सुखना झील: समाधान का रोडमेप

फाइल फोटो: सुखना झील
फाइल फोटो: सुखना झील

फाइल फोटो: सुखना झील

चंडीगढ़ की सुखना झील पर उच्च न्यायालय का बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया है। यह फैसला अनेक मायनों में लैन्डमार्क फैसला है क्योंकि फैसले में निम्न बेहद महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित किया गया है -

1 - उच्च न्यायालय के फैसले के पैरा 10 के अनुसार सुखना झील की निगरानी और सुरक्षा का काम चंडीगढ़ के लोग करेंगे क्योंकि चंडीगढ़-वासी ही उसके संरक्षक हैं। उच्च न्यायालय का यह निर्देश चंडीगढ़ के लोगों को निगरानी और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपना है। उम्मीद है उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में झील की निगरानी और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सामाजिक ढाँचा विकसित किया जावेगा। वह अपनी परिषद का गठन करेगा। निर्णय लेगा और उन्हें लागू करने के लिए आगे आवेगा। क्रियान्वयन जन सहभागिता से होगा और संपूर्ण प्रक्रिया पारदर्शी होगी। परिषद के अप्रभावी होने का अर्थ अवमानना हो सकता है।

2 - उच्च न्यायालय के फैसले के पैरा 09 में चंडीगढ़ प्रशासन को कहा गया है कि वह सुखना झील से बडे पैमाने पर गाद निकालने का काम कराए और स्टोरेज क्षमता को बढ़ाया जाए। एक बार लक्ष्य पाने के बाद उसे बरकरार रखा जाए।

ज्ञातव्य है कि सुखना झील की निर्माण के समय की क्षमता 1074.4 हैक्टर मीटर थी। सन 2005 में वह क्षमता घटकर 513.28 हैक्टर मीटर अर्थात आधें से भी कम हो गई। सन 2020 में स्थिति में उसकी क्षमता कितनी बची होगी, का अनुमान लगाना होगा और मूल क्षमता को हासिल करने के लिए झील में डेड-स्टोरेज के ऊपर तक जमा गाद का निपटान करना होगा।

ज्ञातव्य है कि सुखना झील के कैचमेंट का ढ़ाल 30 डिग्री से 75 डिग्री तक और गाद के निर्माण की दर लगभग 150 टन प्रति हैक्टर है। बरसात के दिनों में बाढ़ के पानी के साथ यह गाद तीन नदियों (नागथेवाली, नेपली और घेरारी नदी) के मार्फत सुखना झील में आती है। उसकी हर साल आने वाली मात्रा का मौटा-मौटा अनुमान कैचमेंट के क्षेत्रफल 10,395 एकड के आधार पर आसानी से लगाया जा सकता है।

गाद प्रबंध को समझने के लिए उसके और पानी के अन्तरंग सम्बन्ध को समझना आवश्यक है। जल वैज्ञानिक बताते हैं कि गाद का प्रबंध झील के कैचमेंट या मुख्य झील या झील के डाउनस्ट्रीम में किया जा सकता है। मौजूदा व्यवस्था के अनुसार सुखना में कैचमेंट से आने वाली गाद का प्रबंध कैचमेंट में किया जा रहा है। इसके लिए वे सारे प्रयास किए गए हैं जिनका विवरण तकनीकी साहित्य तथा सरकारी विभागों के निर्देशों में मिलता है। चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा माननीय न्यायालय को बताया गया है कि उनके द्वारा 192 गाद अवरोधक और 200 चेकडेम बनाए गए हैं। मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए पक्की संरचनाओं के साथ-साथ वानस्पतिक उपचार किए गए हैं। बड़े पैमाने पर खैर, कीकर, नीम, पीपल, करोंदा, जंगल जलेबी, जामुन, गूलर, खेजडी, शीशम इत्यादि के वृक्ष लगाए गए हैं। यह विवरण न्यायालय के फैसले के पेज 7 और 8 पर उपलब्ध है।

3- उच्च न्यायालय ने अपने फैसले के पैरा-06 में पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन को निर्देशित किया है कि वे सुखना झील को वेटलैंड (कंजरव्हेशन एंड मैनेजमेंट) नियम 2017 के तहत वेटलैंड घोषित करें।

4 - उच्च न्यायालय ने अपने फैसले के पैरा-07 में वन मंत्रालय को कहा गया है कि वे सुखना वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से एक किलोमीटर का इलाक़ा इको-सेंसव्टिह जोन घोषित करें।

5 - उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में सुखना झील को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया है।

उच्च न्यायलय के फैसले की पालना में अनेक चुनैतियाँ हैं। सबसे पहली चुनौती (देखें पैरा 09) है गाद की विशाल मात्रा का निपटान कहाँ हो ? क्या गाद की उस समूची मात्रा का उपयोग संभव है ? गाद प्रबंध में सरकारी अमले के साथ-साथ सुखना झील की निगरानी और सुरक्षा के लिए लोगों के संगठन (देखें पैरा 10) की भूमिका क्या होगी ? उससे से भी बड़ी समस्या है - एक बार गाद निपटान के लक्ष्य को पाने के बाद उसे कैसे बरकरार रखा जाएगा।

सुखना झील की असली समस्या है गाद का प्रबन्ध। इस समस्या का सम्बन्ध उसके कैचमेंट से आने वाले पानी और गाद की मात्रा, झील में जलसंचय और वेस्टवियर से अतिरिक्त पानी और गाद की निकासी से है। ग़ौरतलब है कि गाद जमाव, पाश्चात्य विज्ञान के आधार पर बनाई जल संरचनाओं की लाइलाज समस्या है। नीचे दी तालिका में भारत में पाश्चात्य विज्ञान के आधार पर बने सिंचाई परियोजनाओं में गाद जमाव की दर दी गई है-
 

क्रमांक

सिंचाई परियोजना का नाम 

गाद जमाव दर (ha-m/100 km2

01

भाखरा 

6.00

02

हीराकुंड

3.89

03

पंचेत 

9.92

04

गांधीसागर  

10.05

05

मैथान

13.02

06

रामगंगा 

17,30

07

दन्तीवाडा

6.32

08

मंचकुण्ड 

2.33

09

तवा 

8.10

10

मयूराक्क्षी

20.09

11

तुंगभद्रा 

6.00

12

निजामसागर 

6.57

सूची में उल्लिखित सभी बांधों के जलाशयों में गाद-साद जमाव की दर

सूची में दर्ज सभी जलाशयों का भविष्य सुखना झील की ही तरह है। उनके मूल दस्तावेज़ों में उनकी ‘एक्सपायरी डेट’ दर्ज है। यदि कभी गाद निकासी का निर्णय लिया तो ज्ञात होगा कि इनमें जमा गाद की मात्रा इतनी विशाल है कि देश की भूमि पर उसका निपटान संभव नही है। अब कुछ बात भारत के परंपरागत जल विज्ञान की।

भारत के परंपरागत जल विज्ञान में गाद के प्रबंध का काम कैचमेंट से प्रारंभ होता था। गाद को सबसे पहले अनेक तरीकों से कैचमेंट में रोकने का इन्तज़ाम किया जाता था। यह पहली व्यवस्था थी। गाद प्रबंध की दूसरी व्यवस्था के अंतर्गत शृंखलाबद्ध जलाशयों का निर्माण किया जाता था। इस व्यवस्था में कैचमेंट से आने वाला गादयुक्त पानी, सबसे पहले सबके ऊपर के जलाशय में जमा होता है। इस व्यवस्था के कारण गाद का कुछ अंश सबके ऊपर स्थित जलाशय में ही रुक जाता है। कम गादयुक्त पानी नीचे के जलाशय में पहुँचता है। इस व्यवस्था के कारण नीचे के जलाशय को अपेक्षाकृत कम गाद मिलती है। इस व्यवस्था के कारण सबसे नीचे वाले तालाब का पानी काफी हद तक गाद मुक्त होता है। यह व्यवस्था मानसूनी जलवायु वाले क्षेत्रों के लिए बहुत कारगर है। श्रंखला का सबसे ऊपर का तालाब अकसर छोटा होता है। सिल्ट प्रबंध की तीसरी व्यवस्था के अंतर्गत कैचमेंट से आने वाले गादयुक्त पानी, जलाशय के जलसंचय और वेस्टवियर से पानी की निकासी के बीच सटीक सन्तुलन बनाया जाता था। उस सन्तुलन के कारण कैचमेंट से आने वाली गाद का अधिकांश भाग, वेस्टवियर के रास्ते बाहर निकल जाता था और जलाशय काफी हद तक गाद मुक्त रहता था। इसी कारण परंपरागत जलाशय/तालाब दीर्घजीवी और लगभग गाद मुक्त होते थे। उनकी आयु 500 से 1000 साल होती थी। सुखना, आधुनिक विज्ञान के आधार पर बनी झील है।

आधुनिक काल में बांधों और जलाशयों/तालाबों/झीलों का निर्माण, भारत के परम्परागत विज्ञान के स्थान पर पाश्चात्य जलविज्ञान के आधार पर किया जाता है। पाश्चात्य जलविज्ञान के अनुसार निर्मित जल संरचनाओं में गाद मुक्ति संभव नहीं है। मिट्टी के कटाव को रोकने वाली संरचनाओं के निर्माण से गाद का बनना कम किया जा सकता है। खत्म कभी नहीं।

पाश्चात्य जलविज्ञान के अनुसार गाद के हटाने के काम को खुदाई, ड्रेजिंग तथा पानी को विविध यांत्रिक तरीकों से किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि पाश्चात्य जलविज्ञान में गाद के प्रबंध को वह स्थान या वरीयता हासिल नहीं है जो अन्य घटकों को है। किसी हद तक वह अनदेखी का भी शिकार है। लेखक का मानना है कि यदि पाश्चात्य जलविज्ञान के स्थान पर भारत के परंपरागत जल विज्ञान को अपनाया जाता है तो सुखना झील के पुराने गौरव को लौटाया जा सकता है।
 

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