सोशल मीडिया की सार्थकता

2 Feb 2015
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मेरा सोशल मीडिया पर कुछ अनुसंधानात्मक कार्य करने का दिल किया। कुछ दिन की स्टडी के बाद पता चला कि इसके ऊपर 60 प्रतिशत पर्सनल फोटो अपलोड किए जाते हैं, 20 प्रतिशत टेलरमेड कैप्शन अपलोड किए जाते हैं, कुछ सामग्री आगे से आगे शेयर की जाती है। अधिकतर सामग्री बिना पढ़े लाइक की जाती है। लगभग लाइक्स इसलिए भी किए जाते हैं क्योंकि वह पोस्ट उनके करीबियों या प्रभावशाली व्यक्तियों की होती हैं। एक तथ्य यह भी सामने आया कि सोशल मीडिया पर प्रेमी-प्रेमिका द्वारा एक दूसरे को सन्देश दिए जाते हैं।

.आज सोशल मीडिया नामक मीडिया का समाज में प्रचलन बढ़ता जा रहा है करोड़ों व्यक्ति सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं। यदि आंकड़ों पर नजर डालें तो विश्व में अकेले फेसबुक के 1.35 बिलियन यूजर हैं, जिनमें भारत में लगभग 100 मिलियन यूजर हैं। अकेले अमेरिका में विभिन्न प्रकार के सोशल मीडिया के 155 मिलियन यूजर्स हैं जो अमेरिकी आबादी का 50 प्रतिशत है। इसी प्रकार के आंकड़े ट्विटर तथा व्हाट्सएप आदि के बारे में इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कहा जा रहा है कि फेसबुक, ट्विटर तथा व्हाट्सएप आदि सोशल मीडिया की बदौलत भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही है या यूँ कह लीजिए कि सोशल मीडिया की 2014 के लोकसभा चुनाव में काफी भूमिका रही है।

इसका जायजा लेने के लिए मैंने फेसबुक पर कुछ रोज पहले एक प्रश्न के रुप में कुछ अपलोड किया था। मकसद केवल यह देखना था कि सोशल मीडिया को लोग कितनी संजीदगी से लेते हैं? प्रश्न था कि यदि आपको अचानक भगवान मिल जाए तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी, अर्थात यदि भगवान आपसे कहें कि एक मिनट में जो कुछ माँगना है माँग लो, तो आप क्या माँगेंगे? साथ में यह भी अनुरोध किया कि कृपया अपने कमेन्ट्स अवश्य दें जो कुछ लिखा था वह एक सपने के रूप में वर्णन किया गया था, जिसे पढ़ने और समझने में वक्त लगना था।

मैं, अभी मेरा फेसबुक अकाउन्ट खोल कर ही बैठा था कि 2-3 लाइक्स आ गये। मैं बड़ा हैरान हुआ कि इतनी देर में तो जो कुछ मैंने लिखा है वह पढ़ा भी नहीं जा सकता तो ये लाइक्स कैसे आए? मुझे पुणः अनुरोध स्वरूप लिखना पड़ा कि किसी ने भी लाइक नहीं करना है, केवल कमेन्ट्स देने हैं। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने देखा कि उस पर लगातार लाइक्स आते रहे। मेरे लगभग 200 से अधिक फेसबुक फ्रेन्ड्स हैं, जिनमें लगभग सभी पढ़े लिखे तथा उच्च वर्ग से हैं।

एक और दृष्टान्त से आप और अधिक स्पष्ट तौर पर समझ जाएँगे कि इन सोशल मीडिया को लोग कितनी संजीदगी से लेते हैं। मैंने समाचार पत्र में आर्टिकल लिखा, छपने के पश्चात पूरे पेज की मोबाइल से फोटो ली और फेसबुक पर डाल दिया। पूरे पेज की फोटो में मेरा आर्टिकल पढ़ने योग्य नहीं रहा अर्थात उसका फॉन्ट छोटा होने के कारण जब एक्सपेन्ड किया जाता था तो उसमें कुछ भी स्पष्ट दिखाई नहीं देता था परन्तु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उस पर बधाई सन्देश और बहुत अच्छा, कमाल है, कीप ईटअप आदि कमेन्ट्स आने लगे। केवल एक सज्जन जो उस आर्टिकल को पढ़ना चाहते थे, ने लिखा कि शर्मा जी फॉन्ट विजिबल नहीं है कृपया दोबारा से केवल आर्टिकल का फोटो भेजें।

जब मैंने एकाध से फोन पर पूछा कि क्या उन्होंने आर्टिकल पढ़ा था तो उन्होंने बताया, नहीं देखा था। मैंने पूछा कि आपने तो लिखा है कि बहुत बढ़िया था तो कहने लगे अजी आपने लिखा है तो बढ़िया ही होगा। अब ऐसे संसाधनों से किसी देश की राजनीति में कोई भूचाल आ जाए यह बात हजम नहीं होती। हाँ, यह तो कह सकते हैं कि जाने वाली सत्ता पार्टी से लोग इतने नाराज थे कि उसमें सोशल मीडिया का भी ठप्पा लग गया बल्कि यह कहना उचित होगा कि आजकल जो भी ऐरा गैरा मुद्दा विपक्ष से रह जाता है वह सोशल मीडिया पर शुरू हो जाता है।

