विधेयक की पूर्ववर्ती जांच-पड़ताल

29 Jul 2014
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अब हमें अपनी कानून बनाने की प्रक्रिया पर पुनर्विचार करना अत्यंत आवश्यक है, जिसमें स्वतंत्रता के बाद से कोई खास बदलाव नहीं आए हैं। विधेयक-पूर्व प्रभावी जांच की शुरूआत से विधायकी प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन, देश में एक मज़बूत विधेयक का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण मार्ग साबित होगा। संसद कानून बनाती है और सरकारी विधेयक लाखों लोगों के जीवन पर असर डालते हैं। अत: यह महत्वपूर्ण है कि किसी कानून के पीछे की केंद्रीय विचारधारा और नीतिगत उद्देश्य को, जिसे कानून में हासिल करने की कोशिश की जा रही है, अच्छी तरह सोच समझकर तैयार किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप उनके एक ऐसा कानून बन जाने की संभावनाएं रहती हैं जो अच्छी नेकनीयत से बने तो होते हैं, परंतु ज़मीनी स्तर पर अपेक्षित रूप में कारगर साबित नहीं होते। कानून बनाने की प्रक्रिया को अधिक सहभागितापूर्ण बनाए जाने से एक प्रभावकारी कानून का अधिनियमन सुनिश्चत करने का मार्ग हो सकता है।

वर्तमान में कानूनी प्रक्रिया सरकार द्वारा संचालित की जाती है। नीति में अंतरों की पहचान संबंधित मंत्रालय करता है और वही कानून का मसौदा तैयार करता है। इस मसौदे को सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में भेजा जाता है और इसके बाद मंत्रिमंडल के पास उसकी मंजूरी लेने के लिए इसे पेश किया जाता है। मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बाद प्रस्तावित विधेयक को संसद में पेश किया जाता है। वर्तमान में ऐसा कोई सांस्थानिक तंत्र नहीं है जिसके जरिए आम जनता और अन्य पणधारी, जो कानून से प्रभावित होंगे, संसद में विधेयक को पेश किए जाने से पहले उसके संबंध में अपनी राय या फीडबैक दे सकें।

संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग ने अपनी 2002 की रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि ''सभी प्रमुख सामाजिक और आर्थिक विधेयक सार्वजनिक बहस के लिए व्यावसायिक संस्थाओं, व्यापारिक संगठनों, ट्रेड यूनियनों, शिक्षाविदों और अन्य इच्छुक व्यक्तियों के बीच परिचालित किए जाने चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय मसौदा विधेयकों को सार्वजनिक मंच पर डालकर उन पर फीडबैक प्राप्त कर रहे हैं। इन मसौदा कानूनों को मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला जाता है और टिप्पणियां तथा फीडबैक देने के लिए सात से पैंतालीस दिनों के बीच का समय दिया जाता है।

संसद में प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक और वस्तु एवं सेवा कर विधेयक पेश करने से पहले नियम की निरपवाद प्रक्रिया का पालन किया गया था। इन दो विधेयकों के मामले में वित्त मंत्रालय ने विधेयकों के दो मसौदों को उन पर फीडबैक लेने के लिए सार्वजनिक किया था। उसने देश के विभिन्न भागों में विधेयकों पर सार्वजनिक विचार-विमर्श भी आयोजित किया था। इसकी तुलना में विभिन्न मंत्रालयों द्वारा संसद में ज्यादातर विधेयक बग़ैर पूर्व सार्वजनिक चर्चा के संसद में पेश कर दिए जाते हैं।

भारत जैसे विचारशील लोकतंत्र में, कानून बनाने की प्रक्रिया के आरंभिक चरणों में सार्वजनिक भागीदारी, इसे मज़बूत करने की दिशा में मददगार साबित हो सकती है। प्रस्तावित विधेयक के संसद में पेश किए जाने से पहले ही विभिन्न विचारधाराओं, जनता की भावनाओं और नीति के प्रति वैचारिक मतभेदों को हल किया जा सकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि प्रस्तावित कानून एक ऐसे अच्छे स्वरूप में होगा कि यह आसानी से संसद में पारित हो जाएगा और इसके अधिनियमन के उपरांत इसमें बहुत कम संशोधन करने पड़ेंगे और जब भी इसको लागू किया जाएगा यह एक प्रभावशाली कानून बनकर उभरेगा।

