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इसके अनुसार संपूर्ण स्वच्छता अभियान के कार्यान्वयन में पंचायतों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

शौचालयों के निर्माण एवं अपशिष्टेपदार्थों के सुरक्षित निपटान के माध्यम से वातावरण स्वच्छ रखने के संबंध में एकजुटता सुनिश्चित करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों का भी सहयोग लिया जा रहा है। इसके परिणाम भी सामने आए हैं।

सरकारी मशीनरी के साथ ही स्वैच्छिक संगठनों एवं गैर-सरकारी संगठनों ने लोगों को जागरूक करने की दिशा में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। सरकारी प्रावधान में इस बात का स्पष्टेउल्लेख है कि विद्यालयों में स्वच्छता के लिए पंचायतें भी स्वयं के संसाधनों से अंशदान कर सकती हैं। पंचायतें तथा गैर-सरकारी संगठन उत्पादन केंद्र व ग्रामीण सेनिट्री मार्टेशुरू एवं परिचालित कर सकते हैं।

आईईसी कार्यकलापों तथा हार्डवेयर कार्यकलापों में गैर-सरकारी संगठनों को भी सक्रिय रूप से सहयोजित किया जाता है। इन प्रावधानों का असर व्यापक स्तर पर पड़ा है। तमाम पंचायते अपने-अपने कार्यक्षेत्र के विद्यालयों एवं अन्य संस्थाओं में शौचालय का निर्माण करा रही हैं। इससे खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति धीरे-धीरे खत्म होने लगी है।

ऐसे में लोग व्यक्तिगत रूप से घरों में शौचालय का निर्माण करवा रहे हैं। संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत 11वीं योजना के अंत तक करीब 2.4 करोड़ और घरों में भी स्वच्छता संबंधी सुविधाएं उपलब्ध करा दी गई। प्रतिवर्ष लगभग 1.2 करोड़ ग्रामीण घरों में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना में 3.18 करोड़ परिवारों को स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।

केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में अभी से प्रयास शुरू हो गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय इस लक्ष्य को जल्द-से-जल्द हासिल करने में जुटा है।

यही वजह है कि पंचायतों एवं अन्य संस्थाओं को व्यक्तिगत स्तर पर भी जागरूक किया जा रहा है। भारत में स्वच्छता अभियान की स्थिति पर ध्यान दें तो केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (सीआरएसपी) 1986 में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए शुरू किया गया था। यह आपूर्ति संचालित, उच्च आर्थिक सहायता एवं आधारभूत संरचना जन्य कार्यक्रम के रूप में प्रारंभ हुआ, लेकिन विपरीत परिस्थितियों की वजह से इसमें विशेष प्रगति नहीं हुई।

अगर हम स्वच्छता अभियान के मामले में विभिन्न राज्यों की स्थिति देखें तो सिक्किम पूर्ण स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने वाला देश का पहला निर्मल राज्य हो गया है। केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से राज्यों को विभिन्न स्तरों पर इस अभियान के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए सर्वे रिपोर्टे तैयार की जाती है और उसी आधार पर उनकी रैंकिंग होती है। इस रैंक के आधार पर राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए दूसरे कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं।समय के अनुरूप इसमें तमाम तरह के बदलाव हुए। 1999 में संपूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) के गठन को बढ़ावा मिला। तब से ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत पेयजल आपूर्ति एवं स्वच्छता विभाग द्वारा कार्यक्रम के क्रियान्वयन की मजबूती के लिए अनेक नए प्रयास किए गए। इस प्रयास को दिनोंदिन बल मिल रहा है।

इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2001 में ग्रामीण स्वच्छता अभियान की पहुंच सिर्फ 22 फीसदी आबादी तक थी लेकिन साल 2011 में यह 70 फीसदी से ज्यादा लोगों तक पहुंच गई है। वर्ष 2013 में इसे शत-प्रतिशत लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। कार्यक्रम के अंतर्गत सितंबर 2010 तक 7.07 करोड़ व्यक्तिगत घरों में शौचालय, 10.32 लाख शाला शौचालय, 3.46 लाख आंगनबाड़ी शौचालय बनाए गए हैं।

