वनवासी ही शेर को बचायेंगे -सुन्दरलाल बहुगुणा

19 Aug 2010
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(पर्यावणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा से चिन्मय मिश्र की बातचीत)


चिन्मय - अब तो आपको भी टिहरी बांध ने विस्थापित कर दिया है। ऐसे में बांधों को लेकर आपका क्या नजरिया है?

श्री बहुगुणा - मैं प्रारंभ से यह कहता आया हूं कि बांध पानी जैसी समस्या का अस्थायी हल है। बांध का पानी मृत पानी है और नदियों का पानी कहे तो जिंदा पानी है। आस्ट्रिया के प्रसिद्ध लेखक शा-बर्गर ने इस संबंध में एक बड़ी ही सुन्दर पुस्तक दि लिविंग वाटर भी लिखी है। आप देखते है ना कि कृत्रिम बांध की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है। गांधी ने अपने समय में ही बड़े बांधों के विचार को ही नकार दिया था। पर हमारे यहां तो कहावत है कि बूढ़े की बात और आंवले का स्वाद बाद में समझ आता है। हम अब कुछ-कुद समझ रहे हैं। पर बड़े बांध अन्तत: तबाही ही लायेंगे?

चिन्मय - पर पानी एक समस्या की तरह तो सामने आ रहा है, ऐसे में और क्या विकल्प हो सकता है ?

श्री बहुगुणा - यह बात सही है कि पानी आने वाले समय की सबसे बड़ी समस्या के रुप में उभरेगा। परन्तु किसी भी प्राकृतिक वस्तु का विकल्प कोई अप्राकृतिक साधन तो नहीं हो सकता। पानी का विकल्प पेड़ है, फलदार पेड़। अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिये मात्र इमारती लकड़ी वाले पेड़ लगवाये। उन्होंने प्रकृति के नियमों के विरुद्ध बजाय विधिता के एक सी प्रवृत्ति वाले पेड़ लगवायें सबसे पहले वे रेलवे के स्लीपर के लिये हरिद्वार में लकड़ियां लाये। परन्तु इस तरह से हम तबाही की ओर जा रहे हैं। पेड़ों का रोपण ही हमें बचा सकता है। हमें काष्ठफलों के पेड़ लगाना चाहिए। इनकी जड़ों में ढेर सा पानी जमा रहता है। इसी के लिये मैने सन् १९८१ से १९८३ तक कश्मीर से कोहिमा तक पूरे हिमालय की करीब ४८६७ किलोमीटर की यात्रा भी की थी। मेरा मानता है कि भविष्य की खेती काष्ठ फल के पेड़ों की खेती है और भविष्य की मिठास शहद है।

चिन्मय - पर तात्कालिक रुप से पानी की समस्या का हल क्या है ?

श्री बहुगुणा - सवाल तात्कालिकता का नहीं है। सन् १९४९ की बनिस्बत हिमालय में अब आधा पानी बरसता है। इसलिये मेरा मनना है कि अफगानिस्तान से लेकर बंगलादेश तक, जब तक सघन वृक्षारोपण नहीं होगा तब तक कोई भी हल इस समस्या का नहीं निकल सकता।

चिन्मय - आजकल नदी जोड़ को पानी की समस्या का हल बताया जा रहा है। आप इस बारे में क्या कहेंगे ?

श्री बहुगुणा - यह अप्राकृतिक है। यह मनुष्य के स्वार्थ की पराकाष्ठा है। नदी जलचरों का घर है। मछलिया ही नदी को स्वच्छ बनाती है। ठंड में मछलियां गंगासागर चली जाती है। गर्मी में वे वापस गंगोत्री आती है। इस दौरान वे नदियों की साफ सफाई करती चलती है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ पानी से पैदावार नहीं होती। हिमालय सिर्फ पानी ही नहीं,उपजाऊ मिट्टी भी देता है। नदी जोड़ के बाद क्या यह सब कुछ संभव है?और अगर उपजाऊ मिट्टी नहीं होगी तो रासायनिक खाद अधिक मात्रा में डालना पड़ेगी। पश्चिम इस समस्या को भुगत रहा है। अब वह इस मानव विरोधी विकास को हम सब पर थोप रहा है। इस नदी जोड़ से करीब एक करोड़ लोग विस्थापित होंगे वो सब कहा जाएगें ? मैं तो इतना ही कहूंगा कि यह एक अत्यंत क्रूर योजना है।

चिन्मय - विस्थापन की आपकी बात से एक और सवाल उभरता है वह है सरदार सरोवर बांध के संबंध में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की याचिका पर सर्वोच्य न्यायालय ने जो निर्णय दिया है, उस पर आप क्या कहना चाहेंगे?

श्री बहुगुणा - मेरा मानना है कि सर्वोच्य न्यायालय ने अपने निर्णय में भविष्य का ध्यान हीं रखा। यह विकास नहीं, विनाश है क्योंकि विकास में तो निरंतरता होना चाहिए ।

चिन्मय - हम अपने पुन: नदी जोड़ पर आते है। नदी जोड़ के संबंध में कहा जाता है कि इससे बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति मिलेगी ?

