पर्यावरण जागरूकता विकसित करने में सोशल मीडिया की भूमिका
पर्यावरण जागरूकता की दिशा में आज भारत सहित दुनियाभर की अनेकों सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाएँ प्रयास कर रहीं हैं। लोगों में पर्यावरण के प्रति जन-जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए आज इंटरनेट तथा सोशल मीडिया भी एक महत्वपूर्ण जरिया साबित हुआ है। व्यापक पैमाने पर जीव-जंतुओं का दस्तावेज रखने वाली आईयूसीएन (IUCN) जैसी तमाम वेबसाइटों पर लोग आसानी से दुनिया के दुर्लभ जीव जंतुओं के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं। टेलीविजन, अखबार और पत्र-पत्रिकाओं के अलावा फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब जैसे माध्यमों द्वारा भी लाखों-करोड़ों लोगों को पर्यावरण संरक्षण एवं विभिन्न समस्याओं के बारे में जागरूक करने में कामयाबी हासिल हुई है। सर्पदंश भी आज हमारे भारत देश के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है और इसका समाधान है जनजागरूकता। सर्पदंश से बचाव एवं जागरूकता हेतु आज सोशल मीडिया की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ग्राउंड लेवल पर सर्पदंश के प्रति जनजागरूकता का प्रसार करने के अलावा सोशल मीडिया को भी जागरूकता का माध्यम बनाने का विचार हम जैसे कुछ गिने-चुने पर्यावरण शोधकर्ताओं के मन में उत्पन्न हुआ और हमने आपस में मिलकर एक मुहिम ही छेड़ दी जिसका प्रमुख लक्ष्य "सांपो से मनुष्य की और मनुष्यों से सांपो की" सुरक्षा करना है।
बारिश के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के घरों में सांपो का घुस आना एक बेहद सामान्य सी बात है लेकिन यही सामान्य सी लगने वाली बात लाखों लोगों को हमेशा भयग्रस्त बनाये रखती है और हजारों लोगों के लिए जानलेवा साबित होती है। सांप ही धरती ग्रह पर एकमात्र ऐसा प्राणी है जिससे इंसान सबसे ज्यादा डरता है जो कि सहज और स्वाभाविक है। सांपो का नाम मात्र सुनने से ही कई लोगों की रूह कांप जाती है जिसका कारण भी बिल्कुल स्पष्ट है और वो है सर्पदंश से होने वाली मौतें। सांपो से भला किसे डर नहीं लगता? कोई भी मनुष्य नहीं चाहता कि उसके घरों के आस-पास सांपो की मौजूदगी हो। यहाँ तक कि कुछ लोगों का बस चले तो वो पूरी धरती को ही सर्पों से विहीन कर दें। सांपो को लेकर हमारा ये भय सांपो के बारे में प्रचलित भ्रांतियों एवं अजागरूकता के चलते भी है।
विंध्य इकोलॉजी रिसर्च संस्था में एक पर्यावरण शोधकर्ता के तौर पर मैं पिछले करीब एक दशक से कई वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन संगठनों के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रयासरत हूँ। सर्पों, पक्षियों तथा वन्यप्राणियों के बारे में जन-जागरूकता का प्रसार करने के उद्देश्य से मैंने प्रसिद्ध वन्यजीव विशेषज्ञ श्री ओमप्रसाद सोहनी, मशहूर सर्प विशेषज्ञ श्री विवेक शर्मा, सर्पमित्र प्रकाश जोशी और अनंत भोयार जैसे कई प्रकृति प्रेमी लोगों के साथ लम्बे समय से प्रयास किये हैं जिसके परिणाम बेहद सुखद रहें हैं। हालाँकि सर्पदंश से बचाव एवं जागरूकता के लिए अभी कठिन प्रयासों की जरूरत है फिर भी आज हमारे प्रयासों की बदौलत विभिन्न राज्यों के हजारों लोग विषैले एवं गैर-विषैले सांपो की सटीक पहचान करने में कुशल हो चुके हैं। सर्पदंश चिकित्सा के लिए अब लोग नीम हकीम के चक्कर में ना पड़कर एंटीवेनम की उपलब्धता वाले अस्पताल में जातें हैं ये हमारे प्रयासों का सुखद परिणाम है। ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश जैसी घटनाओं को रोकना तथा सांपो की जैवविविधता के संरक्षण को प्रोत्साहित करना हमारा मुख्य लक्ष्य है। सांपो की प्रकृति के संतुलन एवं फसलों की सुरक्षा में अहम भूमिका होती है जिसके मद्देनजर हम लोगों को सांपो के महत्व के बारे में भी जागरूक करते हैं। चूंकि अपने लम्बे अर्से के अनुभवों में मैंने पाया है कि आज देश के अधिकांश लोगों को सांपो की उचित पहचान मालूम नहीं है जिसकी वजह से मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। कौन-सा सांप विषैला है और कौन-सा विषहीन यदि इस बारे में आमजन खासतौर से ग्रामीण समुदाय के लोगों को उचित प्रामाणिक वैज्ञानिक जानकारी बताकर उन्हें जागरूक किया जाये तो सर्पदंश की घटना एवं सांपो के बारे में व्याप्त डर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर किसी व्यक्ति को कोई सांप काट लेता है और यदि उसे उस सांप के विषैले अथवा विषहीन होने की जानकारी ना हो तो वो डर तथा असमंजस में पड़ जायेगा जैसा कि अक्सर होता है लेकिन जब लोगों को पता होगा कि उन्हें किसी विषैले नहीं बल्कि विषहीन सांप ने काटा है तो उनकी चिंता और घबड़ाहट काफी हद तक कम हो जायेगी। करैत (Krait) एक अत्यंत विषैला सांप है जिसके काटने पर लोगों में घबड़ाहट होना स्वाभाविक है लेकिन यदि पनिहा सांप (Asiatic water snake) जो कि विषहीन होता है तथा जिसे वैज्ञानिक भाषा में चेकर्ड कीलबैक के नाम से जानते हैं उसके काटने पर लोगों में उतनी चिंता नहीं होगी क्योंकि अधिकतर लोग जानते हैं कि ये एक विषहीन सांप है। अतः हम इस बात पर मुख्य रूप से जोर देते हैं कि लोगों को विषैले एवं गैर-विषैले सांपो में फर्क पता हो। उचित जानकारी एवं जागरूकता किसी भी समस्या के समाधान के लिए बेहद जरूरी है और यही बात सर्पदंश के मामले में भी लागू होती है।
बरसात के दिनों में खेत-खलिहानों और मेड़ों में बनी बिलों में पानी भर जाने के कारण कई सांप भोजन एवं सुरक्षा की तलाश में घर में घुस आते हैं। कई विषैले और विषहीन सांप तो हमारे घरों में लम्बे दिनों तक अड्डा ही बना लेते हैं। घरों की अंधेरी जगहों और अनाज रखने वाले स्थानों पर सांप आकर छिप जाते हैं। ऐसे में लोगों का भय और चिंतित होना जायज है। प्रायः देखा जाता है कि लोग हर सांप को अज्ञानतावश विषैला ही मानते हैं जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। दुनियाभर में मौजूद हजारों प्रजातियों में से मात्र कुछ ही सांप विषैले हैं अन्यथा अधिकांश सांप तो विषहीन ही होतें हैं। अतः ऐसी स्थिति में यदि लोग कुछ जरूरी बातों पर विशेष रूप से ध्यान दें तो वो सांपो के घर में आने के डर से छुटकारा पा सकतें हैं और इससे सर्पदंश जैसी जानलेवा घटना को भी कम किया जा सकता है।
अक्सर सांप हमारे घरों की दीवारों में बनी दरारों और छिद्रों तथा खिड़कियों के माध्यम से ही घर में प्रवेश करते हैं। दरअसल घरों में घुसने के लिए सांप ऐसी जगह ढूंढ़ते रहते हैं जहां से वो घरों में घुस सकें अतः हमें घर की दीवारों में मौजूद सभी दरारों और छिद्रों को सीमेंट-बालू आदि का प्रयोग कर जाम कर देना चाहिए क्योंकि सांप उसमें ही आकर छिप जाते हैं। यदि पूरे मकान को ही प्लास्टर करवा दिया जाए तो और भी बेहतर होगा क्योंकि सांप बिना प्लास्टर की हुई ईंटों वाली दीवारों में बने गैप के सहारे ही छत पर चढ़ जाते हैं अतः प्लास्टर मकान इस दृष्टिकोण से बेहद सुरक्षित तरीका होगा। घर से चूहों को तो बिल्कुल दूर ही रखना चाहिए क्योंकि अधिकतर सांप चूहों की तलाश में ही घर में घुसते हैं। घर के आस-पास घास-फूस और कचरे का ढेर इकट्ठा ना होने दें। घर की खिड़कियों में महीन पारदर्शी जाली लगवा दें ताकि हवा और रोशनी तो आये लेकिन सांप ना घुस सकें। सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें और जमीन पर कभी ना सोयें। रात को हमेशा टॉर्च का प्रयोग करें और घर में रात्रि के समय चारों ओर उजाला बनाये रखें। जूते पहनते समय एक बार उसका भलीभांति निरीक्षण कर लें क्योंकि कई बार इंसान बिना झाड़े जूते पहन लेता है और उसमें सांप घुसे रहते हैं। इसी तरह बैग का भी निरीक्षण