विकास की बलि : ललितपुर

नदियों पर बनने वाले बांधों के विरोध में बीसवीं सदी में विरोध की घटनाओं में एक बेतवा नदी पर बने राजघाट बांध पर वीरेन्द्र जैन ने “ डूब उपन्यास लिखकर इस दु:ख गाथा को दुनिया भर में उजागर भले ही कर दिया हो लेकिन डुबाने का षड्यंत्र आज भी जारी है

देश में जर, जमीन और जंगल को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनाई गयी नीति के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। अराजकता के भयावह दौर में जाता उत्तर प्रदेश कभी देश का उत्तम प्रदेश माना जाता था लेकिन आज हालात इस दिशा में बढ़ गये हैं कि लोग उल्टा प्रदेश कहते नहीं थकते हैं। ग्रेटर नोएडा से लेकर ललितपुर तक जमीन की लूट का खुला खेल जारी है। कभी उद्योगों के नाम पर कभी बांध के नाम पर तो कभी वनों के नाम पर लाखों परिवारों को उजाड़ने का अनवरत सिलसिला जारी है। इस मामले में सबसे दुर्भाग्यशाली जनपद के रूप में ललितपुर का नाम आता है। अपने लालित्य के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध इस जनपद में आदिमानव निर्मित गुफाओं से लेकर रॉक पेंटिंग तथा गुप्त कालीन और चंदेल कालीन मूर्ति शिल्प के अद्भुत नमूने मौजूद हैं। प्राकृतिक वन सम्पदा और खनिज सम्पदा से परिपूर्ण इस जनपद का जैसे नजर लग गयी हो। जनपद में गोविन्द सागर बांध, जामनी बांध, माताटीला बांध, सजनाम बांध, शहजाद बांध, रोहिणी बांध, रानी लक्ष्मीबाई सागर, कचरौंदा बांध, सुखवा ढुकुवा बांध आदि बांधों के नाम पर इस जनपद की आधी से अधिक भूमि डूब गयी है। बांध निर्माण से होने वाली समस्याएं, डूब क्षेत्र में डूब जाने वाली मनुष्यता संस्कृति, सभ्यता, इतिहास, भूगोल, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, पहाड़ वहां रहने वाले आदमी हाँ आदमी भी जिनमें से कितने पानी में डूबते हैं और कितने बांध निर्माण की वजह से यंत्रणाओं, यातनाओं और भूख के पारावार में समा कर खत्म हो गये इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है सरकार के पास क्योंकि सरकार डूब क्षेत्र को बीसियों साल पहले डूबा हुआ मानकर सो जाती है।



वहाँ रहने वाले लोगों को जीवित मनुष्य मानना छोड़ देती है। शायद यही कुछ दंश भोग रहा है ललितपुर! बड़ा अभागा ललितपुर जिसकी दो तिहाई भूमि डुबोकर भी सरकार के क्रूर हाथ अभी भी नहीं रूक रहे हैं। बांध के बाद उद्योगों के नाम पर ललितपुर की भूमि को लूटने के लिये भारत एक्सपोलोसिव के बाद हिन्दुस्तान बजाज लिमिटेड के प्रस्तावित बिजली कारखाने के लिये हजारों गांवों की कृषि भूमि को अधिग्रहण किया जा रहा है। दो तिहाई से ज्यादा जमीन गवां चुके इस जनपद के वाशिंदों की लड़ाई लडऩे के लिये कोई मेधा पाटकर और अरूंधति राय सामने नहीं आ रही है। हरसूद का मातम सारी दुनिया में मनाने वाले लोगों ने खामोश चुप्पी साधी है। ललितपुर में लगातार पर्यावरण हानि और जन हानि के खेल के अनवरत चलने पर दुखद आश्चर्य होता है कि अभी इस खेल का पहला अध्याय ही हुआ है। दूसरे अध्याय के रूप में चर्चा करने के पूर्व यह बता देना समीचीन रहेगा कि इस जनपद के 180 गाँव में 1 सैकड़ा गाँव का अस्तित्व डूब और भूमि अधिग्रहण के चलते समाप्त हो गया है। जिसके कारण इस क्षेत्र में रहने वाली आदिवासी, सहेरिया जनजाति के समाप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। सिर्फ यादव में बसे गाँव आतंक, संत्रास और खौफ का रूप रह गये हैं।

