वृत्त अध्ययन के द्वारा सुझाव

17 Apr 2018
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वृत्त अध्ययनों के स्थल
वृत्त अध्ययनों के स्थल


हमने अब तक स्थानीय क्षेत्र नियोजन के विभिन्न आयामों और आंकड़ों/जानकारियों की प्रक्रिया की तकनीकों के बारे में पढ़ा। ये आयाम विभिन्न भौगोलिक ढाँचों के अंतर्गत वृत्त अध्ययन का संचालन करने में मदद करेंगे। हमने आपका कार्य सुविधाजनक बनाने के लिये, चार वृत्त अध्ययनों की चर्चा की है। ये वृत्त अध्ययन बाजार, मलिन बस्ती, जनजातीय और पहाड़ी क्षेत्रों से सम्बन्धित है। इस इकाई में, हमने वृत्त अध्ययन का विस्तृत ब्यौरा दिया है।

उद्देश्य
इस पाठ का अध्ययन करने के पश्चात आपः
- वृत्त अध्ययन को पढ़ने का मूल आधार उचित ठहरा सकेंगे;
- विभिन्न वृत्त अध्ययनों को और उनके स्थानीय क्षेत्र के महत्त्व को जान सकेंगे;
- विभिन्न भौगोलिक विन्यासों के अंतर्गत स्थितियों और अवस्थाओं की तुलना कर पाएँगे;
- स्थानीय क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास और भौगोलिक अवस्थाओं के साथ सम्बन्ध को विश्लेषित और स्थापित कर पाएँगे;
- केस अध्ययनों को, उनकी नियोजन प्राथमिकताओं और स्थानीय लोगों के सामाजिक आर्थिक महत्त्व के विषयों के सम्बन्ध में, स्पष्ट कर पाएँगे;
- आगे और विकास के लिये योजना का सुझाव दे पाएँगे।

32.1 वृत्त अध्ययन का महत्त्व
देश के विभिन्न भागों में लोगों के विकास के स्तरों और सामाजिक आर्थिक अवस्थाओं और भौगोलिक विन्यास के सम्बन्ध में उल्लेखनीय भिन्नताएँ हैं। हम धरातलीय वास्तविकताओं का क्षेत्रीय सर्वेक्षण करके बेहतर समझ सकते हैं। क्षेत्रीय सर्वेक्षण की विचार पद्धति सामान्यतः नियमित होती है और हर प्रकार के सर्वेक्षणों के लिये पूछ-ताछ के निधार्रित मानदण्ड होते हैं। परन्तु यह तरीका विशिष्ट वृत्त अध्ययनों, जो अपने आप में अलग होते हैं, और नियोजित समस्याओं के समाधान होते हैं, के लिये पर्याप्त नहीं है। यह भ्रम उत्पन्न करता है और कुछ मुद्दों को, जो दूसरे तंत्र में तुलनात्मक रूप से कम अर्थपूर्ण हैं, अनुचित महत्त्व प्रदान करती है।

ऐसे में, वृत्त अध्ययन की आवश्यकता है जो क्षेत्र और लोग विशिष्ट अवस्थाओं के साथ सम्बन्धित हों और स्थितियों का विश्लेषण करने के तरीके पेश करे। वृत्त अध्ययन लोगों और क्षेत्रों के विशिष्ट समूह द्वारा झेले जाने वाली विभिन्न समस्याओं को प्रतिबिम्बित करती हैं। यह विभिन्न स्थानीय क्षेत्रों और लोगों के लिये नियोजन की प्राथमिकताओं को भी प्रतिबिम्बित करती हैं। उदाहरण के लिये, बाजार क्षेत्रों को- जहाँ उन्हें पार्किंग स्थान, भीड़-भाड़ और लोगों के असाधारण जमाव, विभिन्न स्तरों के उत्पादकों व उपभोक्ताओं के लिये वस्तुओं की गुणवत्ता और विविधाता के मुद्दों का सामना करना पड़ता है।

इसके विपरीत, जनजातीय क्षेत्र कम विकसित प्रौद्योगिकीय आधार, गंदगी, निर्धनता, और पर्यावरणीय अध:पतन को भुगतते हैं। स्लम क्षेत्रों की प्राथमिकताएँ, स्वच्छता स्वास्थ्य हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों की प्राथमिकताएँ अगम्यता दूरी की वजह से एकांतता, कठोर पर्यावरणीय अवस्था हैं। यही प्रकार्यात्मक या कारोबार सम्बन्धी सर्वेक्षणों के मामले में भी सत्य है। पहाड़ी क्षेत्रों, पठारी और समतल मैदानों में कृषि अत्यधिक भिन्न होती है। एक तंत्र के अन्दर भी उल्लेखनीय भिन्नताएँ उपस्थित रहती हैं। उदाहरण के लिये, पंजाब की कृषि असम के मैदानों की या केरल और तमिलनाडु के बगानों की कृषि से भिन्न होती है। अतः केस अध्ययन क्षेत्र-विशिष्ट नियोजन सम्बन्धित मुद्दों के लिये वास्तविक आधार प्रदान करती है।

वृत्त अध्ययन की पृष्ठभूमि
जिन वृत्त अध्ययनों को यहाँ पेश किया गया है, भौगोलिक विश्लेषण में उनके महत्त्व के सम्बन्ध में उनकी यहाँ संक्षिप्त चर्चा की गई है।

बाजार क्षेत्र के वृत्त अध्ययन का सम्बन्ध अब स्थिति से रहता है जहाँ लोग अपने उत्पादों और सेवाओं को बेचते हैं, जबकि अन्य उपभोग या आगे और प्रोसेसिंग करने के लिये माल और वस्तुएँ खरीदते हैं। बाजार भिन्न-भिन्न होते हैं-ग्रामीण बाजार, साप्ताहिक हाट, विशिष्ट बाजार और मॉल। बाजार के अध्ययन में, वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के लिये अंतःक्रिया सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है।

मलिन बस्ती का वृत्त अध्ययन उस भौगोलिक स्थिति से सम्बन्ध रखता है जिसमें लोगों का समूह निवास स्थल में, मुख्य तौर पर खराब आर्थिक परिस्थितियों की वजह से, गंदी और अस्वास्थ्य कर स्थितियों में रहने को बाध्य होते हैं। मलिन बस्ती का अध्ययन स्थान की समस्या से अवगत कराता है और इनमें से कुछ मुद्दों को विकासात्मक गतिविधियों के जरिये ठीक करने की चेष्टा करता है।

जनजातीय क्षेत्र का केस अध्ययन लोगों के समूह के निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था और समाज से सम्बन्धित होती है। इस समूह के लोग पारम्परिक तरीके से उत्पादन व वितरण में लगे होते हैं। जनजातीय समूह सामान्यतः दूरस्थ छोटे भौगोलिक क्षेत्र जैसे वन, पहाड़ियाँ, घास स्थल और ऊँचे प्रदेश या निचले प्रदेशों में कम उपजाऊ अंचलों में बसता है। जनजातीय क्षेत्र का अध्ययन स्पष्ट करता है कि किस प्रकार समुदाय, निम्न उत्पादनों और निम्न स्तर के आधारिक ढाँचे के बावजूद, प्रकृति के साथ ताल-मेल में रहता है। जनजातीय क्षेत्रों का दूरस्थ अलगाव उनकी संस्कृति को ज्यों का त्यों रखता है और उसमें सुधार आता रहता है। धीमा परिवर्तन उन्हें कम आधुनिक श्रेणी में रखता है।

पहाड़ी क्षेत्र का वृत्त अध्ययन भू-खण्ड की कठोरता, उसकी समुद्र तल से अधिक ऊँचाई, तेज ढाल और सीमित भूमि संसाधनों को स्पष्ट करता है। तदनुसार, सीमित उपजाऊ भूमि पर दबाव काफी अधिक है। यह ध्यान दिया जाए कि पहाड़ी क्षेत्र आयाम और महत्त्व में एक दूसरे से भिन्न होते हैं। उदाहरण के लिये, पहाड़ी स्टेशन, घाटी क्षेत्र और औसत ढलान के क्षेत्रों में जनसंख्या दबाव, भूमि की भिन्न धारण क्षमता की वजह से, भिन्न-भिन्न होता है। हिमपात पहाड़ी क्षेत्रों में स्थान विशिष्ट रुकावटें हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में समुदाय प्रकृति जन्य आरोपित प्रतिरोधों का सामना करने के लिये संगठित, सुगठित और ठोस बना रहता है।

पाठगत प्रश्न 32.1
1. देश के विभिन्न भागों में विविधता उत्पन्न करने वाले तीन कारक बताइए।
2. सामान्य क्षेत्रीय सर्वेक्षण और विशिष्ट वृत्त अध्ययन के बीच दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।

32.2 वृत्त अध्ययन -I
बाजार/साप्ताहिक बाजार का सर्वेक्षण

बाजार स्थल वो स्थान हैं जहाँ विक्रेता और क्रेता मिलते हैं और भुगतान पर माल और वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं। क्रेता वो हैं जो अपनी जरूरत की चीजें खरीदते हैं जबकि विक्रेता वो हैं जो भुगतान पर चीजें (माल व वस्तुएँ) बेचते हैं। बाजार-स्थल मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं- सामान्य या परचून बाजार और विशिष्ट या थोक बाजार। सामान्य बाजार स्थल लगभग सभी प्रकार के माल/वस्तुओं की विपणन सुविधा पेश करते हैं। विक्रय वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रत्येक दुकान भिन्न होती है। परचून बाजार केंद्र के मामले में वस्तुओं की संख्या और विविधता सीमित रहती है। वो उस इलाके और आस-पास के स्थानों की जरूरत की वस्तुएँ और माल मुहैया कराता है। परचून बाजार केंद्रों के आकार में बहुत भिन्नताएँ होती है।

आवासीय ठिकानों या ग्रामीण बाजार क्षेत्रों में कुछ दुकानों से लेकर परचून बाजार केन्द्र इतना बड़ा हो सकता है जितना कि दुकानों का बड़ा समूह। खरीद क्षेत्र के ढाँचे और स्थायित्व के आधार पर, बाजारों को नियमित और साप्ताहिक बाजारों में विभाजित किया जा सकता है। नियमित बाजार वो है जहाँ दुकानों का स्थायी भौतिक ढाँचा होता है और जो नियमित या दैनिक आधार पर खरीद सुविधा पेश करता है। साप्ताहिक बाजार वो हैं जिनका अपना स्थायी भौतिक ढाँचा नहीं होता है, बल्कि ये दुकानें चलती-फिरती होती हैं और सप्ताह में निश्चित दिन को खरीद सुविधा प्रदान करती है। इन बाजारों का खुला या आंशिक आवरण का अस्थायी टेन्ट या दुकान-नुमा ढाँचे होते हैं जिसका बंडल बांधा या लपेटा जा सकता है और जिन्हें दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है, जहाँ कि अगले दिन साप्ताहिक बाजार लगाना निश्चित हुआ है।

