विकास और पर्यावरण में सन्तुलन

22 Mar 2016
0 mins read

पर्यावरण कानूनमानव जीवन की सभी गतिविधियों में से औद्योगिकीकरण एक ऐसी गतिविधि है जिससे पर्यावरण को सबसे अधिक खतरा होता है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि विभिन्न स्रोतों से एकत्रित की गई कच्ची सामग्रियों और ऊर्जा को एक ही स्थान पर लाकर उन्हें उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रक्रिया से निश्चित ही काफी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ निकलते हैं। ये अपशिष्ट ठोस, द्रव्य और गैसों के रूप में निकलते हैं। उद्योगों से होने वाले अपशिष्ट बहिस्राव से उनके निकट बसे लोगों के स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा हो सकता है। इनसे अम्ल वर्षा के साथ-साथ, पृथ्वी का तापमान बढ़ने और ओजोन की परत में छेद होने की स्थिति आ सकती है। द्रव्य के रूप में बहकर निकलने वाले अपशिष्टों से उद्योग के निकट स्थित भूजल दूषित हो जाता है और नदियों को प्रदूषित कर देता जो इस प्रदूषित जल को सैकड़ों मील दूर बहाकर ले जाती है। गैर-अवक्रमणकारी जैव पदार्थों सहित ठोस अपशिष्ट खतरनाक हो सकते हैं और कई प्रकार की समस्याएँ पैदा कर सकते हैं।

पर्यावरण अभियान


पर्यावरण अभियान के प्रथम चरण में प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। आरम्भ में यह पाइपों से निकलने वाले अपशिष्टों के उपचार का ही एक प्रयास था। लेकिन कालान्तर में अपशिष्टों के उपचार की तुलना में उनके पैदा होने से रोकना कम खर्चीला पाया गया। अब सारे विश्व में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को तैयार करने के साथ-साथ अपशिष्टों को कम करने वाली प्रक्रिया के उपयोग पर बल दिया जा रहा है ताकि कम-से-कम अपशिष्ट निकलें और बेहतर तो यह हो कि अपशिष्ट बिल्कुल ही न पैदा हों। लेकिन अपशिष्टों को कम करने की हम कितनी ही बेहतर प्रौद्योगिकी का प्रयोग करें, अन्ततः कुछ-न-कुछ अपशिष्ट निकलते ही हैं जिन्हें ठिकाने लगाना ही पड़ता है।

इस सन्दर्भ में अपशिष्टों का पुनरोपयोग महत्त्वपूर्ण हो जाता है। पर्यावरणविदों की नई धारणा यह है कि विनिर्माण गतिविधियों की एक ऐसी शृंखला तैयार की जाये जो विभिन्न विनिर्माता इकाइयों से मेल खाती हों। प्रयास है कि एक इकाई के अपशिष्टों को दूसरी इकाई में उपयोग में लाया जाये और इस तरह एक ऐसी शृंखला तैयार की जाये जहाँ अन्ततः कोई अपशिष्ट बचे ही नहीं। यह एक आदर्श स्थिति होगी क्योंकि प्रकृति भी अब तक इसी तरह से संचालित होती आई है और लाखों वर्षों से भी अधिक समय से ऐसी प्रणाली ही विकसित हुई है। प्रकृति में एक प्रजाति द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट किसी दूसरी प्रजाति का भोजन बन जाते हैं। विभिन्न जीवों के बीच खाद्य शृंखला की इस अनुकूलता का एक उदाहरण है। यदि मानव इस सन्दर्भ में प्रकृति का अनुसरण कर सके, तो हमारा ग्रह वृहत स्तर औद्योगिकीकरण के कारण जिस स्थिति में पहुँच गया है उसकी तुलना में पर्यावरण के काफी अनुकूल हो जाएगा।

निरन्तर विकास


निरन्तर विकास की बात से हम पर्यावरण और विकास के बीच शाश्वत समस्या के मुद्दे पर पहुँच जाते हैं। भारत और अन्य विकसित देश इसी समस्या से दो-चार हो रहे हैं। निरन्तर विकास वहाँ सम्भव है, जहाँ पर्यावरण और विकास एक-दूसरे के परिपूरक बन जाते हैं। एक कार्यशील प्रजातांत्रिक व्यवस्था में बेहतर जीवनस्तर जीने की गरीब लोगों की आकांक्षाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके साथ ही, विकास के नाम पर देश के पर्यावरण को नष्ट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। जरूरत इस बात की है कि विकास और पर्यावरण आवश्यकताओं के बीच सन्तुलन स्थापित किया जाये।

सरकार की आर्थिक उदारीकरण की नई नीति ने नई चुनौतियाँ उपस्थित कर दी हैं। विनिर्माण के क्षेत्र में नए उद्यमी, नए उत्पाद तैयार करने के लिये प्रवेश कर रहे हैं। एक प्रवृत्ति देखने में आ रही है कि औद्योगीकृत केन्द्रों पर ही नए उद्योगों का जमाव बढ़ता जा रहा है जिससे उन स्थानों पर दबाव भी बढ़ रहा है, इसीलिये सरकार ने हर नई परियोजना के लिये पर्यावरणीय स्वीकृति को अनिवार्य बनाने का निर्णय किया है। इससे देश को औद्योगिकीकरण की ऐसी योजना बनाने में मदद मिलती है, जो पर्यावरण के अनुकूल हो। अब हर परियोजना से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के विश्लेषण पर बल दिया जाता है और उसे स्वीकृति देने से पूर्व पर्यावरण सम्बन्धी शर्तों को इसमें शामिल करना पड़ता है। हमारा यह प्रयास रहेगा कि औद्योगिकीकरण में आई नई तेजी से देश के पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे।

संसाधनों का संरक्षण पर्यावरण सम्बन्धी कार्यवाही का मूलाहार है। जैव-विविधता के सन्दर्भ में भारत सबसे धनी देशों में से एक है लेकिन वनों की कटाई, वन-पशुओं के अवैध शिकार औद्योगिकीकरण के दबाव, जनसंख्या वृद्धि इत्यादि के कारण हम इस सन्दर्भ को तेजी से खोते जा रहे हैं। हमारी सरकार ने देश की जैव-विविधता को संरक्षित रखने के लिये अनेक उपाय किये हैं। हमें अपने वनों का क्षेत्र बढ़ाने में सफलता मिली है और सरकार के प्रयासों से वन क्षेत्र को बढ़ाने का सम्भवतः हमारा देश एक दुर्लभ उदाहरण है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading