वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दे
जिस संसार में हम रहते हैं उसमें ख़ुशियाँ मनाने तथा उसकी प्रशंसा करने के कई कारण हैं। इसमें हम पर्यावरण को भी शामिल करते हैं। यद्यपि हम उसी पर्यावरण को, जो हमको संभाले हुए है, अपने कार्यों के द्वारा परिवर्तित में लगे हैं। हम सबके लिये एक अस्वाभाविक वातावरण में रहना बहुत कठिन होगा। इस पाठ से आपको इतना ज्ञान मिलता है कि विभिन्न वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों और समस्याओं को किन योजनाओं द्वारा निपटाया जा सकता है।
उद्देश्य
14.1 मुख्य वैश्विक पर्यावरण के मुद्दे
14.1 हरित गृह प्रभाव तथा वैश्विक ऊष्मण
14.2.1 हरित गृह का प्रभाव क्या है?
‘हरित गृह का प्रभाव (Green house effect)’
कहते हैं।
परन्तु आप पूछेंगे कि पृथ्वी के चारों ओर शीशा (काँच) कहाँ है जो धरती की सतह से गर्मी को उत्सर्जित होने से बचाता है। चित्र 14.1 देखें और निम्नलिखित क्रम में ‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव को समझने का प्रयास करें।
14.2.2 वैश्विक ऊष्मण (ग्लोबल वार्मिंग) तथा हरित गृह प्रभाव
तालिका 14.1: ग्रीन हाउस गैसें उनके स्रोत और कारण | |
गैसें | सूत्र और कारण |
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) | जीवाश्म ईंधन के जलने से, वनों की कटाई। |
क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs) | प्रशीतन, विलायक, ऊष्मारोधी फाम, हवाई ईंधन, औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोग। |
मीथेन (CH4) | धान उगाने, मवेशियों के मल-मूत्र और अन्य पशु दीमक, जीवाश्म ईंधन का जलना, लकड़ी, भूमि भराव। |
नाइट्रोजन ऑक्साइड (N2O) | जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक, लकड़ी और फसल अपशिष्टों का जलना। |
भूमंडलीय ऊष्मन का प्रभाव हमारे ग्रह में जैविक और अजैविक घटकों दोनों को प्रभावित करता है।
जलवायु पर प्रभाव
14.2.3 प्राणियों पर प्रभाव
14.2.4 ‘हरित गृह’ (ग्रीन हाउस) प्रभाव का सामना करने की योजनाएँ
पाठगत प्रश्न 14.1
14.3 जैव विविधता (BIODIVERSITY)
14.3.1 वर्गीकरण
(क) जैव विविधता की प्रजातियाँ:
इसमें कुल संख्या में विभिन्न वर्गिकीय या जैविक प्रजातियाँ शामिल हैं। भारत में 200000 से अधिक प्रजातियाँ हैं जिनमें से बहुत सी केवल भारत तक ही सीमित हैं। (स्थानिक)
(ख) आनुवांशिक जैव विविधताः
इसमें भूमि, बागवानी की किस्में, कृषिजोपजाति, पारिप्ररूप (संबंधित प्रकारों के पाये जाने वाले अंतर के कारण पारितंत्र की दशाओं में अंतर) पाया जाना सभी एक जैविक प्रजातियों के भीतर।
(ग) पारितंत्र जैव विविधताः
इनमें कई जैविक क्षेत्र, जैसे कि झील, रेगिस्तान, तट, ज्वारनदमुख, आर्द्रभूमि, मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ आदि शामिल हैं।
पूरे संसार के विभिन्न प्रकार की मनुष्य की अविवेकी गतिविधियाँ वनस्पतियों तथा जीवों दोनों को प्रभावित कर रही हैं। ये गतिविधियाँ प्रायः मानव आबादी में तेजी से हो रही वृद्धि, वनों की कटाई, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से संबंधित हैं।
14.3.2 जैव विविधता के नुकसान के कारण
(1) प्राकृतिक पर्यावासों का अंतः
मानव जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण, भूमि की आवश्यकता बढ़ रही है जिससे भूमि पाटने के कारण वेटलैण्ड (आर्द्रभूमि) सूख गये हैं। प्राकृतिक वन को उद्योग, कृषि, बाँधों, बस्ती, मनोरंजन स्थल, खेलों आदि के लिये काटे जा रहे हैं। परिणामस्वरूप प्रत्येक पौधा तथा पशु प्रजातियाँ जो पारितंत्र में रहती हैं, वे अस्थायी अथवा स्थायी रूप से प्रभावित हैं। इसी प्रकार पलायन पक्षियों या अन्य जानवरों के जो इस प्रकृति में रहते हैं; उनके ऊपर भी प्रभाव दिखाई देता है।
अतः उस पर्यावास में रहने वाली विभिन्न प्रजातियों की आबादी अस्थिर हो जाती है। एक परिवर्तित पारितंत्र पड़ोसी पारितंत्र में परिवर्तन लाता है।
(2) प्रदूषणः
प्रदूषण से भी पर्यावास में इतना परिवर्तन आ जाता है कि कुछ प्रजातियों के अस्तित्व के लिये बहुत संकट उत्पन्न हो जाता है। उदाहरणार्थ- जो प्रदूषण ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाता है, उसके कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाती है। ये सारी प्रजातियाँ, जो बदलते हुए वातावरण में संमंजित करने में बहुत अधिक समय लेते हैं, वे प्रजातियाँ समाप्त (विलुप्त) हो जाती हैं।
(3) अत्यधिक प्रयोगः
मनुष्य तेल के लिये व्हेल मछली, भोजन के लिये, लकड़ी के लिये वृक्ष, औषधि के लिये पौधे आदि अधिक मात्रा पर निकाल कर कम संख्या में लगा पाता है। वृक्षों की अत्यधिक कटाई, अतिचारण, ईंधन का इकट्ठा करना, खालों के लिये जंगली पशुओं का शिकार करने के (जैसे कि भारत के आरक्षित वनों से बाघ तथा हाथी दाँत आदि) परिणामस्वरूप प्रजातियों का क्रमशः ह्रास हो रहा है।
(4) विदेशी प्रजातियों से परिचयः
विदेशी क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय यात्रा की मात्रा बढ़ने के साथ-साथ प्रजातियों का किसी नये क्षेत्र में आकस्मिक प्रवेश अब आसान हो गया है। कई प्रजातियाँ हैं जिन्होंने नये क्षेत्रों पर आकस्मिक आक्रमण कर दिया है। कई नई प्रजातियाँ जो नये क्षेत्रों में घुस आयी हैं, वे देशी प्रजातियों की कीमत पर जीवित रह रही हैं। उदाहरण के लिये विदेशी मूल के पार्थेनियम, आर्जिमोन और लोनताना हमारे देश में पाये जाने वाले कुछ सामान्य अपतृण हैं।
(5) पर्यावरण ह्रास:
पर्यावरण अवक्रमण के बहुत सारे कारण जैव विविधता को नष्ट कर देते हैं। इनमें से कुछ कारण हैं- वैश्विक ऊष्मण, बढ़ी हुई CO2 , वातावरण में एकाग्रता, परमाणु विकिरण, UV-किरणों का उद्भासन, तेल फैलाव आदि उदाहरण के रूप में, नीचे हम कारकों का संयोजन करके संकलन करते हैं।
हम नीचे एक उदाहरण लेते हैं जो समुद्री जैवविविधता को नुकसान पहुँचाने वाले कारकों का एक संयुक्त रूप से तैयार किया गया खाँचा है।
14.4 मरुस्थलीकरण (DESERTIFICATION)
(क) अत्यधिक खेती
(ख) अत्यधिक चराई (अतिचारण, Over grazing)
(ग) वनों की कटाई
(घ) सिंचाई से जल का नमकीन होना
पाठगत प्रश्न 14.2
14.5 ओजोन परत का अपक्षय (OZONE LAYER DEPLETION)
14.5.1 ओजोन परत की संरचना
14.5.2 ओजोन परत के अपक्षय के कारण
(i) प्राकृतिक कारणः