साप्ताहिक बाजार, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों से विविध उपभोक्ताओं को सेवा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। परिवार की लगभग सभी अनिवार्य जरूरतें इन बाजारों में बेची जाती हैं। साप्ताहिक बाजारों के भिन्न स्थानीय नाम होते हैं- 'पैठ', 'हाट', 'बाजार', इत्यादि। इन बाजारों को साप्ताहिक दिनों के नाम भी दिए जाते हैं जैसे- शुक्र बाजार, बुध बाजार आदि।

क्षेत्रीय कार्य का संचालन
क्षेत्रीय सर्वेक्षण करने के प्रति पहला कार्यभार बाजार क्षेत्र का चयन है जो कि आपकी पहुँच से अत्यधिक दूर नहीं होना चाहिए और महत्त्वपूर्ण होना चाहिए। उसे सामान्य मिश्रित प्रकार का बाजार होना चाहिए। कौन सी वस्तुएँ और माल बेचे जा रहे हैं मालूम करने के लिये पूर्व परीक्षा सर्वेक्षण करें, प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत दो या पाँच दुकानें चुनें, कुल सर्वेक्षण के लिये 25 दुकानें तक चुनी जा सकती हैं। अगला सोपान मूलभूत जानकारी एकत्रित करने का है और बाजार का आधार मानचित्र बनाएँ। मूलभूत जानकारी जैसे जनसंख्या, क्षेत्र और नागरिक सुख साधन और बाजार का मानचित्र स्थानीय सरकार के कार्यालय, नगर निगम, नगरपालिका इत्यादि से प्राप्त किया जा सकता है। यदि मानचित्र उपलब्ध नहीं हों, तो स्केच मैप खींचे जा सकते हैं। यह मानचित्र जगह की श्रेणीबद्धता और दिशा प्रदान करने के लिये होते हैं और अक्सर पैमाने अनुसार नहीं खींचे जाते हैं। सब दुकानें उतनी ही जगह के साथ दिखाई जाती है। ऐसे मानचित्र अध्ययन का सीमित उद्देश्य पूरा करते हैं।

बाजार सर्वेक्षण की कार्यविधि, उपलब्ध समय और क्षेत्रीय कार्य के उद्देश्यों पर आधारित होनी चाहिए। उदाहरण के लिये, यदि बाजार केन्द्र छोटा है, तो सभी दुकानों का सर्वेक्षण किया जा सकता है। तथापि, मध्यम और बड़े बाजार के बाजार केन्द्रों के मामले में, हमें विभिन्न प्रकार की भिन्न-भिन्न दुकानें चुननी चाहिए। सिर्फ़ स्थानीय जाने पहचाने बाजार जैसे ''रविवारीय बाजार'', ''बुध बाजार'', ''मंगल बाजार'' इत्यादि का भी सर्वेक्षण किया जा सकता है। इन बाजारों को ''तह बाजारी प्रणाली'' के अंतर्गत नियंत्रित किया जाता है।

इस प्रणाली के अंतर्गत, स्थानीय सरकार (निगम समिति या ग्राम पंचायत) बाजार की निर्विघ्न कार्यशीलता के लिये 'तह बाजारी' के ठेके ठेकेदारों (व्यक्तियों का समूह या व्यक्ति हो सकता है) को देती है। 'तह बाजार' के दाम दुकानों द्वारा लिये क्षेत्र के अनुपात में होता है। उदाहरण के लिये, जूता मरम्मत दुकान एक वर्गमीटर क्षेत्र घेरती है, तो इसे 5/- रुपये देने पड़ सकते हैं, जबकि कपड़े के व्यापारी को 8 से 10 मीटर के क्षेत्र की दुकान के साथ, शायद 50 - 99 रुपये बाजार दिन के लिये चुकाने होंगे।

विशिष्ट बाजार कुछ माल/वस्तुओं की खरीद फ़रोख्त से सम्बन्धित होते हैं। इन बाजारों की विशेषता दुकानों का झुंड या समूह होता है और यह एक ही विशिष्ट मद की बिक्री करता है। ऐसे अधिकांश बाजार थोक व्यापार से सम्बन्धित होते हैं और विशिष्ट मद या वस्तु की गुणवत्ता की काफ़ी किस्में प्रस्तुत करते हैं। उदाहरण के लिये, अनाज बाजार (गल्ला बाजार), दालों का बाजार (दाल मंडी), फ़लों का बाजार (फ़ल मंडी), सब्जी बाजार (सब्जी मंडी), कपड़ा बाजार (बाजार बजाज), जेवरों का बाजार (बाजार सर्राफ़ा), स्टेशनरी बाजार (कागजी बाजार) इत्यादि।

बाजार स्थलों के ग्राहक दोनों पास-पड़ोस और देहाती क्षेत्र (पास के गाँव) से होते हैं। क्योंकि कृषि सम्बन्धी क्रिया-कलाप मौसमी प्रकृति के होते हैं, तो दोनों परचून और थोक बाजार में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। इसी तरह से, त्योहारों और उत्सवों के अवसरों के समय, व्यापारिक गतिविधि में तेजी आ जाती है। इसके विपरीत, प्रतिकूल मौसम की अवस्थाओं के दौरान, बाजार सम्बन्धी गतिविधियों में काफ़ी कमी आ जाती है। व्यापार के नियत समय के दौरान भी, ग्राहकों की संख्या में वृद्धि या कमी होती रहती है। सुबह 10.30 से 12.30 और 4.30 शाम से 6.30 शाम का समय व्यापारिक गतिविधियों का व्यस्ततम समय होता है।

जिन दुकानों का सर्वेक्षण करना है उन्हें उपयुक्त सैम्पलिंग तकनीक के आधार पर चुनना चाहिए। तथापि, सैम्पल की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए जिससे परिणामों में त्रुटियों की संभावना कम हो जाए। दुकानों का सैम्पल (प्रतिदर्शी) और व्यापार गतिविधि का सैम्पल (सामान्य व्यापारी, पंसारी/किराना बेचने वाला, बजाज/वस्त्र विक्रेता, लेखन सामग्री विक्रेता आदि) चुन लेने के बाद, हमें दुकानों के अनुसार बाजार सर्वेक्षण करना चाहिए।

पाठगत प्रश्न 32.2
1. निम्नलिखित कथनों का एक शब्द में उत्तर दीजिए-
(क) स्थान जहाँ विक्रेता और क्रेता मिलते हैं और भुगतान पर माल व वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं।
(ख) दुकानों का स्थायी भौतिक ढाँचे सहित स्थल जो दैनिक आधार पर खरीद सुविधा प्रदान करता है।
(ग) सप्ताह में निश्चित दिन पर दुकानों के अस्थायी ढाँचे वाला स्थल।
(घ) बहुत विविधता और गुणवत्ता की बहुत विशिष्ट मदों से सम्बन्धित बाजार केंद्र।

32.3 वृत्त अध्ययन - II
मलिन बस्ती क्षेत्र विकास: कानपुर शहर का वृत्त अध्ययन

मलिन बस्ती शहरी निर्धनों का आश्रय स्थल है। मात्र न्यूनतम सामाजिक सुविधाओं और सुख-साधनों के अभाव में, वो अस्वच्छपूर्ण परिस्थितियाँ प्रतिबिम्बित करते हैं। प्रति व्यक्ति न्यूनतम आय और रहने की जगह अत्यन्त निम्न स्तर की विशेषता के साथ, मलिन बस्ती भारत के अधिकांश महानगरों में शहरी निर्धनों के आश्रय स्थल हैं।

एक अनुमान के अनुसार, बड़े शहरों में जनंसख्या का करीब 20 से 40 प्रतिशत मलिन बस्ती में रहता है। बढ़ता हुआ औद्योगिकीकरण, पूँजी विनियोग में हो रही वृद्धि और शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर, ग्रामीण प्रवासियों को, आजीविका के कम से कम गुजर बसर के माध्यमों की व्यवस्था के आश्वासन द्वारा निरन्तर आकर्षित कर रहे हैं। तथापि, मकानों की बढ़ती हुई लागत और किराये ने अधिकांश लोगों को स्लम में रहने के लिये बाध्य किया है। अतः, यह ग्रामीण निर्धनता का शहरी क्षेत्रों में हस्तान्तरण है।

मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की बहुसंख्या अशिक्षित है। इसलिये, वो निम्न पारिश्रमिक वाली नौकरियों में रोजगार पाते हैं या निम्न आय व्यवसायों में कार्य करते हैं। मलिन बस्ती सामान्यतः कोलकाता में बस्ती, मुम्बई में चॉल और कानपुर में अहाता के नाम से जानी जाती है। अतः भिन्न शहरों में मलिन बस्ती की स्थान स्थिति के अनुसार विशिष्ट नाम हैं। भारत में 2001 में, 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में करीब 1.65 करोड़ जनसंख्या मलिन बस्ती में रहती थी।

कानपुर महानगर, उत्तर प्रदेश राज्य में, गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। भारतीय जनगणना 2001 के अनुसार, कानपुर में कुल जनसंख्या 25, 51, 337 थी और भारतीय शहरों में इसका 8वां स्थान था। 1901 में 2, 02, 797 की कुल जनसंख्या से, पिछली शताब्दी के दौरान, इस शहर की जनसंख्या में 12.5 गुना की वृद्धि हुई है। तदानुरूप, लगभग 24 हजार व्यक्ति प्रत्येक वर्ष बढ़ते गए। उद्योगों, व्यापार और वाणिज्य की तीव्र वृद्धि ने उत्तर प्रदेश के आस-पास के जिलों से श्रमिकों के लिये गुरुत्वाकर्षण शक्ति के रूप में कार्य किया है। एक अनुमान के अनुसार कानपुर शहर की लगभग 76.27 प्रतिशत जनसंख्या शहर केन्द्र के भीड़-भाड़ वाले हिस्से में रहती है।

कानपुर महानगर की मलिन बस्तियों का क्षेत्र सर्वेक्षण दो चरणों में किया गया था। यहाँ क्षेत्रीय सर्वेक्षण का पहला चरण कुल मलिन बस्तियों के आवासों का (बांस मंडी, दर्शन पुरवा, चमनगंज) वहाँ पर उपलब्ध स्वच्छता, स्वास्थ्य दशाएँ और सार्वजनिक उपयोगी वस्तुओं की उपलब्धता पर आधारित था। दूसरा चरण परिवारों (25) के सैम्पल सर्वेक्षण से सम्बन्धित था। यह परिवार शहर के अन्दरुनी, मध्य और बाहरी अंचलों के मलिन बस्तियों के ठिकानों से बेतरतीब रूप से चुने गए थे। सर्वेक्षण जनसंख्या के आकार, रहने के स्थान, रोजगार और परिवारों की आय से सम्बन्धित था।

जनसंख्या का ढ़ाँचा और परिवार का आकार
औसतनः, मलिन बस्ती क्षेत्र में एक परिवार लगभग 10 से 15 वर्ग मीटर के क्षेत्र पर निवास करता है। जनसंख्या का घनत्व, कानपुर के अधिकांश मलिन बस्ती क्षेत्रों में प्रति हेक्टेयर 3000 से 4000 व्यक्तियों के बीच में हैं। केन्द्रीय वाणिज्य क्रोड़ और शहर के औद्योगिक पॉकेटों द्वारा घिरे निवास क्षेत्रों की लगातार एक पेटी है। आवासीय ब्लॉक सामान्यतः दो मंजिले या तीन मंजिले हैं और तंग गलियों द्वारा अलग दिखते हैं। मलिन बस्तियों का सम्पूर्ण दृश्य मानवीय निवास के लिये अत्यधिक अस्वच्छ अवस्था प्रस्तुत करता है। भारत की 2001 की जनगणना के अनुसार, कानपुर शहर में मलिन बस्तियों की कुल जनसंख्या 3,68,808 व्यक्ति थी।

