वेटलैंड को लीलता विकास

30 Jan 2016
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विश्व आर्द्रभूमि दिवस, 2 फरवरी 2016 पर विशेष



. बढ़ती जनसंख्या का दबाव और विकास की तेज रफ्तार वेटलैंड (आर्द्रस्थल) को तेजी से निगल रहा है। विकास की गति से दिनोंदिन नम भूमि की कमी होती जा रही है। देश में अब इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिलने लगा है।

हमारे आसपास पशु-पक्षियों और वन्य जीव-जन्तुओं के अलावा पशुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं। विभिन्न मौसमों में देश के अन्दर प्रवासी पक्षियों के आने की संख्या में भी कमी आई है।

वेटलैंड के कम होने का सीधा असर जन-जीवन और वनस्पतियों पर पड़ रहा है। हालात यह हैं कि देश के अधिकांश राज्यों में लगातार वेटलैंड का वजूद खत्म हो रहा है।

वेटलैंड की वजह से न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र बना रहता है बल्कि भूजल भी रिचार्ज होता है। इसके साथ ही अन्य कई प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा भी मिलती है। वेटलैंड क्षेत्र के सिकुड़ने के कारण भूजल कम होता जा रहा है। जिससे आने वाले दिनों में पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।

वेटलैंड और कृषि में गहरा सम्बन्ध है। आम लोगों में ऐसी खेती और विकास के बारे में बताया जाना चाहिए, जिससे वेटलैंड सुरक्षित रहे और खेती भी प्रभावित न हो।

वैज्ञानिक अनुसन्धानों से यह साबित हो चुका है कि वेटलैंड न केवल जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है बल्कि पशु-पक्षियों की विविधता को भी बचाए रखता है।

इंटरनेशनल क्रेन फ़ाउंडेशन के गोपी सुन्दरम कहते हैं कि पक्षियों की 400 प्रजातियों में 37 प्रतिशत प्रजातियाँ वेटलैंड में पाई जाती हैं। इनमें सारस, ब्लेक नेक्ड स्टार्क, एशियन ओपन बिल्ड स्टार्क और पर्पल हेरल्ड मुख्य हैं। वेटलैंड के घटने से इन पक्षियों के अस्तित्त्व पर खतरा मँडरा रहा है।

विश्व भर में वेटलैंड को संरक्षित करने की आवाज़ उठ रही है। 2 फरवरी 1971 में ईरान में वेटलैंड के संरक्षण और इसके महत्त्व को बताने के लिये एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। बाद में यह सम्मेलन रामसर कन्वेंशन के नाम से जाना जाने लगा।

इसके बाद से विश्व भर में वेटलैंड को बचाने की मुहिम शुरू की गई। 2 फरवरी 1997 में पहली बार विश्व वेटलैंड दिवस मनाया गया। आज दुनिया के 95 देश वेटलैंड को बचाने की मुहिम में शामिल हैं।

भारत की बात करें तो यहाँ पर कई राज्यों में बड़े-बड़े वेटलैंड मौजूद हैं। जिनकी प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। लेकिन ये बड़े वेटलैंड संकट के दौर से गुजर रहे हैं।

झीलों की बात करे तो कश्मीर की डल झील, लोहतक झील, वुलर झील, पश्चिम बंगाल की साल्ट लेक, हरिके झील, सुन्दरवन का डेल्टा, हल्दिया का दलदली भूमि और ओड़िशा का चिल्का झील, दाहर एवं संज झील, कोलेरू झील गुजरात में कच्छ, कर्नाटक का तटीय क्षेत्र, खम्भात की खाड़ी, कोचीन के झील और अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में भी वेटलैंड खतरे में हैं।

सन 1989 में प्रकाशित डायरेक्टरी ऑफ एशियन वेटलैंड के आँकड़ों के अनुसार भारत में कुल वेटलैंड का क्षेत्रफल 58.2 मिलियन हेक्टेयर है।

जिसमें ऐसा क्षेत्र जहाँ धान की फसल उगाई जाती है- 40.9, मत्यस पालन के लिये उपयोगी -3.6, मछली पालन क्षेत्र-2.9, दलदली क्षेत्र-0.4, खाड़ी-3.9,बैकवाटर- 3.5 और तालाब- 3.0 मिलियन हेक्टेयर है।

