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उड़ीसा के तट पर कराहते चमत्कारी कछुए

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ओलिव रिडले कछुओं को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से होता है। वैसे तो ये कछुए समुद्र में गहराई में तैरते हैं लेकिन चालीस मिनट के बाद इन्हें सांस लेने के लिए समुद्र की सतह पर आना पड़ता है और इसी समय ये मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों की चपेट में आ जाते हैं।

उड़ीसा के समुद्र तट गरियामाथा पर इन दिनों हजारों कछुओं के कंकाल बिखरे पड़े हैं, हालांकि सरकारी एजेंसी

'राजनगर मेंग्रॉव फॉरेस्ट डिविजन'

महज 372 कंकाल मिलने की बात कह रहा है। हर साल नवंबर-दिसंबर से लेकर अप्रैल-मई तक उड़ीसा के समुद्र तट एक ऐसी घटना के साक्षी होते हैं, जिसका रहस्य सुलझाने के लिए दुनिया भर के पर्यावरणविद और पशु प्रेमी बेचैन हैं। हजारों किलोमीटर की यात्रा कर लाखों कछुए यहां अंडा देने आते हैं। इन अंडों से निकले कछुए के बच्चे समुद्री मार्ग से फिर हजारों किलोमीटर दूर जाते हैं। यही नहीं, ये शिशु कछुए लगभग 30 साल बाद जब प्रजनन के योग्य होते हैं तो ठीक उसी जगह पर अंडे देने आते हैं, जहां उनका जन्म हुआ था। ये कछुए विश्व की दुर्लभ प्रजाति ओलिव रिडले हैं। पर्यावरणविदों की लाख कोशिशों के बावजूद अवैध मछली-ट्रॉलरों और शिकारियों के कारण हर साल हजारों कछुओं की मौत हो रही है।

यह आश्चर्य ही है कि ओलिव रिडले कछुए हजारों किलोमीटर की समुद्र यात्रा के दौरान भारत में ही गोवा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के समुद्री तटों से गुजरते हैं लेकिन अपनी वंश-वृद्धि के लिए वे अपने घरौंदे बनाने के लिए उड़ीसा के समुद्र तटों की रेत को ही चुनते हैं। सनद रहे कि दुनिया भर में ओलिव रिडले कछुए के घरौंदे महज छह स्थानों पर ही पाए जाते हैं और इनमें से तीन स्थान उड़ीसा में हैं। ये कोस्टारिका में दो तथा मेक्सिको में एक स्थान पर प्रजनन करते हैं। उड़ीसा के केंद्रपाड़ा जिले का गरियामाथा समुद्री तट इनका दुनिया में सबसे बड़ा प्रजनन-आशियाना है। इसके अलावा रूसिक्लया और देवी नदी के समुद्र में मिलन स्थल इन कछुओं के दो अन्य प्रिय स्थल हैं।

एक मादा ओलिव रिडले की क्षमता एक बार में लगभग डेढ़ सौ अंडे देने की होती है। ये कछुए हजारों किलोमीटर की यात्रा के बाद 'चमत्कारी' समुद्री तटों की रेत खोद कर अंडे रखने की जगह बनाते हैं। ये अंडे 60 दिनों में फूटते हैं व उनसे छोटे-छोटे कछुए निकलते हैं। ये नन्हें जानवर रेत पर घिसटते हुए समुद्र में उतर जाते हैं, एक लंबी यात्रा के लिए इस विश्वास के साथ कि वे वंश-वृद्धि के लिए ठीक इसी स्थान पर आएंगे- 30 साल बाद लेकिन समाज की लापरवाही इनकी बड़ी संख्या को असामयिक काल के गाल में ढकेल देती है।

इस साल उड़ीसा के तट पर कछुए के घरौंदों की संख्या शायद अभी तक की सबसे बड़ी संख्या है। अनुमान है कि लगभग सात लाख घरौंदे बन चुके हैं। यह भी आश्चर्य की बात है कि नौ साल पहले राज्य में आए सुपर साइक्लोन व चार साल पहले के सुनामी के बावजूद कछुओं का ठीक इसी स्थान पर आना अनवरत जारी है। 'ऑपरेशन कच्छप' चलाकर इन कछुओं को बचाने के लिए जागरूकता फैलाने वाले संगठन वाइल्ड लाइफ सोसायटी ऑफ उड़ीसा के मुताबिक यहां आने वाले कछुओं में से मात्र 57 प्रतिशत ही घरौंदे बनाते हैं, शेष कछुए वैसे ही पानी में लौट जाते हैं। इस साल गरियामाथा समुद्र तट पर नसी-1 और नसी-2 के साथ-साथ बाबूबली द्वीपों की रेत पर कछुए अपने घर बना रहे हैं। बाबूबली इलाके में घरौंदे बनाने की शुरुआत अभी छह साल पहले ही हुई है लेकिन आज यह कछुओं का सबसे प्रिय स्थल बन गया है। कई ऐसे द्वीप भी हैं जहां पिछले एक दशक में जंगल या इनसान की आवक बढ़ने के बाद कछुओं ने वहां जाना ही छोड़ दिया है। सन 1997 व 1998 में कछुओं ने उड़ीसा का रास्ता ही नहीं किया था तो पर्यावरण प्रेमी चिंतित हो गए थे।

इन कछुओं को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से होता है। वैसे तो ये कछुए समुद्र में गहराई में तैरते हैं लेकिन चालीस मिनट के बाद इन्हें सांस लेने के लिए समुद्र की सतह पर आना पड़ता है और इसी समय ये मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों की चपेट में आ जाते हैं। कोई आठ साल पहले उड़ीसा हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि कछुए के आगमन के रास्ते में संचालित होने वाले ट्रॉलरों में टेड यानी टर्टल एक्सक्लूजन डिवाइस लगाई जाए। उड़ीसा में तो इस आदेश का थोड़ा-बहुत पालन हुआ भी, लेकिन राज्य के बाहर इसकी परवाह किसी को नहीं है। समुद्र में अवैध रूप से मछलीमारी कर रहे श्रीलंका, थाईलैंड के ट्रॉलर तो इन कछुओं के सबसे बड़े दुश्मन हैं और वे खुलेआम इनका शिकार भी करते हैं। सरकार का आदेश है कि समुद्र तट के 15 किलोमीटर इलाके में कोई ट्रॉलर मछली नहीं मार सकता लेकिन इस कानून के क्रियान्वयन का जिम्मा लेने को कोई सरकारी एजेंसी राजी नहीं है। 'फैंगशुई' के बढ़ते प्रचलन ने भी कछुओं की शामत बुला दी है। इसे शुभ मान कर घर में पालने का चलन बढ़ रहा है।

कछुए जल-पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं और ओलिव रिडले कछुए तो प्रकृति की चमत्कारी नियामत हैं। मानवीय लापरवाही से यदि इस पर संकट आया तो प्रकृति पर क्या विपदा आएगी, इसका किसी को अंदाजा नहीं है।

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