मलिन बस्तियों, सामाजिक संरचना के सम्बन्ध में अधिकांशतः पृथक क्षेत्र हैं। यह देखा गया है कि मलिन बस्तियों में मुख्यतः सामाजिक समूह का एक वर्ग ही रहता है (इस मामले में हिन्दू या मुस्लिम)। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक सामाजिक समूह के अन्दर, मलिन बस्तियों में जाति समूह या विशिष्ट क्षेत्र से प्रवासित लोग मुख्यतः हो सकते हैं। प्रकार्यात्मक रूप से, मलिन बस्ती, मोटे तौर पर, एक ही आर्थिक पेशा और आर्थिक स्तर प्रतिरूपित करती है। अधिकांश मलिन बस्ती निवासी आर्थिक रूप से गरीब हैं।

परिवार का औसत आकार 6:1 है। तथापि, आप छोटे और मध्यम आकार के परिवार देख सकते हैं जो 1-5 व्यक्तियों के बीच (बड़ा परिवार 6 से 11 व्यक्तियों के बीच का हो सकता है और बहुत बड़ा 12 या अधिक व्यक्तियों का हो सकता है। मलिन बस्तियों में परिवारों के सर्वेक्षण ने दर्शाया है कि 38.4 प्रतिशत छोटे और मध्यम आकार के परिवार थे, 54.7 प्रतिशत बड़े आकार के और 6.9 प्रतिशत बहुत बड़े परिवार थे।

व्यावसायिक ढ़ांचा
अध्ययन से पता चलता है कि 46.4 प्रतिशत परिवार व्यावसायिक सेवाओं में लगे हुए थे जैसे नलकारी का काम, राजगीरी का काम इत्यादि और 32.8 प्रतिशत व्यापार और वाणिज्य में सहायक, 18.12 प्रतिशत दैनिक अकुशल श्रमिक और 1.8 प्रतिशत बेरोजगार थे और रोजगार ढूंढ रहे थे। खण्डीय रोजगार के सम्बन्ध में, लगभग 46.9 प्रतिशत श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में लगे थे।

सारिणी क्र. 32.1 कानपुर के मलिन बस्ती क्षेत्र में परिवारों का आकार और व्यावसायिक ढ़ाँचा

परिवार का आकार

सेवाएँ संख्या %

व्यापार संख्या %

श्रमिक संख्या %

बेरोजगार संख्या %

कुल संख्या %

छोटे एवं मध्यम (1-5 व्यक्ति)

44

45.36

27

27.84

22

22.68

4

4.12

97

100

बड़े (6-11 व्यक्ति)

63

46.47

47

34.81

25

18.52

0

0.00

135

100

बहुत बड़े (12 और अधिक व्यक्ति)

9

50.00

8

44.44

1

5.56

-

-

18

100

 

116

46.40

82

32.80

48

19.20

4

1.60

250

100

परिणाम दर्शाते हैं कि अधिकांश मलिन बस्ती निवासी सेवा क्षेत्र में लगे हैं। इसमें दोनों औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र सेवाएँ शामिल हैं। व्यापार क्षेत्र में नौकरियाँ आनुपातिक रूप से बड़े और बहुत बड़े परिवार समूहों में से अधिक है। इसके विपरीत, दैनिक मजदूरी उपार्जनकर्ताओं (दैनिक मजदूर) का अनुपात छोटे और मध्यम आकार के परिवार समूहों में ज्यादा है। यह समूह बेरोजगार या रोजगार इच्छुकों को भी प्रतिबिम्बित करता है।

अतः उपरोक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि बड़े और बहुत बड़े परिवार अपनी आर्थिक गतिविधियों में विविधता लाकर पारिवारिक आमदनी को बढ़ाते हैं। इसके बदले में, यह परिवार की बढ़ी हुई आय की वजह से विभिन्न प्रकार की व्यापारिक गतिविधियों को जन्म देते हैं। स्लम बस्ती में संयुक्त परिवार व्यवस्था का छोटा परिवार व्यवस्था की तुलना में ज्यादा संचयी उत्पत्ति प्रभाव होता है।

आय सृजन का स्तर
कुल मिला कर मलिन बस्तियों से शहरी निर्धनों के समूह का आभास मिलता है। तथापि, आप मलिन बस्ती निवासियों के बीच आय भिन्नतायें देख सकते हैं। क्षेत्र सर्वेक्षण तीन स्तर दर्शाता हैः मासिक आय के आधार पर निम्न, मध्यम और उच्च स्तर।
 

सारिणी क्र. 32.2 कानपुर के मलिन बस्ती क्षेत्र में मासिक आय के स्तर

आय समूह

परिवारों की संख्या

प्रतिशत में हिस्सा

निम्न (1000 से कम)

185

74.0

मध्यम (रु. 1001-2000)

52

21.2

उच्च (रु. 2000 से अधिक)

12

4.8

कुल

250

100.00

185 निम्न आय समूहों में से, 74 छोटे और मध्यम से आए, 106 बड़े और सिर्फ़ 5 बहुत बड़े परिवार आकारों से थे। 53 मध्यम आय समूहों में से, 74 छोटे और मध्यम से दर्ज किए गए थे, 28 बड़े और 11 बहुत बड़े परिवार आकारों से थे। ज्यादा उच्च आय समूहों में, यह संख्या 3,6 और 3 क्रमशः दर्ज की गई थी। निम्नलिखित सारिणी प्रतिव्यक्ति आय और परिवार के आकार के बीच सम्बन्ध को स्पष्ट करती है।
 


 

सारिणी क्र. 32.3 दैनिक प्रति व्यक्ति आय

परिवार का आकार

50 रु. से कम

रु. 50-100

रु.101-150

रु. 151-200

200 रु. से अधिक

कुल

छोटे/मध्यम

22

38

37

6

4

97 (38.8)

बड़े

46

42

33

13

1

135 (54.0)

बहुत बड़े

4

8

4

2

-

18 (7.2)

कुल परिवार

72

(28.8)

88

(35.2)

64

(25.6)

21

(8.4)

5

(2.0)

250

(100.00)

परिणाम दर्शाते हैं कि मलिन बस्ती निवासियों का 28.8 प्रतिशत दैनिक आधार पर 50 रुपये या कम कमाता है, लगभग 35.2 प्रतिशत 51 रु.-100 रु. के बीच, 25.6 प्रतिशत 101रु.-150 रु. के बीच, 8.4 प्रतिशत 151रु.-200रु. के बीच और बाकी लगभग 2 प्रतिशत200 रु. से अधिक कमाते हैं। अतः अधिकांश स्लम निवासियों की प्रतिव्यक्ति आय निम्न हैं। छोटे और मध्यम आकार के परिवारों की औसत आय 90 रुपये थी, बड़े परिवारों की 81 रुपये और बहुत बड़े परिवारों की 86 रुपये थी।

साक्षरता
250 परिवारों में से, 158 (63.2%) साक्षर थे और 92 (36.8%) निरक्षर थे। 158 साक्षरों में से, 98 सेवा क्षेत्र में से थे, 54 व्यापार और 2 अकुशल श्रमिकों से थे और उनमें से 4 सेवा क्षेत्र से रिटायर हो गए थे। 92 निरक्षरों में से, 18 सेवा क्षेत्र से, 29 व्यापार से और 45 श्रमिकों में से थे।

आवासीय ढाँचा
परिवारों को उपलब्ध निवास स्थान 10 वर्ग मीटर से 15 वर्ग मीटर के बीच थे। आवासीय स्थान इस प्रकार वर्गीकृत किया गया थाः (i) छोटा-10 वर्गमीटर से कम, (ii) मध्यम- 10 से 12 वर्गमीटर और बड़े-12 वर्गमीटर से ज्यादा जगह के साथ।
 

सारिणी क्र. 32.4 कानपुर के मलिन बस्ती क्षेत्र में आवासीय ढ़ांचा

उपलब्ध जगह के प्रकार

संरचनाओं की संख्या

प्रतिशत

छोटे

149

59.6

मध्यम

53

21.2

बड़े

48

19.2

कुल

250

100.00

सारिणी 32.4 दर्शाती है कि मलिन बस्ती में रहने वाले अधिकांश लोगों का छोटा निवास स्थान है। 250 सर्वेक्षित परिवारों में से, 149 छोटे में, 53 मध्यम और 48 तुलनात्मक रूप से बड़े निवास स्थान में रहते थे।

मलिन बस्ती निवासी अधिकांशतः किरायेदार थे (83 प्रतिशत) और एक कमरे में रहते थे, और औसतनः 62 रुपये का मासिक किराया देते थे। करीब 85 प्रतिशत निवास गृहों में बिजली थी, 21.3 प्रतिशत में स्नानघर था और 43.5 प्रतिशत के पास शौचालय था और 28.2 प्रतिशत में नल सुविधाएँ थी।

बड़ी नालियों, रेलवे लाइनों और कूड़ा स्थलों के साथ ही साथ मलिन बस्ती निवासियों के छप्पर, मिट्टी तथा टेन्ट घर के आम स्थल देखे जा सकते हैं। कभी-कभी इन लोगों को नगर विकास प्राधिकरण द्वारा निम्न लागत पर आवास भी प्रदान किए जाते हैं। अतः वो हमेशा विस्थापित बने रहते हैं और पुनर्वास तथा पुनः बसाने की समस्या उनकी आम समस्या बनी रहती है।

मलिन बस्ती शहरी निर्धनों का आश्रय स्थल है। वो मात्र न्यूनतम सामाजिक सुख- साधनों और सुविधाओं के अभाव में अस्वच्छता की अवस्था प्रतिबिम्बित करते हैं। मलिन बस्ती ग्रामीण निर्धनता, बड़े पैमाने पर विस्थापन और शहरों में बढ़ते रोजगार के अवसरों का परिणाम है।

मलिन बस्ती क्षेत्र विकास
मलिन बस्ती क्षेत्र मानव अधिवास के सर्वाधिक वंचित ठिकाने हैं। क्षेत्रीय सर्वेक्षण और भिन्न शहरों में मलिन बस्ती सुधार के अनुभवों के आधार पर निम्नलिखित नियोजन का सुझाव दिया गया है।

1. मूलभूत सामाजिक सुख साधनों की व्यवस्था
सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता, शौचालय, संवातन, स्कूल, दवाखाना, डाकघर, सड़क, परिवहन और संचार के माध्यम, बाजार केन्द्र, सामुदायिक केन्द्र इत्यादि प्रत्येक स्थानीय बस्ती को, बिना उसकी हैसियत (अमीर या गरीब) पर ध्यान दिए, प्रदान करना चाहिए। यह मानव कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये किया जा सकता है। ''सुलभ'' इंटरनेशनल (गैर-सरकारी संस्था) की सेवाएँ सर्वाधिक मितव्ययी और स्वच्छ प्रमाणित हुई हैं। यह सम्पूर्ण समुदाय के लिये सृजित करने की आवश्यकता है क्योंकि लोग गरीब हैं और पारिवारिक स्तर पर इनमें से बहुत से सुविधाओं का खर्चा नहीं दे सकते।

