सुप्रीम कोर्ट हवाओं में जहर फैलाने वाले पटाखों पर लगाया रोक

1 Jan 2017
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एक तरफ देश के पर्यावरण को बचाने और प्रदूषण को दूर करने का आदर्श है तो दूसरी तरफ कारोबार चलाने और रोजगार देने की जमीनी चुनौती है। विकास को रफ्तार देने के लिये संकल्प जताने वाली सरकारें जानती हैं कि तरक्की की कीमत पर्यावरण को उठानी पड़ती है, इसीलिये वे पर्यावरणीय नियमों के क्रियान्वयन में ढील देने की हिमायत करती हैं और उसके लिये अदालतों पर दबाव भी डालती हैं। हाल में राजधानी में यमुना की धारा के बीच हुए विश्व सांस्कृतिक महोत्सव पर एनजीटी का अपने आदेश से पीछे हटना इसका एक उदाहरण है। दीपावली के बाद दिल्ली की हवा में सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुँच गया था। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लोगों का जीना मुहाल हो गया था। तब दिल्ली और केन्द्र सरकार इस मामले में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे थे। दोनों सरकारों के इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई। राजधानी में प्रदूषण की कमी न होते देख अब अदालत ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक दिल्ली-एनसीआर में पटाखों को स्टॉक करने, बेचने के लिये दिये गए लाइसेंसों को कैंसिल करने के निर्देश दिये। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगले ऑर्डर तक कोई भी लाइसेंस रिन्यू नहीं किये जाएँगे। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्रीय पर्यावरण प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को पटाखों में इस्तेमाल होने वाले चीजों के खतरनाक प्रभाव की स्टडी करने के लिये तीन महीनों का वक्त दिया है।

अदालत ने यह भी कहा है कि अध्ययन में इस बात का भी पता लगाया जाय कि पटाखों में कितने खतरनाक रसायन का प्रयोग किया जा रहा है। गौरतलब हो कि दिवाली के बाद राजधानी दिल्ली की हवा में सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर बेहद खतरनाक स्तर पर पहुँच गया था। वहीं एनसीआर की बात करें तो सबसे ज्यादा प्रदूषण रिकॉर्ड नोएडा में दर्ज किया गया था। इसके अलावा सीपीसीबी ने पिछले साल 15-30 अक्टूबर के दौरान सात महानगरों दिल्ली, लखनऊ, मुम्बई, बंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद तथा कोलकाता के 35 स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण की निगरानी की। इसमें दीपावली के पूर्व, दौरान एवं बाद की अवधि को भी शामिल किया गया।

प्रत्येक शहर के पाँच-पाँच स्थान शामिल किये गए। जिसमें औद्योगिक, व्यावसायिक, आवासीय एवं शान्त क्षेत्र शामिल थे। सर्वेक्षण का सबसे बड़ा चौंकाने वाला नतीजा यह निकला है कि रात में हर शहर के हर स्थान पर शोर का स्तर तय मानकों से ज्यादा है। जबकि दिन में कई बार यह तय मानकों के भीतर पाया गया।

दरअसल, बड़े-बड़े शहरों और महानगरों में रात के समय भी होटल से लेकर गाड़ियों की आवाजाही बनी रहती है। ट्रकों का शहर में प्रवेश रात के समय ही होता था। इसलिये अब यह माना जाना चाहिए कि प्रदूषण करने में रात और दिन का अब कोई मतलब नहीं रह गया है। दिल्ली ही क्या सारे शहरों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड है। जिसका काम प्रदूषण के रोकथाम के लिये काम करना है।

यह संस्था इतनी महत्त्वपूर्ण है कि यदि इसके सुझाओं को ही शासन-प्रशासन माने तो काफी सुधार हो सकता है। प्रदूषण समाप्त करने और हरियाली को संरक्षित करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण बना है। लेकिन एनजीटी के निर्देशों पर शासन आनाकानी करता रहता है।

गौर से देखा जाये तो पर्यावरणीय मामलों के लिये बनाई गई सुप्रीम कोर्ट की पीठ राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) और सरकारों व औद्योगिक ताकतों के बीच एक तरह का शीतयुद्ध चलता रहता है। उसी संघर्ष के तहत एनजीटी ने सात राज्यों से उनके सबसे प्रदूषित शहरों की सूची एक दिन के भीतर माँगी है और उसे पेश न करने पर सरकार के विरुद्ध वारंट जारी करने की चेतावनी दी है।

अब देखना है कि सरकारें उस आदेश का पालन करते हुए अपने शहरों के प्रदूषण का आँकड़ा पेश करती हैं या कोई नया बहाना बनाकर समय माँग लेती हैं। एनजीटी ने जबसे दिल्ली समेत देश के दूसरे नगरों में वायु प्रदूषण कम करने के लिये कदम उठाने शुरू किये हैं तब से डीजल गाड़ियों की लॉबी और उनके दबाव में काम करने वाली सरकारों के बीच हड़कम्प मचा है। दिल्ली में डीजल गाड़ियों के पंजीयन पर रोक के खिलाफ अदालत में तो रियायत माँगते हुए आवेदन गए ही हैं साथ ही राजनीतिक स्तर पर भी लामबंदी तेज हो गई है।