औद्योगिक विकास के इस अमानवीय खलनायक के खिलाफ जिसने भी जंग में भाग लेने की कोशिश की उसे सरकारी मशीनरी ने तहस-नहस कर डाला जिसके कारण खामोश ललितपुर के जंगलों, गाँव और समाजों की बलि विकास के नाम पर लगातार हो रही है। नदियों पर बनने वाले बांधों के विरोध में २०वीं सदी में विरोध की घटनाओं में एक बेतवा नदी पर बने राजघाट बांध (लक्ष्मीबाई सागर) पर इस अंचल में जन्मे वीरेन्द्र जैन ने “ डूब उपन्यास लिखकर इस दु:ख गाथा को दुनिया भर में उजागर भले ही कर दिया हो लेकिन डुबाने का षड्यंत्र आज भी जारी है। सरकार ने भले ही विस्थापन के लिए राहत देने के लिए कुछ सौगातें देकर मलहम लगाने की कोशिश की हो उन्हीं में अभी हाल में लिये गये निर्णयों में यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए अधिग्रहीत की गयी भूमि से विस्थापित परिवारों के पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास को प्रभावी रूप से लागू करने हेतु पदेन आयुक्त तथा प्रशासक नियुक्त किये गये हैं।

राज्य के औद्योगिक विकास विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार नोएडा एवं ग्रेटर नोएडा की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण संबंधी पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास के मामलों को देखने हेतु जिलाधिकारी गौतमबुद्धनगर को पदेन प्रशासक तथा मण्डलायुक्त मेरठ को पदेन आयुक्त नियुक्त किया गया है। लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) हेतु पदेन प्रशासक जिलाधिकारी लखनऊ तथा पदेन आयुक्त मण्डलायुक्त लखनऊ होंगे। गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) के लिए पदेन प्रशासक जिलाधिकारी गोरखपुर तथा पदेन आयुक्त मण्डलायुक्त गोरखपुर को बनाया गया है। इसी प्रकार यमुना एक्सप्रेस-वे परियोजनाओं के लिए गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामाया नगर, मथुरा तथा आगरा के जिलाधिकारी को पदेन प्रशासक तथा मेरठ, अलीगढ़ एवं आगरा के मण्डलायुक्तों को पदेन आयुक्त बनाया गया है।

पदेन प्रशासक भूमि अधिग्रहण के मामलों में परियोजना से प्रभावित परिवारों के पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास के लिए कम से कम से लोगों को विस्थापित किये जाने के विकल्पों की जानकारी प्राप्त करेंगे। विस्थापित हुए लोगों के परिवारों हेतु वैकल्पिक व्यवस्था के लिए सक्षम अधिकारी से विचार-विमर्श कर आवश्यक एवं प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे। इसी प्रकार परियोजना से प्रभावित होने वाले परिवारों के लिए पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास योजना भी तैयार करेंगे। पदेन प्रशासक यह भी सुनिश्चित करेंगे कि परियोजना से प्रभावित होने वाले ऐसे परिवारों, विशेष कर अनुसूचित जनजाति एवं कमजोर वर्गों के परिवारों के हितों को पूरी तरह संरक्षित करेंगे। इसके अलावा भूमि अधिग्रहण नीति के तहत पुनर्स्थापना और पुनर्वास के लिए योजना/स्कीम का प्रारूप तैयार करायेंगे। इसके साथ ही परियोजना प्रभावित परिवारों तथा अधिग्रहण निकाय, जिसके लिए भूमि अर्जित की जाती है, प्रतिनिधियों के साथ परामर्श से भूमि अर्जन के संघटकों, पुनर्स्थापना तथा पुनर्वास कार्यकलापों या कार्यक्रमों के अनुमानित व्यय सहित बजट तैयार करेंगे। प्रभावित परिवारों को अनुमन्य लाभ स्वीकृत करायेंगे। इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर दिये गये आदेशों का अनुपालन भी सुनिश्चित किया जाएगा।

पदेन आयुक्त भूमि अधिग्रहण के मामले में विभिन्न परियोजनाओं से प्रभावित परिवारों के पुनर्वासन और पुनर्स्थापना के पर्यवेक्षण का कार्य करेंगे। इसके अतिरिक्त वे पुनर्स्थापना तथा पुनर्वासन के लिए सभी उपाय सुनिश्चित करेंगे और उनके द्वारा निर्धारित कार्यों तथा कर्तव्यों का निष्पादन भी सुनिश्चित किया जायेगा।

