ये प्रदूषण हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा

29 Nov 2018
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प्रदूषण
प्रदूषण


हर साल 2 दिसम्बर हम ‘नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे’ के रूप में मनाते हैं। क्या आप जानते हैं कि पिछले समय से रोज ही अखबारों में सुर्खियाँ बन रहा प्रदूषण किसी भी प्राकृतिक आपदा से कई गुना ज्यादा खतरनाक है? सरकार और समाज अपना काम कर रहे हैं। सवाल यह है कि प्रदूषण के खिलाफ जंग में आप क्या कर रहे हैं? इस सारे मसले को टटोलता सीएसई के प्रदूषण विशेषज्ञ पलाश मुखर्जी का आलेख

युद्ध और आतंकवाद के नाम से ही हम काँपते हैं, एचआईवी एड्स जैसी गम्भीर बीमारियों के अपने परिवार में किसी को होने की कल्पना करते भी डरते हैं, हम अपने बच्चों में ड्रग्स की लत को लेकर भी गजब के सतर्क हैं, अस्वच्छ पानी को लेकर इतने खौफजदा रहते हैं कि प्यूरीफायर का ही पानी पीते हैं।

प्रदूषण को लेकर हम इतने बेपरवाह क्यों हैं? शायद आपको पता नहीं है कि प्रदूषण युद्ध, प्राकृतिक आपदा और किसी महामारी से भी ज्यादा घातक साबित होता है। शिकागो विश्वविद्यालय स्थित ‘एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट’ की रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण से इंसानी जीवन की औसत जीवन प्रत्याशा 1.8 साल तक कम हो जाती है। यह धूम्रपान, शराब, एचआईवी जैसे मामलों की तुलना में कहीं ज्यादा है।

अध्ययन में औसत जीवन प्रत्याशा धूम्रपान से 1.6 साल, शराब-ड्रग्स से तकरीबन 11 माह, अस्वच्छ पानी-गन्दगी से 7 माह, एचआईवी एड्स से 4 माह और आतंकवाद से 22 दिन तक कम होती पाई गई।

सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. नवनीत सूद कहते हैं, “वो दिन दूर नहीं है जब हर अस्पताल में प्रदूषण जनित बीमारियों का अलग विभाग होगा। इन बीमारियों के मरीज इतनी बड़ी संख्या में आ रहे हैं कि पल्मोनरी जैसे कुछ विशेष विभागों के डॉक्टरों पर काम का दबाव कई गुना बढ़ गया है।”

बदल रहा फेफड़ों का रंग

शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं है, जिस पर प्रदूषण असर नहीं करता है। श्वसन विभाग के एक सर्जन का भयावह अनुभव सुनिये, “मैं तीस सालों से इस प्रोफेशन मेें हूँ। पहले सिगरेट पीने वाले लोगों के फेफड़ों में काले धब्बे हुआ करते थे, बाकियों के फेफड़े स्वस्थ गुलाबी हुआ करते थे। पर अब 80 प्रतिशत मामलों में फेफड़ों पर काले धब्बे देखने को मिलते हैं। यहाँ तक कि किशोर बच्चों के फेफड़ों पर भी काले धब्बे देखने को मिल रहे हैं।”

दिमाग पर भी छाया

दिमाग भी प्रदूषण के असर से अछूता नहीं है। बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ स्टैटिस्टिक्स के लेखक व शोधकर्ता शिन झैंग बताते हैं, “हमें एक अध्ययन में पता चला कि वायु प्रदूषण दिमाग के ‘ वाइट मैटर’ पर ज्यादा असर करता है। वाइट मैटर हमारी भाषा सम्बन्धी क्षमताओं के लिये जिम्मेदार होता है।” यानी लगातार प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वालों में भाषाएँ समझने, लिखने की क्षमता पर भी असर दिखेगा।

