विरासत में मिली पर्यावरण प्रेम की सीख


निरन्तर खुद के कठिन प्रयासों से वृक्षारोपण करने, पेड़ों को जीवित रखने और वन संरक्षण की ऐसी स्नेह हृदय में जगी कि उनके निस्वार्थ प्रयास व प्रकृति पर्यावरण जागरुकता को देखते हुए ‘पर्यावरण प्रेमी’ के उपनाम से परिचित होने लगे। अपने लक्ष्य का निस्वार्थ, निष्ठा एवं ईमानदारी से निर्वहन करते हुए वन संरक्षण, पौधरोपण वर्षाजल के संरक्षण और माटी के कटाव को रोकने में अत्यन्त प्रभावी व अथक प्रयास के फलस्वरूप ग्रामीणों को घास, चारापत्ती और जलौनी सूखी लकड़ी घर के निकट से ही उपलब्ध होने लगी।देवभूमि उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद उत्तरकाशी तहसील डुण्डा के पहाड़ी गाँव में भैंत के श्याम सिंह पोखरियाल उनकी पत्नी रामपति 60 के दशक के दौरान धरती पर पेड़ पौधों की महत्ता को जानते हुए मन में पर्यावरण संरक्षण के प्रति बेहद लगाव होने से अपने गाँव व नजदीकी गाँव के वासियों को प्रोत्साहित करने तथा पेड़-पौधों को सुरक्षित रखने के लिये स्वयं देख-रेख व चौकीदार की निरन्तर भूमिका निभाने लगे।

वर्ष 1958 के दौरान घर में पुत्र के पैदा होने की खुशी में पिता व माता ने अपने गाँव के पौण्ड नामक तोक में निजी भूमि पर ग्यारह फलदार व चारा पत्ती के पौधे रोपित किये। पर्वतीय अंचल की तमाम विषम आर्थिक व भौगोलिक स्थिति के कारण प्रताप उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाये। समय गुजरने पर चेतना जगने पर माता-पिता का वनों से अटूट लगाव तथा समाज में पर्यावरण संरक्षण की चर्चाएँ सुनने से प्रताप के मन में भी प्रकृति से अगाध स्नेह के भाव उजागर होने लगे। स्वाभाविक भी था क्योंकि घर में पर्यावरण संरक्षण के संस्कार वो बचपन से ही देखने-सुनने व महसूस करने लगे थे।

गाँव में महिलाओं को घास पत्ती व जलौनी लकड़ी के लिये पाँच किमी से अधिक दूर पैदल ढंगारी पगडंडिया तय करनी पड़ती थी। वर्ष 1960-65 के दौरान वनों में चट्टानों व वृक्षों में फिसलने से गाँव की पाँच महिलाओं की असामयिक ही मृत्यु हो गई।

महिलाओं की घास व लकड़ी की भारी परेशानी तथा पाँच मातृ शक्ति की अकाल ही दुर्घटना होने की हृदय विदारक असहनीय घटनाएँ प्रताप पोखरियाल के मन को उद्वेलित करती रही और यह दर्द उनसे सहा नहीं गया। फिर प्रताप भाई ने वन वृक्षारोपण वन संरक्षण स्वयं के बलबूते पर जमीन पर उतारने के लिये अपना अटूट संकल्प व जीवन का ऐसा लक्ष्य बना लिया कि आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा।

निरन्तर खुद के कठिन प्रयासों से वृक्षारोपण करने, पेड़ों को जीवित रखने और वन संरक्षण की ऐसी स्नेह हृदय में जगी कि उनके निस्वार्थ प्रयास व प्रकृति पर्यावरण जागरुकता को देखते हुए ‘पर्यावरण प्रेमी’ के उपनाम से परिचित होने लगे। अपने लक्ष्य का निस्वार्थ, निष्ठा एवं ईमानदारी से निर्वहन करते हुए वन संरक्षण, पौधरोपण वर्षाजल के संरक्षण और माटी के कटाव को रोकने में अत्यन्त प्रभावी व अथक प्रयास के फलस्वरूप ग्रामीणों को घास, चारापत्ती और जलौनी सूखी लकड़ी घर के निकट से ही उपलब्ध होने लगी।

भाई प्रताप पोखरियाल ‘पर्यावरण प्रेमी’ वनों में चाल-खाल बनाकर एकत्रित पानी का भी सदुपयोग करते आ रहे हैं। पौधों को सीढ़ीदार क्यारी में लगाकर बहते वर्षाजल को छोटी-छोटी नालियाँ बनाकर क्यारियों की तरफ मोड़ने का कार्य भी करते रहे, ताकि वर्षा का पानी संरक्षण बहाव में सड़ी-गली घास पत्तियों से पौधों के लिये खाद, भोजन, पानी के साथ नमी मिलती रहे। पौधे रोपण के लिये छोटे-छोटे गड्ढे खोदे गए और प्रत्येक एक गड्ढे में पाँच बीज बोते रहे। फिर गड्ढे की सूखी जमीन से ढाई-तीन मीटर की दूरी पर दूसरा गड्ढा बनाने का कार्य करते रहे। इस प्रकार हरित क्रान्ति लाने का उनका मकसद पूर्ण होता रहा।

चालीस सालों से निरन्तर धरती को निस्वार्थ भावना से हरित क्रान्ति जगाने की मुहिम साकार होती दिख रही है। भाई प्रताप के द्वारा रोपित पौधे आज न केवल भूमि पर पनप रहे हैं, बल्कि वनों से पर्यावरण की रक्षा स्थानीय समुदायों को लकड़ी, चारा, पत्ती आदि भी नजदीकी वनों से प्राप्त हो रही है। उनका कहना है कि जंगल बचेगा तो जीवों की उत्पत्ति होगी।

जलविहीन ऊबड़-खाबड़ पथरीली भूमि पर स्थापित इन वनों में एक वृक्ष पनपाने और उसे जीवित रखने के लिये अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है फिर भी वे अपने सीमित संसाधनों, कठोर परिश्रम तथा जन सहयोग के चलते वनों को स्थापित करने में पूर्णतया सफल हुए हैं। प्रताप पोखरियाल ‘पर्यावरण प्रेमी’ व सहयोगियों के द्वारा स्थापित वनों के निकट स्थित ग्रामसभाएँ गोरसाड़ा, धनेटी, मट्टी, बड़ेथ, गढ़धाती, नैपड़, न्यूगाँव व भैंत में वर्षों पूर्व पानी के कई स्रोत सूख गए थे। वर्तमान में इन स्रोतों से पानी निकल रहा है।

इन स्रोतों में पुनः पानी फूटने से वनों की अहम भूमिका दिखाई दी। इस आश्चर्य को देखकर व उत्साहित होकर अनेक ग्रामीण भी ‘पौध लगाओ पर्यावरण बचाओ’ मुहिम से जुड़ने लगे। माता-पिता से विरासत में मिली पर्यावरण प्रेम की सजकता एवं पौधरोपण करने के अनगिनत लाभों से भली-भाँति परिचित होने के बाल उम्र से वर्तमान तक के चालीस सालों के सफर में उन्होंने धरातल पर अनेक वनों को उगाकर एक अप्रत्याशित पर्यावरणीय संरक्षण व संवर्धन का कार्य किया है।

सर्वप्रथम जब उनके अन्दर पर्यावरण बचाने का भाव जगा तो अपने गाँव भैंत के पौड नामी तोक में बंजर पड़ी हुई पचास नाली अपनी भूमि पर प्रथम वन पूर्वजों, देश के सपूतों व शहीदों की स्मृति में बांज, बुरांश, केदारपाती, बज्रदन्ती, किनगोड़, टेमरू, अखरोट, काफल, नाशपाती व अन्य पौधों को रोपकर उगाया। समय-समय पर पाँच हजार से अधिक पौधों का रोपण व संरक्षण किया, इनमें से तीन हजार से अधिक पौधे भूमि पर पनप रहे हैं व समिति द्वारा इनकी देख-रेख भी की जा रही है।

दूसरा वन स्वयं के गाँव के अन्तर्गत परगली, भूना, चाल, तोतरियाँ, सौड़, चारखोली, राड़ाघोड़ी नामक तोक में सिविल वन पंचायत वन भूमि भी लगभग 30 हेक्टेयर भूमि पर संस्था द्वार विभिन्न प्रजाति के 35 हजार पौधों का रोपण किया गया। जिसमें लगभग 1 फीट से 50 फीट तक के लगभग 20 से 22 हजार पौधे पनप रहे हैं। साथ ही श्याम वन समिति के द्वारा इन तोकों में 80-90 हजार प्राकृतिक वृक्षों एवं घास व चारापत्तियों का भी संरक्षण किया जा रहा है।

