तन-मन ठीक रखने के लिए हरियाली के पास रहें

हमारे शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए प्रकृति ने हमें सदियों से काफी कुछ दिया और अब भी दे रहा है, देता रहेगा। दरअसल प्रकृति ने जो हमें हरियाली दिया है उससे अलग होकर हम रह ही नहीं सकते। हमें स्वस्थ्य रहने के लिए रहने के लिए स्वच्छ ऑक्सिजन की जरूरत होती है,जो हमें प्रकृति की इन हरियाली से मिलता है। क्योंकि ये ऑक्सिजन हरियाली के बीच टहलने पर रक्त में घुली ग्लूकोज की मात्रा मांसपेशियों को ऊर्जा देती है। आदि बहुत कुछ हमें इनसे प्राप्त होता है जिसके बारे में बता रहे हैं डॉ. कुलदीप शर्मा।

सृष्टि की शुरुआत में अक्षत, अनछुई प्रकृति के बीच जन्मे मानव का खान-पान ही नहीं, रहन-सहन भी हरियाली से ही जुड़ा था। वही लगाव आज भी बरकरार है। सच पूछिए तो हम हरियाली से अलग होने की सोच ही नहीं सकते। हमारे शरीर की इसी जरूरत ने ग्रीन थेरेपी को जन्म दिया है।

हरियाली में जितना चलोगे, उतना चलोगे


रिपोर्ट बताती है कि जिन स्थानों पर दूर-दूर तक हरियाली नहीं होती, वहां प्रदूषणकारी तत्व मानव मस्तिष्क को सीधे प्रभावित करते हैं, जिससे तंत्रिका कोशिकाएं चपेट में आ जाती हैं और स्मृति दोष या विस्मृति जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।

जी हां, अच्छे स्वास्थ्य के लिए जॉगिंग यानी टहलना एक सामान्य सलाह है, मगर चिकित्सीय सलाह यह है कि जॉगिंग कहीं भी कर लेना उचित नहीं है। इसके लिए उचित माहौल भी होना चाहिए। पार्क जाइए, हरियाली निहारिए और फूलों को सहलाइए। कोपेनहेगन के सिटी हार्ट स्टडी सेंटर के प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. पीटर स्नोहर की शोधपरक सलाह है कि हरियाली के बीच सुबह का टहलना न केवल तनाव से मुक्ति दिलाता है, बल्कि हृदय के लिए भी मुफीद है। रिपोर्ट बताती है कि हृदय रोगियों को बिना झिझक हरियाली के बीच टहलना चाहिए। असल में हमारा हृदय एक प्रकार की मांसपेशियां ही है, जिसे अन्य अंगों की तरह सक्रिय बनाए रखना आवश्यक है। शोध रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि हरियाली के बीच थोड़ी रफ्तार लिए निहारते चलना एक लयबद्ध गति देता है। इससे कदम ताल धीरे-धीरे एकसार होने लगती है। इस तरह से शरीर में ऊर्जा निर्माण की दशा उत्पन्न होती है। जिस ऑक्सीजन को हम कृत्रिम रूप से लेते हैं, वही प्राकृतिक रूप में हमारे फेफड़ों तक सहज पहुंच जाती है। हरियाली के बीच टहलने पर रक्त में घुली ग्लूकोज की मात्रा मांसपेशियों को ऊर्जा देती है, जिससे संगृहीत शर्करा का स्तर घटने लगता है। यह खुली हवा यानी ऑक्सीजन का ही कमाल है कि शरीर में जमा वसा जलती है और ऊर्जा मिलती है, पसीना निकलता है और शरीर की मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं। जब टहलते हुए शरीर अतिरिक्त ऑक्सीजन की मांग करता है तो हृदय तेजी से पंपिंग करना शुरू कर देता है और तत्काल फेफड़ों से ऑक्सीजन की सप्लाई मांगता है। इस तरह से हृदय और फेफड़े दोनों ही हरकत में आ जाते हैं। यही है ग्रीन थेरेपी का कमाल।

हाल ही की रिपोर्ट के अनुसार आप जितनी देर और जितना अधिक हरियाली के बीच रहेंगे, उतने ही स्वस्थ और तनावरहित होंगे। यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबरा के ओपन स्पेस रिसर्च सेंटर द्वारा जारी चिकित्सीय रिपोर्ट बताती है कि हरियाली का प्रभाव हमें सुरक्षा का एहसास दिलाता है, जो धीरे-धीरे मांसपेशियों के खिंचाव को कम करता है और तनावरहित बनाता है। शोधकर्ता डॉ. कैथरिन वार्ड थॉमसन अपने चिकित्सीय अध्ययन में कहती हैं कि ग्रीन थेरेपी हमें प्राकृतिक रूप से स्थायी लाभ देती है, जिसका कोई विपरीत असर नहीं होता। रिपोर्ट कहती है, जो लोग बेरोजगार हैं, वे यदि हरियाली को दोस्त बनाएं तो उनका तनाव कम होगा। साथ ही उनके मस्तिष्क की शक्ति भी बढ़ेगी। अपने अध्ययन में उन्होंने दो समूह बनाए। एक वह, जो खासी हरियाली के बीच रहता था और दूसरा वह, जो नाममात्र की हरियाली में रहता था। स्कॉटलैंड में हुए इस अध्ययन में उन्होंने 35-55 वर्ष की आयु के व्यक्तियों का चुनाव किया और उनकी लार का परीक्षण किया। शोध के अनुसार, जिनके आस-पास तीस प्रतिशत से कम हरियाली थी, उनमें तनाव से जुड़े हारमोन कार्टिसोल का स्तर बुरी तरह से प्रभावित था।

मधुमेह रोगियों के लिए भी हरियाली के बीच बैठना, टहलना और उसे निहारना बेहतर पाया गया है। ऐसे लोगों में कोई भी घाव सहज नहीं भरता। इसके लिए इन दिनों पीड़ारहित हाइपर बैरिक ऑक्सीजन थेरेपी यानी एच.बी.ओ.टी. का प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें एक विशिष्ट कक्ष में रोगी को सामान्य वायुमंडलीय दाब पर दो-तीन बार सौ प्रतिशत ऑक्सीजन दी जाती है। हालांकि यह एक प्रभावी क्रिया है, परन्तु यही मधुमेह रोगी यदि हरियाली के बीच रह कर नियमित गहरी सांस लेते हुए टहले तो भी शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति की समस्या से निजात पाया जा सकता है।

छींक, एलर्जी का इलाज नई जी.एम. घास


ग्रीन थेरेपी का मुख्य अंग है, हरी-भरी घास पर नंगे पैर चलना या सुस्ता कर बैठ जाना। सुबह-सुबह ओस में भीगी घास पर चलना अपेक्षाकृत बेहतर माना जाता है। असल में यह पैरों के नीचे थपथपी देने-सा महसूस होता है, जो पांवों के नीचे की कोमल कोशिकाओं से जुड़ी तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक राहत का संदेश पहुंचाता है। सिडनी के एक शोध के मुताबिक कुछ पल घास पर अकेले या फिर साथी के साथ प्यार भरी भावना लिए बैठ जाना तन में समाए तनाव, एलर्जी और छींक तक को रोकता है। इसके लिए यहां के बूलफॉक इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा एक जेनिटिकली मॉडिफाइड (जी.एम.) घास का विकास किया गया है। विशेषज्ञ डॉ. रिमामिर्रा के परीक्षणों में पाया गया है कि इस जी.एम. घास पर नियमित बैठने से बुखार और खुजली की समस्या से निजात मिलती है।

प्रदूषण का हलाहल पीती हरियाली


ओहियो यूनिवर्सिटी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग देर तक प्रदूषित वायु के संपर्क में रह कर उसे फेफड़ों तक पहुंचाते हैं, उनमें श्वसन रोग तो पनपते ही हैं, साथ ही उनका तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित होता है, जो मस्तिष्क तक को झकझोर देता है। व्यक्ति में स्मृति लोप या याद रखने की क्षमता घटने लगती है। यहां भी ग्रीन थेरेपी कारगर है। यदि आप अपने कार्यस्थल के आस-पास हरियाली रखें तो प्रदूषणकारी तत्व आप तक नहीं पहुंच पाएंगे।

शोधकर्ता डॉ. लोरा फाकेन के अनुसार अत्यंत सूक्ष्म प्रदूषणकारी तत्व शरीर को प्रभावित कर जलन पैदा करते हैं, जो गंभीर दशा में उच्च रक्तचाप, मधुमेह और मोटापा जैसे रोग भी पनपाते हैं। परीक्षण में पाया गया है कि ऐसे स्थान में रहने वाले व्यक्तियों के मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस क्षेत्र में भौतिक परिवर्तन हो जाते हैं। रिपोर्ट बताती है कि जिन स्थानों पर दूर-दूर तक हरियाली नहीं होती, वहां प्रदूषणकारी तत्व मानव मस्तिष्क को सीधे प्रभावित करते हैं, जिससे तंत्रिका कोशिकाएं चपेट में आ जाती हैं और स्मृति दोष या विस्मृति जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।

कुकिंग गैस हो या केरोसीन तेल, उफनता जलता दूध हो या रसोई के कूड़ेदान में सड़ता हुआ कूड़ा, हमारे अपने घर में भी प्रदूषणकारी तत्व तैर रहे हैं, जो शरीर को रोगी बनाते हैं। ऐसे में समस्या का समाधान है कि घर में छाया देते पौधे सजाइए। वहीं दूसरी ओर चौड़ी पत्तियों वाले सकुलैट प्लांट, बेल वाले मनी प्लांट जैसे पौधे व तुलसी आदि सहज ग्रीन थेरेपी का अंग बनते हैं। बागवानी का शौक व्यायाम की दृष्टि से भी फायदेमंद है। घर के पिछवाड़े गृहवाटिका, गमले में सजावटी पौधे आदि आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकर हैं।

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