दिल पर वार

वायु प्रदूषण जब ट्रैफिक के शोर के साथ मिल जाता है, तो एक खतरनाक कॉकटेल तैयार हो जाती है। यह बात सामने आई है स्विस ट्रॉपिकल एंड पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन में। प्रदूषण के बारीक कण धमनियों में जमकर उन्हें संकरा बना देते हैं, जिससे रक्त संचार बाधित होता है। इससे हार्ट अटैक भी आ सकता है।

पौधों पर भी पड़ता है जबर्दस्त असर

यूनिवर्सिटी ऑफ शैफील्ड के अध्ययन में पता चला है कि प्रदूषण की वजह से पौधों की पत्तियाँ खतरनाक केमिकल्स का निर्माण करती हैं। शोध में पाया गया कि जिन कीड़ों ने इन पौधों की पत्तियाँ खाई, उनका विकास उचित ढंग से नहीं हुआ। यानी पत्तियाँ खाने वाले तमाम कीटों पर प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है। इससे वानस्पतिक विविधता प्रभावित होगी। क्योंकि कीट-पतंगे वनों के विस्तार के लिये अहम भूमिका अदा करते हैं। एक अन्य अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण से फसलों की पैदावार कम हो जाती है।

गर्मी से ही नहीं, प्रदूषण से भी पिघले ग्लेशियर

ग्लेशियर पिघलने के पीछे ज्यादातर लोग ग्लोबल वार्मिंग को कारण समझते हैं, जबकि प्रदूषण भी इसका एक महत्त्वपूर्ण कारक है। सम्बन्धित अध्ययन में जुटे एक ग्लेशियोलॉजिस्ट बताते हैं, “ग्लेशियर्स में तेजी से प्रदूषण कणों की पर्त जम रही है जो इन्हें पिघला रही है। बल्कि प्रदूषण की वजह से ग्लेशियर्स का पिघलना, ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघलने से पहले ही शुरू हो गया था।” भारत का एक व्यक्ति ऐसा है जो लद्दाख में कृत्रिम ग्लेशियर बनाने की मुहिम में जुटा है। लद्दाख में बड़ी संख्या में लोग पानी के लिये ग्लेशियर पर निर्भर हैं। ऐसे में 79 वर्षीय चेवांग नॉरफेल एक खास तकनीक की मदद से कृत्रिम ग्लेशियर बनाने में जुटे हैं। स्थानीय लोग उन्हें ‘आइस मैन’ के नाम से पुकारते हैं।

स्टार्ट अप भी उतरे प्रदूषण से जंग में

स्टार्टअप भी प्रदूषण से दो-दो हाथ करने के लिये नए-नए रचनात्मक तरीके से लेकर आ रहे हैं। छोटे प्राकृतिक जंगल बनाने वाली कम्पनी ‘एफ्फॉरेस्ट’ को स्थापित करने से पहले शुभेंदु शर्मा इंजीनियर थे। उनकी कम्पनी पौधे उगाने की ‘मियावाकी तकनीक’ का इस्तेमाल करती है। इस तकनीक की मदद से कुछ ही सालों में वह स्व-आश्रित जंगल खड़ा कर देते हैं। अब तक वह 48 जंगल उगा चुके हैं। इसी तरह कृषि में बचने वाले उत्पादों से सम्बन्धित कई स्टार्टअप सामने आए हैं। जैसे, दिल्ली का न्यूलीफ नामक स्टार्टअप चावल की भूसी, नारियल के खोल आदि से कृषि उत्पाद संरक्षण और फल पकाने के प्राकृतिक तरीके आजमाता है। बायो-लूशंस कम्पनी खेती के बचे उत्पादों को रेशों में बदलकर टोकरियाँ बनाती है।

आप भी बनें प्रदूषण से जंग में सिपाही

1. पेट में मौजूद ‘वीओसी’ नामक कण प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं, लिहाजा घर की पुताई करवाते समय ‘लो विओसी’ लिखा पेंट ही खरीदें।
2. बिजली बचाएँ। इस तरह आप विद्युत संयंत्रों में कोयले की कम-से-कम खपत में परोक्ष रूप से अपना योगदान देंगे।
3. स्नेक प्लान्ट ड्रैसीनिया, फाइकस, पीस लिली, बैम्बू, एलोवेरा आदि पौधे हवा शुद्ध करने में खास भूमिका निभाते हैं। ये पौधे जितना हो सकता है, लगाएँ।
4. घर में कार हो, तो सहकर्मियों, दोस्तों को जब भी सम्भव हो, लिफ्ट दें।
5. कार/मोटरसाइकिल की सर्विसिंग हमेशा समय पर करवाएँ।
6. कोई निर्माण कार्य हरे कपड़े से ढके बिना चल रहा है, तो सम्बन्धित विभाग में बताएँ।

मधुबनी पेंटिंग को बनाया पेड़ बचाने का हथियार

प्रवीण आचार्य

पेंटिंग केवल कलाकारों और कला प्रेमियों को आनन्द ही नहीं देती, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे सकती है। यह कोई ख्याली पुलाव भर नहीं है, इसे बिहार की मधुबनी पेंटिंग करने वाली महिलाओं ने साबित भी किया है। ये महिलाएँ अपनी कला का उपयोग पर्यावरण को बचाने के लिये कर रहीं हैं।

दरअसल, पिछले कुछ सालों में उत्तर बिहार में वन क्षेत्र में ह्रास होने लगा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है पेड़ों की अन्धाधुन्ध कटाई। लिहाजा, इसे रोकने के लिये मधुबनी पेंटिंग के कलाकारों ने एक अनूठा तरीका खोेज निकाला। ग्राम विकास परिषद नाम के एक गैर-सरकारी संगठन की सचिव सृष्टि नाथ झा ने पेड़ों को बचाने की मुहिम शुरू की और महिलाओं व लड़कियों से इस अभियान से जुड़ने की अपील की।

साल 2013 में शुरू हुई पर्यावरण जागरुकता की ये मुहिम रंग लाई है। आज रामपत्ती और राजनगर के बीच 5 किलोमीटर के वन क्षेत्र का विस्तार न सिर्फ कटाई से बच गया, बल्कि महिलाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति का एक खूबसूरत उदाहरण भी बन गया है। इस वजह से यह इलाका पर्यटकों को भी आकर्षित कर रहा है।

ये महिलाएँ पेड़ों पर मधुबनी पेंटिंग बनाती हैं और ये पेंटिंग अक्सर धार्मिक थीम पर आधारित होती हैं। इस वजह से लोग इन पेड़ों को श्रद्धा से देखने लगते हैं और परिणामस्वरूप पेड़ कटने से बच जाते हैं।

महिलाएँ सबसे पहले पेड़ों के तने को चूने से पेंट करती हैं। इससे पेंटिंग के लिये सफेद बैकग्राउंड तैयार हो जाता है और पेड़ों का बचाव कीड़ों से भी हो जाता है। फिर तने पर राम, सीता, कृष्ण, बुद्ध, महावीर और दूसरे देवी-देवताओं के चित्र उकेरे जाते हैं और पेड़ एक पवित्र स्थल जैसे हो जाते हैं।

प्रदूषित हवा से आगाह कर रहे हैं ये एप

प्रदूषण से बचाव की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है उसके बारे में जानकारी। अगर आपको पता हो कि आपके शहर में प्रदूषण का क्या स्तर है, तो आप उसके अनुसार अपनी बचाव योजना बना पाएँगे। इस काम में एप आपकी काफी मदद कर सकते हैं। हम आपको कुछ ऐसे ही एप्स के बारे में बता रहे हैं, जो वायु प्रदूषण के स्तर के बारे में जानकारियाँ देते हैं।