श्री बहुगुणा - बाढ़ तबाही नहीं वरदान है। वह नई मिट्टी लाती है। बाढ़ इस तरह से नहीं रुक सकती हिमालय में बाढ़ रोकने के लिये यह अनिवार्य है कि नेपाल में सघन वृक्षारोपण हो। नदी जोड़ से पानी की किसी समस्या का हल नहीं है। पानी एक स्थानीय तत्व और समस्या है अतएव इसका हल भी स्थानीय ही निकलेगा।

चिन्मय - अब पर्यावरण से इतर कुछ अन्य प्रश्न का उत्तर हम आपसे चाहते है। इस संदर्भ में पहला प्रश्न है, बढ़ता शहरीकरण। नया राजनैतिक समाज इसे समृद्धि की निशानी बता रहा है। और आप?

श्री बहुगुणा - शहरीकरण आज का बहुत बड़ा खतरा है। शहरों मे अपने स्वयं के संसाधन तो होते नहीं ऐसे में वे इसे कहीं और से प्राप्त करते है,और यहीं से शोषण प्रारंभ होता है। पिछली शताब्दियों में यूरोप के देशों में शहरी करण प्रारंभ हुआ परिणाम स्वरुप उनके लिये संसाधनों की आवश्यकता पड़ी परिणाम स्वरुप सामने आया गरीब देशों का शोषण गुलामी के रुप में। हमने दो सौ वर्षो तक इसे भुगता है अब तक यूरोप के देशों ने ही शहरीकरण को अपनाया था। ये सब छोटे-छोटे देश थे। अगर भारत शहरीकरण को अपनायेगा तो यह सारी मानवता के लिये अनिष्टकारी होगा। गांधी और विनोबा दोनों ने गांवों की ओर लौटने का आग्रह किया था पर हम इसके विपरीत कार्य कर रहे हैं। भारत के शहरीकरण से तो सारी दुनिया ही नष्ट हो जाएगी।

चिन्मय - आप अन्य किन विषयों को आज के संदर्भ में भारत के लिये महत्वपूर्ण मानते है ?

श्री बहुगुणा - (इस उत्तर में श्रीमती बहुगुणा भी पूरी शिद्धत से शामिल थी) देखिये एक मसला है किसानों की आत्महत्याओं का सरकार और समाज दोनों को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इसके बहुत ही विध्वंसकारी परिणाम निकलेंगे। अत्याचार लगातार बढ़ रहे है। उनकी और गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

चिन्मय - तो इसका क्या समाधान हो सकता है ?

श्री बहुगुणा - मेरा मानता है कि जब तक सत्ता पूर्णतया स्त्रियों के हाथ में नहीं आएगी पूरी मानवता का भविष्य अंधकार मय है। सभी चिन्तक और मनीषी मान रहे हैं पुरुष के पास मात्र मारने की शक्ति है। उसके पास करुणा का नितान्त अभाव है। वह पुशबल से भर गया है। पशुबल का लगातार विस्तार हो रहा है। अतएव महिलाओं को मात्र मुख्यधारा में ही नहीं मुख्य ही बनना होगा।

चिन्मय - इसके अतिरिक्त ?

श्री बहुगुणा - हमें शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। हमें इस तीन ऊंगली (जो सिर्फ कलम पकड़ना जानती है।) की जगह दस ऊंगलियों वाली शिक्षा पर जोर देना होगा। ऐसी शिक्षा जो श्रम के महत्व को पहचाने। अतएव शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। अच्छी शिक्षा से ही गतिशील विकास संभव है।

चिन्मय - पर्यावरण से संबंधित एक और प्रश्न है। आजकल शेरों के संरक्षण की बात जोर-शोर से चल रही है। टाईगर टास्क फोर्स का कहना है कि वन में रहने वाले मनुष्यों से वन खाली करवा लेने चाहिए?

श्री बहुगुणा - मनुष्य और पशु का सह अस्तित्व है। यही हमारे जिन्दा रहने का तरीका भी है। बाघों का अस्तित्व वहां रहने वालों से ही बचा रहा है। इन्होंने शेरों का बचाव किया है। ये शेरों के दुश्मन नहीं है। यहां रहने वाले शहरी शिकारियों जैसे नही है, जो कि मजे के लिये शिकार करते हैं। आप यह मानकर चलिये कि अगर जंगल में वनवासी नहीं रहेंगे तो शेर भी बच नहीं पाएंगे।

चिन्मय - जटिल समस्याओं पर किस प्रकार मंथन किया जाये ?

श्री बहुगुणा - देखिये आज हम जिस तरह समस्याओं का हल कर रहे हैं, वह हास्यापद है। भूमि और जल हमारी पूंजी है। हमें ब्याज या लाभ पर जिन्दा रहना चाहिए। पर हम तो पूंजी ही खा रहे हैं ऐसे में किस प्रकार समस्याओं का हल निकलेगा। हमें जिन्दा रहने के लिये प्रकृति का सम्मान करना पड़ेगा। वृक्ष, खेत सभी का सम्मान करना पड़ेगा। हमें समाधान अपनी संस्कृति में मिलेगा। जिसे हम भूल रहे हैं।

चिन्मय -अंत में यह बताइये कि किस नये संघर्ष की तैयारी कर रहे है ?

श्री बहुगुणा - अभी तो हम खुद ही डूब रहे हैं। हम बाहर क्या करेंगे। पर जहां पर मानवविरोधी कार्य होगा उसके विरोध में हमें सब साथ पाएंगे।
 

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