इसके अलावा देश में नदियों और उनके सहायक नदियों का बहाव क्षेत्र 28000 किमी और नहरों का कुल क्षेत्रफल 113,000 किमी है।

देश के साथ ही दिल्ली में भी वेटलैंड्स की तादाद में लगातार कमी आ रही है, वहीं मौजूदा सरकार वेटलैंड्स को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। इसका नमूना राजधानी के गढी मेंडू सिटी फॉरेस्ट से सटी वेटलैंड है, जो बदहाली के कगार पर है।

गढी मेंडू सिटी फॉरेस्ट नार्थ ईस्ट दिल्ली के उस्मानपुर-खजूरी इलाके में यमुना के किनारे करीब 895 एकड़ में फैला हुआ है। यह इलाका 121 प्रजातियों के देशी-विदेशी परिन्दों का घर है और यहाँ 57 किस्म के पेड-पौधे, जडी-बूटियाँ, झाड़िया, जलीय पौधे और अन्य प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।

यह फॉरेस्ट वेटलैंड से घिरा हुआ है। जिसमें करीब 44 तरह की जलीय पक्षी पाई जाती हैं। इनमें कई स्थानीय प्रजातियाँ हैं तो प्रवासी पक्षी भी यहाँ बड़ी संख्या में आते हैं।

लेकिन हैरानी की बात है कि पर्यावरण के लिहाज से खासा समृद्ध क्षेत्र होने के बावजूद इस वेटलैंड को अभी तक नोटिफाई नहीं किया गया है।

इस वेटलैंड में इलाके का नगर निगम कचरा और मलबा डालता है, तो स्थानीय लोग भी अपने घर का कचरा यहाँ फेंक आते हैं। इसके साथ ही दिल्ली सरकार के आदेशों की अनदेखी करते हुए यहाँ कचरा भी जलाया जाता है।

कचरा जलाने से वेटलैंड को तो नुकसान हो ही रहा है हवा भी प्रदूषित हो रही है। इसी के साथ ही दिल्ली सरकार संजय लेक, भलस्वा लेक और शान्ति वन को बचाने के लिये कुछ नहीं कर रही है। ये सभी वेटलैंड धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रही हैं।

कुछ साल पहले तक नोएडा में करीब 19 वेटलैंड थे, लेकिन अब इनकी संख्या मात्र छह रह गई है। उनमें ओखला पक्षी विहार और सूरजपुर पक्षी विहार प्रमुख है।वेटलैंड को खत्म करने में पंजाब और हरियाणा राज्य सबसे आगे हैं। इसका सीधा कारण यह है कि इन दोनों राज्यों में सबसे पहले हरित क्रान्ति हुई। इस सिलसिले में कृषि विकास का जो मॉडल अपनाया गया उसमें पानी के पारम्परिक स्रोतों को पाटने का अभियान ही चल निकला।

हमारे आसपास का वातावरण जिसे स्वच्छ रखने की जिम्मेवारी हम सबकी है। पिछले कई वर्षों से लगातार लापरवाही की शिकार है। जरा सी अनदेखी भावी पीढ़ी के लिये ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है।

इस लापरवाही का असर किसी खास स्थान के लिये नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर होता है। ग्लोबल वार्मिंग का असर पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है।

अब भी हम जागरूक और गम्भीर नहीं हुए तो भविष्य में इसके खतरे का महज अन्दाजा ही लगा सकते हैं। वेटलैंड पर अतिक्रमण केवल एक स्थान या एक राज्य तक सीमित नहीं है।

कुछ साल पहले तक नोएडा में करीब 19 वेटलैंड थे, लेकिन अब इनकी संख्या मात्र छह रह गई है। उनमें ओखला पक्षी विहार और सूरजपुर पक्षी विहार प्रमुख है।

वेटलैंड को खत्म करने में पंजाब और हरियाणा राज्य सबसे आगे हैं। इसका सीधा कारण यह है कि इन दोनों राज्यों में सबसे पहले हरित क्रान्ति हुई।

इस सिलसिले में कृषि विकास का जो मॉडल अपनाया गया उसमें पानी के पारम्परिक स्रोतों को पाटने का अभियान ही चल निकला। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज पंजाब में 70 फीसदी वेटलैंड का वजूद खत्म हो चुका है। इनमें 30 फीसदी की स्थिति भी गम्भीर होती जा रही है। जबकि हरीके पत्तन वेटलैंड में 75 फीसदी हिस्से के स्थिति बेहद नाजुक स्तर पर पहुँच गई है।