हाल में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने सरकार को विधेयक पूर्व प्रक्रिया के संबंध में कुछ सिफ़ारिशें दी हैं। परिषद की सिफ़ारिशेंं पारदर्शिता, समावेशी और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है तथा इन्हें निम्नानुसार चार भिन्न चरणों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-

(1) सक्रिय पर्यटन
(2) सलाह मशविरा
(3) अनुपालना के लिए निपटारा तंत्र
(4) फीडबैक

परिषद ने सिफारिश की है कि सभी सरकारी मंत्रालयों को उन उद्देश्यों और कारणों का विवरण प्रकाशित करना चाहिए जिनके आधार पर विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है। उद्देश्यों और कारणों के इस विवरण को हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित करने के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्रकाशित किया जाना चाहिए और इन्हें पैंतालीस दिनों तक पब्लिक डोमेन पर रखा जाना चाहिए।

इस विवरण में विधेयक की आवश्यकता का औचित्य, इसके अनिवार्य तत्वों, मौलिक अधिकारों, लोगों के जीवन और आजीविका तथा पर्यावरण पर इसके प्रभावों को शामिल किया जाना चाहिए। इसमें विधेयक के लागू करने से होने वाले वित्तीय प्रभाव के बारे में भी कुछ विवरण दिया जाना चाहिए। इसके उपरांत मंत्रालय को इस मसौदा विधेयक को प्रकाशित करना चाहिए और विभिन्न पणधारियों से इस पर फीडबैक लेने के लिए इसका व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने सिफारिश की है कि मसौदा विधेयक पर फीडबैक प्रस्तुत करने के लिए नब्बे दिनों का समय दिया जाना चाहिए। इसने यह भी सिफारिश की है कि मसौदा विधेयक के साथ सरल भाषा में विधेयक की प्रमुख अवधारणों का ब्यौरा संलग्न किया जाना चाहिए। लोगों से उद्देश्यों और कारणों दोनों के विवरण पर तथा मसौदा विधेयक पर प्राप्त फीडबैक का सार तैयार किया जाना चाहिए और उसे पब्लिक डोमेन पर डाला जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त मंत्रालय को विभिन्न पणधारियों के साथ मसौदा विधेयक पर विचार - विमर्श आयोजित करने के प्रयास करने चाहिए तथा पणधारियों से प्राप्त फीडबैक के सार को मंत्रिमंडल और संसदीय स्थाई समिति दोनों स्तर पर बहस प्रक्रिया के वास्ते प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सिफारिशों का हाल में संपन्न संसद के बजट सत्र के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण किया जाना चाहिए जो कि बार-बार व्यवधानों के बीच स्थगित कर दिया गया था। इस सत्र में संसद में ज्यादातर निर्धारित विधायकी कामकाज संपन्न नहीं हो पाया था। संसद में किसी एक राजनीतिक दल के स्पष्ट बहुमत के अभाव में ऐसी संभावनाएं रहेंगी कि संसदीय कार्यवाही में व्यवधानों की प्रवृत्ति जारी रहे। इससे संसद की प्रभावी विधेयक को पारित करने की क्षमता पर विपरीत असर पड़ेगा। अत: अब हमें अपनी कानून बनाने की प्रक्रिया पर पुनर्विचार करना अत्यंत आवश्यक है, जिसमें स्वतंत्रता के बाद से कोई खास बदलाव नहीं आए हैं। विधेयक-पूर्व प्रभावी जांच की शुरूआत से विधायकी प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन, देश में एक मज़बूत विधेयक का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण मार्ग साबित होगा।

(लेखक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च में आउटरीच इनिशिएटिव्स के प्रमुख हैं। ई-मेल :chakshu@prsindia.org)

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