इसके अतिरिक्त महिलाओं के लिए अलग से 19502 प्रसाधन केंद्रों का निर्माण किया गया है। इनमें 3.81 करोड़ बीपीएल परिवार सम्मिलित हैं। वर्ष 2012-13 में बीपीएल परिवारों में इसे शत-प्रतिशत लागू करने की तैयारी है। इसके लिए 20.45 लाख शौचालय बनवाने का लक्ष्य रखा गया है।

अगर हम स्वच्छता अभियान के मामले में विभिन्न राज्यों की स्थिति देखें तो सिक्किम पूर्ण स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने वाला देश का पहला निर्मल राज्य हो गया है। केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से राज्यों को विभिन्न स्तरों पर इस अभियान के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए सर्वे रिपोर्टे तैयार की जाती है और उसी आधार पर उनकी रैंकिंग होती है।

इस रैंक के आधार पर राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए दूसरे कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं। लोगों को घरों में शौचालय के निर्माण के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा प्रोत्साहन राशि दी जाती है। यह प्रोत्साहन राशि बीपीएल परिवारों के उन्हीं लोगों को दी जाती है, जो अपने घरों में शौचालय का निर्माण कर उनका इस्तेमाल भी करते हैं।

गरीबी रेखा से ऊपर वाले परिवारों को अपने ही खर्च से या ऋण लेकर शौचालय बनवाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ये ऋण स्वयंसहायता समूह (एसएचजी), बैंक अथवा सहकारी संस्थाओं से लिया जा सकता है।

विद्यालयों और आंगनबाड़ी शौचालयों के निर्माण के लिए केंद्र और राज्य सरकारें 70 और 30 के अनुपात में खर्च वहन करती हैं। सामुदायिक प्रसाधन सुविधाओं के निर्माण सामग्रियों के उत्पादन केंद्रों को सहायता, स्वच्छता संबंधी ग्रामीण विक्रय केंद्रों और ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन भी संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के महत्वपूर्ण घटक हैं।

टीएससी के अंतर्गत कुल वित्तीय प्रावधान एक खरब 96 अरब 26 करोड़ 43 लाख रुपए का है। इससे जुड़ी परियोजनाओं में केंद्र का अंश 1 खरब 22 अरब 73 करोड़ 81 लाख रूपए का है, जबकि राज्यों और हितग्राहियों का हिस्सा क्रमशः 52 अरब 5 करोड़ 79 लाख और 21 अरब 46 करोड़ 83 लाख रूपये का रहा है। केंद्र अब तक 58 अरब 70 करोड़ रूपए 61 लाख रूपए जारी कर चुका है, जिसमें से 47 अरब 30 करोड़ 28 लाख रूपये इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन पर खर्च किए जा चुके हैं।

टीएससी के अंतर्गत सहभागिता और मांग आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाता है। पूरे जिले को इकाई मानते हुए ग्राम पंचायतों और स्थानीय लोगों को इसमें शामिल किया जाता है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की रणनीति यह है कि कार्यक्रम का नेतृत्व समुदाय के लोगों को ही सौंपा जाए तथा कार्यक्रम को जनकेंद्रित बनाया जाए। इसमें व्यक्तिगत स्वच्छता और व्यवहार में परिवर्तन पर ही विशेष जोर दिया जाता है।

.टीएससी में संपूर्ण स्वच्छता की सामूहिक उपलब्धि पर बल देने वाले सामुदायिक नेतृत्व के दृष्टिकोण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस कार्यक्रम की प्रमुख विशेषताओं में स्वच्छता के बारे में लोगों को प्रेरित करने के लिए सूचना, शिक्षा एवं संप्रेषण (आईईसी) पर जोर दिया जाता है। इसी तरह बीपीएल परिवारों, गरीबों और विकलांगों को इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहन राशि और प्रौद्योगिकी के विभिन्न विकल्पों में से किसी को भी अपनाने की छूटेशामिल है।

इसके अलावा ग्राम स्तर पर पैदा होने वाली मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक व्यवस्था को बनाए रखना भी इसी कार्यक्रम का जरुरी हिस्सा है। संपूर्ण स्वच्छता अभियान के क्षेत्र में श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए निर्मल ग्राम पुरस्कार (एनजीपी) के रूप में नकद राशि प्रोत्साहन स्वरूप दी जाती है। इस राशि से ग्राम पंचायत अपने कार्यक्षेत्र में जनहित से जुड़ा कोई नया प्रोजेक्टेलगा सकती है बशर्ते उस प्रोजेक्टेका उद्देश्य ग्रामीण स्वच्छता अभियान से जुड़ा हो।

निर्मल ग्राम पुरस्कार से आई जागरुकता


ग्रामीणों को स्वच्छता कार्यक्रम के प्रति जागरुक करने एवं सरकार की ओर से चलाई जा रही विभिन्न स्वच्छता से संबंधित योजनाओं के शत-प्रतिशत क्रियान्वयन को ध्यान में रखते हुए सरकार ने निर्मल ग्राम पुरस्कार योजना की शुरुआत की।

सन् 2005 से संचालित कार्यक्रम में से एक निर्मल ग्राम पुरस्कार या एनजीपी रहा है। यह एक समग्र प्रोत्साहन राशि आधारित कार्यक्रम है, जो पूर्ण स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करने वाले खुले में शौच जाने की प्रथा को पूर्णरूपेण समाप्त करने वाली पंचायती राज संस्थाओं को इनाम देकर उनके प्रयासों को मान्यता देता है।

पंचायती राज संस्थाओं को स्वच्छता कार्यक्रम अपनाने के लिए बढ़ावा देने के लिए उन पीआरआई को इनाम दिया जाता है, जिन्होंने खुले में शौच जाने से मुक्त वातावरण का लक्ष्य शत-प्रतिशत अर्जित कर लिया है। निर्मल ग्राम पुरस्कार के अंतर्गत प्रोत्साहन राशियों ने स्वच्छता कवरेज में वृद्धि लाने में योगदान दिया है।

वर्ष 2010-11 में 21 राज्यों की 2808 से अधिक ग्राम पंचायतों को तमिलनाडु एक ब्लाक पंचायत के साथ निर्मल ग्राम पुरस्कार के लिए चुना गया है। निर्मल ग्राम की पहल में एक साफ, स्वास्थ्यकर एवं स्वच्छ ग्रामीण भारत की ओर ले जाने की क्षमता है, जहां समुदाय मार्गदर्शन करता है और समर्थ वातावरण बनाने की दिशा में अपने तरीके से कार्य करता है।

निर्मल ग्राम पुरस्कार चयन किए गए पीआरआई के प्रतिनिधियों का मनोबल बढ़ाता और समग्र स्वच्छता अभियान को देश में लागू करने के लिए प्रोत्साहन देता है।

संपूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) के मुख्य सिद्धांत


1. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को स्वच्छता का ज्ञान देकर उनका जीवन-स्तर ऊंचा उठाना।
2. विद्यालयों एवं आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए लोगों को जागरूक करके स्वच्छता संबंधी जानकारी देना।
3.मैला ढोने की प्रथा खत्म करना। शुष्क शौचालयों के स्थान पर फ्लश शौचालयों के निर्माण के प्रति लोगों को जागरूक करना।
4. समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण अपनाते हुए समुदाय को स्वच्छता एवं शुद्ध पेयजल से होने वाले फायदे के बारे में बताना।

5. समूह विशेष को इस बात के लिए जागरूक करना कि वे किस तरह से गांव की स्वच्छता में अपना योगदान दे सकते हैं।

संपूर्ण स्वच्छता अभियान के मुख्य घटक


प्रारंभिक कार्यकलाप- इसके तहत मुख्य रूप से स्वच्छता के प्रति लोगों के बीच प्रचार, प्रसार एवं स्वच्छता के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करना शामिल है। जिला टीएससी परियोजना प्रस्ताव तैयार करने के लिए पहले सर्वेक्षण रिपोर्टेतैयार करती है।

भारत में संपूर्ण स्वच्छता अभियान में जहां तेजी से प्रगति हुई है, वहीं इस अभियान को भी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बाढ़ प्रभावित तटीय, पर्वतीय और मरुस्थली क्षेत्रों में समस्या के समाधान के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत के तमाम हिस्से अलग-अलग परिस्थितिकी का सामना करते हैं। ऐसे में वहां की भौगोलिक स्थिति एवं प्राकृतिक हालात के मद्देनजर योजना तैयार करने की जरूरत है। जैसे बिहार एवं पश्चिम बंगाल का एक बड़ा हिस्सा बारिश के दिनों में बाढ़ की चपेटे में रहता है। इस रिपोर्टे के आधार पर स्वच्छता प्रचार-प्रसार एवं अन्य क्रियाकलापों के लिए प्रस्ताव तैयार किया जाता है। इस प्रस्ताव के आधार पर जिले से राज्य सरकार और फिर केंद्र सरकार को रिपोर्टेभेजी जाती है। इसी रिपोर्टेके आधार पर केंद्र सरकार की ओर से ग्राम पंचायत स्तर पर स्वच्छता अभियान चलाने के लिए बजटेआदि का प्रावधान किया जाता है।