2. आर्थिक धन्धों के लिये व्यवस्था
लघु पैमाने के व्यापार और कुटीर उद्योग स्व-रोजगार सृजित करने और आय बढ़ाने के लिये आसानी से नियोजित किए जा सकते हैं। छोटे व्यवसाय जैसे कि सांयकालीन चॉट बाजार, साप्ताहिक बाजार, फ़ल और सब्जी की दुकानें इत्यादि की स्थानीय लोगों के लिये योजना बनाई जा सकती है। व्यापार के अलावा, कुटीर उद्योग जैसे कि मूर्तियाँ बनाना, कढ़ाई के काम, प्रतिमा या बुत बनाना, पत्थर का काम, लकड़ी का काम, लोहा और मरम्मत कार्य इत्यादि की, यदि योजना बनाई जाए तो मलिन बस्ती क्षेत्रों के लिये वो रोजगार और आय सृजन में अर्थपूर्ण हो सकते हैं।

3. अन्य कल्याण कार्य
क्योंकि मलिन बस्ती में रहने वाले अधिकांश लोग परिसम्पत्तियों, मनबहलाव और मनोरंजन के साधनों से वंचित है, सामाजिक समूहन के लिये स्थान और मनोरंजन के साधान प्रदान करने के लिये सामुदायिक केन्द्रों की योजना बनाई जानी चाहिए।

4. पर्यावरणीय गुणवत्ता नियन्त्रण
मलिन बस्ती क्षेत्र अस्वच्छता की अवस्थाएं प्रतिबिम्बित करते हैं। मलिन बस्तियाँ कचरा फ़ेंकने के स्थलों, कूड़ा-करकट के स्थानों के समीप और नालियों के साथ में बन जाते हैं। बागान छाया बढ़ाने में सहायता कर सकते हैं; प्रदूषण स्तर में गिरावट और रद्दी फ़ेंकने के स्थलों, सड़क और नालियों की बगल में हरित वातावरण उत्पन्न कर सकते हैं। अधिकांश मलिन बस्तियों में जगह की समस्या होती है, ऐसे में बौने और फ़ूल वाले वृक्ष के बागान सर्वाधिक उपयुक्त हैं।

नालियों और कूड़ा फ़ेंकने के स्थलों को ढ़कने के लिये भी नियोजित प्रयत्नों की आवश्यकता है। मलिन बस्ती सुधार के नियोजित प्रयत्नों ने धारावी-मुम्बई की मलिन बस्ती में जीवन की गुणवत्ता में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं।

पाठगत प्रश्न 32.3
1. मलिन बस्ती की तीन विशेषताएँ लिखिए।
2. उन तीन कारकों को सूचीबद्ध करें जिन्होंने भारतीय शहरों की मलिन बस्ती जनसंख्या की तीव्र वृद्धि में योगदान दिया है।
3. मलिन बस्ती क्षेत्र के सुधार के लिये नियोजन की तीन प्राथमिकताएँ बताइए।

32.4 वृत्त अध्ययन-III
जनजातीय ग्राम का अध्ययनः सम्बलपानी (जिला बनासकांठा-गुजरात)
जनजातीय क्षेत्र विकासः सम्बलपानी जनजातीय ग्राम का वृत्त अध्ययन (जिला बनासकांठा, गुजरात)

परिचय
अध्ययन क्षेत्र, सम्बलपानी मुख्यतया जनजातीय गाँव है और लगभग 24°20' उत्तरी अक्षांश, 72°44' पूर्वी देशांतर पर गुजरात राज्य के बनासकांठा जिला की दान्ता तहसील में स्थित है। पालनपुर-अम्बाणी सड़क (गुजरात) गाँव के पास से गुजरती है और राजस्थान में माउंट आबू को जोड़ती है। यह गाँव अम्बाजी नगर के पश्चिम में, लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यह क्षेत्र राजस्थान राज्य में जिला सिरोही से लगी अरावली पहाड़ियों के दक्षिण-पूर्वी विस्तार का हिस्सा है। गाँव सम्बलपानी अम्बाजी माता पहाड़ी प्रांगण का हिस्सा है। यह प्रांगण तीव्र पहाड़ी की विशेषताएँ, पर्वत श्रेणियाँ और छोटी पहाड़ियों को प्रतिरूपित करता है। अध्ययन क्षेत्र का सामान्य उच्चावच समुद्र तल से लगभग 650 मीटर है। सरस्वती नदी जो साबरमती नदी की सहायक नदी है, इस क्षेत्र में से बहती है। इस पहाड़ी क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 830 मि.मी. होती है, जो अधिकतर दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त होती है। वनस्पति सामान्य रूप से शुष्क पर्णपाती प्रकार की है। टीक, महुआ, बांस, गूलर, हल्दी, बीजा, कान्धी और सान्दी (स्थानीय नाम) जैसे वृक्ष यहाँ होते हैं। किसी-किसी स्थान पर, वनस्पति आवरण मुख्यतः झाड़ियों और खुले घास स्थलों का है।

सम्बलपानी का क्षेत्र 1542.48 हेक्टेयर और कुल जनसंख्या 642 व्यक्ति है। गाँव में 106 परिवार है (सारिणी- 32.5)। कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का अनुपात 74.06 प्रतिशत है। भारवद जनजातीय समुदाय है, जबकि रबारी गैर-जनजातीय समुदाय है (सारिणी-32.6)। लिंग अनुपात (प्रति 1000 पुरुष जनसंख्या पर महिलाओं का अनुपात) 871 है। महिलाओं में साक्षरता का अनुपात 14.5 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में यह 26.4 प्रतिशत है।
 

सारिणी क्र- 32.5: सम्बलपानी जनजातीय गाँव में परिवारों का प्रतिरूप 2006

सम्बलपानी परिवार

परिवारों की कुल संख्या

कुल जनसंख्या

नमूना परिवारों की संख्या

परिवार के सदस्य

106

642

30

210

सारिणी क्र. 32.6 : जनसंख्या की विशेषताएँ

क्षेत्रफ़ल (हेक्टेयर में)

जनसंख्या

कुल जनसंख्या का प्रतिशत

जनसंख्या घनत्व  प्रति वर्ग कि.मी.

लिंग अनुपात

साक्षरता का प्रतिशत

पु.     म.

1542.48

642

74.6

46

871

26.4   14.5

रबारी लोग अर्द्ध-यायावर पशु पालक लोग हैं। यह कौतूहल का विषय है कि वो छोटी शंक्वाकार झोंपड़ी जिसे 'खुबा' कहा जाता है, में रहते हैं। रबारी लोग चरावाही या अर्द्ध-चरावाही लोगों का समूह बन गए हैं और इसने स्थानीय जाति प्रणाली के अन्य अवयवों के साथ स्थायी आर्थिक सम्बन्ध बना लिया है।

भूमि उपयोग
कुल भौगोलिक क्षेत्र (1542.48 हेक्टेयर) का करीब 7.5 प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है और 92.1 प्रतिशत कृषि योग्य नहीं है। भूमि के अन्य उपयोग में 0.4 प्रतिशत भूमि है। (सारणी-32.7)। गाँव में सीमित कृषि, विस्तृत वन्य भूमि और बड़ा चारागाह है। भूमि आधारित गतिविधियों में पशुचारण और जीवन निर्वाह खेती शामिल है। अधिकांश घर छप्पर के, कच्चे, विस्तृत जगह अन्तराल के साथ, लम्बे और आंशिक बाड़े का अहाता वाले होते हैं, जो पशुओं, पशुओं के चारे जैसे भूसा, घास और खेती के उपकरण रखने के लिये इस्तेमाल किए जाते हैं। गाँव में चराई मैदान जनजातीय समुदाय द्वारा समान रूप से प्रयोग किए जाते हैं। आमतौर पर सूखे के काल में ऋतु प्रवास किया जाता है। गर्मी के मौसम में चरवाहे अपने पशुओं के साथ अरावली की उच्च भूमि पर चले जाते हैं और सर्दी के मौसम में कच्छ, काठियावाड़ क्षेत्र की ओर चले जाते हैं।
 

सारणी क्र. 32.7 : भूमि प्रयोग का प्रारूप (हेक्टेयर में)

कुल भौगोलिक क्षेत्र (हेक्टेयर में)

कृषि योग्य भूमि

अकृषीय भूमि भूमि

वन आवरण

अन्य

1542-48

(100 %)

116.20

(7.5 %)

1420.26

(92.1 %)  

0.0

(0.0)

6.02

(0.4 %)

आर्थिक गतिविधियाँ और आय के स्रोत
कुल कार्यशील जनसंख्या का करीब 53 प्रतिशत सीधे पशुचारण और सम्बन्धित गतिविधियों में लगे हैं, लगभग 41 प्रतिशत कृषि-चरावाही गतिविधियों में और बाकी करीब 6 प्रतिशत कुटीर उद्योगों, व्यापार, परिवहन और सेवा के क्षेत्र में लगे हैं।

 

सारणी क्र. 32.8 आर्थिक गतिविधियों में सहभागिता

कृषि

श्रमिक

अन्य

कुल

कुल

पु.

.

कुल

पु.

.

कुल

पु.

.

कुल

पु.

.

14

3

11

20

12

8

8

5

3

42

20

22

औसतनः एक परिवार के पास लगभग 60 पालतू पशु होते हैं। गाय, भैंस, बकरी, भेंड़, खच्चर और ऊंट इत्यादि आमतौर पर इस क्षेत्र में पाले जाते हैं। पशु पालने के अलावा, परिवार वन उत्पादों जैसे शहद, घास, गुग्गल, धॉलमुसली और बोर एकत्र करने का काम भी करते हैं। कृषि तुलनात्मक रूप से समतल सपाट भूमि और गहन मृदा आवरण के साथ कुछ ही भागों पर की जाती है। कृषि के लिये अधिकतर बरसात के पानी का उपयोग होता है। यहाँ बाजरा तिलहन और दालों की फ़सलें उगाई जाती हैं।
 

सारणी क्र. 32.9 विभिन्न स्रोतों से आय

विभिन्न स्रोतों से प्रति परिवार औसत आय (रु. में)

कृषि

श्रम उत्पाद

वन उत्पाद

पशु उद्योग

कपास

कुल

2330

(24.89%)

519

(5.54%)

149

(33.64%)

3356

(35.85%)

7

(0.08%)

9361

(100.00%)

(कोष्ठ में संख्या प्रतिशत इंगित करती है)

आय के स्रोत पशु और पशु उत्पाद जैसे दूध, घी इत्यादि की बिक्री, और वन उत्पादों, कृषि सम्बन्धित गतिविधियों, कुटीर उद्योगों और विभिन्न स्थानीय सेवाओं की बिक्री है। सब स्रोतों से परिवार की औसत वार्षिक आय 9361 रुपये होती है। पशु और वन उत्पादों से आय सृजन लगभग 69 प्रतिशत का होता है, कृषि से लगभग 25 प्रतिशत, शारीरिक श्रम से करीब 6 (5.54) प्रतिशत होता है और बाकी शिल्प तथा अन्य कार्यों के जरिये हैं।

पारिवारिक परिसम्पत्तियां
जनजातीय समुदाय के पास बहुत सीमित पारिवारिक परिसम्पत्तियां है। घर, बर्तन, फ़र्नीचर, अनाज भंडारण ड्रम, टोकरियां, संगीत वाद्य एवं कृषि उपकरण परिवार की परिसम्पत्तियां हैं। परिवार की परिसम्पत्ति का पैसे में मूल्य 6001 रुपये से 9001 रुपये के बीच में आता है। औसतन, घर की कीमत 6800/- रुपये, खेती के औजारों की कीमत 384/- रुपये, बर्तनों की 279/- रुपये, फ़र्नीचर की 210/- रुपये, संगीत वाद्यों की 69/- रुपये, अनाज के ड्रम की 68/- रुपये, टोकरियों की 38/- रुपये और अन्य की 81/- रुपये दर्ज की गई थी।
 

सारणी क्र. 32.10 पारिवारिक परिसम्पत्ति का औसत मूल्य (रु. में)

घर

फ़र्नीचर

औजार

टोकरियाँ

अनाज ड्रम

कृषि उपकरण

संगीत

अन्य

कुल

6800

210

279

38

68

384

69

81

7929

आय, दूध, मांस और वस्तुओं के विनिमय का मुख्य स्रोत पशु होते हैं। जनजातीय समुदाय में परिवार की हैसियत इस बात से मालूम की जाती है कि परिवार के पास पशुओं की कितनी संख्या है। कृषि गाँव में कुछ भागों में सीमित है। पारिवारिक आय को अनुपूरित करने के लिये चरवाही गतिविधियों के साथ-साथ खेती भी की जाती है। परिवार के एक या दो सदस्य मूंगफ़ली और कपास के उत्पादन में काम करने के लिये समुद्रतटीय गुजरात की तरफ़ भी जाते हैं। विषम परिस्थितियों में रहना और कठोर जीवन व्यतीत करना जनजातीय लोगों के लिये इस क्षेत्र में आम बात है। निर्धनता और बार-बार सूखा पड़ने से बाध्य होकर, जनजातीय लोगों को अक्सर अपने जीवन निर्वाह के लिये पशुओं और फ़सल उत्पादों की कुर्की करनी पड़ती है।

अन्तरक्रियाएँ
अध्ययन क्षेत्र में जनजातीय जनसंख्या थोड़ी और मध्यम दूरी की अन्तरक्रियाएँ बनाए रखती है। अम्बाजी सबसे समीप का बाजार क्षेत्र है जहाँ अधिकांश पशु, कृषि और वन उत्पादों की बिक्री होती है (सारिणी-32.10-32.12)। कपड़ा, बर्तन, मसाले, अनाज इत्यादि की पारिवारिक जरूरतें भी मौसम अनुसार अम्बाजी बाजार से खरीदी जाती है। कार्यस्थल से सम्बन्धित अन्तरक्रियाएँ का जहाँ तक सवाल है, श्रमिकों का लगभग 87 प्रतिशत गाँव (सम्बलपानी) में ही कार्य करता है। श्रमिकों का लगभग 7 प्रतिशत नौकरी की खोज में अन्य स्थानों पर जाता है।

यह लगभग 7 से 8 महीनों के लिये आस-पास के गाँवों और बाजारों में 10 किलोमीटर की दूरी तक का आना जाना करते हैं। बाकी करीब 6 प्रतिशत श्रमिक करीब 4 से 6 महीनों तक आस-पास के जिलों में मूंगफ़ली और कपास के खेतों में काम करने के लिये ज्यादा लम्बी दूरी (50 कि.मी. से ज्यादा) तक जाते हैं। चारे की घास और पेड़ के पत्तों का अभाव भी चरवाहकों को अपने पशुओं के झुंड समेत उत्तर-पूर्व की ओर अरावली की पहाड़ियों के साथ-साथ में और गुजरात के मैदानों में नदी की घाटियों (बनास, सरस्वती और साबरमती) की बगल में छोटी अवधि के लिये जाने को बाध्य करता है।
 

सारणी क्र. 32.11 कार्य स्थल

सम्बल पानी

कुल श्रमिक

उसी गाँव में

अन्य गाँव दूरी के साथ कम अवधि

दूरी के साथ अधिक अवधि

 

123

107

7 (30.0 किमी.)

9 (8.0 किमी.)

 

(100.00 %)

(86.95 %)

4 महीने (5.71 %)

8 महीने (7.34 %)

सारणी क्र. 32.12 वस्तुओं की खरीद और बिक्री के लिये आर्थिक अन्तरक्रियाएँ

अम्बाजी

सम्बल पानी

कुल

20

4

24

सारणी क्र. 32.13 वन उत्पाद और उनकी बिक्री का स्थल

उत्पाद

ईंधन

गुग्गल

घास

शहद

धोली मुसली

बोर

स्थान

अम्बाजी सम्बल-पानी

सम्बल-पानी

अम्बाजी

अम्बाजी

अम्बाजी

अम्बाजी

भारत की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का लगभग 8 प्रतिशत हिस्सा है। वे लोग आमतौर पर ऊँचे स्थानों के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाते हैं। संसाधनों जैसे वन और चारागाह इत्यादि का स्वामित्व समुदाय का संयुक्त है। जनजाति के लोग, पौधों और साथ ही जंगली पशुओं के रक्षण और प्रौन्नति के लिये जाने जाते हैं। वस्तुओं और सेवाओं का आदान प्रदान करने के लिये जनजाति के लोग सामान्यतया वस्तु विनिमय प्रणाली का अनुपालन करते हैं।

जनजाति क्षेत्र विकास के लिये नियोजन का परामर्श
जनजाति क्षेत्र विकास, पारिस्थितिक वृद्धि और आर्थिक विकास संतुलित बनाए रखते हुए जनजाति सांस्कृतिक विरासत को प्रौन्नत करने की चेष्टा में रहता है। क्योंकि जनजाति समुदाय मुख्यतः जीवन निर्वाह के साधनों के रूप में चरवाही, जीवन निर्वहन खेती, मछली पालन, शिकार इत्यादि पर आधारित है। भूमि, पौधे और वन्य पशुओं का विकास जनजाति क्षेत्र विकास के मूलभूत अवयव हैं। अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित नियोजन प्रस्तावों के विभिन्न पहलुओं पर संक्षिप्त चर्चा नीचे दी गई हैः

पारिस्थितिक नियोजन
बंजर या ऊसर भूमि, पहाड़ी ढ़लान स्थल, नदी घाटी के क्षेत्र और सड़क के किनारे सूखा प्रतिरोधी पौधों जैसे नीम, शीशम, महुआ, बांस इत्यादि के रोपण की जरूरत है। इन पौधों की उत्तर जीविता और वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये, तालाबों, कुओं, नलकूपों की व्यवस्था करने की आवश्यकता है। यह स्थानीय लोगों को शायद रोजगार उपलब्ध कराएगा और स्थायी भौतिक विशेषताएँ उत्पन्न करेगा। जलस्रोतों में वृद्धि से भूमि को हरित चारागाहों में रूपान्तरित करने और खेतों व वनों की उत्पादकता में वृद्धि करने में मदद मिलेगी। हरित चारागाह, वनस्थली और जल संकटापन्न (जोखिम में पड़े) पारिस्थितिक व्यवस्था का पुनरुत्थान करेंगी जो वन्य जीवन के संवर्धन के लिये अत्यन्त अनिवार्य है।

सामाजिक सुविधाओं की योजना बनाना
सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये, सामाजिक सुविधाओं की व्यवस्था करनी चाहिए। सम्बल पानी गाँव में एक प्राथमिक स्कूल है और स्थानीय लोगों के लिये तीन दुकानें हैं। गाँव के लिये जल आपूर्ति का स्रोत दो कुँए, एक तालाब और समीप एक नदी है। ग्रामीण सड़क (अर्द्ध-पक्की) गाँव को अम्बाजी बाजार केन्द्र से जोड़ती है। ऐसे में, जिन सामाजिक सुविधाओं की योजना बनानी चाहिए वो हैं-एक उच्चतर बेसिक स्कूल, एक महिला डॉक्टर, एक पशु रोग डॉक्टर, दवाखाना, पी-सी-ओ- और एक डाकघर। सड़क को अम्बाजी नगर तक पक्का करना है जिससे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कायम हो सके।

आर्थिक विकास का नियोजन
गाँव की विद्यमान स्थानीय अर्थव्यवस्था जो अपने जीवन निर्वाह के स्तर पर है, उसे प्रौद्योगिकीय सहायता चाहिये जिससे अधिक उत्पादन हो सके। डेयरी पशु जो बहुत कम दूध देते हैं, उन्हें गाय, भेड़ और भैंसों की उच्च उत्पादन किस्मों से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। स्थानीय किस्मों की गुणवत्ता भी संकरण के जरिये सुधारी जा सकती है। इसी तरह से, माँस देने वाले पशुओं और भार ढ़ोने वाले पशुओं का भी बेहतर आर्थिक प्रतिफ़ल उत्पन्न करने के लिये, गुणात्मक रूप से सुधारा जा सकता है। व्यावसायिक फ़सलें जैसे कि कपास, मूँगफ़ली और चारा देने वाली फ़सलों को ज्यादा कृषि उत्पादन के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। कृषि-आधारित उद्योगों, कुटीर उद्योगों और हस्तशिल्पों को, अतिरेक कृषि उत्पाद की प्रोसेसिंग करने के लिये, स्थापित करना चाहिए।

जनजातीय क्षेत्र विकास में सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य
यदि मौका दिया जाए, तो जनजातीय समुदाय सामाजिक-आर्थिक विकास में श्रेष्ठ होगा और अपने गैर-जनजातीय प्रतिपक्षों के साथ मिलान कर पाएगा। इस तथ्य के बावजूद कि जनजातीय लोग उत्पादन के पारम्परिक ढंग का अनुपालन करते हैं और आर्थिक रूप से गरीब हैं, उनके पास जड़ी बूटियों, पौधों, पत्थरों का विशाल ज्ञान है जो वे अपना स्वास्थ्य बनाए रखने में उपयोग करते हैं। जनजातीय नृत्य, संगीत और विरासत कलाए उच्चतर गुणवत्ता की हैं। अतः, स्थानीय दवाओं और संस्कृति के बारे में जनजातीय परिपाटियों और ज्ञान को आगे और प्रौन्नत किया जा सकता है और उसे रोजगार व आय सृजन के लिये उपयोग करने की जरूरत है। सुरम्य अभिव्यंजना और पहाड़ी परिवेश, जोखिम पर्यटन जैसे पर्वतारोहण, चट्टानों के ऊपर चढ़ना और रिवर राफ्टिंग इत्यादि के लिये अधिक उपयुक्त हैं।

