यत्र-तत्र-सर्वत्र पानी ही पानी

16 Mar 2010
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पृथ्वी की सतह पर पानी समुद्र, नदियों, झीलों से लेकर बर्फ से ढंके क्षेत्रों के रूप में मौजूद है। पानी का सबसे बड़ा स्रोत समुद्र है जहाँ धरती का 97.33% पानी पाया जाता है। समुद्र के पानी में अनेक प्रकार के लवण एवं खनिज घुले होते हैं जिसकी वजह से वह खारा होता है। भार के अनुसार समुद्र जल में 3.5% लवण खनिज होते हैं। हमारी धरती की सतह का 70.8% भाग पानी से घिरा है। धरती के कुल पानी का 2.7% से भी कम हिस्सा सादा जल है जो हमारे उपयोग का है। सादे जल का अधिकांश हिस्सा ध्रुवीय प्रदेशों में बर्फ के रूप में जमा है। ध्रुवों में दक्षिण ध्रुव में पानी की मात्रा कहीं ज्यादा है। यहां करीब एक करोड़ पचास लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बर्फ से ढका है। यह क्षेत्र पूरे भारत के क्षेत्रफल से लगभग पांच गुना ज्यादा है। दक्षिणी ध्रुव पर जमी बर्फ राशि इतनी विशाल है कि यदि वह पिघल जाये तो धरती की सभी नदियों को अगले एक हजार साल तक पानी मिल सकता है। प्रत्येक वर्ष दक्षिणी ध्रुव और हिमनदों से लगभग 5000 हिमखंड टूट-टूटकर अलग हो जाते हैं जिनका कुल द्रव्यमान एक हजार अरब घनमीटर होता है। यदि ध्रुवों और हिमनदों पर जमी सारी बर्फ पिघल जाये तो समुद्र का जलस्तर 60 मीटर बढ़ जायेगा। एक आकलन के अनुसार समुद्र में 13 करोड़ 50 लाख घन किलोमीटर पानी मौजूद है। यदि धरती की सतह पूरी तरह समतल कर दी जाये तो सारी धरती पानी में डूब जायेगी और सतह पर मौजूद पानी की सतह की ऊंचाई 4000 मीटर होगी। यदि समुद्र में पानी में घुले खनिज और लवण को अलग करके पृथ्वी की सतह पर फैला दिया जाए तो 160 मीटर ऊंची परत बन जाएगी। धरती पर सबसे ऊंची जगह हिमालय का एवरेस्ट शिखर है। लेकिन सबसे गहरी जगह प्रशांत महासागर में स्थित मैरिआना ट्रेंच इतनी गहरी है कि उसमें एवरेस्ट भी पूरी तरह डूब जायेगा।

भू वैज्ञानिक पृथ्वी की आयु लगभग 4.6 खरब साल आंकते हैं। यदि इस पूरे काल को एक वर्ष के समतुल्य मानें तो धरती पर महासागर का जन्म मार्च में, पहले जीव का जन्म अगस्त महीने में और पहले मनुष्य का जन्म 31 दिसंबर को 22.30 बजे हुआ। इस भूवैज्ञानिक पैमाने पर आधुनिक मानव का जन्म 24.00 बजे (मध्यरात्रि) से मात्र 7 सेकेंड पहले हुआ।

धरती पर पानी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को जलविज्ञानी अथवा हाइड्रोलॉजिस्ट कहते हैं। वे पानी के विभिन्न रूपों एवं उनके मध्य आपसी संबंधों का अध्ययन करते हैं जिसे जलचक्र कहते हैं। धरती का जलचक्र वर्षा से शुरू होता है। जलचक्र सूर्य के विकिरण द्वारा नियंत्रित होता है। सौर विकिरण से सभी जल स्रोतों से पानी निरंतर वाष्पित होता रहता है। इन्हीं जलवाष्पों से बादल बनते हैं। वातावरण में ऊपर तापमान कम होता है। जिससे ये बादल द्रवजल में संघनित हो जाते हैं। पानी की बूंदें भार के कारण हवा में टिक नहीं पातीं और गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती पर गिरती हैं। इसे हम बरसात कहते हैं। बरसात का कुछ पानी जमींन में सोख लिया जाता है, जबकि कुछ पानी बहकर नदी-नालों द्वारा समुद्र में जा मिलता है। इस जलचक्र के कई उपचक्र भी होते हैं। वर्षा का सबसे बड़ा स्रोत समुद्र है क्योंकि वहीं से पानी वाष्पन द्वारा वातावरण में पहुंचता है। पानी अपनी यात्रा में तमाम रास्तों से गुजरते हुए अंततः महासागर में जा मिलता है। इसलिए समुद्र का पानी कमोबेश यथावत बना रहता है। कभी-कभी तापमान कम होने से बादलों में मौजूद पानी जम जाता है। और हिमपात के रूप में धरती पर गिरता है। जब कभी हिमकण आपस में जुड़कर बर्फ के गोलों का आकार ले लेते हैं और धरती पर गिरते हैं तब इसे ओलावृष्टि कहते हैं।

सारणी1

धरती पर पानी का वितरण

स्रोत

आयतन/103 कि.मी.3

कुल मात्रा का प्रतिशत

लवण जल

 

 

महासागर

1348000

97.33

खारे पानी की झीलें तथा अंतस्थली सागर

105(अ)

0.008

सादा जल

 

 

