सरकार ही प्रदूषित कर रही है नर्मदा

28 Jul 2010
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धार्मिक दृष्टि से अति पवित्र और प्रदेश की जीवन रेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए भारत सरकार ने मध्य प्रदेश को 15 करोड़ रुपयों की सहायता दी है। इसके अलावा राज्य सरकार भी नर्मदा जल को प्रदूषण से बचाने के लिए कई प्रकार के खर्चीले उपाय कर रही है, लेकिन इस सबके बाद भी नर्मदा में जल प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। कारण, सरकार स्वयं नर्मदा को गंदा कर रही है।

एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार नर्मदा नदी के तट पर बसे नगरों और बड़े गांवों के पास के लगभग 100 नाले नर्मदा नदी में मिलते हैं और इन नालों में प्रदूषित जल के साथ-साथ शहर का गंदा पानी भी बहकर नदी में मिल जाता है। इससे नर्मदा जल प्रदूषित हो रहा है। पिछले दिनों एक समारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने नर्मदा में बढ़ते प्रदूषण पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि नर्मदा मैय्या की जय बोलने से नदी शुद्ध होने वाली नहीं है। मुख्यमंत्री ने प्रत्येक नागरिक से जल प्रदूषण रोकने और नदी को शुद्ध बनाने के काम में सहयोग देने की अपील भी की, लेकिन इस सबके बाद भी नर्मदा में प्रदूषण कम नहीं हो रहा है, क्योंकि सरकार इस पवित्र नदी को प्रदूषण मुक्त करना ही नहीं चाहती है। नगरपालिकाओं और नगर निगमों द्वारा गंदे नालों के ज़रिए दूषित जल नर्मदा में बहाने पर सरकार रोक नहीं लगा पाई है और न ही आज तक नगरीय संस्थाओं के लिए दूषित जल के अपवाह की कोई योजना बना पाई है। राज्य के 16 ज़िले ऐसे हैं जिनके गंदे नालों का प्रदूषित पानी नर्मदा में प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहा है। नगरपालिकाओं और नगर निगमों द्वारा गंदे नालों के ज़रिए दूषित जल नर्मदा में बहाने पर सरकार रोक नहीं लगा पाई है और न ही आज तक नगरीय संस्थाओं के लिए दूषित जल के अपवाह की कोई योजना बना पाई है। राज्य के 16 ज़िले ऐसे हैं जिनके गंदे नालों का प्रदूषित पानी नर्मदा में प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहा है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्र के कटाव से भी नर्मदा में प्रदूषण बढ़ रहा है। कुल मिलाकर नर्मदा में 102 नालों का गंदा पानी और ठोस मल पदार्थ रोज़ बहाया जाता है, जिससे अनेक स्थानों पर नर्मदाजल खतरनाक रूप से प्रदूषित हो रहा है।

होशंगाबाद में 29 नाले हैं, मंडला में 16 और जबलपुर ज़िले में 12 बड़े नाले हैं जो नर्मदा को प्रदूषित कर रहे हैं। इनके अलावा खंडवा, बड़वानी और अनूपपुर ज़िलों में नौ-नौ, खरगौन में सात, डिंडौरी में छह और रायसेन ज़िले में पांच नाले नर्मदा को प्रदूषित करते हैं। अधिकृत सूत्रों के अनुसार गंदे पानी और ठोस मल पदार्थों के अलावा रासायनिक खाद और कीटनाशकों का पानी भी नर्मदा में बहाया जाता है। नर्मदा-कछार में अब पहले जैसा वनक्षेत्र नहीं रह गया है और कृषि क्षेत्र में लगातार वृद्धि हो रही है। लाभकारी खेती के लिए किसान कई प्रकार के रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। एक फसल के दौरान पांच से सात बार सिचाई भी होती है। इसके बाद भी खाद और कीटनाशकों के घातक रसायन खेत की मिट्‌टी में घुल-मिल जाते हैं जो वर्षाकाल में पानी के साथ बहकर नर्मदा नदी में मिलते हैं और इससे प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। वनक्षेत्रों में कमी के कारण मिट्टी और मुलायम चट्टानों में कटाव से भी नदी में जमाव बढ़ रहा है और प्रदूषण फैल रहा है।

सरकार का जल संसाधन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मंडल नदी जल में प्रदूषण की जांच करता है और प्रदूषण स्तर के आंकड़े काग़ज़ों में दर्ज कर लेता है, लेकिन प्रदूषण कम करने के लिए सरकार कोई भी गंभीर उपाय नहीं कर रही है। सरकारी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अमरकंटक और ओंकारेश्वर सहित कई स्थानों पर नर्मदा जल का स्तर क्षारीयता पानी में क्लोराईड और घुलनशील कार्बनडाईऑक्साइड का आंकलन करने से कई स्थानों पर जल घातक रूप से प्रदूषित पाया गया। भारतीय मानक संस्थान ने पेयजल में पीएच 6.5 से 8.5 तक का स्तर तय किया है, लेकिन अमरकंटक से दाहोद तक नर्मदा में पीएच स्तर 9.02 तक दर्ज किया गया है। इससे स्पष्ट है कि नर्मदाजल पीने योग्य नहीं है और इस प्रदूषित जल को पीने से नर्मदा क्षेत्र में ग़रीब और ग्रामीणों में पेट से संबंधित कई प्रकार की बीमारियां फैल रही है, इसे सरकारी स्वास्थ्य विभाग भी स्वीकार करता है। जनसंख्या बढ़ने, कृषि तथा उद्योग की गतिविधियों के विकास और विस्तार से जल स्त्रोतों पर भारी दबाव पड़ रहा है। गर्मी के मौसम में मध्य प्रदेश में नर्मदा तट के ही कई गांव और शहरों में भीषण जल संकट की स्थिति निर्मित हो जाती है। ऐसे में नर्मदा जल को प्रदूषण से बचाने के उपाय गंभीरता से नहीं हो रहे हैं, यह एक गंभीर चिन्ता का विषय है। यह चिंता तब और भी बढ़ जाती है, जब जनता की सरकार, नर्मदा के धार्मिक-सामाजिक महत्व को अपनी राजनीति के लिए तो भुनाती है और नर्मदा जल को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर लाखों करोड़ों खर्च भी करती है, तो दूसरी ओर नगरीय संस्थाएं ग़ैर ज़िम्मेदारी से काम करते हुए गंदे नालों का पानी नर्मदा में बहाकर नदी की पवित्रता को रोज़ नष्ट करती हैं।

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