कर लेना चाहिए। कई बार सांप गमलों में भी छिपे रहते हैं अतः निरीक्षण करते रहना जरूरी है। घर-आंगन में ईंटें, उपले और लकड़ी का ढेर इकट्ठा होने पर सांपो को उनमें छिपने का मौका मिल जाता है इसलिए ऐसे ढेर को इकट्ठा ना करें। खेत-खलिहानों में कृषि कार्यो के दौरान विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है चूंकि खेतों मेड़ों में बहुत सारे सांपो का आशियाना होता है। बारिश के मौसम में ग्रामीण इलाकों के लोगों को सतर्क रहना चाहिए। लोगों को अपने क्षेत्र के सांप पकड़ने वाले लोकल एरिया के स्नेक रेस्क्यूयर का मोबाइल नंबर हमेशा अपने पास रखना चाहिए ताकि सांप घर में घुस जाये तो स्नेक कैचर (सर्पमित्र) को बुलाकर उसे घर से बाहर छुड़वाया जा सके। कहने का तात्पर्य यही है कि घर में एक भी ऐसी जगह या स्पेस ना छोड़ें जिससे कि सांपो को घर में घुसने का मौका मिले। चूंकि सांप बेहद पतले और लम्बे आकार के मांसाहारी जीव हैं जो थोड़ी-सी भी जगह पाकर घर में घुस सकते हैं।
हमारे भारत देश में सांपो की करीब 300 प्रजातियाँ पायी जाती हैं लेकिन इनमें से मात्र कुछ ही सांप विषैले होते हैं। कॉमन करैत (Common krait), नाग (Indian cobra), रसेल्स वाइपर (Russell's viper) और सॉ-स्केल्ड वाइपर (Saw-scaled viper) ये हमारे देश के चार सबसे विषैले सांप हैं जिनके काटने से देश में सबसे ज्यादा मौते होती हैं। इन्हें बिग-4 भी कहा जाता है। ये विषैले सांप कुछ हिस्सों को छोड़कर लगभग पूरे भारत भूमि में सामान्य तौर पर मिलते हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल 50 हजार लोगों की मृत्यु सर्पदंश के चलते होती है और इनमें से भी 95 फीसदी मौतें बारिश के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं। अतः सर्पदंश होने पर झाड़फूंक और जड़ी-बूटी के चक्कर में समय ना गंवाते हुए सीधे हास्पिटल जायें क्योंकि एंटीवेनम ही सर्पदंश का एकमात्र प्रामाणिक वैज्ञानिक उपचार है। धामन (Rat snake), दोमुंहा (Red Sand Boa), हरहरा/सीता की लट (Striped keelback), पनिहा (Checkered keelback), सांखड़ (Wolf snake) आदि ये सांप विषैले नहीं होते अतः इनके काटने पर घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन चाहे सांप विषैला हो या विषहीन यदि काट ले तो डाक्टर से सम्पर्क अवश्य करें। हो सके तो अपने आस पास के परिवेश में पाये जाने वाले सांपो के बारे में भी जानकारी रखें कि कौन-सा सांप विषैला है और कौन-सा विषहीन। आज के आधुनिक मेडिकल साइंस के युग में भी गांवों से सटे पीएचसी और सीएचसी जैसे सरकारी अस्पतालों में एंटीवेनम की उपलब्धता ना होने के कारण सर्पदंश होने पर लोग चिकित्सा के अभाव में अपनी जान गंवा देते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों को इस बात को प्रमुखता से ध्यान देने की जरूरत है। जब तक गांव से सटे सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में एंटीवेनम उपलब्ध नहीं हो जाता सर्पदंश से होने वाली मौतों का सिलसिला जारी रहेगा।
अधिकांश लोगों द्वारा अनेकों प्रकार के पौधों के बारे में बताया जाता है कि इन पौधों को घर के आस-पास लगा देने से सांप घर में नहीं आयेंगे लेकिन इसमें तनिक भी वैज्ञानिक सच्चाई नहीं है। सांपो से छुटकारा पाने हेतु जिन पौधों के बारे में इतना जोर-शोर से बताया जाता है उन पौधों में भी कई बार अनेकों सांप छिपे हुए पाये गये हैं। कोई भी पौधा हो या घास-फूस यही सब तो सांपो के रहने के अड्डे हैं। झाड़ियों और पौधों के झुंड में ही छिपकली, चूहे, मेढक और गिरगिट आदि जीव सांपो को खाने के लिए आसानी से मिलते हैं। आज तक के वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि कोई भी ऐसा पौधा नहीं है जिसे घर में लगा देने से सांपो का आना सौ फीसदी बंद हो जायेगा। ठीक इसी तरह आजकल कई सारी कंपनियों ने भी दावा कर रखा है कि उनके द्वारा निर्मित केमिकल स्प्रे को घर में छिड़कने से सांप बिल्कुल भी घर में नहीं आ सकते लेकिन ये भी लूटमार कंपनियों द्वारा लोगों को लूटने का एकमात्र प्रोपेगैंडा है। ये सभी बातें एक अनुभवजन्य तथ्य है जिसे मैं अपने काफी लम्बे समय के अनुभव के आधार पर इस लेख के माध्यम से आप सभी के साथ साझा कर रहा हूँ।