गणतंत्र दिवस परेड के अवसर पर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने एक मौके पर तिरंगे को सलामी देते हुए अपना हाथ नहीं उठाया तो कुछेक भाइयों ने उनकी फोटो फेसबुक पर सर्किल करके डाल दी कि ये देखो इन्होंने हाथ नहीं उठाया और राष्ट्र का अपमान किया है। एतराज उठाने वाले वीरों से यदि पूछा जाए कि भाई क्या आपको सलामी से संबंधित नियमों की जानकारी है और नहीं है तो एक बुजुर्ग आदमी ने यदि हाथ ऊपर नहीं भी उठाया तो कौन सी अनहोनी बात हो गई, लेकिन जहाँ तक मैं समझता हूं उनका उद्देश्य बात को किसी दूसरी तरफ ले जाने का था।

यहां जानकारी देना चाहूंगा कि नियमों के अंतर्गत हाथ उठाकर सलामी केवल वर्दी पहन कर ही दी जाती है। लेकिन नहीं, फेसबुक पर उन्होंने अपनी नाराजगी का इजहार कर दिया, एक छोटी सी बहस भी चली, उसमें कुछ पत्रकार मित्र भी शामिल थे। कुछेक व्यक्ति इन सोशल मीडिया से दूर रहते हैं, कारण जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया कोई विश्वसनीय या परिपक्वसाधन नहीं है।

मेरा सोशल मीडिया पर कुछ अनुसंधानात्मक कार्य करने का दिल किया। कुछ दिन की स्टडी के बाद पता चला कि इसके ऊपर 60 प्रतिशत पर्सनल फोटो अपलोड किए जाते हैं, 20 प्रतिशत टेलरमेड कैप्शन्स अपलोड किए जाते हैं, कुछ सामग्री आगे से आगे शेयर की जाती है। अधिकतर सामग्री बिना पढ़े लाइक की जाती है। लगभग लाइक्स इसलिए भी किए जाते हैं क्योंकि वह पोस्ट उनके करीबियों या प्रभावशाली व्यक्तियों की होती है

। एक तथ्य यह भी सामने आया कि मीडिया पर प्रेमी-प्रेमिका द्वारा एक दूसरे को संदेश दिए जाते हैं। पूर्व प्रेमी-प्रेमिका को चिढ़ाने के लिए सामग्री अपलोड की जाती है। यहां तक की धार्मिक तस्वीरें एवं तरह-तरह के डरावने फोटो अपलोड किए जाते हैं। एक करीबी दोस्त को फेसबुक पर यह सोच कर फ्रेन्ड बनाया था कि बड़े पद से रिटायर हुआ है, बढ़िया आदमी है, कुछ नया सीखने को मिलेगा; परन्तु यह जानकर बड़ी निराश हुई कि वे साहेब केवल और केवल धार्मिक फोटोज ही अपलोड करते हैं। कई बार कुछ सामग्री तो इतनी अश्लील होती है कि आप परिवार के बीच में बैठ कर अपना अकाउन्ट नहीं देख सकते।

अब बात करते हैं राजनीति पर सोशल मीडिया के प्रभाव की तो बता दें कि फेसबुक पर लगभग हर पार्टी का अकाउन्ट है। उनके अपने फॉलोवर्स हैं। जब भी कोई पार्टी, कुछ भी अपलोड करती है तो उस पर कुछेक लोग ही लाइक और कमेन्ट करते हैं। यहां तक कि उसके लिए भी खास लोगों को हिदायतें दी हुई हैं कि लाइक्स की संख्या बढ़ानी है। राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे की, सलामी परेड की व अन्य तस्वीरें भाजपा द्वारा तुरन्त अपलोड की गई जबकि वही फोटोज सभी समाचार पत्रों द्वारा सुबह पूरे वर्णन के साथ सार्थक रूप से प्रकाशित की गई थीं।

प्रश्न यह नहीं है कि यूजर्स की कुल संख्या कितनी है बल्कि एक्चुअल यूजर्स की कुल संख्या कितनी है, सीरियस यूजर्स की कुल संख्या कितनी है, कितने यूजर्स इसको तंग आकर छोड़ देते हैं। इन सोशल मीडिया की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से भी चलता है कि आजकल कुछेक महत्वपूर्ण व्यक्ति ट्विटर पर ट्वीट करते हैं, उन्हें पता है कि उनके ट्वीट को ट्विटर पर तो कोई पढ़ेगा नहीं तो वे फिर से समाचार पत्रों या इलेक्ट्रॉनिक टीवी मीडिया के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित-प्रकाशित करवाते हैं। पारंपरिक मीडिया भी इन्तजार कर रहा होता है कि आइये आपकी बात वहां नहीं बनी तो हम जनता तक आपकी बात पहुँचा देते हैं। कुल मिला कर हर व्यक्ति एक बार इस सोशल मीडिया का हिस्सा बनता है और शीघ्र ही परित्याग भी कर देता है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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