विकसित देशों जैसा मॉडल बनाना जरूरी

22 Apr 2018
0 mins read
plastic
plastic


प्लास्टिक कैरी बैग के विकल्पों पर सब्सिडी दी जानी चाहिए। विकसित देशों की तरह यहाँ भी टेक बैक स्कीम और डिपॉजिट रिफंड स्कीम लागू हो जिसके तहत लोग प्लास्टिक के उत्पाद सरकार को लौटाएँ और इसके बदले में उन्हें कुछ रकम दी जाये।

.देश में तकरीबन पाँच लाख टन प्लास्टिक कचरे का सालाना उत्पादन होता है। यह देश के कुल ठोस कचरे का छोटा भाग है लेकिन इसे रिसाइकिल करना और इसका निस्तारण करना बहुत बड़ी समस्या है। केन्द्रीय प्रदूषण नियामक बोर्ड के मुताबिक देश में रोजाना 15 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसमें से नौ हजार टन की एकत्र करके प्रोसेस किया जाता है, लेकिन छह हजार टन प्लास्टिक को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।

देश के प्रमुख शहरों में प्लास्टिक कचरे से आकलन और मात्रा के निर्धारण पर केन्द्रीय प्रदूषण नियामक बोर्ड की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक तकरीबन 70 फीसद प्लास्टिक पैकेजिंग उत्पाद बहुत कम समय में कचरे में तब्दील हो जाते हैं। अध्ययन में यह भी सामने आया कि तकरीबन 66 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे में मिश्रित कचरा था, जिसमें पॉलीबैग, खाद्य पदार्थों को पैक करने के काम आने वाले कई लेयरों वाले प्लास्टिक पाउच शामिल थे। अध्ययन के मुताबिक रोजाना निकलने वाले 50,592 मीट्रिक टन ठोस कचरे में से औसतन 6.92 किग्रा प्रति मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा हर रोज डम्प किया जाता है।

प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016 के तहत 50 माइक्रॉन से कम मोटाई वाली प्लास्टिक बैग को प्रतिबन्ध किया गया है। साथ ही सभी प्रकार के मल्टीलेयर्ड पैकेजिंग प्लास्टिक को भी दो वर्षों में पूरी तरह इस्तेमाल से बाहर करने का निर्देश दिया गया है। लेकिन इस कानून को अमल में नहीं लाया जा रहा। प्लास्टिक हमारी जिन्दगी में इस तरह से शामिल हो गया है कि इससे बने उत्पादों को प्रतिबन्धित कर पाना अत्यन्त कठिन है। लिहाजा, प्लास्टिक के स्थान पर अन्य विकल्पों को तलाशने की जरूरत है।

यह मसला सिर्फ सोशल इंजीनियरिंग यानी व्यवहारिक पद्धति अपनाने से हल होगा। सबसे पहले लोगों को यह समझना होगा कि प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना क्यों जरूरी है। लोगों में यह समझ विकसित करने के लिये स्थानीय नगरपालिका और आरडब्ल्यूए के स्तर पर जागरुकता अभियान चलाए जा सकते हैं। दूसरा, राज्यों को चाहिए कि जब वे प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाते हैं तो उसका सस्ता विकल्प मुहैया कराएँ। मौजूदा स्थिति में कपड़े और जूट के थैले खरीदना सभी नागरिकों के बस की बात नहीं है। वहीं, बड़ी दुकानों पर मौजूद कैरी बैग की कीमत को लेकर काफी समय से बहस चल रही है।

इसे देखते हुए कुछ समय के लिये प्लास्टिक कैरी बैग के विकल्पों पर सब्सिडी दी जानी चाहिए। तीसरा, नॉर्वे, स्वीडन जैसे विकसित देशों की तरह यहाँ भी टेक बैक स्कीम और डिपॉजिट रिफंड स्कीम लागू की जानी चाहिए जिसके तहत लोग अपने पास एकत्रित प्लास्टिक के उत्पाद सरकार को लौटाएँ और इसके बदले में उन्हें कुछ रकम दी जाये। इन देशों में 90 फीसद से भी अधिक प्लास्टिक कचरा रिसाइकिल किया जाता है। इससे नालियों में प्लास्टिक जमा होने, सड़कों पर प्लास्टिक के जलाए जाने या डम्पिंग ग्राउंड में इसे फेंक दिये जाने की सम्भावना कम हो जाती है।

2016 के नियमों में पेश किया गया एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (ईपीआर) की योजना आज तक अमल में नहीं लाई गई है। इसके तहत उत्पादों के निर्माताओं और आयातकों को पर्यावरण पर पड़ने वाले उन उत्पादों के असर की कुछ जिम्मेदारी लेनी चाहिए। नियम के मुताबिक ईपीआर के लक्ष्यों को राष्ट्रीय स्तर पर विवरण दिया जाना होता है, चाहे उत्पाद किसी भी राज्य में बेचे जाएँ या इस्तेमाल किये जाएँ। नियमों में हुआ संशोधन इन बातों पर ध्यान ही नहीं होता है।

स्वाति सिंह, प्रोग्राम मैनेजर, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)

 

 

 

TAGS

developing countries in hindi, tech bank scheme in hindi, deposit refund scheme in hindi, multilayered packaging in hindi, extended producer responsibility in hindi,

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading