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उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान यात्रा
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देहरादून। 21 नवंबर 2012 से उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान सहित अन्य संगठनों द्वारा जल, जंगल, जमीन स्वराज यात्रा प्रारंभ की जायेगी जो नौ दिसंबर दिल्ली राजघाट में समाप्त होगी। पत्रकारों से वार्ता करते हुए सुरेश भाई ने कहा है कि प्रदेश में विगत दस सालों में उद्योग और उर्जा परियोजनाओं के नाम पर 25 हजार हेक्टेयर की भूमि अधिग्रहीत हो चुकी है और किसान खेती से बेदखल हो गये हैं। खेती छोटे किसानों के लिए अलाभकारी व बोझ और कंपनियों के लिए अथाह लाभ का ज़रिया बने। इससे यह साफ है कि किसी भी तरह से खेती की जमीन छोटे किसानों से छीन कर एक्सप्रेसवे, खनन, विशेष आर्थिक क्षेत्र, विद्युत परियोजनाएं, औद्योगिक कॉरीडोर, रिहायशी खरीद-फरोख्त व अनियोजित शहरीकरण के लिए पूंजीपतियों और देशी-विदेशी कंपनियों की भेंट चढ़ रही है। भारत सरकार का प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनर्स्थापना अधिनियम 2011 इसका उदाहरण है।

उन्होंने कहा कि इसी तरह से राष्ट्रीय जल नीति 2012 के मसौदे से यह साफ है कि हमारा सार्वजनिक संसाधन जल भी अब निजी हाथों में दिया जा रहा है। भारत के हिमालयी राज्यों में लगभग एक हजार व स्वयं उत्तराखण्ड में साढ़े पांच सौ से उपर छोटी बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित या निर्माणाधीन हैं। ये अधिकांश सुरंग आधारित हैं। उत्तराखण्ड में लगभग 20-22 लाख की आबादी के पांच गांव उन परियोजनाओं की सुरंगों के ऊपर स्थित हैं। उन्होंने कहा कि इन सब मुद्दों पर 21 नवंबर से 11 दिसंबर तक सर्व सेवा संघ, अन्य प्रदेशीय सर्वोदय मंडल व उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान उत्तराखण्ड से उत्तर प्रदेश और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक जल, जंगल,जमीन स्वराज यात्रा कर रहे हैं जो नौ दिसंबर को राजघाट दिल्ली पहुंचेगी जहां दो दिन का सार्वजनिक उपवास किया जायेगा। इस यात्रा के माध्यम से मांग की जायेगी कि रासायनिक खेती का बहिष्कार व सेन्द्रिय खेती को अपनाया जाये। ज़मीन समाज की जिजीविषा व आजीविका का साधन हो न कि व्यावसायिक खरीद-फरोख्त का। नदियों की धारा अविरल बहे और जल का निजीकरण बंद किया जाये। जल, जंगल, ज़मीन जैसी प्राकृतिक विरासतें जन समाज के नियंत्रण में हों।

यात्रा के संबंध में और जानकारी के लिए संपर्क करें
सुरेश भाई
9412077896