वर्षा

11 Sep 2008
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भारत में वर्षा दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी मानसून की घटती-बढ़ती मात्रा, उथले चक्रवातीय अवनमन और विक्षोभ तथा तेज स्थानीय तूफानों पर निर्भर करती है जो ऐसे क्षेत्रों का निर्माण करते हैं जिनमें समुद्र की ठंडी नमीदार बयार पृथ्वी से उठने वाली गरम सूखी बयार से मिलती है और तूफानी स्थिति को प्राप्त होती है। भारत में (तमिलनाडु को छोड़कर) अधिकांश वर्षा जून से सितम्बर के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण होती है; तमिलनाडु में वर्षा अक्टूबर और नवम्बर के दौरान उत्तर-पूर्व मानसून से प्रभावित होती है। भारत में वर्षा की मात्रा अत्यधिक भन्निता, विषमतापूर्ण मौसमी वितरण और उससे भीअधिक विषमतापूर्ण भौगोलिक वितरण तथा अक्सर सामान्य से कमी-अधिकता की परिचायक है।

भारत में आमतौर पर 78 डिग्री रेखांश के पूर्व में स्थित क्षेत्रों में 1000 मिलीमीटर से अधिक वर्षा होती है। वर्षा की यह मात्रा समूचे पश्चिमी तट और पश्चिमी घाटों के साथ-साथ तथा अधिकांश असम और पश्चिम बंगाल के उपहिमालयी क्षेत्र में बढ़कर 2500 मिलीमीटर तक पहुंच जाती है। पोरबन्दर से दिल्ली को जोड़ने वाली और उसके बाद फिरोजपुर तक जाने वाली रेखा के पश्चिम में वर्षा की मात्रा 500 मिलीमीटर से तेजी से घटकर पश्चिमी छोर तक 150 मिलीमीटर रह जाती है। इस प्रायद्वीप में ऐसे विशाल क्षेत्र हैं जहां 600 मिलीमीटर से कम और ऐसी बस्तियां हैं जहां 500 मिलीमीटर से भीकम बारिश होती है। इसलिए अन्य तकनीकों के प्रयोग के जरिए देश के भीतर लगाए गए स्थानीय वर्षा के अनुमान, विशेष रूप से भारत जैसे विशाल देश में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।

वर्षा एक प्रकार का संघनन है। पृथ्वी के सतह से पानी वाष्पित होकर ऊपर उठता है और ठण्डा होकर पानी की बूंदों के रूप में पुनः धरती पर गिरता है। इसे वर्षा कहते है।

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