आज का युग इंटरनेट और तकनीक का युग है और आज बच्चों से लेकर बुजुर्ग लगभग सभी लोगों के पास स्मार्ट टचस्क्रीन फोन उपलब्ध है जहाँ आप मात्र एक क्लिक से देश-दुनिया की खबर पल भर में जान सकते हैं अतः हमने सोचा कि क्यों ना ग्राउंड लेवल के अलावा सोशल मीडिया पर भी एक मुहिम छेड़ी जाये। सांपो के बारे में उचित पहचान एवं प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से हमारी शोध टीम द्वारा सोशल मीडिया पर "भारतीय जैव-विविधता पक्षी एवं सरीसृप" नामक एक हिंदीभाषी ग्रुप का गठन किया गया। आज इस राष्ट्रीय स्तर के ग्रुप के माध्यम से हम उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड आदि भारतीय राज्यों में सर्पदंश के प्रति जागरूकता फैलाने में कामयाब हुए हैं। इसके लिए हम अपने सोशल मीडिया ग्रुप पर बहुत सारे तरीके अपना रहे हैं। हम अपने ग्रुप द्वारा लोगों को सांपो की उचित पहचान उन्हें सरल सहज हिंदी भाषा में बताते हैं तथा साथ ही सांपो को उनकी शारीरिक संरचना के आधार पर किस तरह से पहचाने उसकी वैज्ञानिकतापूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। विषैले एवं विषहीन सांपो का ज्ञान ग्रुप द्वारा लोगों को प्रदान किया जाता है।
सांपो के बारे में फैली तमाम भ्रांतियों एवं रूढ़ियों का उन्मूलन करने के लिए आमजन को वैज्ञानिक तथ्यों से अवगत कराने का हमारा प्रयास सदा से रहा है। यही कारण है कि आज हजारों लोग जो कि सांपो को देखते ही मार देते थे उनमें अब चेतना जागृत हुई है। कॉमन वोल्फ स्नेक (Common wolf snake) एक विषहीन सांप है जिसे अक्सर कॉमन करैत के भ्रम में मार दिया जाता है लेकिन आज ग्रुप से जुड़ें हजारों सदस्य सटीक जानकारी के कारण उसका संरक्षण करते हैं। इसी तरह धामन सांप (Indian Rat snake) को लोग कोबरा (नाग) समझकर मार देते हैं लेकिन ग्रुप द्वारा जानकारी देने के बाद अब वो उसे नहीं मारते। ग्रुप में हम शोधकर्ताओं ने स्नेक एक्सपर्ट की एक टीम बना रखी है ताकि सटीक पहचान लोगों को मिल सके। अलग-अलग सांपो के चित्र दिखाकर और उनमें तुलनात्मक फर्क बताकर लोगों को सांपो के बारे में ज्ञान जुटाने के लिए प्रेरित करते हैं। कई लोग विषहीन सांपो को भी भ्रमवश विषैला समझकर मार देते है इसके लिए हम उन्हें जागरूक करते हैं। सर्पदंश का उपचार एंटीवेनम है जिसके बारे में ग्रामीण समुदाय को अवगत कराना हमारे अभियान में से एक है। समय-समय पर ग्रुप में सांपो के बारे में वैज्ञानिक लेख लिखकर हम सदस्यों को कई तथ्यों से अवगत कराते हैं।
हमारा प्रयास निरन्तर जारी है। हमने सांपो से मनुष्य की और मनुष्य से सांपो की रक्षा की जो मुहिम सोशल मीडिया पर छेड़ रखी है उसे पर्यावरण विशेषज्ञों एवं आम लोगों का भरपूर समर्थन मिला है। हम चाहते हैं कि देश के ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे अभियान से जुड़े ताकि भारत को सर्पदंश मुक्त बनाया जा सके और सांपो का संरक्षण हो सके। आज सांपो और मनुष्यों के बीच संघर्ष का सिलसिला जारी है लेकिन जागरूकता अभियानों और परस्पर सहयोग एवं निःस्वार्थ भाव से हम इस कठिन चुनौती से निपटने में कामयाब हो सकते हैं।
लेखक - हरेन्द्र श्रीवास्तव
पर्यावरण शोधकर्ता At विन्ध्य इकोलॉजी एण्ड नेचुरल हिस्ट्री फांउडेशन, उत्तर प्रदेश
करीब एक दशक से सर्पों तथा अन्य वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्रयासरत
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश