सृजनात्मकता की बूँदाबाँदी
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सृजनात्मकता की बूँदाबाँदी
सोलह सौ वर्ष पहले लिखित ‘यक्ष’ बताता है कि मानसून इस उपमहादेश की सृजनात्मक अभिव्यक्ति को कितना प्रभावित करता है।
मानसून - सृजनात्मकता की बूँदाबाँदी
क्या तुम मेरी प्रेमिका के पास मेरा सन्देश पहुँचा दोगे।
“धरती की महक से युक्त शीतल मंद हवा तुम्हारी फुहारों से तरोताजा हैं, इस आनन्दप्रद समीर में हाथी जोर से साँस लेते हैं, यह समीर जंगलों में अंजीर को परिपक्व करता है और तुम्हें शीतल करता है, तुम जो देवगिरि की ओर प्रस्थान करना चाहते हो।’’
‘ओ सजना बरखा बहार आई, से लेकर ‘घनन घनन घिर आए बदरा,’
‘अब के सावन घर आ जा संवरिया’
‘सावन की बूँदनिया’
‘अम्मा मेरे भैया को भेजो री के सावन आया,’