पदेन आयुक्त परियोजनाओं के लिए पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापन नीति को प्रभावी ढंग से लागू करायेंगे। इस परियोजना के पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना में लगे हुए अधिकारी एवं कर्मचारी पदेन आयुक्त के अधीन होगें। आयुक्त पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास की योजनाओं का पर्यवेक्षण करेंगे और इन योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ ही प्रतिवादों का भी निस्तारण सुनिश्चित करेगें। फिल्म अभिनेता और जामनी बाँध तथा सजनाम बांध के बनने से दो बार अपने पुश्तैनी गाँव और घर को गँवा चुके राजा बुन्देला कहते हैं कि दिल्ली से नहीं दिखता आकाश? नीतियाँ कितनी बदलती हैं पहले राजा को पानी की दरकार थी सो गाँव बसाया था। अब राज्य को पानी की दरकार है, सो गाँव उजाड़ रहे हैं। आज भी सैकड़ों लोग राजघाट बांध बन जाने के 25 वर्ष बाद भी अपनी जमीन के मुआवजे के लिए भटक रहे। सामाजिक कार्यकर्ता मुरारीलाल जैन कहते है कि गांव उजड़ने के बाद वहां के रहने वाले लोग कहां गए, क्या कर रहे हैं इसका लेखा-जोखा रखे बिना विकास का खेल खेला जाना इस आधुनिक युग में आदिम व्यवस्था का व्यवहार लगता है।
 

हैरतअंगेज उत्तर प्रदेश


उ.प्र. में भूअधिग्रहण की कहानी अति रक्तरंजित है। गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद जिलों के साथ ही बुलंदशहर, अलीगढ़ एवं आगरा जिले निरंतर सरकार व किसानों के बीच रक्तरंजित संघर्ष का मैदान बने हुए हैं। शेष उ.प्र. से बहुत आगे चल रहे इन जिलों की जमीनें सोना उगलती हैं। शहरीकरण व औद्योगीकरण के व्यापक अवसर होने के कारण नेता नौकरशाह उद्योगपति येन केन प्रकारेण यहां पर जमीन कब्जाने के खेल में रहे हैं। अनुमान है कि पिछले मुख्यमंत्री के काल में इस इलाके में 3 से 4 लाख करोड़ काला धन इस गठजोड़ ने कमाया था। वर्तमान गठजोड़ के आंकड़े भी इससे कम नहीं बैठते। दु:खद यह है कि इस गठजोड़ का लालच दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है और किसान को आज भी तुलनात्मक रूप से बहुत कम मुआवजा मिल रहा है। इस खेल में शहरीकरण की सीमाओं, पर्यावरणीय कारकों व संवैधानिक मूल्यों सबका खुल्लमखुल्ला उल्लंघन हुआ है। सामान्यत: किसानों को भूअधिग्रहण के समय जो मुआवजा राशि दी जाती है प्राधिकरण उसी जमीन को दस बीस गुना अधिक दाम पर बेच देते हैं और किसान स्वयं को ठगा सा महसूस करते हैं। प्राधिकरणों द्वारा अधिग्रहीत जमीन को आवंटियों को देने की प्रक्रिया में भारी धांधली, कमीशनखोरी, बंदरबांट होती है। इस प्रक्रिया में किसान जहां बेरोजगार हो जाता है वहीं मुआवजे की रकम का सही उपयोग कर पाने की समझ के कारण जल्द ही व्यसनों का शिकार हो कंगाल हो जाता है।

पश्चिमी उ.प्र. के किसान नेताओं के अनुसार, सरकार की विभिन्न परियोजनाओं के कारण 23511 गांवों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा और ये सभी क्षेत्र गंगा और यमुना के उपजाऊ क्षेत्र हैं जिससे न केवल लाखों परिवारों का रोजगार छिनेगा बल्कि उनका जीवन छिन्न-भिन्न हो जाएगा। साथ ही अनाज के उत्पादन पर दीर्घकालिक असर पड़ेगा। इन नेताओं का आरोप है कि उन्हें लगातार डरा-धमका कर आंदोलन को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है और प्रदेश के विकास के नाम पर स्वयं मुख्यमंत्री उनके चमचों, नौकरशाहों व कुछ औद्योगिक घरानों को ही फायदा पहुंचाया जा रहा है।
 

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