ऊपरी यमुना के राज्यों को यमुना जल का बंटवारा

मई 1994 में यमुना जल बंटवारे के लिए ऊपरी तटवर्ती राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली ने मिलकर आपसी समझ के एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। यमुना के वार्षिक 13 मिलियन घनमीटर (बीसीएम) शुद्ध उपलब्ध जल का निम्नानुसार बंटवारा हुआः

राज्य

जल प्रमात्रा(बीसीएम)

हरियाणा

5.730 बीसीएम

उत्तर प्रदेश

4.032 बीसीएम

राजस्थान

1.119 बीसीएम

हिमाचल प्रदेश

0.378 बीसीएम

दिल्ली

0.724 बीसीएम

कुल

11.983 बीसीएम



इस वार्षिक हिस्से के अतिरिक्त वर्ष के प्रत्येक चार मास के लिए एक निर्धारित मौसमी हिस्सा भी निश्चित हुआ। इस मौसमी हिस्से का कारण यह था कि नदियों में वर्ष भर प्रवाह एक सा नहीं रहता। इस मौसमी हिस्से का प्रत्येक राज्य का अंश इस प्रकार थाः-

राज्य

जुलाई-अक्टू.

नव.-फर.

मार्च-जून

कुल

हरियाणा

4.107

0.686

0.937

5.730

उत्तर प्रदेश

3.216

0.343

0.473

4.032

राजस्थान

0.963

0.070

0.086

1.119

हिमाचल प्रदेश

0.190

0.108

0.080

0.378

दिल्ली

0.580

0.068

0.076

0.724

कुल

11.983



इसके अतिरिक्त जुलाई-अक्टूबर के दौरान बाढ़ से बढ़े स्तर का 0.68 बीसीएम पानी का प्रयोग में नहीं आना और शुष्क मौसम में भी 0.337 बीसीएम पानी पर्यावरणीय कारणों से नदी में रहने दिया जाना तय हुआ। पर्यावरणीय कारणों से नदी में बचा पानी 16.1 घनमीटर प्रतिसैकेंड (क्यूसैक) के बराबर होता है और इसे नवंबर से जून के आठ महीनों में नियमित रूप से छोड़ा जाना चाहिए। किन्तु इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के एक दशक बाद भी ऐसा नहीं किया जा रहा है। इतना ही नहीं, 10 क्यूसैक का न्यूनतम प्रवाह, जिसका आदेश माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिया था; वह भी यमुना में नहीं जाने दिया जा रहा है। अफसोस होता है कि राष्ट्र के जल संसाधनों का प्रबंधन करने वाले लोग नदी धाराओं में पर्याप्त पानी होने के महत्व को नहीं समझते। वे नहीं देख पाते कि जहां-जहां ये शुष्क होने से तथा प्रदूषित होने से बची हुई हैं, भूजल को समृद्ध करती हैं। हमने स्वयं ही अनुपचारित मैला डाल-डालकर गंदा कर दिया है। खेद है कि भूजल और भूमिगत जल दोनों स्रोतों के समेकित प्रबंधन की कोई व्यवस्था हमारे देश में अभी तक लागू नहीं की गई है।

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