मूलभूत सामाजिक सुविधाएँ, सुनिश्चित सिंचाई और जल आपूर्ति व्यवस्था, ऊर्जा उपलब्धता इत्यादि बागान, वनारोपण, व्यावसायिक चरावाही और खेती की गति को अत्यधिक तेज कर देंगे। यह फिर जनजातीय परिवारों के रोजगार और आय स्तर में वृद्धि करेंगे। जनजातीय संस्कृति, विरासत और ज्ञान को सतत आधार पर प्रौन्नत करने की आवश्यकता है। यह गर्व की संवेदना को प्रौन्नत करेगी और लोगों की सहभागिता तथा अनुकूल नीतियों के जरिये स्थानीय क्षेत्र विकास की गति को तेज करेगी।

पाठगत प्रश्न 32.4
1. निम्नलिखित वाक्यों को पूरा करने के लिये उपयुक्त शब्द लिखिएः
कथनः
(क) कुल भारतीय जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का अनुपात _ _ _ _ _ _है।
(ख) छोटी शंक्वाकार झोपड़ियाँ जिनमें सम्बलपानी की जनजातीय जनसंख्या रहती है को _ _ _ _ _ _ कहते हैं।
(ग) जनजातीय समुदायों में आय के प्रमुख स्रोत _ _ _ _ _ _हैं।
(घ) चारागाहों की खोज में पशुओं के झुंड के साथ-साथ आने जाने की जनजातीय परिपाटी _ _ _ _ _ _ कहलाती है।

2. जनजातीय समुदाय की तीन विशेषताएँ बताइए।
3. जनजातीय क्षेत्र विकास नियोजन के लिये तीन प्राथमिकताएँ बताइए।

32.5 वृत्त अध्ययन- IV
पहाड़ी गाँव रंगदूम का अध्ययन
(जिला कारगिल-जम्मू और कश्मीर)


रंगदूम जम्मू और कश्मीर राज्य में वृहत हिमालयी पर्वतमालाओं के पार स्थित एक पहाड़ी गाँव है। भौगोलिक रूप से, यह लद्दाख क्षेत्र के कारगिल जिले में 33° 42' उत्तर और 76° 12' पूर्व देशान्तर पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 3820 मीटर है। कारगिल-पदूम राष्ट्रीय राजमार्ग रंगदूम से गुजरता है। राष्ट्रीय राजमार्ग के मध्य भाग में स्थित होने की वजह से, रंगदूम कारगिल से दक्षिण की ओर लगभग 118 किलोमीटर की दूरी पर है। कारगिल से लेह के बीच दूरी लगभग 176 किलोमीटर है। यह पिछड़ा हुआ मठवासीय गाँव है और तुलनात्मक रूप से ज्यादा एकांकी उच्चतर सुरु घाटी में घाटी की सतह पर स्थित है। गाँव में स्कूल, डाकघर और कैम्पिंग मैदान है।

कुछ दुकानें हैं जो परिवारों के लिये सामान्य परचून का सामान रखती हैं। गाँव की जनसंख्या 300 व्यक्तियों की है और कुल 72 परिवार है। पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्यतया छोटे आकार के गाँव होते हैं और वो छितरे हुए होते हैं। गाँव में, उपलब्ध भूमि संसाधनों के आगे और विभाजन से बचने के लिये बहुपति परिवार प्रथा का चलन है।

रंगदूम सुरु नदी, जो शक्तिशाली सिन्धु नदी की बाईं ओर की सहायक नदी है, के दाएँ किनारे पर स्थित है। सुरु नदी पांजीला (दर्रा) के जल विभाजन से मूलतः प्रारम्भ होती है। यह जल विभाजक जास्कर नदी के जलग्रहण क्षेत्र को सुरु से पृथक करता है। यह सिन्धु को कारगिल नगर, जो उसके बाएँ किनारे पर स्थित है, के उत्तर में मिलती है। सुरू एक सदानीरा नदी है। गर्मी के मौसम में, जब बर्फ़ के क्षेत्र और हिमनदियाँ पिघलने लगते हैं, तो नदी में पानी का बहाव साधारण रूप से अधिक बना रहता है। जबकि सर्दी के मौसम में नदी की धारा कम हो जाती है क्योंकि तापमान हिमांक बिन्दु से नीचा होने पर बर्फ़ नहीं पिघलती है।

रंगदूम चौड़ी घाटी में स्थित हैं जहाँ कई धाराएं सुरु नदी में आकर मिलती है, और इस घाटी में दो उपग्राम या पुरवा है, जुलडो और ट्शी टुंगडा जो एक दूसरे से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों के बीच में पहाड़ी पर रंगदूम गोम्पा स्थित है। भूमि गोलाश्मों और कंकड़ों से भरी हुई है और ज्यादा उपजाऊ नहीं है।

रंगदूम गोम्पा
गोम्पा शब्द बौद्ध मठावास का संकेत करता है। यह धार्मिक संस्था है और लद्दाखी बौद्धों के जीवन के सभी पहलुओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। रंगदूम में सारी भूमि पर गोम्पा का स्वामित्व है और ग्रामवासी इस पर काश्तकार के रूप में कार्य करते हैं। लामा, बौद्ध सन्यासी कोई शरीरिक कार्य नहीं करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि वो शारीरिक श्रम करता है तो यह बहुत से जीवों की मृत्यु को ओर अग्रसर करेगा। रंगदूम गोम्पा छोटी पहाड़ी पर केन्द्र में स्थित है और जुलडो और ट्शी टुंगडा उपग्रामों के सामाजिक-आर्थिक जीवन को नियन्त्रित करता है। एक वयस्क लामा, जो मठ के वित्तीय मामलों की देख रेख करता है, चक्क-जोड के नाम से जाना जाता है।

इसलिये, भूमि समुदाय की होती है और स्थानीय प्रशासन गोम्पा व्यवस्था द्वारा संचालित होता है। गाँव में लोग वंशानुक्रम के आधार पर स्थायी काश्तकार के रूप में कार्य करते हैं और गोम्पा द्वारा निर्धारित नियमों का अनुपालन करते हैं। उत्पादन का एक भाग मठ को दिया जाता है। तथापि, उत्पादन में से हिस्से का अनुपात स्थानीय स्थितियों और जरूरतों के आधार पर समय-समय पर बदलता रहता है।

जलवायु
गाँव की जलवायु महाद्वीपीय प्रकार की विषम है। इसकी जलवायु की विशेषताएँ हल्की बरसात, वार्षिक और दैनिक तापमानों में उच्च परास, हल्का गर्मी का मौसम और अत्यधिक ठंडा सर्दी का मौसम है। औसत मासिक तापमान जनवरी में 12°C से जुलाई में -12°C तक परिर्वितत होता है। तापमान की अनुमानित वार्षिक परास लगभग 24°C है। गाँव, वृष्टि-छाया-क्षेत्र में स्थित है और वार्षिक वर्षा 15 सें. मी. से भी कम प्राप्त करता है। दुर्भाग्यवश, वर्षण की बड़ी मात्रा सर्दी के महीनों में हिमपात के रूप में होती है। समीप में ही मौसम और जलवायु सम्बन्धी आंकड़े रिकॉर्ड करने के लिये गुलमातान्गो वेधशाला है।

वनस्पति
रंगदूम एक ओर, समुद्र तल से काफ़ी ऊँचाई और नितान्त ऊबड़-खाबड़ धरातल होने के कारण और दूसरी ओर ठंडी मरुस्थलीय जलवायु की वजह से यहाँ प्रतिकूल वातावरण है। वनस्पति का सम्पूर्ण प्रारूप जलवायु द्वारा निर्देशित होता है। यह क्षेत्र प्रत्यावर्ती घाटियों और पर्वतों की व्यवस्था प्रस्तुत करता है। पर्वतमालाओं की बंजर चट्टानी सतह मृदा और वनस्पति के आवरण से वंचित है। अधिकांश पौधों को, बीजों के अंकुरण और पौधों की वृद्धि के लिये कम से कम 6°C तापमान की जरूरत होती है। उच्च दैनिक ताप परिसर औसत तापमान के मानों को काफ़ी भ्रामक बना देता है। पौधों के बढ़ने का मौसम वर्ष में 6 महीनों से कम तक सीमित होता है। लगभग सब के सब पौधे भूमि-स्पर्शी झाड़ियाँ और छोटे वृक्ष हैं। सब पत्तियां पोषक तत्वों से भरी होती हैं। वनस्पति घास, झाड़ियों और छोटे वृक्षों के प्रकार की है।

सर्द शुष्क अवस्थाओं की वजह से बहुत बड़े क्षेत्र पर बहुत कम वनस्पति का आवरण है। वनस्पति, चराई से बहुत जल्दी प्रभावित होती है और निर्बल किस्म की है। समुद्र तल से ऊँचाई के साथ-साथ वनस्पति की किस्म बदलती है। चरवाही घास और घास-पात (पोली गोनम टॉरचूसम इत्यादि) रंगदूम के पास सामान्य रुप से होती है। गर्मियों में पशु चारण सर्वाधिक आम गतिविधि है। गाँव, बहुत थोड़ी हरियाली के साथ, बहुत विरान दृश्य प्रस्तुत करता है। सीबकथोर्न जिसका स्थानीय नाम 'ज़रमांग' है, खाद्य, ईंधन और चारे के लिये इस्तेमाल किया जाता है। यह औषधि युक्त पौधा है और इसका रस शून्य से कम तापमान पर भी जमता नहीं है।

कृषि
गाँव का कुल भौगोलिक क्षेत्र 289.76 हेक्टेयर है। कुल कृषि क्षेत्र 94.29 हेक्टेयर है। कृषि योग्य बंजर भूमि का क्षेत्र 49.37 हेक्टेयर है और बाकी 104.82 हेक्टेयर कृषि के लिये उपलब्ध नहीं है। ऐसे में, कुल भूमि क्षेत्र के 40 प्रतिशत से भी कम भाग पर कृषि होती है। लगभग 68.2 प्रतिशत भूमि जोतें एक हेक्टेयर से भी कम की है। 27.3 प्रतिशत 1 से 2.5 हेक्टेयर की है और बाकी 4.5 प्रतिशत 5 से 10 हेक्टेयर की है। यह भी अवलोकन किया गया है कि कृषि के लिये पट्टे पर ली भूमि का 35.8 प्रतिशत एक हेक्टेयर से कम का है, 32.7 प्रतिशत 1 से 2.5 हेक्टेयर, और बाकी 31.4 प्रतिशत 5 से 10 हेक्टेयर का है। अतः रंगदूम गाँव में 95.5 प्रतिशत से अधिक किसान 2.5 हेक्टेयर से कम भूमि पर खेती कर रहे थे। एक संसाधन के रूप में भूमि का वितरण बहुत असमान है।

