ससुर खदेरी नदी को पुनर्जीवित करने का भगीरथ-पराक्रम


उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद में एक नदी को पुनर्जीवित करने का भगीरथ-पराक्रम किसी के लिये भी प्रेरणादायक हो सकता है। मानवीय प्रयास द्वारा ससुर खदेरी नामक विलुप्त नदी को पुनर्जीवित कर दिया गया है।

प्रदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि ससुर खदेरी नदियों को पुनर्जीवित करने का काम कतई आसान नहीं था, जब तक कि स्थानीय नागरिकों, जिला प्रशासन, शासन व सरकार का सहयोग न मिलता। स्वतंत्रता पूर्व फतेहपुर जनपद में ससुर खदेरी नं.1 और ससुर खदेरी नं.2 नामक दो नदियाँ बहती थीं। इन नदियों के नाम के पीछे इस क्षेत्र में प्रचलित ग्रामीण अनुश्रुतियों के अनुसार एक नव विवाहित धर्मपरायण स्त्री प्रतिदिन गाँव के पास झील में स्नान करके पूजा करती थी। एक दिन उसके ससुर की बुरी नजर उस पर पड़ी और उसने बहू को पकड़ने का प्रयास किया। स्त्री ने अपनी आबरू की रक्षा के लिये भागते-भागते यमुना में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। परिणामस्वरूप झील से कई धाराएँ निकलीं, जिन्होंने स्त्री के ससुर को भी यमुना में डुबो दिया। ये जलधाराएँ ही ससुर खदेरी नाम से जानी गईं।

बहरहाल, ये दोनों नदियाँ फतेहपुर जनपद की कई झीलों से निकलकर फतेहपुर और इलाहाबाद के बीच दो सौ किलोमीटर का मार्ग तय करते हुए यमुना नदी में मिल जाती थी।

ससुर खदेरी नं. 2 नदी फतेहपुर शहर से करीब 25 किलोमीटर दूर ठिठौरा गाँव से सटी एक झील से निकलती थी और लगभग 80 किलोमीटर का प्रवाह क्षेत्र तय करके विजयीपुर नामक गाँव के पास यमुना में मिल जाती थी।

ग्रामीणों का मानना है कि स्वतंत्रता के बाद चकबंदी शुरू होने के साथ ही वहाँ के बाहुबली किसानों ने झील से नदी के निकास को बंद करके उसके बहाव क्षेत्र को खेत के रूप में परिवर्तित कर दिया।

एक बार अत्यधिक वर्षा के कारण झील में पानी बढ़ने से आस-पास के गाँव पानी में डूब गए। इससे स्थानीय प्रशासन हरकत में आया और झील के वास्तविक निकास को न समझते हुए ग्रामीणों को त्वरित राहत देने के लिये एक नाली खोदकर झील के पानी को गंगा में डाल दिया। इस तरह बाढ़ के पानी से गाँव को राहत मिल गई परंतु झील सूख गई। साथ ही नदी का अस्तित्व भी समाप्त हो गया। परिणाम यह हुआ कि आस-पास का भूजल स्तर गिर गया और क्षेत्र में पानी का संकट हो गया। इन नदियों को पुनर्जीवित करने का काम किसी व्यक्ति विशेष द्वारा संभव नहीं था। यह सामूहिक प्रयास से ही हो सकता था।

नदी को पुनर्जीवित करने में फतेहपुर फोरम नामक संगठन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह फोरम फतेहपुर के ऐसे व्यक्तियों का संगठन है, जिन्होंने इस छोटे-से जनपद से निकलकर विभिन्न क्षेत्रों में देश में अपना व जनपद का नाम रोशन किया है। इस फोरम के अध्यक्ष भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप श्रीवास्तव हैं, जो नवंबर 2012 में पुलिस महानिदेशक, चंडीगढ़ पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवा में रहते हुए भी उन्होंने सामाजिक उत्थान के अनेक सराहनीय कार्य किए। चाहे अंडमान-निकोबार में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रहते हुए वहां की जनजातियों के लिए किए गए कार्य हों या फिर गोवा में डीआईजी रहते हुए पर्यटकों की सुरक्षा के लिए किए गए काम हों।

प्रदीप श्रीवास्तव ने अपना सबसे अधिक समय दिल्ली पुलिस में व्यतीत किया है। दिल्ली पुलिस में रहते हुए उन्होंने महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और अपनी एक अलग पहचान छोड़ी। उनका एक सराहनीय कार्य दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान देना था। उन्होंने महसूस किया कि दिल्ली पुलिस के जवानों के बच्चों को दिल्ली में पब्लिक स्कूल की शिक्षा मिलने में कठिनाई होती है, इसलिए क्यों न दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल के नाम से एक स्कूल खोला जाए, जहाँ प्राथमिकता के आधार पर दिल्ली पुलिस के जवानों के बच्चों को शिक्षा मिले।

यह कार्य आसान नहीं था, इसके लिये बहुत पैसे की आवश्यकता थी। लेकिन उन्होंने यह सिद्ध किया कि यदि लगन व इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम असाध्य नहीं है। पैसे इकट्ठा करने के लिये दिल्ली में उन्होंने सिनेमा के कलाकारों की कई स्टार नाइट्स का आयोजन कराया। परिणामस्वरूप दिल्ली पुलिस पब्लिक स्कूल बनकर तैयार हो गया। आज वहाँ न केवल दिल्ली पुलिस के जवानों के बच्चे, बल्कि समाज के अन्य बच्चे भी पब्लिक स्कूल की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

सेवानिवृत्त होने के बाद अब प्रदीप श्रीवास्तव ने फतेहपुर जनपद के विकास का बीड़ा उठाया है। वे बताते हैं कि ससुर खदेरी नदियों को पुनर्जीवित करने का काम कतई आसान नहीं था, जब तक कि स्थानीय नागरिकों, जिला प्रशासन, शासन व सरकार का सहयोग न मिलता। उत्तर प्रदेश के कुछ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जो उनके साथ के हैं, उनका इस कार्य में खूब सहयोग मिला। इनमें से एक आलोक रंजन उस समय प्रमुख सचिव, सिंचाई, उत्तर प्रदेश थे। वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त हैं। उन्होंने फतेहपुर के जिला अधिकारी श्रीमती कंचन वर्मा को निर्देश दिया कि यह कार्य मनरेगा द्वारा कराया जाए। पर इसके बाद भी ग्रामीणों के विरोध के कारण यह कार्य आसान नहीं था।

श्रीवास्तव जी कहते हैं कि यह कार्य स्वामी विज्ञानानंद जी के सहयोग के बिना संभव नहीं था। स्वामी विज्ञानानंद जी का फतेहपुर जनपद में सभी वर्गों में बहुत सम्मान है। स्वामी जी ने ओम घाट नाम से भिठौरा में गंगा के तट पर एक मनोरम घाट का निर्माण कराया है। भिठौरा का वही महत्व है, जो वाराणसी का। गंगा अपने संपूर्ण प्रवाह क्षेत्र में दो जगह उत्तरवाहिनी बहती हैं- एक वाराणसी में, दूसरा भिठौरा में।

स्वामी जी ने भिठौरा से गंगा सफाई का महत्त्वपूर्ण अभियान चलाया है। पदयात्रा करना उनकी रुचि है। इसी पदयात्रा के दौरान ससुर खदेरी नदी नं. एक के उद्गम स्थान पर पहुँचे। वहाँ पहुँचकर वे अचंभित रह गए, क्योंकि जहाँ एक समय भूजल स्तर इतना ऊपर था, वहाँ गाँव के लोग पीने के पानी को तरस रहे थे। उन्होंने महसूस किया कि कुछ समय में यहाँ का हाल तो राजस्थान से भी बदतर हो जाएगा। उन्होंने इसका कारण जानने की कोशिश की कि एक समय जो भूमि बहुत उर्वर थी, वह बंजर क्यों हो गई। इस संबंध में उन्होंने इतिहास की एक घटना का भी जिक्र किया।

तुगलक शासन मुहम्मद तुगलक के शासनकाल में राजधानी परिवर्तन के कारण उसका खजाना खाली हो गया तो उसके वजीरों ने सलाह दी कि दोआब में कर वृद्धि कर दी जाए। यह दोआब वही था, जहाँ गंगा-यमुना के मध्य ससुर खदेरी नदियां बहती थीं।

स्वामी जी ने प्रथम प्रयास में गाँववालों को नदियों का महत्व समझाते हुए उन्हें पुनर्जीवित करने की बात की जिसका घोर विरोध हुआ। जिन किसानों की जमीन झील व नदी बनने में जा रही थी, उनके द्वारा आपत्ति की गई।

स्वामी जी ने द्वितीय प्रयास में गाँव के 80 प्रतिशत प्रबुद्ध व समृद्ध लोगों को नदी को पुनर्जीवित करने के पक्ष में राजी कर लिया। 20 प्रतिशत लोग अभी भी इसके पक्ष में नहीं थे, लेकिन 80 प्रतिशत लोगों के आगे उनकी एक न चली। इस प्रकार मानवीय प्रयास व जिला प्रशासन, शासन तथा सरकार के सहयोग से झील व लगभग 40 किलोमीटर लंबी ससुर खदेरी नं. 2 पुनर्जीवित हो गई।

प्रदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि इस कार्य में जिला प्रशासन-शासन व स्थानीय लोगों द्वारा सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ। उनका मानना है कि प्रदेश की वर्तमान समाजवादी सरकार के सहयोग से यह असाध्य कार्य अल्प समय में पूरा हो गया। अभी हाल ही में वन विभाग द्वारा झील व नदी तटों पर वृक्षारोपण का कार्य कराया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अनुदानित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रोडक्शन सेंटर आईआईटी रुड़की शाखा द्वारा झील व नदी का वृत्तिचित्र भी बनाया गया है। उनका मानना है कि अगर सरकार व शासन-प्रशासन का सहयोग इसी प्रकार मिलता रहा तो शीघ्र ही ससुर खदेरी नं. 1 भी पुनर्जीवित हो उठेगी और यह क्षेत्र फिर से अपने उपजाऊपन से देश में विख्यात हो जाएगा।

श्रीवास्तव जी ने बताया कि जो झील पुनर्जीवित की गई है उसकी अर्द्धचंद्राकार परिधि लगभग नौ किलोमीटर है, जो नैनीताल झील के लगभग दोगुने के बराबर है। यह भविष्य में प्रवासी व देशी पक्षियों की शरणास्थली हो सकती है, जहाँ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। इस प्रकार आधुनिक भागीरथों ने वह कार्य कर दिखाया, जो किसी ने सोचा भी न था।

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