विकट होता जल संकट

योजना आयोग के आँकड़ों के मुताबिक देश का 29 फीसदी इलाका पानी के गम्भीर संकट से जूझ रहा है। एक पुराना आकलन देखें तो केंद्रीय भू-जल बोर्ड के अनुमान के मुताबिक भूमिगत जल का दोहन इसी तरह रहा तो देश के 15 राज्यों में भूमिगत जलस्रोत 2025 तक खाली हो जाएगा। प्रकृति की मूल रचना के साथ जब भी छेड़छाड़ होती है, तब वही चीजें इंसानों के लिए विनाश का सबब बन जाती हैं। इंसान अक्सर अपने ही बुने जाल में फँसकर तड़पता नजर आता है और जब उसे होश आता है तो बहुत देर हो चुकी होती है। कुछ यही स्थिति पानी के सम्बन्ध में है। पिछले कुछ सालों में पर्यावरणीय असन्तुलन बढ़ा है। जिस वजह से पानी को लेकर भी दिक्कतें बढ़ी हैं। नदियों में पानी की कमी व सूखते जल स्रोत तथा भूमिगत जल के अन्धाधुन्ध दोहन की वजह से मुल्क में भू-जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। गर्मी के दिनों में इस कारण देश के ज्यादातर इलाकों में नल व कुँओं के सूखने की खबर मिलती है।

पानी के बिना जीवन की कल्पना बेमानी है। जल जीवन की मूलभूत जरूरतों में से एक है, जिसका उपयोग पीने, भोजन बनाने, सिंचाई, पशु-पक्षियों के साथ औद्योगिक इकाइयों के लिए बेहद जरूरी है। बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता है, जब मालदीव में जल संकट उत्पन्न हो गया था। जिसमें भारत की तरफ से 12 सौ टन से ज्यादा ताजा जल भेजा गया। जल संकट का यह तो केवल संकेत मात्र है। पूरे विश्व में हालात कितने विकराल होंगे, यह कह पाना बेहद मुश्किल है।

पृथ्वी का दो-तिहाई यानी तकरीबन 71 प्रतिशत धरातल जल से आच्छादित है, बावजूद इसके अलवणीय जल कुल जल का सिर्फ तीन प्रतिशत है। वास्तव में अलवणीय जल का एक छोटा हिस्सा ही इंसानों के इस्तेमाल के लायक होता है, जिस वजह से पूरे विश्व में शुद्ध जल की भारी किल्लत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आँकड़ों पर गौर फरमाएँ तो पता चलता है कि दुनिया में तकरीबन 74.8 करोड़ लोगों को नियमित रूप से साफ पानी नहीं मिल पा रहा है।

देश में आजादी के समय प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता पाँच हजार क्यूबिक मीटर थी, जबकि वर्तमान में यह आँकड़ा दो हजार क्यूबिक मीटर रह गया है। योजना आयोग के आँकड़ों के मुताबिक देश का 29 फीसदी इलाका पानी के गम्भीर संकट से जूझ रहा है। एक पुराना आकलन देखें तो केंद्रीय भू-जल बोर्ड के अनुमान के मुताबिक भूमिगत जल का दोहन इसी तरह रहा तो देश के 15 राज्यों में भूमिगत जलस्रोत 2025 तक खाली हो जाएगा। अब यहाँ हमें चेतना है कि हमारी भावी पीढ़ियों के लिए हम कितना पानी छोड़ेंगे।

जल संकट का सामना करने के लिए जल संरक्षण एक बेहतर व कारगर उपाय है। इससे न केवल जलस्रोतों से पानी की निकासी में कमी की जा सकेगी बल्कि गन्दे पानी का बहाव भी कम किया जा सकेगा। देश में बारिश से तकरीबन 30 लाख एकड़ फीट जल मिलता है, मगर इसका ज्यादातर भाग या तो वाष्प बनकर उड़ जाता है या नाले-नालियों में बह जाता है।पानी का संकट एक विश्व स्तरीय समस्या है। विकास की अँधी दौड़ में बढ़ते कल-कारखानों की वजह से पानी की खपत भी बढ़ी है, जो जल संकट में थोड़ा इजाफा ही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक आकलन के मुताबिक विकासशील देशों में तकरीबन 12 करोड़ लोगों को साफ पीने का पानी मयस्सर नहीं, जिस वजह से 2.5 करोड़ लोग प्रदूषित जल की वजह से होने वाली बीमारियों से मर जाते हैं।

जल संकट पर हमेशा राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चिन्तन होता रहा है। बावजूद इसके जल संकट दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। भारत में बढ़ती जनसंख्या, सिंचाई की आवश्यकता तथा औद्योगीकरण में बेतहाशा वृद्धि की वजह से पानी की माँग तेजी से बढ़ी है।

कृषि प्रधान देश होने की वजह से दो-तिहाई लोग खेती पर निर्भर हैं। आजादी के वक्त देश की कुल सिंचाई क्षमता तकरीबन 1.95 करोड़ हेक्टेयर थी, जो अब बढ़कर 7.6 करोड़ हेक्टेयर हो गई है। इस बढ़ते जल की माँग को सतही जल से पूरा नहीं किया जा सकता। जिस वजह से भूमिगत जल का दोहन बेतहाशा बढ़ा है, नतीजन भू-जल का स्तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है। यही वजह है कि देश में जल संकट बढ़ा है। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए जल संरक्षण ही सबसे बेहतर उपाय है।

जल संकट का सामना करने के लिए जल संरक्षण एक बेहतर व कारगर उपाय है। इससे न केवल जलस्रोतों से पानी की निकासी में कमी की जा सकेगी बल्कि गन्दे पानी का बहाव भी कम किया जा सकेगा। देश में बारिश से तकरीबन 30 लाख एकड़ फीट जल मिलता है, मगर इसका ज्यादातर भाग या तो वाष्प बनकर उड़ जाता है या नाले-नालियों में बह जाता है। बारिश के पानी को कुण्ड, तालाबों, जलाशयों, छोटे बाँधों आदि में इकट्ठा करके इसका उपयोग सूखे मौसम में किया जा सकता है। इसके अलावा भूमिगत जलस्रोतों को भी इस पानी से भरा जा सकता है।

जल संरक्षण के कई फायदे हैं, एक तो सीमित संसाधनों का बेहतरीन उपयोग सम्भव हो पाता है, दूसरे इसके माध्यम से अन्य इलाकों में भी पानी पहुँचाया जा सकता है। जल संरक्षण के विभिन्न उपयों को अपना कर बारिश के जल को संरक्षित करके उसे पीने व दूसरे महत्वपूर्ण कार्यों में लाया जा सकता है। इसके लिए सरकार व आमजन दोनों को जागरूक होने की जरूरत है। सरकार द्वारा जनता को जल संरक्षण के महत्व को बताने की ही नहीं बल्कि यह समझाने की जरूरत है कि इस तरह से जल संरक्षित कर वो उसका विभिन्न रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं।

आबादी के फैलाव से ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों की संख्या घटती जा रही है, जिस वजह से जल के भण्डारण क्षमता में भी कमी आई है। इस वास्ते जल संरक्षण की नीतियाँ बनाई जाएँ और उसे ठीक से अमल में लाया जाए। केंद्र व राज्य सरकारें आपस में बेहतर तालमेल से जल संरक्षण के महत्व व उसकी उपयोगिता का प्रचार आमजन में करके इस दिशा में कार्य करें।

सरकार के साथ गैर सरकारी संगठन भी लोगों में जल संरक्षण के प्रति जन जागरण अभियान चलाकर बड़ी मुहिम खड़ा करें। तब जाकर कहीं जल बचेगा तभी हम जीवन बचा पाने में सफल होंगे वरना रहीम दास के शब्दों में.... रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।

ई-मेल : mafsarpathan@gmail.com

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