पर्यावरण प्रेमी व श्याम वन स्मृति के तत्वावधान में समिति वन पंचायत की नन्दारीखा भैला सेंमलु नामी तोकों में लगभग 10 हेक्टेयर भूमि पर 20 हजार विभिन्न प्रजाति के पौधों जैसे- बांज, बुरांश, भमोर, काफल, देवदार, थुनेर, केदारपति, पदम पाषणवेद आदि पनप रहे हैं। साथ ही विभिन्न प्राकृतिक पौधों का भी संरक्षण किया जा रहा है।

इसी क्रम में उत्साहित व संकल्प व लगन से भेंत गाँव के दुगड्डा तोक में सिविल वन की बंजर पड़ी 10 हेक्टेयर जमीन वन विभाग के सहयोग से समिति द्वारा 2012 से शहीद पवनदास एवं श्याम सिहं स्मृति वन तैयार किया जा रहा है।

वर्तमान में समिति द्वारा 10 हजार पौधों का रोपण किया गया है।

पाँचवाँ वन उत्तरकाशी के वरूणावत पर्वत की तलहटी पर श्याम स्मृति मिश्रित वन के नाम से सिविल के लगभग 8 हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्र में अधिक तापमान में उगने वाले सागोन, रूद्राक्ष, मछलीपालन, वोतलपाम, जामुन, हरड़, बहेड़ा केदारपाती, तेजपत्ता, पदम, पीपल, बड़, थुनेर, आम, बेलपत्री, चारापाती, मैरियरघास, भीमल, गुरियाल, खड़िक, तिमला आदि 200 मिश्रित प्रजाति के वृक्षों का केवल रोपण ही नहीं किया बल्कि इन वृक्षों को शत-प्रतिशत जीवित रखकर पनपाया जा रहा है।

वर्तमान में इस ढंगारी सूखी चट्टानों पर 35 हजार पौधों का रोपण एवं 15 हजार प्राकृतिक वृक्षों का संरक्षण किया गया है। शोध छात्र शोध कार्यों हेतु वर्ष 2005 में वरुणावत तलहटी के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में वन विभाग व समिति के प्रयास से वृक्षारोपण किया गया है। प्रभावित क्षेत्र में भूस्खलन की रोकथाम में वृक्षारोपण सार्थक हुआ है।

1994 में उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति आन्दोलन में टीजीएमओ कम्पनी में पदाधिकारी होने के कारण परिवहन सम्बन्धी दायित्व मुस्तैदी से निर्वहन किया गया। पर्यटन व शिक्षा के क्षेत्र में जागृति तथा अनेकों सामाजिक कार्यों में निस्वार्थ सहभागिता बनी रहती है। प्रताप पोखरियाल, ‘पर्यावरण प्रेमी’ को पर्यावरण संरक्षण एवं अनेकों सामाजिक कार्यों हेतु जनपदीय, राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय सम्मान दिये गए हैं।

सन 2000 में विश्व पर्यावरण दिवस पर 2500/, 26-1-2010 को जिला युवा कल्याण पुरस्कार के साथ 10,000/ व सितम्बर 2011 को वन पंचायत दिवस के अवसर पर 25,000 की धनराशि व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किये गए हैं।

समिति के द्वारा षष्टम वन गंगोत्री हेलीपैड के निकट भूस्खलन क्षेत्र में देवदार, वनपीपल आदि वृक्षों का रोपण किया गया है। राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पर्वों, विद्यालयों व गाँव में जनजागरण आन्दोलन चलाकर पर्यावरण संरक्षण, वृक्षारोपण, मैती वृक्ष अभियान, रक्षा सूत्र अभियान, गंगा स्वच्छता, वन प्राणी सुरक्षा, वन अग्नि सुरक्षा हेतु 159 गाँवों में महिला समूह का गठन करके सुरक्षा अभियान में स्थानीय जनता, जन-प्रतिनिधियों, शासन एवं प्रशासन का कार्यक्रम सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के प्रयास निरन्तर जारी रखे हुए हैं।

वन क्षेत्रों में सराहनीय कार्यों के लिये अपने ग्रामसभा भैंत में प्रताप पोखरियाल को दो बार निर्विरोध वन पंचायत सरपंच मनोनीत किया गया। जिसका निर्वाह वे पन्द्रह सालों से निष्ठा व लगन के साथ करते आ रहे हैं। पर्यावरण के प्रति बेहद जागरूक व संवेदनशील होने के साथ ही वे एक जानकार मोटर मैकेनिक भी हैं।

