स्वतन्त्र आपदा निवारण मन्त्रालय बनाए केन्द्र सरकार

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कच्छ में भूकम्प आने के बाद भारत सरकार आपदा प्रबन्धन को लेकर जागी। नेपाल में आये भूकम्प की विनाशलीला को देखते हुए भारत सरकार को गम्भीर हो जाना चाहिए। खासतौर से दिल्ली इस खतरे को किसी भी हाल में नहीं झेल पाएगी। इसलिए केन्द्र सरकार को चाहिए कि वो अलग से एक स्वतन्त्र आपदा निवारण मन्त्रालय स्थापित करे। दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के आपदा प्रबंधन व एन्वायरमेंट विशेषज्ञ बीडब्लू पाण्डेय से नेशनल दुनिया के वरिष्ठ संवाददाता धीरेन्द्र मिश्र से बातचीत पर आधारित लेख।

6.5 पर ही जमींदोज हो जाएगी आधी दिल्ली

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के बीडब्लू पाण्डेय का नेपाल के विनाशकारी भूकम्प के बारे में कहना है कि दिल्ली में बहुत सारे एरिया ऐसे हैं जहाँ 6.5 रिक्टर स्केल पर ही नेपाल जैसे हालात हो जाएंगे। पुरानी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली का कई इलाका पूरी तरह से जमींदोज हो जाएगा। यही हाल कमोबेश दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका, बेर सराय, जिया सराय, कटवारिया सराय, अदचिनी, शेख सराय, जेएनयू, मोहम्मदपुर आदि क्षेत्रों का भी है। क्योंकि इन क्षेत्रों में निजी बिल्डर्स ने मल्टी स्टोरी मकान बना दिए हैं। इन क्षेत्रों में बने किसी भी मल्टी स्टोरी भवनों में भूकम्परोधी तकनीक तो दूर जरूरी मानदण्डों का भी पालन नहीं किया है। काठमाण्डू से 17 किलोमीटर के एक गाँव की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वहाँ पर क्या हुआ? एक भी घर तबाह होने से नहीं बचा। आपको पता है क्यों? क्योंकि ये सभी मकान लकड़ी के बने थे। घर के आस-पास ओपन स्पेस था। लोग भूकम्प आते ही घर से भाग निकले। लेकिन इसी सन्दर्भ के दिल्ली की बात करेंगे तो वलनरेबिलिटी प्वाइंट दस हो जाएगा, यानी यहाँ पर जान-माल का नुकसान बड़े पैमाने पर होगा। ऐसा इसलिए कि दिल्ली भवन ज्यों-ज्यों ऊपर की ओर बढ़ता है वह चौड़ा होता जाता है।

भवन सीमेंट के हैं पर बेस है कमजोर

ये भवन बेशक सीमेंट के बने हों पर उनके बेस कमजोर हैं। ऊपर का हिस्सा जरूरत से ज्यादा चौड़ा होने से भूकम्प की स्थिति में इसका सन्तुलन बिगड़ता है। इन भवनों के बेस कमजोर हैं। भूकम्प आने के बाद वहाँ पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने तक में दिक्कतें आएंगी। फायर ब्रिगेड तक का पहुँचना मुश्किल होगा। रही बात नेपाल जैसा भूकम्प आने की तो उसे तो छोड़िए अगर दिल्ली में 7.8 रिक्टर स्केल पर भूकम्प आ जाए तो लगभग सभी फ्लैट्स जमींदोज हो जाएंगे।

2001 के बाद बने भवनों में खतरा कम

यही कारण है कि 2001 के बाद जो दिल्ली में हाइराइज बिल्डिंग बनी हैं उनमें भूकम्प प्रतिरोधी क्षमता है। वो भूकम्प के दौरान विचलन को झेलने की स्थिति में है। इन भवनों में खतरा कम है। इसी तरह संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, रिज एरिया, दक्षिणी दिल्ली का अधिकांश क्षेत्र बलुई एरिया न होने से बेहतर स्थिति में है। इसलिए 7.5 तीव्रता भूकम्प की स्थिति में संसद भवन व अन्य पुराने भवन नहीं गिरेंगे। जबकि सीलमपुर और अनधिकृत कॉलोनियाँ, जेजे क्लस्टर, पुराने सरकारी फ्लैट्स, 2001 से पहले बने सरकारी फ्लैट्स धराशायी हो जाएंगे। क्योंकि फिजिकल और ह्यूमन फैक्टर के लिहाज से यह क्षेत्र हाई रिस्क जोन के दायरे में है।

जमीन की प्रतिरोधी क्षमता कम

दिल्ली की भौगोलिक दृष्टि से बात की जाए तो पूर्वी दिल्ली का क्षेत्र बलुई मिट्टी (सैंडी एलूवियल) वाली है। इसकी प्रतिरोधी क्षमता कम होती है। वलनरेबिलिटी बहुत ज्यादा होता है। एक सर्वे में सीलमपुर एरिया की स्थिति तो यह उभरकर आई थी कि कोई बचकर भागना भी चाहेगा तो नहीं भाग पाएगा। क्योंकि इस क्षेत्र में कल्चरल और फिजिकल दोनों दृष्टि से पूर्वी दिल्ली का इलाका रिस्क जोन में।

जोन के लिहाज से भी दिल्ली अति संवेदनशील

जोन के हिसाब से बात किया जाए तो पहले पूरे देश को पाँच जोन में बाँटा गया था। अब चार जोन हैं। नम्बर चार और पाँच को फिर भी थोड़ा कम खतरनाक माना जाता है। पर जोन वन जिसमें हिमालय का इलाका, गुजरात का कच्छ, उत्तरी बिहार, पूरा नॉर्थ ईस्ट (सेवन सिस्टर्स), अण्डमान निकोबार, बेल्ट आता है। भूकम्प की दृष्टि से यह एरिया बहुत ही नाजुक है। जोन टू में उत्तरी बिहार का कुछ इलाका, पूर्वी उत्तर प्रदेश, एनसीआर दिल्ली, जम्मू आदि आता है। ये क्षेत्र भी काफी खतरनाक हैं। दिल्ली के पुराने गवर्नमेंट फ्लैट्स व भवन 6.5 तीव्रता के भूकम्प में ही धराशायी हो जाएंगे।

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