प्रकृति से उत्पन्न कई पदार्थ समतापमंडलीय ओजोन को नष्ट कर देते हैं। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यौगिक हैं:-
हाइड्रोजन ऑक्साइड (HOx), मीथेन (CH4), हाइड्रोजन गैस (H2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), क्लोरीन मोनोऑक्साइड (ClO), ज्वालामुखी फटने के समय, क्लोरीन की महत्त्वपूर्ण मात्र समतापमंडल में छोड़ी जा सकती है। समतापमंडल के छोटे कण जिन्हें समतापमंडलीय एअरोसोल कहा जाता है, भी ओजोन के विनाश का कारण बन सकता है।
(ii) मानव गतिविधियों से संबंधित कारणः
ऐसी घटना, जिससे वायुमंडल में क्लोरीन परमाणु उत्सर्जित होते हैं वह ओजोन-विनाश का गंभीर कारण बन सकते हैं क्योंकि समतापमंडल में क्लोरीन परमाणु बड़ी कुशलता से ओजोन को नष्ट कर सकते हैं। इन ऐजेंटों में से सबसे विनाशकारी मनुष्य द्वारा निर्मित क्लोरोफ्लोरोकार्बन (Chlorofluoro Carbons, CFCs) हैं जिनका प्रयोग व्यापक रूप से प्रयोग प्रशीतलन (Refrigerants) में तथा छिड़काव करने वाली बोतलों को दाबानुकूलित करने के लिये किया जाता है। समतापमंडल में CFCs में क्लोरीन परमाणु ओजोन के साथ प्रतिक्रिया करके क्लोरीन मोनोऑक्साइड और ऑक्सीजन अणु बन जाते हैं।
Cl + O3 …………………………. ClO + O2
क्लोरीन मोनोऑक्साइड तब ऑक्सीजन अणु के साथ प्रतिक्रिया करके और अधिक क्लोरीन परमाणु छोड़ देते हैं।
तालिका 14.2: महत्त्वपूर्ण ओजोन क्षयकारी रसायन और उनका उपयोग | |
यौगिक का नाम | उपयोग में |
CFCs | प्रशीतलन, एयरोसोल, फॉम, खाद्यों को ठंडा करने, वार्मिंग उपकरणों (ऊष्मा प्रदान करने वाले उपकरण), सौंदर्य प्रसाधन, ऊष्मा को पहचानने वाले विलायक, प्रशीतलक, अग्निशमन |
ऑक्सीजन | अग्नि शमन |
HCFC-22 | प्रशीतलक, एयरोसोल, फॉम, अग्निशमन |
मिथाईल क्लोरोफोर्म | विलायक |
कार्बन टेट्राक्लोराइड | विलायक |
14.5.3 O3 परत अपक्षय का प्रभाव
मानव पर हानिकारक प्रभाव
पौधों पर हानिकारक प्रभाव
अन्य जीवों पर हानिकारक प्रभाव
निर्जीव पदार्थों पर हानिकारक प्रभाव
14.5.4 ओजोन परत के रिक्तीकरण रोकने के उपाय
पाठगत प्रश्न 14.3
14.6 अम्ल वर्षा
तालिका 14.3: अम्लीय गैसों और उनके उत्सर्जन स्रोत | |
अम्लीय गैसें | स्रोत |
CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) | जीवाश्म ईंधन के जलने से, औद्योगिक प्रक्रियाओं, श्वसन |
CH4 (मीथेन) | धान के खेत, आर्द्रभूमि, गैस ड्रिलिंग, भूमिभरण, पशुओं, दीमक |
CO (कार्बन मोनोऑक्साइड) | बायोमास का जलना, औद्योगिक स्रोत, जीवातजनन (Biogenesis), पादप आइसोप्रीन |
SOx (सल्फर डाइऑक्साइड) | जीवाश्म ईंधन जलाने, औद्योगिक स्रोतों, ज्वालामुखी, महासागरों से |
NOx (नाइटोजन ऑक्साइड) | जीवाश्म ईंधन जलाने, बिजली, बायोमास जल, महासागरों, बिजली संयंत्र से |
14.6.1 अम्ल वर्षा के हानिकारक प्रभाव
(i) जलीय जीवन पर प्रभाव
(ii) स्थलीय जीवन पर प्रभाव
(iii) वनों पर प्रभाव
(iv) इमारतों और स्मारकों पर प्रभाव
14.6.2 अम्ल वर्षा से निपटने के लिये नीतियाँ (रणनीतियाँ)
पाठगत प्रश्न 14.4
14.7 नाभिकीय आपदाएँ (NUCLEAR DISASTERS)
तालिका 14.4: कुछ प्रमुख परमाणु आपदाओं की सूची | |
