व्यर्थ ही बीत गया जैव विविधता वर्ष

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संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष २०१० को जैव –विविधता वर्ष घोषित किया है । ऐसा इसलिए की विश्व भर में जैव –विविधता गहरे संकट में है और इसे भी संरक्षण की जरुरत है। आदम सभ्यता ने अपने ऐश –आराम और सुख सुविधाओं के लिए सब को नजरअंदाज कर प्रकृति और पर्यावरण को बुरी तरह से हानि पहुँचाई है। इस सब से हमारा जैव विविधता चक्र प्रभावित हुआ है।

जैव विविधता को लेकर प्रति दो वर्ष के अंतराल पर संयुक्त राष्ट्र संघ इस पर विचार विमर्श के लिए सम्मेलन आयोजित करता है। इस बार का सम्मेलन अक्टूबर माह में जापान के नागोया शहर में संपन्न हुआ।इस तरह का पहला आयोजन संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन १९९२ में किया था । तब से लेकर अब तक यह आयोजन निरंतर जारी है। विशेषज्ञों के अनुसार जैव विविधता का नुकसान सिर्फ वह ही नहीं है ,जो सामान्यतः हमें दिखता है। बहुत से ऐसे लक्षण है, जो अभी अपना प्रभाव नहीं दिखते किन्तु लंबे समय के बाद हमें ये समझ आता है की जैव विविधता के नुकसान होने से हमारा भी नुकसान हुआ है ।दुनिया भर की लगभग पचास हजार पादप प्रजातियों में से पैंतीस प्रतिशत प्रजातियां आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष रत है। इनके जीवित रहने कि संभावनाएं बहुत ही क्षीण है । वृक्ष, पक्षी, स्तनधारी और कीट-पतंगे की अनेक प्रजातियाँ ऐसी है जो विलुप्त प्राय स्तिथि में है,जिनमें मुख्य रूप से जापानी सरस के साथ चूहे और बिल्लियों तक की अनेक प्रजातियां शामिल है।

इस बड़ी क्षति के बहुत से कारण है जिनमें प्रमुख रूप से वन एवं वृक्षों की कटाई के साथ विकास और शहरीकरण के लिए बढ़ती भूमि की भूख है जो हमारी जैव विविधता को खाए जा रही है ।इन दोनों ही कारणों से मानव जाति के साथ - साथ पादप प्रजातियों का भी संतुलन बिगड कर उन्हें भी खतरे में डाल दिया है। चिंता और परेशानी इस बात की है कि तीव्र रफ़्तार से बढ़ती दुनिया की आबादी से यह सब और ज्यादा बिगड़ने की आशंका है। आज की मानव सभ्यता सिर्फ अपने स्वार्थो और हितों के लिए चिंतित और केंद्रित है, आने वाले कल में हमारा और हमारी अगली पीढ़ियों का क्या होगा उस तरफ से हमारा ध्यान जाने –अनजाने भटक गया है ।बिगड़ी जैव –विविधता की प्रक्रिया ने उन्नत एवं सशक्त पर्वत श्रृंखला से लेकर वृक्षों से आच्छादित वनों को बहुत नुकसान पहुंचाया है ।जबकि ये दोनों ही इस धरती पार जैव –विविधता के पालनहार और संरक्षक है।

दुनिया भर में अनेक देशों ने अपने-अपने संविधान के मुताबिक जैव विविधता को संरक्षित और विकसित करने के कानून बनाये है ,लेकिन हर देश में सरकारी कर्ण-धारों की भ्रष्ट एवं गंदी मानसिकता और कमजोर रीढ़ के राजनेताओं के वजह से आज जैव विविधता संकट में है, इस सब के बाद भी यह ही सब लोग जैव विविधता को सरकारी प्राथमिकताओं में पीछे रखे हुए है इस जैव विविधता के प्रति यह लापरवाही हमारी भारी भूल है।

इन सब के और हमारे भविष्य के सुखद एव सुरक्षित होने के लिए ये बहुत जरूरी है की जितनी भी प्रमुख विकास योजनाएं है चाहे वो राज मार्ग हो या विमान तल ,शहरीकरण हो या उद्योग –धंधों का विस्तार हो , यह सब एक कठोर कानून के दायरे और सतत निगरानी के बीच हो ।मुंबई का आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी का ताजा प्रकरण अपने घपलेबाजी के साथ -साथ पर्यावरण मानकों के उल्लंघन का जीता जागता उदाहरण है। समुद्र तट पर भूमि होने के बाद भी भ्रष्ट राजनेताओं और अफसर –शाही ने अपने मन मुताबिक निर्माण कर लिया। ये सब तो जनता के सामने आ गया पर देश और दुनिया में ना जाने ऐसी कितने भवन होंगे जहाँ पर्यावरण नियमों को ताक पर रख दिया गया होगा।

जैव विविधता सिर्फ जैविक तंत्र, वनस्पति, पक्षी ही नहीं है, अपितु खाद्यान्न सुरक्षा ,स्वच्छ जल पर वायु के साथ एक स्वस्थ पर्यावरण है जो इस धरती पर साँस लेने वाले हर प्राणी के लिए उपलब्ध हो। नागोया जापान की इस बैठक में दुनिया के १९२ राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और यह निश्चित और निर्धारित किया की २०२० तक विशेष रूप से भूमिगत जल, समुद्रीय एवं तटीय क्षेत्र के सहित वो सब जो जैव विविधता से जुड़े है, के ऊपर खास ध्यान दिया जाये। यह भी उल्लेखनीय है कि अमीर देशों ने उनके द्वारा दिए जाने वाली आर्थिक मदद का लक्ष्य निर्धारित करने के प्रस्ताव को आम सभा में पराजित करवा दिया। जो सीधे –सीधे इस आयोजन कि विफलता को इंगित करता है।

ऐसा अगला सम्मेलन सन २०१२ में भारत को आयोजित करना है ।तब तक यह देखना है की जैव विविधता से प्रमुख रूप से प्रभावित खुद भारत की इस दिशा में रीति -नीति क्या रहती है ,और वो दुनिया को अपने पर्यावरणीय आचरण से क्या और कैसा सन्देश देता है। भारत की दुनिया में बढती ताकत और दखलंदाजी से हो सकता की कुछ मजबूत और सशक्त नीतियां इस सम्मेलन से बाहर आयें क्यो कि अब इस तरह के अन्तराष्ट्रीय सम्मेलन महज दिखावा ज्यादा बन गए है जहाँ धनी और विकसित राष्ट्र अपनी मन मर्जी और दादागिरी से सभी निर्णयों को प्रभावित करने लगे है ।इन सम्मेलनों से किसी सार्थक परिणाम की अपेक्षा अब व्यर्थ है क्यो कि कुछ भी ठोस निर्णय या नीति को आगामी बैठकों ने लिए टाल कर, इस प्रकार के सम्मेलन समाप्त हो जातें है।
 

 

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