आईईसी कार्यकलाप- जानकारी, शिक्षा तथा संचार (आईईसी) के जरिए ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को स्वच्छता को बढ़ावा देने संबंधी परियोजनाएं तैयार की जाती हैं। आईईसी में स्वास्थ्य तथा स्वच्छता प्रक्रियाओं एवं पर्यावरणीय स्वच्छता जैसे पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाता है।

ग्रामीण सैनिट्री मार्टे(आरएसएम) - ग्रामीण सैनिट्री मार्टेऐसा स्थान है, जहां न केवल स्वच्छ शौचालयों बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तियों, परिवारों तथा विद्यालयों के लिए आवश्यक अन्य सुविधाओं के निर्माण हेतु आवश्यक सामान उपलब्ध होता है।

आरएसएम का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तकनीकी एवं वित्तीय दृष्टि से उपयुक्त विभिन्न प्रकार के शौचालयों तथा अन्य स्वच्छता सुविधाओं के निर्माण के लिए आवश्यक सामग्री एवं मार्गदर्शन प्रदान करना है। आरएसएम के जरिए पंचायती राज संस्थाओं, गैर-सरकारी संगठनों तथा स्व-सहायता समूहों को जिला, ब्लॉक एवं ग्राम पंचायत स्तर पर सहयोजित किया जा सकता है।

व्यक्तिगत दृष्टिकोण- इस अभियान के जरिए ग्रामीणों को खुले में शौच जाने की आदत में बदलाव लाने का प्रयास किया जाता है। उन्हें इस बात से वाकिफ कराया जाता है कि खुले में शौच जाने स किस तरह की दिक्कतें आती हैं। पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है।

व्यक्तिगत घरेलू शौचालय- व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) के तहत दादर एवं नागर हवेली, पुड्डूचेरी, मणिपुर, जम्मू एवं कश्मीर, बिहार, असम, नगालैंड, मेघालय, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और उत्तराखंड का प्रदर्शन 50 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से नीचे रहा है। इन राज्यों में अभियान के तहत आईएचएलएल योजना चलाई जा रही है।

सरकारी सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि सिक्किम और केरल में सभी घरों में शौचालय निर्माण हो चुका है। इस प्रकार इनका प्रदर्शन 100 प्रतिशत रहा है। विभिन्न स्कूलों में शौचालयों के निर्माण मामले में मेघालय, जम्मू एवं कश्मीर, बिहार, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गोवा, नगालैंड, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, त्रिपुरा, तमिलनाडु और मणिपुर का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर से नीचे पाया गया था, लेकिन अब इन राज्यों की स्थिति में भी तेजी से सुधार हुुआ है।

संपूर्ण स्वच्छता अभियान की चुनौतियां


भारत में संपूर्ण स्वच्छता अभियान में जहां तेजी से प्रगति हुई है, वहीं इस अभियान को भी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बाढ़ प्रभावित तटीय, पर्वतीय और मरुस्थली क्षेत्रों में समस्या के समाधान के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत के तमाम हिस्से अलग-अलग परिस्थितिकी का सामना करते हैं।

ऐसे में वहां की भौगोलिक स्थिति एवं प्राकृतिक हालात के मद्देनजर योजना तैयार करने की जरूरत है। जैसे बिहार एवं पश्चिम बंगाल का एक बड़ा हिस्सा बारिश के दिनों में बाढ़ की चपेटे में रहता है। ऐसे में यहां नए सिरे से रणनीति बनाने की जरूरत है। इसी तरह राजस्थान के रेतीले इलाके में संपूर्ण स्वच्छता अभियान का लक्ष्य हासिल करने के लिए अलग से कार्य योजना बनानी होगी। क्योंकि पश्चिमी राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से रेतीला है।