वेटलैंड में गन्दा पानी आने से नमी वाली ज़मीन में कई ऐसे पदार्थ जमा हो गए हैं, जिनको हटाना बेहद जरूरी हो गया है। इससे राज्य के भूगर्भ जल में कमी हो गई है।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब के वातावरण शिक्षा के प्रो. डॉ. सुनील मित्तल कहते हैं कि यही हाल रहा तो आने वाले समय में पंजाब की धरती की उपजाऊ शक्ति खत्म होने की भी आशंका है।

राज्य में तीन अन्तरराष्ट्रीय स्तर के वेटलैंड स्थापित हैं। जिसमें हरीके पत्तन (सतलुज-व्यास), कांजली (कालीबेई) रोपड़ (सतलुज) का नाम शामिल हैं। जबकि राष्ट्र स्तरीय वेटलैंड में नंगल रंजीत सिंह सागर का नाम है।

इसी तरह से राज्य स्तरीय वेटलैंड में जस्तरवाल (अमृतसर), ढोलवाहा (होशियारपुर) केशुपुर मियाणी काहनूवान (गुरदासपुर) मंड पथला (नवांशहर) मौजूद हैं।

वेटलैंड के कम होने का मुख्य कारण जमीन पर अन्धाधुन्ध कब्जे होना है। प्रो. डॉ. सुनील मित्तल कहते हैं कि प्रदूषण के कारण वेटलैंड कम होने लगी हैं। पहले जो वेटलैंड पंजाब में 100 फीसदी थी। अब वह 30 फीसदी रह गई है। इसके कम होने के कारण लगातार प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करना है। जबकि सच्चाई यह है कि वेटलैंड धरती के लिये उपजाऊ शक्ति का काम करते हैं।

बरसात का पानी वेटलैंड में एकत्रित होकर पानी के स्तर को कायम रखने में योगदान देते हैं। इस पानी पर कई तरह की वनस्पति, कीट पतंगे, पंछी जलचर जीव भी निर्भर करते हैं। विशेष बात यह है कि वेटलैंड बाढ़ को रोकने, प्रदूषित पानी को शुद्ध करने प्रदूषण को रोकने में मददगार साबित होते हैं। इनको बनाए रखना आज समय की मुख्य जरूरत है।
 

 

 

 

क्या है वेटलैंड


वेटलैंड को आमतौर पर जलगाह कहा जाता है। जलगाह की मिट्टी बेहद खास होती है। इसे अंग्रेजी में हाईड्रिक सॉइल कहते हैं। इन जलगाहों की मिट्टी लाखों साल के बाद जन्म धारण करती है। इस मिट्टी में दूषित पानी को साफ करने की ताकत होती है।

इसमें विभिन्न तरह के ऑर्गेनिक तत्व होते हैं। यह खासकर दरियाओं के पास ही होती है। इस जमीन के पास पौधों की गिनती इतनी ज्यादा होती है कि यहाँ पर तो सर्दी और गर्मी अधिक होती है।

 

 

2001 में किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में कुल वेटलैंड क्षेत्र हेक्टेयर में

 

 

राज्य

वेटलैंड एरिया

आन्ध्र प्रदेश

366609

बिहार

177686

गुजरात

209206

जम्मू कश्मीर

406780

कर्नाटक

254015

केरल

34200

मध्य प्रदेश

 294118

महाराष्ट्र

284942

ओड़िशा

162774

राजस्थान

344964

तमिलनाडु

161521

उत्तर प्रदेश

328690

पांडिचेरी

59

अरुणाचल प्रदेश

56325

असम

101232

दिल्ली

4717

गोवा

 2145

हरियाणा

 27057

हिमाचल प्रदेश

54766

मणिपुर

52959

मेघालय

2222

मिजोरम

152

नागालैंड

918

पंजाब एवं चंडीगढ़

71879

सिक्किम

1985

त्रिपुरा

9896

पश्चिम बंगाल

1143859

अण्डमान निकोबार द्वीप समूह

3204

दमण दीव और नागर हवेली

38

लक्षद्वीप

918

कुल  क्षेत्रफल

3558915  हेक्टेयर

 

 

 

 

 

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