इसी तरह देश के 11 बड़े शहरों में डीजल गाड़ियों पर पाबन्दी के प्रस्ताव के विरुद्ध भारी उद्योग मंत्रालय ने एनजीटी में आवेदन प्रस्तुत किया है। एक प्रकार से यह जनता के स्वास्थ्य और उसके कारोबार के बीच अन्तरसंघर्ष है, जिसमें दोनों तरफ के अपने तर्क हैं और बहुत आसानी से किसी को खारिज नहीं किया जा सकता।

एक तरफ देश के पर्यावरण को बचाने और प्रदूषण को दूर करने का आदर्श है तो दूसरी तरफ कारोबार चलाने और रोजगार देने की जमीनी चुनौती है। विकास को रफ्तार देने के लिये संकल्प जताने वाली सरकारें जानती हैं कि तरक्की की कीमत पर्यावरण को उठानी पड़ती है, इसीलिये वे पर्यावरणीय नियमों के क्रियान्वयन में ढील देने की हिमायत करती हैं और उसके लिये अदालतों पर दबाव भी डालती हैं।

हाल में राजधानी में यमुना की धारा के बीच हुए विश्व सांस्कृतिक महोत्सव पर एनजीटी का अपने आदेश से पीछे हटना इसका एक उदाहरण है। ऐसी स्थिति में इस बात की चौकसी होनी चाहिए कि एनजीटी जैसी शीर्ष संस्था का आदेश महज कागजी बनकर न रह जाये और उसे लागू करने में सरकारें पूरा सहयोग दें।

भारी दबाव के बीच राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का स्तर घटाने के लिये दिल्ली सरकार ने केन्द्र से कानून में शहर में प्रवेश करने वाले 15 साल पुराने वाहनों पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान करने का आह्वान किया है। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री आसिम अहमद खान ने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री को 15 साल पुराने वाहनों को यहाँ चलने से निरुत्साहित करने के लिये राजधानी में आने पर उन पर भारी जुर्माना लगाने का कानून में प्रावधान करने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा, 'राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण स्तर घटाने की सख्त आवश्यकता है और इस बात को ध्यान में रखते हुए हमें कुछ बड़े निर्णय लेने होंगे। अतीत में प्रदूषण पर अंकुश पाने से सम्बन्धित कई फाइलें तैयार हुई लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ।'

दिल्ली सरकार 10 साल से पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबन्ध का अध्ययन कर रही है राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में 10 साल से पुराने डीजल वाहनों को प्रतिबन्धित करने के कुछ घंटे बाद दिल्ली सरकार ने कहा है कि यह आदेश का अध्ययन करेगी और जल्द ही एक विस्तृत रिपोर्ट के साथ आएगी। एनजीटी ने कहा था कि 10 साल से पुराने सभी डीजल वाहनों को राष्ट्रीय राजधानी में चलने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

अधिकरण ने दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिये डीजल को प्रमुख स्रोत बताते हुए कहा था कि स्थिति इतनी चिन्ताजनक है कि लोगों को स्वास्थ्य के प्रतिकूल प्रभावों को लेकर दिल्ली छोड़ने की सलाह दी जा रही है। पीठ ने पिछले साल नवम्बर में दिल्ली में 15 साल से पुराने सभी तरह के वाहनों पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण पर काबू के लिये केन्द्र से कानून बनाने को कहा नगर में बढ़ते वायु प्रदूषण पर काबू पाने की कठिन चुनौती का सामना कर रही दिल्ली सरकार ने केन्द्र से कानून में सख्त प्रावधान करने को कहा है ताकि अन्य राज्यों से शहर में आने वाली 15 साल से ज्यादा पुरानी गाड़ियों पर भारी जुर्माना लगाया जा सके। लेकिन दिल्ली के पर्यावरण मंत्री, पर्यावरण के सम्मेलन में प्रदूषण पर काबू के लिये पूरे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में एक समान मानदंड बनाए जाने का केन्द्र से अनुरोध किया था। उन्होंने कहा कि चुनौती से निपटने के लिये पड़ोसी राज्यों द्वारा कदम उठाए जाने की जरुरत है।

दिल्ली सरकार यह कहती रही है कि अन्य राज्यों से आने वाले पुराने वाहनों की दिल्ली के प्रदूषण स्तर में वृद्धि में खासी भूमिका रही है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पिछले साल 26 नवम्बर को 15 साल से ज्यादा पुरानी सभी गाड़ियों (निजी कारें, दो पहिया वाहन, वाणिज्यिक वाहन, बसें और ट्रकों) के दिल्ली में चलने पर रोक लगा दी थी। एनजीटी ने अपने एक अन्य आदेश में आज कहा कि 10 साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी सभी डीजल गाड़ियों को दिल्ली में चलने की अनुमति नहीं होगी।

अधिकरण ने कहा कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत डीजल है। अधिकरण ने दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग और अन्य सम्बन्धित प्राधिकारों को 10 साल से ज्यादा पुराने वाहनों के रजिस्ट्रेशन का व्यापक आँकड़ा तैयार करने का निर्देश दिया।

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