ध्रुवीय बर्फ एवं हिमनद

28200

2.04

भूमिगत जल

8450

0.61

झीलें

125(ब)

0.009

मृदा आर्द्रता

69

0.005

वातावरणी जलवाष्प

13.5

0.001

कुल योग

1385000

100.00



जल-जीवन का अभिन्न अंग


जैसा कि पहले बताया जा चुका है, पानी प्रकृति में उपस्थित प्रत्येक सजीव का अभिन्न अंग है। यह केवल इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि बिना भोजन के आदमी कई सप्ताह तक जिंदा रह सकता है, लेकिन पानी के बिना वह केवल कुछ दिन ही जीवित रह सकता है। सजीवों के शरीर का दो तिहाई से तीन-चौथाई भाग पानी होता है। जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों में पानी का प्रतिशत उनकी प्रकृति पर निर्भर करता है।

जीवों में पोषण के लिए जरूरी आहार पानी द्वारा ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है। रक्त की प्लाज्मा का अधिकांश हिस्सा पानी ही होता है। प्लाज्मा में अनेक एंजाइम, हार्मोन और जरूरी तत्व घुले होते हैं। जल के बिना जीवन की कोई भी प्रक्रिया संपादित नहीं हो सकती। हालांकि विषाणु इसके अपवाद हो सकते हैं। लेकिन यहां यह उल्लेखनीय है कि विषाणु भी तभी जीवित कहलाते हैं जब वे किसी सजीव के शरीर में प्रविष्ट होते हैं अन्यथा यदि उन्हें शरीर के बाहर रख दिया जाये तो वर्षों तक वैसे ही निर्जीव पड़े रहते हैं। इसीलिए विषाणुओं को सजीव और निर्जीव के बीच की कड़ी कहते हैं।

भार के अनुसार मनुष्य के शरीर का 60-70% भाग पानी होता है। हम लोग हर दिन और हर समय अपने शरीर से पानी त्यागते हैं। सांस, पसीने और मुख्य रूप से मूत्र के माध्यम से शरीर से पानी निकलता है। शरीर द्वारा पानी उत्सर्जित करने की दर परिस्थितियों पर निर्भर करती है। आराम की स्थिति में पानी उत्सर्जन की दर 75-300 मिलीलीटर प्रतिघंटा होती है। श्रम करते समय यह दर बढ़कर 3 लीटर प्रति घंटे तक पहुंच सकती है। अतः श्रम करते समय हमें ज्यादा-से-ज्यादा पानी पीना चाहिए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो हमारे शरीर में पानी की कमी (निर्जलन) हो सकती है। प्राणियों विशेष रूप से स्तनधारी वर्ग के जीवों में पानी की कमी से अनेक जटिलताएं पैदा हो जाती है। और कभी-कभी मृत्यु भी हो सकती है। चिकित्सक सामान्य स्थितियों में एक वयस्क व्यक्ति को रोजाना 8 गिलास पानी पीने की सलाह देते हैं। यदि किसी स्तनधारी प्राणी से उसके शरीर के भार का 15% पानी निकल जाये तो यह उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता है। यही कारण है कि हैजा, पेचिश एवं अतिसार जैसी स्थितियों में रोगी को पर्याप्त मात्रा में ग्लूकोज और खनिज लवण युक्त पानी दिया जाता है।

मनुष्य के शरीर के कुल पानी का 4% प्लाज्मा के रूप में उसके खून में पाया जाता है। कोशिकाओं में शरीर का 40% पानी पाया जाता है जबकि कोशिकाओं के बीच मौजूद पानी की मात्रा 16% होती है। पानी हमारे शरीर के हर भाग में पाया जाता है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि हमारी हड्डियों और बालों में भी पानी पाया जाता है। हमारे दांतों की बाहरी परत (इनामेल) में भी पानी पाया जाता है। जो हमारे शरीर का सबसे कठोर भाग है। पानी सचमुच हर जगह मौजूद है।

सारणी 2

इशेरीशिया कोलाई और स्तनधारी प्राणी की कोशिकाओं के प्रमुख अणु घटक

घटक

ई. कोलाई जीवाणु

स्तनधारी कोशिका

पानी

70

70

प्रोटीन न्यूक्लिक अम्ल

15

18

राइबोन्यूक्लिक अम्ल (आर.एन.ए.)

6

1.1

डिआक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (डी.एन.ए.)

1

0.25

कार्बोहाइड्रेट

3

2

फास्पोलिपिड्स

2

3

अन्य लिपिड्स

-

2

अन्य चयापचयी पदार्थ

2

3

अकार्बनिक आयन

1

1

कोशिका का आपेक्षिक आयतन

1

2000

संपूर्ण कोशिकाओं का आयतन

2x10-12 सेमी3

4x10-9 सेमी3



प्रस्तुत आलेख 'जल जीवन का आधार' पुस्तक से लिया गया है। लेखक कृष्ण कुमार मिश्र ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1992 में रसायन विज्ञान में पीएच-डी. की उपाधि प्राप्त की है। संप्रति टाटा मौलिक अनुसंधान संस्थान (टीआईएफआर) मुबंई, के होमी भाभा विज्ञान शिक्षण केंद्र में वह फैलो हैं। डॉ. मिश्र एक सक्रिय एवं सक्षम विज्ञान लेखक हैं। उन्होंने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की दिशा में विज्ञान के अनेक विषयों पर, विशेषकर हिंदी भाषा में व्यापक तौर पर लिखा है।

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