इस गाँव में कृषि जीवन निर्वाह प्रकार की है। इस प्रदेश में बोई जाने वाली महत्त्वपूर्ण फ़सलों में ग्रिम (आवरण रहित बाजरा), गेहूँ और मटर है। गेहूँ, मटर और ग्रिम को इकट्ठे भून कर और पीस कर साम्पा (एक प्रकार का सत्तु) बनाया जाता है। यह मुख्य खाद्य पदार्थ है। ग्रिम को छांग बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है, जो इस प्रदेश के बौद्ध लोगों में लोकप्रिय पेय है। छांग को ग्रिम का खमीर बना कर बनाया जाता है। मटर को दोनों सब्जी के रूप में और ज़म्पा बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। अन्य फ़सलों में चारे के लिये ओल (अल्फ़ा) और कुछ टुंम्बा (बक गेहूँ) और मारास्ल (फ़लियां) शामिल है। आजकल पर्यटकों और समीप के बाजार क्षेत्र के लिये कुछ सब्जियों को भी उगाना शुरू किया गया है। तथापि, इनमें से अधिकांश फ़सलों को मुख्यतः स्व उपभोग के लिये उगाया जाता है।

विभिन्न फ़सलों का तुलनात्मक अध्ययन दर्शाता है कि कुल रोपित क्षेत्र का लगभग 64.6 प्रतिशत पर ग्रिम उगाया जाता है। इसके बाद क्रमशः मटर (23.1 प्रतिशत), चारा (4.8 प्रतिशत), गरस/बाक्ला (4.1 प्रतिशत), गेहूँ (2.4 प्रतिशत) और अन्य फ़सलें (1 प्रतिशत)। अतः कृषि मौसमी गतिविधि है जो साल में लगभग 5 से 6 महीने तक चलती है।

खेती पारम्परिक औजारों के साथ की जाती है। याक (बैल की जाति का पशु) या द्जो की पशु शक्ति को हल चलाने और भूसा को अलग करने के लिये इस्तेमाल किया जाता है। मानवीय भ्रम करने वाले बीजों की अधिकांश कार्यों के लिये उपयोग किया जाता है। आधुनिक मशीनरी, खाद और उच्च उत्पादन करने वाले बीजों की किस्मों का उपयोग बहुत सीमित है। सामूहिक प्रकार की खेती भी गाँव में आम है। उसे फ़ासपुन नाम से जाना जाता है। इसमें श्रम प्रधान गहन कार्य जैसे बुआई, कटाई आदि पूरा करने के लिये परिवारों के समूह इकट्ठे मिल जाते हैं।

खेती में खाद (गोबर आदि की) का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसमें पशु का गोबर और मल आता है। क्योंकि सर्दी के मौसम में अत्यधिक ठन्ड होती है, इसलिये प्रत्येक घर में शौचालय की व्यवस्था होती है। यह अक्सर पहली मंजिल पर लकड़ी के फ़र्श पर सुराख करके बनाया जाता है। मल तलीय मंजिल पर इकट्ठी हो जाती है। इसे मिट्टी के साथ मिश्रित करके खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

चरावाही गतिविधियाँ
पशुपालन अर्थव्यवस्था का अन्य महत्त्वपूर्ण घटक है। अधिकांश पालतू पशु, कृषि कार्यों के लिये जो जरूरत हैं उन्हें छोड़कर, गर्मी के महीनों में प्राकृतिक चारागाहों में ले जाए जाते हैं। अधिकांश चारागाह ऊँचाई के स्थलों पर स्थित है। भेड़, बकरी, टट्टू और याक ही अधिकांश पशु हैं जिन्हें इन चारागाहों पर पाला जाता है। भेड़ और बकरियों के बड़े झुँड इन क्षेत्रों में रखे जाते हैं। सामान्यतया, प्रत्येक गाँव से एक परिवार पशुओं को गर्मी के चारागाहों में ले जाता है और वहीं झोंपड़ी में, जिसे ''दक्ष'' कहते हैं, रहता है। यह अस्थायी ढाँचा होता है। इस गतिविधि या पशुचारण को गाँव के सभी परिवार वार्षिक आधार पर करते है। दूध और दूध उत्पाद दक्ष में बनाए जाते हैं। दूध तथा दूध उत्पादों के अलावा, मांस और ऊन, पशु चारण से प्राप्त अन्य महत्त्वपूर्ण उत्पाद हैं।

पर्यटन
रंगदूम गर्मियों के पर्यटन के लिये महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। पर्यटक और ट्रैकर गर्मी के मौसम में रंगदूम आते हैं। एक अनुमान के अनुसार, गर्मी के मौसम के दौरान लगभग 1000 दर्शनार्थी इस स्थान पर आते हैं। कुल पर्यटकों में से, लगभग 47.3 प्रतिशत ट्रेकर्स होते हैं, 38.2 प्रतिशत वैज्ञानिक और लगभग 14.5 प्रतिशत अन्य अवर्गीकृत दर्शनार्थी होते हैं। लगभग 78 प्रतिशत अन्तरराष्ट्रीय पर्यटक होते हैं और बाकी 22 प्रतिशत देशी पर्यटक आते हैं। यहाँ दो महत्त्वपूर्ण त्योहार होते हैं जो पर्यटकों को रंगदूम गोम्पा आने के लिये आकर्षित करते हैं। लद्दाख त्योहार प्रत्येक वर्ष 15 सितम्बर को मनाया जाता है और ''सिन्धु दर्शन'' जून में मनाया जाता है। राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय पर्यटक इन दोनों त्योहारों में भाग लेने में रुचि लेते हैं।

विकास के लिये आशाएं
पूरा विश्लेषण दर्शाता है कि रंगदूम में ग्रामवासी निर्वाह खेती और यायावर पशुचारण मौसमी आधार पर करते हैं। कृषि और चरवाही दोनों में सामूहिक क्रियाओं की भूमिका गाँव की अर्थव्यवस्था में अभी भी प्रमुख है। इस दूरस्थ पहाड़ी गाँव में लोग वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान के लिये वस्तु विनिमय प्रणाली पर निर्भर हैं। तथापि, फ़ासपुन (सामूहिक अनुक्रियाएं) कम हो रहा है और यह किराये के श्रम से प्रतिस्थापित हो रहा है। परिवर्तन धीमा और गत्यात्मक है। पहाड़ी क्षेत्रों में, मानवीय गतिविधियों का मुख्य निर्धारक प्रकृति होती है। पर्यटन पहाड़ी अर्थव्यवस्था का एक नया आयाम है। समाज मुख्यतः एकजुट और शान्त है। पहाड़ी क्षेत्रों में विकास की गुन्जाइश अनिवार्य आधारिक ढाँचे जैसे सड़कें, सामाजिक सुविधाएँ, बाजार इत्यादि की प्रदत्त व्यवस्था पर निर्भर करता है। कृषि में यांत्रिकीकरण और व्यापारिक पशुचारण अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जो पहाड़ी क्षेत्रों जैसे कि रंगदूम में विकास की गति को तेज कर सकते हैं।

कृषि योग्य बंजर भूमि - वो भूमि जो खेती के लिये उपयुक्त है पर इस समय खेती के लिये उपयोग नहीं की जा रही है।

पट्टे पर ली गई भूमि - कुछ समय के लिये पट्टे पर खेती लेना।

निर्वाह प्रकार की कृषि - यह इस प्रकार की कृषि है जिसमें सीमित उत्पादन होता है जो कि अधिकांश रूप से स्थानीय तौर पर उपभोग कर लिया जाता है।

पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिये नियोजन का सुझाव
पहाड़ी क्षेत्र सामान्यतया कठोर जलवायु सम्बन्धी परिस्थितियों और अन्य प्राकृतिक अवरोधों की वजह से पिछड़ा हुआ रहता है। तथापि, स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित नियोजन के प्रयत्न पहाड़ी पर्यावरण में लोगों की सहभागिता और स्थानीय क्षेत्र विकास को तेज कर सकते हैं।

नियोजन की निम्नलिखित प्राथमिकताएँ रंगदूम क्षेत्र के विकास के लिये सुझाई गई हैं।

1. मूलभूत सुख - साधनों और सुविधाओं के लिये व्यवस्था
मूलभूत अधारिक ढ़ांचे जैसे कि पक्की सड़कें, परिवहन के माध्यम, राजमार्ग रेस्तरां और गेस्ट हाउस, स्वास्थ्य केन्द्र, मौसम स्टेशन, स्कूल, पशु रोग केन्द्र, बाजार बैंक और डाक सेवाओं का स्तर ऊँचा करने और कारगिल-पदूम राजमार्ग पर स्थापित करने की जरूरत है। यह मानव अन्तर्क्रिया और स्थानीय क्षेत्रीय विकास के लिये आधार के रूप में कार्य करेगी।

2. पारिस्थितिक तन्त्र और आर्थिक आधार के सुधार की व्यवस्था
पारिस्थितिक तन्त्र या व्यवस्था वनस्पति से व्यापक रूप से वंचित है। बड़े पैमाने पर चरवाही गतिविधियों के फ़लस्वरूप पारिस्थितिक व्यवस्था का अधःपतन हो रहा है। पशु संख्या का दबाव पर्वतमालाओं पर पड़ता है और यह लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में यह परामर्श दिया जाता है कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर और सुरु घाटी क्षेत्र के साथ-साथ में ऊँचाई पर सर्दी प्रतिरोधी वृक्षों का रोपण किया जाना चाहिये। जेरमांग, स्थानीय बेर वृक्ष जिसका व्यापारिक मूल्य सुविदित है क्योंकि इसका जूस हिमांक बिन्दु से नीचे तापमान पर भी जमता नहीं है को उगाना संभव है। इसी तरह से, चारागाहों का प्रबन्ध सिंचाई के स्रोतों द्वारा होना चाहिये। सुरु घाटी के आस-पास रासानियक उर्वरकों का उपयोग और सुनिश्चित सिंचाई कृषि विकास के विद्यमान स्तरों को सुधार सकते हैं।

3. पर्यटक प्रौन्नति
असमान धरातल और हिमनदाच्छादित भू-दृश्य खोज यात्राओं, जोखिम पर्यटन, चट्टानों पर चढ़ना, स्केटिंग, ट्रेकिंग इत्यादि के लिये आदर्श प्राकृतिक परिस्थितियाँ पेश करता है। नौनकुन चोटियों और पान्जी ला दरों के बीच ऐसे पर्यटन को बढ़ाने के लिये रंगदूम की केन्द्रिय स्थिति है। तथापि, पर्यटक सुख-साधानों जैसे कि होटल, कैम्पस्थल, गाइड, सुरक्षाकर्मियों आदि की व्यवस्था करने की आवश्यकता है। वैज्ञानिक और सांस्कृतिक पर्यटन के भी विकसित होने की गुंजाईश है। वैज्ञानिक और सांस्कृतिक पर्यटक पहले से ही बौद्ध संस्कृति, गोम्पा संगठन, चट्टानों और पौधों की खोजबीन के प्रति आकर्षित हैं।

4. व्यापारिक चारावाही और कुटीर उद्योगों का विकास
चारावाही इस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण आर्थिक अनुक्रिया हैं। तथापि, पशु उत्पादों और पशुओं की गुणवत्ता काफ़ी खराब है। ऐसे में, पशुओं-भेंड़े, बकरियां, याक, टट्टू इत्यादि की गुणवत्ता का स्तर ऊँचा करने की अत्यधिक आवश्यकता है। स्थानीय किस्मों का करकुईल भेड़, बकरी के साथ संकरण दूध, ऊन इत्यादि की गुणवत्ता और साथ ही मात्र में सुधार कर सकता है। कुटीर उद्योग जो सर्दियों में घर के अन्दर करने के लिये आधार है, उन्हें आधुनिक औजारों और बाजारों से सम्पन्न करना चाहिये। यह स्थानीय लोगों का आर्थिक दर्जा सुधारेगा।

5. व्यापारिक सम्बन्ध और प्रादेशिक अन्तरक्रियाएँ
स्थानीय अतिरेक उत्पादों के व्यापारिक सम्बन्ध प्रादेशिक और राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ने की जरूरत है। स्थानीय लोग अपने उत्पादों को, तंगी में बाध्य होकर बेचने की वजह से न्यूनतम प्रतिफ़ल पाते हैं। सेवा केन्द्रों को खोलकर, रियायत देकर और सहयोग संस्थाएँ स्थापित करने में सरकारी सहायता, स्थानीय और प्रादेशिक उत्पादों की बिक्री करने में सर्वाधिक उपयोगी हो सकती है। यह स्थानीय आर्थिक अवस्थाओं में भी सुधार करेंगी। पारम्परिक मार्ग और व्यापारिक सम्बन्धों को आगे और सुदृढ़ करना चाहिए।

पाठगत प्रश्न 32.5
1. उपयुक्त शब्दों के साथ निम्नलिखित वाक्यों को पूरा कीजिएः

कथन
(क) तीव्र ढलुआं ढलानों और समुद्रतल से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्र को _ _ _ _ _ कहते हैं।
(ख) लद्दाख प्रदेश में बौद्ध मठ को _ _ _ _ _ कहते हैं।
(ग) मठ के वित्तीय मामलों की देखरेख करने वाला वयस्क लामा _ _ _ __ _ _कहलाता है।
(घ) पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रामीण अधिवासों का वितरण _ _ _ _ _ _ _बना हुआ है।

2. सूची I का सूची II से मिलान कीजिएः

सूची-I का सूची II से मिलान कीजिए3. पहाड़ी क्षेत्र विकास के नियोजन के लिये तीन प्राथमिकताएँ बताइए।

आपने क्या सीखा
इस पाठ में, आपने पढ़ा कि लोगों और स्थानों के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने के लिये क्षेत्रीय कार्य आवश्यक है। इस तरह से प्राप्त जानकारी, सामान्य धारणाएँ और अर्थपूर्ण स्पष्टीकरण विकसित करने में उपयोगी होती है। तथापि, क्षेत्रीय कार्य क्षेत्रीय विकास से सम्बन्धित भिन्न विषय प्रसंगों और मुद्दों पर नियोजन के प्रस्ताव तैयार करने के लिये अपर्याप्त रहता है। विषय प्रसंग या समस्या विशिष्ट स्थितियाँ, विशेष मुद्दों से सम्बन्धित गहन जानकारियों की मांग करती है। और यह वृत्त अध्ययन के द्वारा हो पाता है। क्योंकि मुद्दें एक स्थिति से दूसरी स्थिति के लिये भिन्न होते हैं, तो वृत्त अध्ययन का प्रारूप मुद्दों के साथ बदलता है जिससे कि अनुसंधान के सूक्ष्म विवरण इकट्ठे किये जा सके। इस पाठ में चार वृत्त अध्ययन यथा, बाजार, मलिन बस्ती जनजातीय और पहाड़ी क्षेत्र, प्रस्तुत किए गए हैं। बाजार क्षेत्र पर वृत्त अध्ययन, भिन्न बाजारों में बिक्री की मदों के लिये विशिष्टीकरण और ढाँचे से सम्बन्धित उल्लेखनीय भिन्नताएँ दर्शाती हैं।

जबकि साप्ताहिक बाजार में अस्थायी ढाँचा और चलती-फिरती खरीद व्यवस्था होती है। थोक बाज़ारों का स्थायी ढाँचा और नियमित खरीद व्यवस्था होती है। मलिन बस्ती पर वृत्त अध्ययन मात्र न्यूनतम सुविधाओं से वंचित स्थल, बड़े पैमाने का विस्थापन और ग्रामीण निर्धनता का शहरी निर्धनता में अन्तरप्रवाह दर्शाता है। जनजातीय क्षेत्र भी अर्द्धविकसित होते हैं। यह पर्वतीय क्षेत्रों के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र होते हैं। जनजातीय लोग सीमित खेती और चरावाही करते हैं। पौधों और पशुओं का संरक्षण और प्रौन्नति जनजातीय संस्कृति और विरासत में आम बात है। भारत की कुल जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या का भाग करीब 8 प्रतिशत है। पहाड़ी क्षेत्रों में ऊबड़ खाबड़ भू-आकृति, अधिकांशतः वनस्पति से वंचित, पहुँच के रास्ते खराब और जलवायु स्थितियों की विषमता उनकी विशेषतायें हैं। फ़लस्वरूप, पहाड़ी क्षेत्रों, में संयुक्त चरावाही मैदान, सीमित कृषि, सामूहिक अनुक्रियाओं का प्रचलन और वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय की वस्तु विनिमय प्रणाली चलती है। पिछड़ी हुई व्यवस्था में, भी समुदाय गठित, संगठित और सहयोगी बना हुआ है।

पाठांत प्रश्न
1. विशिष्ट क्षेत्रों और मुद्दों की उनके नियोजन की प्राथमिकताओं से सम्बन्धित समस्याओं को बेहतर समझने के लिये किस प्रकार वृत्त अध्ययन आवश्यक है?
2. किस प्रकार दुकानों की प्रकृति और ढाँचा एक प्रकार के बाजार से दूसरे में भिन्न है, समझाइए।
3. शहरों में मलिन बस्तियों की वृद्धि के लिये कौन से कारक उत्तरदायी हैं?
4. जनजातीय लोग कहाँ रहते हैं?
5. जनजातीय व्यवस्था में पौधों और वन्य पशुओं का क्या महत्त्व है?
6. सामूहिक कृषि क्रियाएं, पशुपालन और विनिमय की वस्तु विनिमय प्रणाली पहाड़ी लोगों के जीवन में क्यों महत्त्वपूर्ण है?

पाठगत प्रश्नों के उत्तर
32.1
1. (क) भौगोलिक व्यवस्था (ख) सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ
(ग) विकासात्मक स्तर

2. (क) क्षेत्रीय सर्वेक्षण पूछताछ के निर्धारित नियमों का पालन करता है और सामन्यत्या व्यवस्थित रहता है, जबकि वृत्त अध्ययन भिन्न मुद्दों के लिये पूछताछ का समस्या-विशिष्ट उपागम अपनाती है।

(ख) क्षेत्रीय सर्वेक्षण क्षेत्र या स्थितियों की सामान्य पृष्ठभूमि के बारे में ज्ञान/जानकारी प्रदान करता है, जबकि वृत्त अध्ययन विशेष मुद्दों के साथ जूझती है और अनुसंधान के मुद्दे पर ज्यादा अधिक अन्तर्दृष्टि प्रदान करती है।

3. (क) बाजार क्षेत्र-नियोजन की प्राथमिकताएँ

(i) पार्किंग जगह की व्यवस्था
(ii) अत्यधिक भीड़-भाड़ को कम करने का वैकल्पिक बन्दोबस्त
(ख) पहाड़ी क्षेत्र-नियोजन की प्राथमिकताएँ
(i) परिवहन के लिये व्यवस्था
(ii) पर्यावरणीय पुनरुत्थान

32.2
1. (क) बाजार (ख) नियमित बाजार (ग) सप्ताहिक बाजार (घ) विशिष्ट बाजार
2. (क) परचून बाजार-विशेषताएँ
(i) बिक्री के लिये वस्तुओं की संख्या और विभिन्नता सीमित रहती है।
(ii) यह स्थानीय ठिकाने और आस-पास के स्थानों को वस्तुएँ उपलब्ध करता है।
(ख) थोक बाजार-विशेषताएँ
(i) बिक्री के लिये वस्तुओं की संख्या और विभिन्नता में और विकल्पों का विस्तार काफ़ी होता है।
(ii) कुछ चयनित विशिष्ट मदें होती है और बड़े क्षेत्र व जनसंख्या को मुहैया कराता है।

32.3
1. मलिन बस्ती की विशेषताएँ
(क) प्रति व्यक्ति आय का निम्नस्तर
(ख) न्यूनतम सामाजिक सुख साधनों और सुविधाओं का अभाव
(ग) अस्वच्छता की स्थितियाँ फ़ैली रहती हैं।
2. मलिन बस्ती की जनसंख्या की वृद्धि के लिये उत्तरदायी कारक
(क) बढ़ता हुआ औद्योगिकीकरण और सेवाओं का शहरों में केन्द्रीयकरण
(ख) शहरों में बढ़ता पूँजी विनियोग
(ग) शहरी क्षेत्रों में रोजगार अवसर
3. मलिन बस्ती क्षेत्रों के सुधार के लिये नियोजन प्राथमिकताओं का सुझाव
(क) मूलभूत सामाजिक सुविधाओं और सुख-साधनों के लिये व्यवस्था करना
(ख) पुनर्वास और पुनः अधिवास के कल्याणकारी योजनाएँ प्रारम्भ करना
(ग) स्व. रोजगार के लिये आर्थिक अनुक्रियाओं को सुलभ बनाना

32.4
1. उपयुक्त शब्दः
(क) लगभग 8 प्रतिशत
(ख) खुबा
(ग) पशु
(घ) ऋतु-प्रवास
2. जनजातीय समुदाय की विशेषताएँ :
(क) उत्पादन का पारम्परिक तरीका
(ख) चराई मैदानों का समुदाय द्वारा साझा उपयोग
(ग) पौधों और पशु जीवन का संरक्षण और प्रौन्नति जनजातीय संस्कृति और विरासत का अंत-रंग हिस्सा है।
3. जनजातीय क्षेत्र विकास के नियोजन की प्राथमिकताएँ
(क) सामाजिक सुविधाओं और सुख साधनों की व्यवस्था करना
(ख) वन पारिस्थितिक व्यवस्था का, हरित चरावाहों और वन्य प्रदेशों का झीलों, तालाबों, कुओं, नलकूपों और लघु वाटरशेडों के जरिये पुनर्सृजन करना।
(ग) वन, पशु और कृषि उत्पादों पर आधारित छोटे पैमाने के प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना करना।

32.5
1. उपयुक्त शब्द
(क) पहाड़ी क्षेत्र (ख) गोम्पा, (ग) छक-जोड़े (घ) छितरा हुआ
2. सूची- I का सूची- II के साथ मिलान करें
(क) iii, (ख) i, (ग) iv, (घ) ii,
3. पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिये सुझाया नियोजन
(क) मूलभूत सुख साधानों और सुविधाओं का व्यवस्था करना
(ख) स्थानीय रूप से उपलब्ध कच्चे माल के आधार पर कुटीर उद्योगों को प्रोन्नत करना
(ग) पर्यटन का विकास करना

पाठांत प्रश्नों के संकेत
1. अनुच्छेद 32.1 देखिए
2. अनुच्छेद 32.2 देखिए
3. अनुच्छेद 32.3 देखिए
4. अनुच्छेद 32.4 देखिए
5. अनुच्छेद 32.4 देखिए
6. अनुच्छेद 32.5 देखिए
 

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