स्वामी ज्ञानस्वरूप को हार्ट अटैक के बाद एम्स में भर्ती

20 Mar 2012
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हार्ट अटैक के बाद एम्स में भर्ती स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद
हार्ट अटैक के बाद एम्स में भर्ती स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद
नई दिल्ली। गंगा को निर्मल-अविरल बनाने के लिए आंदोलनरत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद सोमवार को भी विरोध करते रहे और उन्हें जबरन बीएचयू से दिल्ली के एम्स में शिफ्ट कर दिया गया। एयर एंबुलेंस से भेजे गए स्वामी सानंद के स्वास्थ्य के बारे में फिलहाल डॉक्टरों ने कुछ कहने से इंकार कर दिया है। खबर मिलने पर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भी एम्स जाकर स्वामी सानंद से मुलाकात की। अपना समर्थन जाहिर करते हुए कहा-'अब गंगा आंदोलन भी मेरे एजेंडे में शामिल हो गया है।'

प्रारंभिक जांच


अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से मिली जानकारी के अनुसार स्वामी सानंद को 1-बी आठ आइसीयू में रखा गया है, जहां उन्हें ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा है। एम्स प्रवक्ता डॉ. राकेश यादव ने बताया कि स्वामी सानंद को मेडिसिन विभाग में भर्ती कराया गया है और उनकी प्रारंभिक जांच की जा रही है। डॉ. एबी डे की अगुवाई में उनका इलाज चल रहा है। लेकिन अभी किसी भी स्थिति के बारे में बताना मुश्किल है।

सरकार को चिंता नहीं


एम्स पहुंचे अन्ना ने स्वामी के प्रति वाराणसी प्रशासन के व्यवहार को लेकर अफसोस जताया। कहा-'एक संत की यह दुर्गति आघात पहुंचाने वाली है। सानंद जी गंगा की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं और अपनी जान दांव पर लगा दी है। लेकिन सरकार को उनकी जरा भी चिंता नहीं है, वरना उनकी मांग पर सरकार विचार जरूर करती।' राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन अथॉरिटी के सदस्य और स्वामी सानंद के करीबी मित्र प्रो. वीरभद्र मिश्रा भी काफी आहत हैं। उन्होंने कहा कि गंगा को बचाने को लेकर अगर उन्हें कुछ हो जाता है तो इससे दुखद और कुछ नहीं होगा।

दिल्ली भेजने पर मतभेद


बताया गया है कि दिल्ली भेजे जाने को लेकर राजकीय चिकित्सक और बीएचयू के चिकित्सकों में मतभेद था। बीएचयू के चिकित्सक स्वामी सानंद का उपचार वाराणसी में ही करना चाहते थे। स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें अधिक से अधिक जीपीजीआई, लखनऊ भेजने के पक्ष में थे। लेकिन जिला प्रशासन और राजकीय चिकित्सकों की मंशा राज्य से बाहर भेजने की थी। इसको लेकर रविवार शाम से सोमवार सुबह तक पंचायत चलती रही। अंत में जिला प्रशासन के दबाव में स्वामी सानंद को दिल्ली भेजने का फैसला किया गया और एयर एंबुलेंस बुला ली गई। पूर्वाह्न 11.15 बजे एसीएम (तृतीय) भानुप्रताप सिंह की निगरानी में एक सहयोगी के साथ स्वामी सानंद को एम्स के लिए रवाना कर दिया गया।

कुछ हुआ तो केंद्र जिम्मेदार


वाराणसी के बाबतपुर हवाई अड्डे पर स्वामी सानंद ने अपना लिखित वक्तव्य भी जारी किया। 'मेरा वक्तव्य वाराणसी विमानपत्तान से-मैं स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद पिछले अनेक दिनों से गंगा जी की अविरलता, निर्मलता और सम्मान के लिए तपस्या पर हूं। मैं पूर्ण स्वस्थ्य हूं फिर भी प्रशासन द्वारा मुझे इस अस्पताल से उस अस्पताल घुमाया जा रहा है। समय जाया कर रहे हैं और मंशा भी साफ नहीं कर रहे हैं। मेरे सहयोगी भी मेरे पास नहीं हैं। यदि मुझे कुछ हो जाता है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी।'

आंदोलन क्यों


संन्यास से पूर्व स्वामी सानंद प्रो.जीडी अग्रवाल के नाम से जाने जाते थे। आइआइटी कानपुर के पूर्व फैकेल्टी होने के साथ-साथ सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् भी हैं। अलकनंदा और मंदाकिनी पर सरकार द्वारा डैम बनाए जाने की परियोजना का विरोध कर रहे स्वामी सानंद ने मकर संक्रांति से माघ पूर्णिमा तक केवल फल पर अनशन किया। फिर फाल्गुन पूर्णिमा तक अनशन जल पीकर किया। उसके बाद नौ मार्च से उन्होंने जल भी त्याग दिया था। अब उनकी तबीयत खराब होने लगी है। इस दौरान वह दस दिनों तक वाराणसी के केदारघाट पर डेरा जमाए रहे।

न शवदाह होगा,न नाव चलेगी


वाराणसी। अविरल-निर्मल गंगा की मांग को लेकर तपस्यारत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के एम्स भेजे जाते ही एक अन्य संत गंगाप्रेमी भिक्षु ने अन्न त्याग दिया है। इसके साथ ही शंकराचार्य घाट पर बुद्धिजीवियों, प्रबुद्धजनों और संतों की आपात बैठक में सात सूत्रीय एजेंडा तय किया गया। जिसमें एक दिन शवदाह व नौका संचालन ठप करने और गंगा आरती को संक्षिप्त करना शामिल है।

शंकराचार्य घाट पर हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि सायंकाल सात बजे से रात 10 बजे तक प्रतिदिन किसी एक घाट पर बैठक कर जनजागरूकता पैदा की जाएगी। साथ ही 20 मार्च, मंगलवार को राजेंद्र प्रसाद घाट पर माझी समाज की बैठक आयोजित की गई है, इसमें एक दिन नौका संचालन ठप करने का निर्णय किया जाएगा। इसके अलावा घाटों पर ब्लैक-आउट, शवदाह ठप करने, गंगा आरती को संक्षेप में करने, नगर के सभी संप्रदायों व धर्मों के लोगों से एक दिन का सामूहिक उपवास रखने पर चर्चा हुई। दूसरी ओर शंकराचार्य घाट पर जमे संत गंगाप्रेमी भिक्षु ने कहा है कि वह संतगुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से अनुमति मिलते ही वह जल को भी त्याग देंगे।

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