कुछ इलाके सीमा से सटेे हुुए हैं। विरल आबादी वाले इलाके में अभी भी व्यक्तिगत शौचालय का चलन नहीं हो पाया है। ऐसे इलाके में नए सिरे से लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। उनकी मांग के अनुरूप सुविधाएं देनी होंगी। दूसरी तरफ भारत का एक हिस्सा पर्वतीय है। यहां आए दिन भूस्खलन की समस्या रहती है। ऐसे इलाके में भी संपूर्ण स्वच्छता अभियान का लक्ष्य हासिल करने के लिए वहां की भौगोलिक एवं पारिस्थितिकीय स्थितियों के अनुरूप योजना तैयार करनी होगा। इसके लिए उपयुक्त और कम खर्चीली प्रौद्योगिकियों का विकास करना होगा।

लोगों को तैयार करने के लिए विश्वसनीय तौर-तरीके अपनाने होंगे। इसी तरह जैविक और अजैविक कचरे के संग्रहण और निस्तारण के लिए संस्थागत व्यवस्था कायम करनी होगी। इसके लिए ग्राम पंचायतों को प्रेरित करने की आवश्यकता है।

शालाओं और आंगनबाड़ी केन्द्रों में चल रहे स्वच्छता संबंधी कार्यक्रम में हाथ की धुलाई को एक अभिन्न हिस्से के रूप में शामिल किया गया है।

विकलांग हितैषी शौचालय


.संपूर्ण स्वच्छता अभियान ( टीएससी) में विकलांग व्यक्तियों की उपेक्षा नहीं की जा सकती। ग्रामीण क्षेत्रों की संस्थाओं में कम-से-कम ऐसा शौचालय मुहैया कराना जरुरी है जिसे विकलांग व्यक्ति भी आसानी से इस्तेमाल कर सकें। हालांकि कुछ ग्राम पंचायतों ने इस दिशा में पहल की है। विकलांगों को ध्यान में रखकर तमाम स्थानों पर शौचालयों का निर्माण किया गया है।

सामुदायिक शौचालयों में भी विकलांगों का विशेष ध्यान रखा गया है, लेकिन अभी तक यह सभी स्थानों पर सुगम नहीं हो पाया है। इसे विस्तारित किए जाने की जररूत है।

रेलवे व राजमार्गों पर शौचालय


भारत के संपूर्ण स्वच्छता अभियान को रेलवे से अपेक्षाकृत कम सहयोग मिला है। तमाम बस्तियों में जहां पहले लोग रेल लाइनों को शौचालय के रूप में प्रयोग करते थे वहां सामुदायिक शौचालय का निर्माण कराने से इस प्रवृत्ति में कमी आई है, लेकिन रेलवे का खुला शौचालय होने की वजह से अभी भी दिक्कतें हैं।

इस दिशा में भी ग्रामीण विकास मंत्रालय और रेल मंत्रालय के बीच वार्ता चल रही है। रेल मंत्रालय को इस समस्या के समाधान के लिए आगे आना होगा। इससे संपूर्ण स्वच्छता अभियान को गति मिलेगी और शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने की दिशा में काफी महत्वपूर्ण कार्य होगा।

राजमार्गों पर सामुदायिक शौचालय निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हुआ है, लेकिन इसे और विस्तारित करने की जरूरत है।

कचरा प्रबंधन को गति देने की जरूरत


संपूर्ण स्वच्छता अभियान का शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के साथ ही कचरा प्रबंधन की भी जरूरत है। अभी भी तमाम नगर पालिकाओं के पास कचरा प्रबंधन की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में शहरों का कचरा ग्रामीण इलाके के खाली स्थान पर फेंका जा रहा है। इस वजह से ग्रामीण इलाके में पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है। हालांकि सरकार की ओर से सभी नगर निकायों को कचरा प्रबंधन का निर्देश दिया गया है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कुछ ज्यादा काम नहीं हो पाया है।

अस्पतालों से लेकर विभिन्न बाजारों का कचरा खुले में फेंका जा रहा है। यह कचरा ट्रालियों से गांवों के पास फेंका जाता है। इसे पूरी तरह से बंद करने की जरूरत है। नगर निकायों की तरह की ग्राम पंचायतों में भी कचरा प्रबंधन की पुख्ता रणनीति अपनाई जाए। इससे संपूर्ण स्वच्छता अभियान का सपना साकार हो सकेगा।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार है

ई-मेल : navneetrnjn955@gmail.com

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