शून्य बजट कृषि से खत्म होगी किसानों की समस्या

2 Aug 2019
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शून्य बजट कृषि से खत्म होगी किसानों की समस्या।
शून्य बजट कृषि से खत्म होगी किसानों की समस्या।

शून्य बजट कृषि से खत्म होगी किसानों की समस्या।

स्वतंत्रता प्राप्ति के 72 वर्ष बाद भी भारत की बहुसंख्यक आबादी आज भी कृषि पर आश्रित है। आबादी का लगभग 58 फीसद हिस्सा आज भी गाँवों में निवास करता है और मूलतः कृषि से जीवन यापन करता है। एक अनुमान के अनुसार गाँवों में रहने वाले लगभग 10 करोड़ परिवारों में से 70 फीसद परिवार अभी भी गरीबी रेखा के नीचे हैं। कृषि की उत्पादकता और किसानों की आय लगातार चिन्ता का विषय है। ऐसी विषम परिस्थिति में जहाँ आज प्रत्येक हाथ को उपयुक्त काम नहीं मिल रहा है, जीविका प्रभावित है, रोजगार का अभाव है, मन हताश और निराशा के चरम पर है। न्यू इंडिया और भारत को पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए कृषि, गाँव एवं किसान की समृद्धि पर विशेष ध्यान देना होगा।
 

शून्य बजट कृषि द्वारा एक एकड़ धान की फसल में कुल लागत शुरू में 3000 है और गेहूँ में ढाई हजार है। जबकि रासायनिक खाद के द्वारा खेती करते हैं, तब 1 एकड़ धान की खेती में 7000 से अधिक का व्यय होता है और गेहूँ की खेती में भी 6500 से अधिक का व्यय होता है। यही नहीं शून्य बजट कृषि की पैदावार जैविक उत्पादक की श्रेणी में आता है और इसका बाजार मूल्य एवं माँग रासायनिक खेती के उत्पाद से कई गुना ज्यादा है। 

यद्यपि कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए हरित क्रान्ति, श्वेत क्रान्ति, नीली क्रान्ति के रूप में कुछ प्रयोग अवश्य किए गए, परन्तु कृषि और किसान अभी भी अपने जीवन-यापन एवं आत्मनिर्भरता के लिए लगातार संघर्षरत हैं। एक तरफ गाँवों से लगातार पलायन हो रहा है तो दूसरी तरफ निराश और परेशान किसान प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं। 2019 का आम चुनाव इस कृषि समस्या के समाधान के लिए दिया गया एक निर्णायक बहुमत है। चुनाव पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा किसान सम्मान निधि की घोषणा एवं इसका अनुपालन इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था। किसानों की आय दोगुनी करना और कृषि स्वावलम्बी बनाना सरकार का पहली प्राथमिकता है। 5 जुलाई, 2019 को नव निर्वाचित सरकार के पहले बजट की प्रस्तुति में वित्त मंत्री ने इस समस्या के समाधान के लिए शून्य बजट कृषि, कृषि में आधारभूत संरचना पर निवेश, तिलहन उत्पादन, पशुपालन, मत्स्य पालन, कृषि उत्पादन संगठनों पर बल दिया है। सरकार का लक्ष्य कृषि उत्पादों का उचित मूल्य दिलाना एवं किसानों की आय दोगुनी करना है। शून्य बजट कृषि इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसका लक्ष्य कृषि लागत को न्यूनतम करना और किसानों की आत्मनिर्भरता को बढ़ाना है। शून्य बजट कृषि के तीन तत्व हैं-देशी गाय का गोबर व मूत्र, रसायनिक खाद से मुक्त बीज और स्वनिर्मित कीट रोधक। कृषि में आय दोगुनी करने की प्रक्रिया में किसानों का खेत पर जाना, हर खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ व 30-30 फुट पर फलदार पेड़ लगाना शामिल है। इसके अतिरिक्त गोपालन, गोमूत्र संचय और कम पानी में होने वाली सह फसलों पर आधारित खेती शून्य बजट कृषि की दिशा में अहम कदम है। इस खेती का सफल प्रयोग लगभग दो दशकों से देश के अनेक राज्यों में हो रहा है। सुभाष पालेकर ने इस खेती को अधात्मिक प्राकृतिक खेती के रूप में विकसित किया है और पूरे देश में इसका प्रचार-प्रसार एवं प्रशिक्षण भी दिया है। लोकभारती भी इस कार्य को गाँव का पैसा गाँव में और शहर का पैसा गाँव में के उद्घोष के साथ देशभर में प्राकृतिक खेती के विकास का संकल्प लिया है। स्वदेशी जागरण मंच ने भी फरवरी 2018 में राष्ट्रीय कार्यसमिति के अन्दर तब खादी अब खाद के प्रस्ताव को पारित कर शून्य बजट कृषि के प्रचार एवं विकास में अपने कदम को तेजी से आगे बढ़ाया है। शून्य बजट कृषि में 1 एकड़ खेती के लिए योग्य भूमि तैयार करने के लिए घन जीवामृत विधि का प्रयोग करना होता है। जीवामृत गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन, मिट्टी आदि से एक सरल प्रक्रिया द्वारा बनाया जा सकता है। इस जीवाणु युक्त सूखे खाद का छिड़काव कर जुताई करने पर जो केंचुए धरती के अन्दर छुपे हुए होते हैं, वह बेसन युक्त गोबर की सुगन्ध से ऊपर आ जाते हैं और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देते हैं। इसके उपरान्त बीजामृत की विधि से बीज का शोधन करते हैं। यदि फसल पर कीड़े लगते हैं तो कीटरोधक का प्रयोग करते हैं। उसे अग्नि अस्त्र कहते हैं।
 
इस शून्य बजट कृषि के प्रयोग से वित्त की उत्पादकता निरन्तर बढ़ती है और तीसरे वर्ष तक लगभग 13 कुंतल से अधिक धान और 12 कुंतल से अधिक गेहूँ पैदा होने लगता है। यदि हम इस विधि से होने वाली कृषि की बात करें तो शून्य बजट कृषि द्वारा एक एकड़ धान की फसल में कुल लागत शुरू में 3000 है और गेहूँ में ढाई हजार है। जबकि रासायनिक खाद के द्वारा खेती करते हैं, तब 1 एकड़ धान की खेती में 7000 से अधिक का व्यय होता है और गेहूँ की खेती में भी 6500 से अधिक का व्यय होता है। यही नहीं शून्य बजट कृषि की पैदावार जैविक उत्पादक की श्रेणी में आता है और इसका बाजार मूल्य एवं माँग रासायनिक खेती के उत्पाद से कई गुना ज्यादा है। आने वाले दिनों में न्यू इंडिया के निर्माण में शून्य बजट कृषि निश्चित ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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