सन 1980 में जीविकोपार्जन के लिये प्रताप पोखरियाल ने अपने पैत्रिक गाँव, भैंत से उत्तरकाशी-गंगोत्री मोटर मार्ग पर मोटर गाड़ी की मरम्मत प्रयोजन हेतु वर्कशॉप प्रारम्भ किया तथा परिवार के साथ आज तक यहीं पर रह रहे हैं। जिले के 169 गाँव में पर्यावरण/वनाग्नि सुरक्षा समूह नाबार्ड के सहयोग से स्वरोजगार नगदी फसलें, आजीविका बढ़ावा के लिये अल्प बचत हेतु बैंकों से जोड़ते हुए 2009 में गठित समिति में लगभग 500 महिलाओं व 300 पुरुषों को सक्रिय भागीदारी हेतु सम्मिलित किया गया है।

वर्ष 1978, 2012 व 2013 में भागीरथी में विनाशकारी बाढ़ आई। जिसके कारण जनपद उत्तरकाशी व टिहरी जनपद के लोग प्रभावित होने से अस्त-व्यस्त हुए। वर्ष 1991 में जनपद उत्तरकाशी में विनाशकारी भूकम्प आया और 2003 में जिला मुख्यालय उत्तरकाशी के उत्तर की तरफ वरुणावत पर्वत में लगातार एक माह तक भूस्खलन से वरुणावत की तलहटी में निवास करने वाली आबादी बेघर हो गई।

प्रताप पोखरियाल सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ निस्वार्थ भाव व पूर्ण रूप से सहयोग व सहायता करने में भी अग्रणी रहे। गंगा स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत भागीरथी नदी व उससे सम्बद्ध अन्य नदी नालों की साफ-सफाई रखने तथा समय-समय पर सफाई कार्य किया करते हैं। प्रताप पोखरियाल रेडक्रॉस सोसाइटी से भी निरन्तर सामाजिक सेवा में तत्पर रहते हैं।

समाज में कई चालाक प्रवृत्ति के लोग स्वार्थ से ही वशीभूत होकर कुछ करने की सोचते हैं, परन्तु दूसरी ओर सद्गुणी लोग कुछ खास उद्देश्य को लेकर लाखों लुटाकर समाज एवं प्रकृति को देने में ही अपनी खुशी मानते हैं। उन्हीं उत्कण्ठित, उत्साहित जन सेवकों में भाई प्रताप पोखरियाल पर्यावरण प्रेमी समाज के बीच एक प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी जितनी प्रशंसा की जाये कम ही है। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होकर हजारों की संख्या में विभिन्न प्रकार के पौधे रोपित कर उन्हें जमीन पर पनपाने का कार्य तो वर्षों से कर ही रहे हैं लेकिन इसके साथ ही निस्वार्थता से समाज सेवा का भाव उनकी रग-रग में समाया हुआ है। उत्तरकाशी तथा जिले से बाहर भी प्रायः प्रताप पोखरियाल प्रथम पंक्ति में दिखते हैं। उनके चालीस सालों से किये जा रहे ‘पर्यावरण बचाओ’ कार्यों हेतु उनको पर्यावरण के शीर्ष पुरस्कार से बहुत पहले ही नवाजा जाना चाहिए था। अर्थात वे असली हकदार हैं पर्यावरण पुरस्कार के।

प्रताप पोखरियाल पर्यावरण प्रेमी पर्यावरण तथा सामाजिक कार्यों से तो जुड़े ही हैं, इसके अलावा वे धार्मिक कार्यों में भी विशेष रुचि रखते हैं। इसी धर्म भावना से अपने गाँव भैंत में फतेसिंह पोखरियाल तथा विशेष्वर भट्ट के सहयोग से 6 सालों में नागराज के विशाल मन्दिर का निर्माण भी कराया गया है। इस मन्दिर में लगभग 70 क्विंटल सरिया की खपत हुई है। प्रताप पोखरियाल के साथ उनकी पत्नी तथा डॉक्टर भाई एवं बच्चे पूर्णतया सहयोगी हैं। वे पर्यावरण व जन सेवा के कार्यों में ही जुड़े रहते हैं तो वर्कशॉप की देखभाल व लेन-देन का जिम्मा पत्नी बीना पोखरियाल सम्भालती है। ऐसा भी नहीं है कि वे गाँव से पलायन कर उत्तरकाशी आ गए हैं। महीने में चार बार तो गाँव जाना ही होता है। दुबले-पतले शरीर के तथा शालीनता लिये व एकदम साधारण मिजाज भी उनकी अपनी पहचान है। राज्य सरकार एवं शासन-प्रशासन तथा वन विभाग को उनके द्वारा किये जा रहे ‘पर्यावरण बचाओ वृक्ष लगाओ अभियान’ का अवलोकन करना ही होगा।


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