वर्मी कम्पोस्ट बनाकर किसानों को पहुँचा रही प्रमिला

27 Jan 2017
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प्रमिला देवी
प्रमिला देवी


जैविक खेती प्रकृति के साथ सामंजस्य बना के चलती है ना कि उसके विरुद्ध। इसके लिये ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जाता है जो कि अच्छी फसल देने के साथ–साथ प्रकृति और उसमें रहने वाले लोगों को कोई नुकसान न पहुँचाए। गत वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिससे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिये, बढ़ावा दिया जिसे हम जैविक खेती के नाम से जानते हैं।

जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है। भूमि की जल धारण क्षमता बढती हैं।भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम हो जाता है। इसके साथ ही भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। सिंचाई अन्तराल में भी वृद्धि होती रहती है। वहीं रासायनिक खाद पर निर्भरता कम हो जाती है। फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे भूजल स्तर में वृद्धि हो जाती है। मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषणों में भी काफी कमी आ जाती है।

कचरे का प्रयोग खाद बनाने में करने से बीमारियों में कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में काफी कमी हो जाती है और आय में वृद्धि होती है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर बिहार की महिलाएँ वर्मी कम्पोस्ट बनाने का काम बड़े पैमाने पर कर रही है। वह किसानों तक खुद पहुँचा रही है। ताकि किसान जैविक खेती की ओर बढ़े। इस पर आधारित यह स्टोरी है।

वर्मी कम्पोस्ट का काम कैसे शुरू किया? यह बात पूछने पर प्रमिला बताती हैं कि पहले वह खेती-किसानी करती थी। श्री विधि तकनीक से। उससे फसल की अच्छी उपज मिलती थी। इस विधि से खेती करने से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ तब कुछ और अलग करने का मन किया। उन दिनों जीविका के द्वारा महिलाओं को प्रोत्साहित करने की बात चल रही थी।

महिलाओं को बताया जा रहा था कि वह कम पैसे में मेहनत करके ज्यादा-से-ज्यादा आय का स्रोत कैसे बना सकती हैं। इसमें महिलाओं के काम करने लायक कई तरह की बातों को बताया जा रहा था। मेरे जैसी कई और महिलाओं से भी यह पूछा गया कि वह क्या करना चाहती हैं? जीविका के द्वारा ही वर्मी कम्पोस्ट बनाने का तरीका बताया जा रहा था।

वह काम मुझे और मेरे समूह को अच्छा लगा। हम सब महिलाओं को जीविका ने जैविकखाद बनाने का तरीका बताया। साथ ही और महिलाओं का समूह बनाया गया। पूरे इलाके में लगभग 255 के करीब महिलाओं का समूह है। एक समूह में 10 से 15 महिलाएँ हैं। लगभग चार साल पहले की बात है। मैंने अपने ग्रुप के साथ वर्मी कम्पोस्ट में ही मेहनत करने को सोचा। आज हमारी मेहनत रंग ला रही है। इससे खेतों में कम पानी में ही किसानों को अच्छी फसल का लाभ ले रहे हैं।

 

 

कुछ रुपए से बदल गई पूरी जिन्दगी


कहाँ से लाई वर्मी कम्पोस्ट? यह पूछने पर प्रमिला आगे बताती है कि जीविका के द्वारा जब वर्मी कम्पोस्ट को बनाने की विधि बताई जा रही थी तो साथ में ही किट को खरीदने के लिये भी जानकारी दी गई। मैंने उस किट को खरीदा। एक किट का मूल्य 250 रुपया था। मैंने 1750 रुपए में तीन किट खरीदा। किट 2 मीटर लम्बा और एक मीटर चौड़ा है। किट खरीदने के बाद केंचुआ खरीदने की बात सामने आई। इसके लिये हमें बताया गया कि दलिसंहसराय से केंचुआ लाया जाता है। मैंने भी वहीं से केंचुआ को खरीदा। बाकी की कहानी तो मेरी मेहनत खुद बता रही है।

 

 

 

 

होती है अच्छी आय


वर्मी कम्पोस्ट से कितनी आय हो जाती है? इसके बारे में उनका कहना है कि ठीक-ठाक आय हो जाती है। एक किट से एक बार में 20 क्विंटल के करीब वर्मी कम्पोस्ट प्राप्त होता है। 3 किट तो मैंने पहले ही खरीदा था, बाद में एक किट और लिया। इन चार किटों से मुझे एक बार में 80 क्विंटल के करीब वर्मी कम्पोस्ट प्राप्त होता है। गाँव में इसकी बिक्री 6 रुपए प्रति किलो के दर से होती है जबकि दूसरे ग्राम संगठन में यह 8 से 10 रुपया प्रति किलो की दर से बिकता है। गाँव में भी इस खाद की बिक्री अच्छी खासी हो जाती है। वह बताती हैं कि रासायनिक खाद का प्रयोग अब कम हो रहा है। इस खाद के प्रयोग करने से अच्छी फसल प्राप्त होती है।

 

 

 

 

