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स्फोटन (Blasting)

स्फोटन (Blasting) विस्फोटकों की सहायता से चट्टानों या इसी प्रकार के कठोर पदार्थों के तोड़ने फोड़ने की प्रक्रिया को कहते हैं। विस्फोटन से बड़ी मात्रा में उच्च ताप पर गैसें बनती हैं जिससे अकस्मात्‌ इतना तनाव उत्पन्न होता है कि वह पदार्थों के बीच प्रतिरोध हटाकर उन्हें छिन्न-भिन्न कर देता है। विस्फोटकों के उपयोग से पूर्व छेनी और हथौड़े से चट्टानें तोड़ी जाती थीं। यह बहुत परिश्रमसाध्य होता था। चट्टानों पर आग लगाकर गर्म कर ठंढा करने से चट्टानें विर्दीर्ण होकर टूटती थीं। तप्त चट्टानों पर पानी डालकर भी चट्टानों को चिटकाते थे। विस्फोटक के रूप में साधारणतया बारूद, कार्डाइट, डाइनेमाइट और बारूदी रूई (gun cotton) प्रयुक्त होते है।

विस्फोटन के लिए एक छेद बनाया जाता है। इसी छेद में विस्फोटक रख कर उसे विस्फुटित किया जाता है। छेद की गहराई और व्यास विभिन्न विस्तार के होते हैं। व्यास 3 सेमी से 30 सेमी तक का या कभी-कभी इससे भी बड़ा और गहराई कुछ मीटर से 30 मी तक होती है। सामान्य: छेद 4 सेमी व्यास का और 3 मी गहरा होता है। छेद में रखे विस्फोटक की मात्रा भी विभिन्न रहती है। विस्फोटन के पश्चात्‌ चट्टान चूर-चूर होकर टूट जाती है। चट्टान के छिन्न-भिन्न करने में कितना विस्फोटक लगेगा, यह बहुत कुछ चट्टान की प्रकृति पर निर्भर करता है।

चट्टानों में बरमें से छेद किया जाता है। बरमें कई प्रकार के होते हैं। जैसे हाथ बरमा या मशीन बरमा या पिस्टन बरमा या हैमर (हथौड़ा) बरमा या विद्युच्चालित बरमा या जलचालित बरमा। ये भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में काम आते हैं। सभी पक्ष या विपक्ष में कुछ न कुछ बातें कही जा सकती हैं। छेद हो जाने पर छेद की सफाई कर उसमें विस्फोटक भरते हैं। 1864 ई. तक स्फोटन के लिए केवल बारूद काम में आता था। अल्फ्रडे नोबेल ने पहले पहल नाइट्रोग्लिसरीन और कुछ समय बाद डाइनेमाइट का उपयोग किया। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य निरापद विस्फोटक भी खानों में प्रयुक्त होते हैं विशेषत: उन खानों में जिनमें दहनशील गैसें बनती या बन सकती हैं। बारूद को जलाने के लिए फ्यूज की जरूरत पड़ती है। बारूद से चारगुना अधिक प्रबल डाइनेमाइट होता है। डाइनेमाइट को जलाने के लिए 'प्रस्फोटक' की आवश्यकता पड़ती है। प्रस्फोटक को 'कैप' या टोपी भी कहते हैं। टोपी फ्यज प्रकार की हो सकती है या विद्युत्‌ किस्म की। आजकल विस्फोटकों का स्फोटन बिजली द्वारा संपन्न होता है। इन्हें 'वैद्युत प्रस्फोटक' कहते हैं। कभी-कभी प्रस्फोटक के विस्फुटित न होने से 'स्फोटन' नहीं होता इसे 'मिसफायर' कहते हैं।

स्फोटन के लिए 'विस्फोटकों' के स्थान में अब संपीडित वायु का प्रयोग हो रहा है। पहले 1940 ई. में यह विधिर निकली और तब से उत्तरोत्तर इसके व्यवहार में वृद्धि हो रही है। यह सतह पर या भूमि के अंदर समानरूप से संपन्न किया जा सकता है। इसमें आग लगने का बिल्कुल भय नहीं है। अत: कोयले की खानों में इसका व्यवहार दिन-दिन बढ़ रहा है।

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