“गंगा- हिमालय संरक्षण संकल्प अभियान”
दिनांक : 23 जून-2013, सायं 4 बजे से
स्थान : अलकनंदा घाट (बिरला घाट के सामने), हरिद्वार, उत्तराखंड
सेवा में,
आदरणीय..
राष्ट्रीय नदी गंगा पर इसके हिमालयी क्षेत्र में ही बन रहे बांधों का विषय आज गंगा के अस्तित्व के सामने सबसे बड़ा संकट बन खड़ा है, पहले ही टिहरी, मनेरी व कोटेश्वर बांधों में गंगा की लगभग 120 किलोमीटर धारा सुरंगों व झीलों में कैद कर क्षत-विक्षत की जा चुकी है, आगे गंगा-भागीरथी, अलकनंदा व मंदाकिनी पर ही लगभग 70 बांधों का निर्माण प्रक्रिया में तथा इसके हिमालयी बेसिन में 500 से अधिक स्थान बांध निर्माण हेतु चिन्हित हैं। आज देव-भूमि की धारी देवी सिद्ध पीठ को 330 मेगावाट की श्रीनगर परियोजना की बलि चढ़ाये जाने की तैयारी है, कल इसी क्रम मं पंच-प्रयागों सहित देव-भूमि की संस्कृति ही भारी खिलवाड़ की ओर धकेली जा रही है। भौतिकवाद की आंधी में भोगप्रधान जीवनशैली को विकास बताकर भूकंप, भूस्खलन एवं पर्यावरण के प्रति अत्यंत संवेदनशील हिमालयी जोन में गंगा के साथ ऐसा भीषण खिलवाड़ गंगा के मूल गुण-धर्मों सहित इसके प्रवाह से जुड़े सांस्कृतिक व आध्यात्मिक स्वरूप (गंगात्व) को ही नष्ट कर गंगा के प्राणों पर ही आघात है। वैज्ञानिक अध्ययन भी यह प्रमाणित कर रहे हैं। जिसके बाद मैदानी भागों में गंगा के नाम पर बहने वाला जल वास्तव में गंगा-जल ही नहीं रहेगा और तब आगे गंगा के नाम पर इस जल की सफाई/निर्मलता आदि के कार्य देश के साथ एक छलावा मात्र साबित होंगे।
विगत वर्षों से इस हेतु चल रहे संघर्ष के स्वर को लगातार दो बार संसद में भी उठाया गया। गंगा-हिमालय के संरक्षण हेतु बांधों के निरस्तीकरण की मांग को एक स्वर में संसद, प्रधानमंत्री, योजना आयोग एवं अन्य स्थानों पर पूर्ण सक्षम एवं ठोस रूप में रखा गया, स्वामी निगमानंद जैसे संत के बालिदान को भी इस राष्ट्र ने देखा किंतु गंगा रक्षा हेतु ठोस कार्यवाही अभी तक केवल निष्क्रिय व संवेदनहीन आश्वासनों तक सीमित रख लंबित की जा रही है। परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार की बुनियाद पर निर्माणाधीन श्रीनगर बांध परियोजना इतने विवादों के बावजूद धारी देवी को लीलने हेतु अग्रसर है, गंगा के प्रति इस संवेदनहीन एवं उपेक्षापूर्ण व्यवहार से आहत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (पूर्व में डॉ. जी.डी. अग्रवाल) 13 जून 2013 से एक बार पुन: अपनी तपस्या के मार्ग पर जाने की घोषणा भी कर चुके हैं।
अतः वर्तमान परिदृश्य की विभीषिका एवं नीतिनिर्धारकों का संस्कृति के प्रति व्यावसायिक दृष्टिकोण अब जनांदोलन की राह पर हमें बढ़ने हेतु बाध्य कर रहा है, आपसे पूर्ण आशा व अपेक्षा है कि देश व संस्कृति के इस स्वर को बल प्रदान करने हेतु उपरोक्त तिथि पर इस अभियान में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करवाएंगे।