वर्ष | परमाणु ऊर्जा संयंत्र |
दिसम्बर | 1952 चाक नदी, टोरेंटों, कनाडा |
अक्टूबर 1957 | विंडस्केल प्लूटोनियम उत्पादन केन्द्र, यू-के- |
26 अप्रैल 1986 | चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर, कीव, चेरनोबिल, सोवियत संघ |
नवम्बर 1995 | मोन्जू, जापान |
14.7.1 पर्यावरण पर परमाणु आपदाओं का प्रभाव
धीमी गति से परमाणु विकिरण
भी परमाणु रिएक्टरों, प्रयोगशालाओं, अस्पतालों और नैदानिक प्रयोजनों के लिये विकिरण को प्रत्यक्ष निवेश (उदाहरण के लिये एक्स-रे) जैसे विभिन्न स्रोतों से निर्गत हो सकता है।
इतनी कम मात्रा में विकिरण जीवन के प्रकारों और पारितंत्रों पर काफी महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
अब यह प्रचलित हो गया है कि कम मात्रा में लगातार जारी किये जाने वाले छोटे परमाणु विकिरण की मात्रा बहुत हानिकारक हो सकती है। इसके कारण बचपन से होने वाला रक्त कैंसर (ल्यूकीमिया) गर्भपात, कमजोर बच्चे, शिशु मृत्यु, बढ़ता हुआ एड्स का खतरा तथा अन्य प्रतिरक्षा विकारों और बढ़ती हुई अपराधिता हो सकती है।
भूमिगत बम परीक्षण बहुत थोड़ी मात्र में विकिरण छोड़ता है जो भूमिगत जल में पहुँच जाता है। यह रेडियाधर्मी पानी पौधों की जड़ों के माध्यम से सोख लिया जाता है। यह रेडियोधर्मिता खाद्य शृंखला में प्रवेश कर जाती है जिससे यह पौधे (भोजन) पशु और मनुष्य खा लेते हैं। ऐसी रेडियाधर्मिता दूध तक में पायी जाती है।
पाठगत प्रश्न 14.5
14.8 तेल रिसाव (OIL SPILLS)
14.8.1 तेल रिसाव के कारण
14.8.2 समुद्री जीवन पर तेल रिसाव का प्रभाव
14.8.3 स्थलीय जीवन पर तेल फैलाव का प्रभाव
पाठगत प्रश्न 14.6
14.9 संकटदायी अपशिष्ट (HAZARDOUS WASTE)
संकटदायी अपशिष्ट (कचरे) के निपटान से सम्बन्धित समस्याएँ
वास्तव में खतरनाक कचरे को जब फेंकते हैं तब उसका निपटान पर्यावरण अमित्र पदार्थ को अत्यधिक मात्रा में छोड़ता है। उसमें से कुछ तालिका 14.4 में दिये गये हैं।
तालिका 14.4: घातक अपशिष्ट, उसके निपटान और प्रभाव | |||
स्रोत | निपटरा/उपयोग के रूप | प्रदूषण कारी ऐजेंट | प्रभाव |
औद्योगिक अपशिष्ट | कचरे को जलाये जाने से | जहरीली लपटें, क्लोरीन पोलीविनाइलक्लोरीन | क्लोरीन अम्ल वर्षा के कारण संभव है। |
अधूरा दहन | डायोक्सिन/आर्गेनो | कार्सिजेनिक (कैंसरजन्य) | |
जलनिकायों में निष्काषित | क्लोरोफीनोल, फ्लोरीन यौगिक, ऐल्डीहाइड, SO2, CO2 | पर्यावरणीय प्रदूषण का कारण | |
प्लास्टिक से | पॉलीथीन, पॉलीप्रोपाइलीन, पोलियेस्टर आदि के जलने से उत्पन्न गैसें | विषाक्त पारिस्थितिकीय प्रदूषण | |
नाभिकीय अपशिष्ट | अस्पतालों, प्रयोगशालाओं से | धीमी/चिकित्सा में निरंतर कृषि उपयोग | स्वास्थ्य के लिये खतरा, कैंसरजनित उत्परिवर्तन |
कृषि अपशिष्ट | नाइट्रोजन अपशिष्ट के रूप में | खाद/गोबर में NO3-/NO2 | सब्जियों में एकत्र होना, मिथेनोबेनेमीया सायनोसिस का कारण |
नाइट्रोसेमीन्स/ NO3-/NO2- | अम्ल वर्षा में कैंसरजनितों का योगदान | ||
N2O | हरितगृह प्रभाव | ||
NH3 (मवेशियों के प्रजनन से) | जलीय जीवन पर प्रभाव, कवक वृद्धि को बढ़ाते हैं, अधिपादपों, वनों में अपक्षय का कारण | ||
फॉस्फेट | जलीय पर्यावरण को सुपोषित करना (यूट्रोफिकेशन) | ||
फाइटोसेनेटरी उत्पाद | कीटनाशक/पीड़कनाशक कवकनाशक/शाकनाशी | बहते जल के साथ मृदा में प्रवेश करते हैं। जलीय जीवन का प्रदूषित जल तालिका प्रभावित करता है, कैंसरजनित, किडनी फेल होना | |
मीथेन | रूमीनैन्ट मवेशी, कार्बनिक पदार्थों का किण्वन | शक्तिशाली हरित गृह प्रभाव |
पाठगत प्रश्न 14.7
आपने क्या सीखा
पाठांत प्रश्न
पाठगत प्रश्नों के उत्तर
14.1
1. क्योंकि पर्यावरण की अपनी कोई सीमाएँ नहीं होती, इसलिये कोई भूगौलिक सीमाएँ भी नहीं होती।
2. प्रदूषण, O2 -छिद्र, ग्रीन हाउस प्रभाव, जैव विविधता के कारण नुकसान, रेगिस्तान, खतरनाक अपशिष्ट पदार्थ, परमाणु आपदाओं, तेल रिसाव (कोई तीन)
3. पृथ्वी की सतह के निकट वातावरण के औसतन वैश्विक तापमान में प्राकृतिक या मानव प्रेरित वृद्धि के रूप में वैश्विक ऊष्मण को परिभाषित किया गया है।
4. क्योंकि यह ग्रीन हाउस जैसी स्थितियों को उत्पन्न करता है।
5. अवरक्त लाल विकिरण
6. CFCs मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, CO2।
14.2
1. प्रजातियों जैव विविधता, आनुवंशिक जैव विविधता, पारितंत्रीय जैव विविधता
2. क्योंकि पर्यावास की क्षति, अत्यधिक उपयोग, विदेशियों प्रजातियों के शामिल होने के कारण
3. क्योंकि मछलियों के झुंडों का बहुत सही और बहुत कुशलता से पता लगाते हैं।
4. जब वासस्थानों को घर, उद्योग, कृषि, खेतों के लिये नष्ट किया जाता है।
5. अत्यधिक कृषि, अत्यधिक चराई, वनों की कटाई, सिंचाई के कारण नमकीन।
6. ट्रैक्टर-बुवाई
7. कुछ भूमि जिसने अपनी उत्पादन क्षमता को खो दिया हो, उसे रेगिस्तान कहा जाता है।
14.3
1. पराबैंगनी, 200-400jm
2. तीन
3. क्लोरीन की महत्त्वपूर्ण राशि जारी करने के कारक।
4. कोई भी गतिविधि जो वातावरण में क्लोरीन परमाणु छोड़ती है।
5. त्वचा कैंसर, रेटीना के रोगों, कॉर्निया के हानि आदि का कारण।
14.4
1. H2SO4, HNO3
2. अम्ल वर्षा, जिसमें जीव रहता है, वर्षा के पानी का pH कम करती है। कम pH में जीवों के युग्मक (अंडे)/शुक्राणु जीवित नहीं रह सकते। यह जीवन-चक्र को प्रभावित करता है। पीढ़ी/आबादी नुकसान।
3. सौर/परमाणु ऊर्जा
14.5
1. ज्वलनशीलता, संक्षारक, अभिक्रियात्मक, विषाक्तता।
2. बच्चों में होने वाला रक्त कैंसर, गर्भपात, कमजोर बच्चे, शिशु मृत्यु, एड्स इत्यादि।
14.6
1. समुद्री, पारिस्थितिकी तंत्र को विषाक्त या घुटन से नष्ट कर सकते हैं।
2. ऑक्सीजन की जल निकायों में कमी होने के कारण मछलियों या समुद्री जीवन की भारी संख्या में मृत्यु का कारण बन सकता है।
14.7
1. परमाणु रिएक्टरों से- प्रयोगशालाओं, अस्पतालों और प्रत्यक्ष नैदानिक प्रयोजनों के लिये- विकिरण के संपर्क के द्वारा
2. मानव और अन्य प्रकार के जीवन पर त्वरित और विनाशकारी प्रभाव, धीरे असर, बच्चों में ल्यूकीमिया, गर्भपात, शिशु मृत्यु दर, AIOs की संवेदनशीलता में वृद्धि हुई है।
3. यहाँ उनका दम घुटता है, उन्हें विषाक्त कर देती है।
4. यदि समुद्री पानी में ऑक्सीजन की कमी हो तो, पानी में रहने वाले जीवों के लिये ऑक्सीश्वसन बहुत आवश्यक होती है।