यमुना को प्रदूषण से मुक्त रखने का सवाल

जिस प्रकार गंगा नदी को लेकर खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग आंदोलनरत हैं उसी प्रकार यमुना के मुद्दे पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और ब्रज क्षेत्र के लोग गंभीर हैं। ब्रज में यमुना के 24 घाट हैं। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही यमुना नदी ब्रज संस्कृति की संवाहक है। यमुना के बिना ब्रज और ब्रज की संस्कृति का कोई महत्व नहीं है। उत्तराखंड स्थित अपने उद्गम स्थल यमुनोत्री से होती हुई यमुना डाक पत्थर होते हुए मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।

जीवनदायिनी नदियों की अविरल धारा को प्रदूषण मुक्त रखने का मुद्दा आज सबसे ज्वलंत मुद्दा है। इस मामले में सरकारी उदासीनता ने जनता को आन्दोलनों के लिए बाध्य किया है। सरकार अगर शुरूआत से ही गंभीर होती तो गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए साधु संतों और पर्यावरण प्रेमियों को अनशन-आंदालनों के लिए बाध्य नहीं होना पड़ता। आज यह मुद्दा केवल गंगा नदी की प्रदूषण मुक्ति तक ही सीमित नहीं रह गया है। देश की अन्य नदियों में बढ़ते प्रदूषण का मुद्दा भी विस्फोटक रूप ले सकता है। बड़े स्तर पर न सही लेकिन, क्षेत्रीय स्तर पर इस निमित्त आंदोलनों की चिंगारी सुलगने लगी हैं। आज मोक्षदायिनी गंगा, यमुना, ताप्ती, गोमती, घाघरा, बेतवा, सरयू, राप्ती, काली, केन, आमी आदि नदियां बुरी तरह प्रदूषण की मार झेल रही हैं। कभी बेतवा के जल का सेवन क्षयरोगियों के लिए औषधि स्वरूप होता था, लेकिन आज सीधे-सीधे इसके जल को स्पर्श करने से भी लोग बचते हैं।

गंगा की भांति यमुना की स्वच्छता के मुद्दे को लेकर भी आंदोलन की चिंगारी फूट चुकी है। अगर सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया तो यह भी विकराल रूप धारण कर सकती है। यमुना के मुद्दे को लेकर पिछले वर्ष बरसाना (मथुरा) स्थित मान मंदिर के महंत रमेश जी के आह्वान पर इलाहाबाद (संगम) से दो मार्च 2011 को शुरू हुई ‘यमुना यात्रा’ कई शहरों से होती हुई 45 दिन बाद दिल्ली पहुंची थी। यात्रा के पड़ाव में यमुना के संरक्षण को लेकर कई जगह महापंचायतें आयोजित की गई। 15 अप्रैल को इसके दिल्ली पहुंचने पर इसमें शामिल सैकड़ों आंदोलनकारियों ने जंतर-मंतर पर धरना दिया और चार दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे रहे। इसके बाद सरकार ने एक निरीक्षण समिति गठित की जिसमें केंद्रीय जल आयोग, योजना आयोग, हरियाणा सिंचाई विभाग, दिल्ली जल बोर्ड, पर्यावरण व वन मंत्रालय और यमुना बचाओ आंदोलन के छह सदस्य शामिल किए गए। निरीक्षण समिति ने हथिनीकुंड बैराज, वजीराबाद बैराज और ओखला बैराज का दौरा कर खानापूर्ति पूरी कर ली लेकिन कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाए गए।

कुल मिलाकर सरकार करीब एक वर्ष तक इस मामले में चुप्पी साधे बैठी रही। सरकार के इस लचर रवैये से क्षुब्ध साधु-संत, ब्रजवासी और किसान अखंड संकीर्तन के साथ एक फरवरी 2012 से मथुरा के केशीघाट पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं। आंदोलकारी 29 मार्च को यमुना जयंती के मौके पर हथिनीकुंड (हरियाणा) तक शांति मार्च कर यमुना को मथुरा आने का आमंत्रण देंगे। जिस प्रकार गंगा नदी को लेकर खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग आंदोलनरत हैं उसी प्रकार यमुना के मुद्दे पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और ब्रज क्षेत्र के लोग गंभीर हैं। ब्रज में यमुना के 24 घाट हैं। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी रही यमुना नदी ब्रज संस्कृति की संवाहक है। यमुना के बिना ब्रज और ब्रज की संस्कृति का कोई महत्व नहीं है।

जीवनदायिनी यमुना अब नाले में तब्दील होतीजीवनदायिनी यमुना अब नाले में तब्दील होतीउत्तराखंड स्थित अपने उद्गम स्थल यमुनोत्री से होती हुई यमुना डाक पत्थर होते हुए मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। यहां नदी की अविरल जलधारा एक बांध के माध्यम से नियंत्रित की जाती है एवं सिचाई और विद्युत उत्पादन के लिए नहर में बांट दी जाती है। डाक पत्थर के नीचे प्रसिद्ध सिख धार्मिक केंद्र पोंटा साहिब से होती हुई यह हरियाणा में हथिनीकुंड पहुंची हैं। गर्मियों में हथिनीकुंड से आगे जल का प्रवाह पूर्णत:नियंत्रित कर दिया जाता है। वजीराबाद में नदी को दिल्ली नगर की पेयजल आपूर्ति के लिए फिर रोक दिया जाता है। वजीराबाद से आगे यमुना में विभिन्न नालियों और नहरों का पानी आता है जिसे पुन: ओखला बांध पर रोक सिंचाई के लिए आगरा नहर में मोड़ दिया जाता है। इस प्रकार देखें तो यमुना में केवल दिल्ली के नालों और फैक्टरियों का गंदा पानी प्रवाहित हो रहा है।

यमुना की सफाई के लिए यमुना एक्शन प्लॉन प्रथम (1993-2003), यमुना एक्शन प्लॉन द्वितीय (2004 के बाद) और यमुना एक्शन प्लॉन तृतीय में हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं लेकिन परिणाम अब तक निराशाजनक ही रहा है। अगर सरकार नदियों खासकर गंगा-यमुना की स्वच्छता के मुद्दे पर अब भी गंभीर नहीं हुई तो भविष्य में इसके बहुत घातक परिणाम सामने आएंगे।

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