एयरवेदा

यह एप देशभर में स्थापित विभिन्न एयर क्वालिटी स्टेशनों के आँकड़ों के बारे में जानकारी देता है। इससे आपको अपने शहर में वायु की गुणवत्ता जानने में मदद मिल सकती है। आपको अगर कहीं जाना है, तो आप Airveda एप की मदद से वहाँ की हवा की गुणवत्ता के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं और उसके अनुसार अपनी तैयारी कर सकते हैं। जहाँ बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण है, वहाँ जाने से बच सकते हैं या ऐसे समय में जा सकते हैं, जब वहाँ वायु प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम हो।

प्लूम एयर रिपोर्ट

यह एप आपके शहर में प्रदूषण के स्तर के बारे में रियल टाइम जानकारी देता है और यह भी बताता है कि अगले घंटे में वायु प्रदूषण की स्थिति क्या रहेगी। उसके बाद यह आपको यह सलाह भी देगा कि अत्यधिक प्रदूषण का सामना किये बगैर पसन्दीदा गतिविधि करने का सबसे सही समय कौन-सा होगा। Plume air Report फिलहाल दुनिया के 200 से ज्यादा शहरों में उपयोग हो रहा है, जिसमें नई दिल्ली, न्यूयॉर्क, लन्दन, पेरिस, शंघाई और टोक्यो आदि शामिल हैं।

एयर क्लालिटी/एयर विजुअल

यह एक बहुत उपयोगी एप है, जिस पर आपको ढेर सारे आँकड़े मिल जाएँगे। Air quality Air visual एप विश्व के 10,000 से ज्यादा शहरों के वायु प्रदूषण की रियल टाइम जानकारी देता है, पूर्वानुमान बताता है और मौसम के आँकड़े उपलब्ध कराता है। यह छह प्रमुख प्रदूषकों- पीएम 2.5, पीएम 10, ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की भी रियल टाइम जानकारी देता है। साथ ही प्रदूषण से जुड़ी सेहत को लेकर परामर्श भी देता है।

ब्रीजोमीटर

यह एप आपको हवा की गुणवत्ता के बारे में तुरन्त जानकारी प्रदान करता है। Breezometer यह जानकारी एक मैप के जरिए देता है। यह आपको बताता है कि बाहर की हवा आपके लिये सुरक्षित है या नहीं और आपको कुछ उपयोगी सलाह भी देता है। यह आपको यह भी बताता है कि आपके इलाके में सबसे प्रभावी प्रदूषक तत्व कौन-सा है।

ओइजोम

अहमदाबाद स्थित कम्पनी ओइजोम ने एक ऐसा मोबाइल एप विकसित किया है, जो उपयोगकर्ताओं को दुनिया के 100 शहरों की रियल टाइम वायु गुणवत्ता का विश्लेषण और तुलना करने में मदद करता है।

उपयोगकर्ता इसकी मदद से अपने शहर की वायु गुणवत्ता की तुलना दूसरे शहरों से कर सकते हैं। Oizom हवा में उपस्थित उन विभिन्न प्रदूषकों के बारे में भी जानकारी देता है, जिनकी गणना ‘पार्ट्स पर मिलियन’ (पीपीएम) में की जाती है। इसकी मदद से आप जरूरी एहतियात बरत सकते हैं और प्रदूषण के स्तर के अनुसार अपनी दैनिक गतिविधियों की योजना बना सकते हैं।

एयर क्वालिटी रियल टाइम एक्यूआई

यह एप विश्व के 60 से ज्यादा देशों के रियल टाइम एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को दिखाता है। इसमें भारत, चीन, हांगकांग, मलेशिया, जापान आदि देश शामिल हैं। इसमें हवा की गुणवत्ता के आँकड़ों के स्रोत विभिन्न शहरों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। Air Quality:Real Time AQI पर सम्पूर्ण एक्यूआई, पीएम 2.5 और पीएम 10 के आँकड़े हर घंटे अपडेट किये जाते हैं।

 

 

 

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