महिलाओं में आई है जागरूकता


जीविका के द्वारा महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा देने की बाद क्षेत्र की महिलाओं में जागृति आई है। गाँव के स्तर पर ही महिलाएँ नए-नए काम को करके आर्थिक रूप से सबल हो रही हैं। महिलाओं के बनाए गए इन समूहों में से कई समूह वर्मी कम्पोस्ट बनाने काम कर रहे हैं। प्रमिला देवी इसके बारे में बताती हैं कि वह जिस ग्रुप से जुड़ी हैं। उसमें से कई महिलाएँ इस जैविक खाद को बनाकर पर्याप्त मात्रा में आय प्राप्त कर रही हैं। प्रमिला देवी के समूह में जितनी औरतें हैं। सबकी जिम्मेदारी बँधी हुई है।

 

 

 

 

आपूर्ति का जिम्मा भी महिलाओं के ही पास


जैविक खाद बनाने के बाद इसे बिक्री के लिये बाजार में उपलब्ध कराने का जिम्मा भी इन महिलाओं के ही पास है। बिक्री के बारे में इनका कहना है कि महिलाओं के द्वारा बनाई गई खाद को बेचने में कोई खास परेशानी नहीं होती हैं। बनाए गए जैविक खाद में ज्यादातर की बिक्री ग्रामीण संगठन में ही हो जाती है। ग्राम संगठन भी इनकी मदद करता हैं। वह इनसे उचित मूल्य पर जैविक खाद खरीद लेता है। इसके बाद वह संगठन दूसरे संगठन को बेच देता है। समय-समय पर जीविका का भी निर्देश मिलता रहता है। उसके निर्देश पर भी इस जैविक खाद को बेचा जाता है। ऑर्डर लेने से लेकर जैविक खाद की आपूर्ति सब महिलाओं के ही हाथ में होता है।

वर्मी कम्पोस्ट के लिये बनाए गए हौद

 

 

बड़े स्तर पर होता है जैविक खाद बनाने का काम


जीविका के द्वारा आर्थिक प्रगति की जो राह इन महिलाओं को दिखाई गई है। उसका व्यापक परिणाम देखने को मिल रहा है। इन महिलाओं के द्वारा जैविक खाद के बनाने के बाद इलाके की और भी महिलाएँ बड़े स्तर पर जैविक खाद बनाने में अपनी रुचि दिखा रही हैं। जिले के चातर, संतोष, इटरूआ, रोन, हेतमम जैसे कई गाँवों की महिलाएँ इस काम को कर रही हैं।

 

 

केंचुआ लाने से लेकर जैविक खाद बनाना सब काम महिलाओं ने सम्भाला


महज चार साल पहले शुरू किये गए इस काम को लेकर महिलाओं के अन्दर बहुत जिज्ञासा है। प्रमिला इसके बारे में विस्तार से बताते हुए कहती हैं कि केंचुआ लाना हो या वर्मी कम्पोस्ट को बनाने की प्रक्रिया। सब काम महिलाओं के हवाले रहता है। जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया के बारे में वह बताती हैं कि सबसे पहले किट को बनाया जाता है। इसके बाद उसमें मिट्टी को डालकर उसे अच्छी तरह से दबा-दबा कर बैठाया और मजबूत किया जाता है ताकि केंचुआ उसके अन्दर प्रवेश न कर सकें।

इसके बाद उसमें हरा पत्ता, गोबर, मिट्टी आदि डालकर खाद बनाने के लिये उसमें केंचुआ छोड़ दिया जाता है। लगभग 2 से ढाई महीने के बाद में जैविक खाद प्राप्त हो जाता है। इस काम में पुरुषों से कितना सहयोग मिलता है? यह पूछने पर वह कहती हैं कि इस काम में पुरुष का सहयोग सीमित रहता है। कीट बनाने से लेकर केंचुआ लाने तक में वह कभी-कभी तो हाथ बँटा देते हैं लेकिन जैविक खाद बनाने की प्रक्रिया में वह सहयोग नहीं करते हैं।

 

 

 

 

कुछ और करने का है इरादा


जैविक खाद बनाने के अपने इस काम को करके प्रमिला देवी आज बहुत खुश है। वह कहती हैं कि श्री विधि से खेती करने के बाद उनको फायदा तो हुआ ही था। जैविक खाद बनाने के बाद आर्थिक हालात में और सुधार आया है। वह कहती हैं कि दूध बेचने से ज्यादा फायदेमन्द है जैविक खाद का उत्पादन और उसकी बिक्री। अपने इस काम से सन्तुष्ट प्रमिला देवी कहती हैं कि आज इसी खाद के बिक्री के दम पर मेरा बेटा उच्च शिक्षा हासिल कर रहा है। इतने छोटे स्तर पर काम किया तो इतना लाभ हुआ। अब मैं इसे और बड़े स्तर पर करुँगी ताकि मुझे और लाभ मिल सके।

प्रमिला देवी
जैविक खाद उत्पादन संघ
ग्राम- अलौली, पोस्ट-अलौली,
जिला-खगड़िया

 

 

 

 

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