कंवर्जेंस और समुदाय की सहभागिता से जल जीवन मिशन में आएगा स्थायित्व
मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 60 फीसदी से ज्यादा घरों में सुरक्षित एवं कार्यशील घरेलू नल कनेक्शन दिया जा चुका है। एक ओर इसे सौ फीसदी तक ले जाने के लिए विभाग एवं स्वैच्छिक संस्थाएं समुदाय को साथ लेकर सघनता से काम कर रही हैं, तो दूसरी ओर क्रियाशील कनेक्शन एवं व्यवस्था में स्थायित्व लाने का प्रयास भी किया जा रहा है। जल जीवन मिशन से जुड़ी चुनौतियों एवं अनुभवों को साझा करने के लिए समर्थन संस्था ने अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन और नीति विश्लेषण संस्थान, भोपाल, जल जीवन मिशन, डब्ल्यू. एच. एच., जर्मन कोऑपरेशन, वाटर एड इंडिया, परमार्थ, जागरण लेकसिटी यूनिवर्सिटी सहित अन्य संस्थाओं एवं विकास एजेंसियों के साथ भोपाल में दो दिवसीय राज्य स्तरीय विमर्ष एवं जन सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें 300 से ज्यादा जमीनी कार्यकर्ता एवं शासकीय कर्मचारियों, जन प्रतिनिधियों ने अधिकारियों एवं स्वैच्छिक संस्थाओं के वरिष्ठों के साथ अपने अनुभवों एवं जमीनी चुनौतियों को साझा किया।
इस अवसर पर मध्यप्रदेश शासन की लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्रीमती संपतिया उइके ने कहा कि जहां स्वयंसेवी संस्थाओं एवं स्वैच्छिक संस्थाओं की सहभागिता रही है, वहां योजना का संचालन सफलतापूर्वक हो रहा है। डीपीआर बनाने में स्थानीय समुदाय एवं संस्थाओं का सहयोग लिया जाए, ताकि संचालन में कोई कमी न रह पाए। इस संवाद के अनुभवों से क्रियान्वयन को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री मलय श्रीवास्तव ने कहा कि स्थायित्व के मुद्दों का समाधान जरूरी है। पंचायत और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी के साथ-साथ अन्य विभागों के बीच कंवर्जेंस करना होगा। बिजली बिल, कर वसूली, 15वें वित्त की राशि का उपयोग, मानदेय, संचालन और रखरखाव जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर विभागीय स्तर पर आगे मंथन किया जाएगा।
समर्थन के कार्यकारी निदेशक डॉ. योगेश कुमार ने कहा कि जल जीवन मिशन का लक्ष्य सभी घरों तक सुरक्षित एवं कार्यशील घरेलू नल कनेक्शन देने के साथ-साथ इसमें
स्थायित्व लाना भी जरूरी है। इसके लिए सहभागिता एवं विकेन्द्रीकृत व्यवस्था जरूरी है।
नीतिगत प्रावधानों एवं जमीनी अनुभवों और चुनौतियों को समझने के बाद जो मुद्दे निकलकर आए हैं, उन पर आगे कार्य करने की जरूरत है। दो दिनों की इस चर्चा ने भविष्य के लिए रास्ते को ढूंढ़ा है। सम्मेलन में आए मुद्दों को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार किया जाएगा, जिसे संबंधित विभागों के साथ साझा किया जाएगा। आगा खान फाउंडेशन के वाश एंड हेल्थ डायरेक्टर असद उमर ने कहा कि हमें जलवायु परिवर्तन की स्थितियों को समझना होगा और स्थायित्व के लिए वाटर रिचार्ज एवं कैचमेंट को बेहतर करने जैसे पहलुओं की ओर भी ध्यान देना होगा।
वाटर एड इंडिया के मुख्य कार्यकारी वी. के. माधवन ने विमर्श में आए मुद्दों को साझा करते हुए बताया कि सहभागिता बढ़ने से नल जल व्यवस्था का संचालन एवं रखरखाव सुचारू तरीके से हो रहा है। समस्याओं के समाधान के लिए एक टोल फ्री नंबर होना चाहिए। वाटर टेस्टिंग रिपोर्ट ग्रामीणों के साथ साझा किया जाना चाहिए। जल सहेलियों एवं जल मित्रों को लेकर एक राज्य स्तरीय कैडर बनाया जा सकता है। पेयजल की उपलब्धता में समानता हो एवं छूटे हुए टोलों एवं परिवारों तक पहुंच बढ़ाया जाना चाहिए। स्थानीय जल स्रोतों को बेहतर करने एवं नए जल स्रोत बनाने के लिए भी कार्य करने की जरूरत है। ग्रे वाटर प्रबंधन पर भी काम करना होगा। हमें वाटर सिक्योर विलेज से आगे बढ़कर वाशय सिक्योर विपेज के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे।
परमार्थ संस्था के सचिव संजय सिंह ने बताया कि समुदाय की भागीदारी से ही समावेशी तरीके से काम हो सकता है और उनकी सहभागिता से स्थायित्व को हासिल किया जा सकता है। बुंदेलखंड में जल सहेलियों की बदौलत बेहतर कार्य हुआ है। जल निगम के प्रबंध संचालक श्री वी. एच. चौधरी कोसलानी ने कहा कि स्थानीय स्तर पर पानी बचाने के उपाय करने होंगे। नल से पानी आने पर पानी का दुरूपयोग भी हो रहा है। इसके प्रति लोगों को जागरूक करना होगा।
इस कार्यक्रम में एग्रीकल्चर प्रोडक्शन कमीश्वर श्री एस. एन. मिश्रा, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सेक्रेटरी जनरल श्री भरत लाल, जागरण लेकसिटी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पी. के. बिस्वास, वाटर एड इंडिया के श्री अमर प्रकाष एवं सुश्री ताषा महंता, राजस्थान की उन्नति संस्था की सुश्री स्वप्नि, सर्वोदय समाज जन कल्याण परिषद के श्री मनीष राजपूत, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता श्री श्याम बोहरे सहित कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए।