वन अधिकारों की मान्यता : मध्य प्रदेश की पहल

29 Mar 2015
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अनुसूचित जाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के बाद पारित दूसरा महत्त्वपूर्ण अधिनियम है। दिसम्बर, 2007 में अधिनियम के लागू होने के पहले से ही मध्य प्रदेश में इस अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु चरणबद्ध तरीके से कार्यवाही प्रारम्भ की गई थी, जिसके कारण ही आज मध्य प्रदेश इस अधिनियम के क्रियान्वयन में देश के अग्रणी राज्यों में से है।

अभिनव पहल


राज्य शासन द्वारा अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु कई अभिनव पहल की गई हैं। शासन द्वारा अधिनियम के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु विस्तृत ‘मीडिया प्लान’ तैयार किया गया, जिसके तहत इलेक्ट्रॉनिक, समाचारपत्र-पत्रिकाओं और लोक माध्यमों का व्यापक उपयोग किया गया है। प्रिण्ट मीडिया के तहत जहाँ एक ओर हिन्दी एवं अंग्रेजी प्रति के साथ-साथ अधिनियम का आदिवासी बोली- गोण्डी, भीली तथा कोरकू में भी अनुवाद कराकर इसकी प्रतियाँ आदिवासी अंचल में वितरित की गई हैं, वहीं समाचारपत्रों में विज्ञापन के माध्यम से भी व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया है।

अनुसूचित जाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के बाद पारित दूसरा महत्त्वपूर्ण अधिनियम है।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के तहत प्रसार भारती के 13 प्राइमरी चैनलों एवं 3 विविध भारती चैनलों के माध्यम से रेडियो स्पॉट पर प्रचार-प्रसार किया गया, वहीं दूरदर्शन पर ‘नये द्वार’ साप्ताहिक कार्यक्रम में प्रति सोमवार कार्यक्रम प्रसारित किया गया। साथ ही सम्भाग मुख्यालयों पर ‘मीडिया वर्कशॉप’ आयोजित कर मीडिया को अधिनियम के प्रावधानों से अवगत कराते हुए उनसे वन निवासियों के अधिकारों के सजग प्रहरी की भूमिका निभाने का अनुरोध किया गया, जिससे यह लाभ हुआ कि अधिनियम के क्रियान्वयन में पारदर्शिता आई तथा जानबूझकर या अनजाने में की गई गलतियाँ प्रकाश में आती रहीं व उनमें सुधार होता गया। लोक माध्यमों के तहत आदिवासी क्षेत्रों में विशेष प्रसार हेतु 89 आदिवासी विकासखण्डों के ग्रामों में 13 नाट्य मण्डलियों का गठन कर एक हजार से भी अधिक नुक्कड़ नाटक, लोकगीत व लोक नृत्य के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया गया है।

राज्य शासन द्वारा अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु विभिन्न क्षेत्रों में अशासकीय संस्थाओं की कार्यशालाएँ भी आयोजित की गई हैं, जिससे कि ये संस्थाएँ भी अधिनियम के क्रियान्वयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

राज्य शासन द्वारा अधिनियम के क्रियान्वयन एवं अनुश्रवण हेतु सूचना प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग किया है। वन अधिकार समितियों के गठन की प्रगति खण्ड स्तरीय एवं जिला स्तरीय समितियों के सदस्यों के प्रस्ताव तथा प्राप्त दावों की संख्या के अनुश्रवण हेतु सॉफ्टवेयर तैयार किए गए हैं। साथ ही राज्य शासन ने वन अधिकार समितियों द्वारा भूमि सम्बन्धी दावों के सत्यापन हेतु जीपीएस युक्त पीडीए के उपयोग की पहल की है, जिससे कि दावों के सत्यापन का कार्य तीव्र गति से किया जा सके। ‘पीडीए’ के उपयोग हेतु एक सॉफ्टवेयर भी तैयार किया गया है, जिससे दावा सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी जिलावार, खण्डवार, ग्रामवार संकलित की जा सके।

अधिनियम के प्रावधान के अनुसार, दावेदार को दो साक्ष्य प्रस्तुत करने में परेशानी न हो, इस हेतु सम्बन्धित विभागों को निर्देश दिए गए हैं कि वन अधिकार के सम्बन्ध में सभी पुराने अभिलेख ढूँढ कर आसानी से उपलब्ध होने की स्थिति में रखे जाएँ एवं दावेदारों द्वारा माँगने पर निःशुल्क प्रतिलिपि प्रदान की जाए। साथ ही अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को जाति प्रमाणपत्र सम्बन्धी समस्या न हो, इस हेतु स्थायी जाति प्रमाणपत्र जारी करने हेतु माह अप्रैल-जून, 2008 के बीच अभियान चलाया गया है।

राज्य शासन द्वारा अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु रुपए 23.00 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया है। दावा प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में सहायता करने वाले व्यक्तियों हेतु प्रोत्साहन राशि दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है, जिससे कि अशिक्षित वन निवासियों को दावा प्रस्तुत करने में किसी प्रकार की प्रक्रियात्मक समस्या न हो।

(लेखक आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग, मध्य प्रदेश के अपर सचिव हैं)
ई-मेल : akhilesh_argal@yahoo.com

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