विस्थापन पर राष्ट्रीय संवाद

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आजादी के बाद और उसके पहले बने बड़े बांधों से उपजी विभीषिका से हम सभी वाकिफ हैं। इन बड़े बांधों के बनने से कितने लोग विस्थापित हैं, इसका कोई एक आंकड़ा सरकार के पास आज तक नहीं है हाँ, बांधों का आंकड़ा है, थोडा बहुत सिंचाई का भी है पर शायद लोग उतना महत्व नहीं रखते हैं, इसलिए लोगों की गिनती नहीं है? पर्यावरणविद वाल्टर फर्नांडीज के मुताबिक़ देश में केवल बांधों से लगभग 3 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। हास्यास्पद यह भी है कि सरकारी ढर्रे और नुमाइंदों ने लोगों की गणना करना उचित नहीं समझा और सरकार के पास भी यही आंकड़ा है।

विस्थापन अब केवल बड़े बांधों का ही परिणाम नहीं रहा। रोज-रोज नए-नए उगते अभ्यारण्य/नॅशनल पार्क और बेतरतीब तरीके से पर्यटन स्थलों से होने वाला विस्थापन अब एक आम बात होती जा रही है। सिंगूर, पास्को, कुडूनकुलम के साथ-साथ देश के अन्य विकास के इन नए प्रतिमानों और इनके लिए चलायी गयी प्रक्रियाओं ने विकास बनाम विनाश की बहस को और मुखर कर दिया है।विकास की इस कथित दौड़ में लोग पीछे छूट जाते हैं, इतने पीछे कि उनकी गिनती भी नहीं रहती है। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा महिलाएं और बच्चे प्रभावित हो जाते हैं।

हम मानते हैं कि मध्य प्रदेश सरकार जिस तेजी से विकास के ऊंचे पायदानों की तरफ बढ़ाने का दावा कर रही है उससे विस्थापन को और बढ़ावा मिला है। मानव विकास सूचकांक के आधार पर सबसे निचले पायदान पर खड़ा मध्यप्रदेश इस समय विस्थापन केंद्रित विकास की और बढ़ रहा है। एक तरफ जहाँ बुंदेलखंड सहित मध्यप्रदेश का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में है और लोगों के सामने आजीविका का गंभीर संकट खड़ा है। वहीं मध्यप्रदेश सरकार देश और विदेश के उद्योगपतियों एवं निवेशकों का ‘इन्वेस्टर-मीट’ करना चाह रही है। वह चाहती है कि उन्हीं सूखाग्रस्त और विकास के अछूते इलाकों में सीमेंट, खनन और बड़े ताप बिजलीघरों के निर्माण में निवेश हो।

इन्दिरा सागर, ओम्कारेश्वर बाँध परियोजनाओं के सन्दर्भ में हमें हाल ही में एक दर्दनाक अहसास हुआ है। जहाँ डूब प्रभावित परिवारों को मजबूरन अपने हक के लिये नर्मदा के पानी में 17 दिन तक डूबकर प्रदर्शन करना पड़ा। राज्य सरकार का दिल इसके बावजूद भी नहीं पसीजा और उसके बाँध की ऊँचाई घटाने की बजाय सिर्फ जलस्तर कम करने पर सहमति जताई। लेकिन इन्दिरा सागर के मामले में अपनी ताकत दिखाते हुए प्रदर्शनकारी विस्थापितों को डंडों के दम पर खदेड़ दिया। मध्यप्रदेश सरकार दावा करती है कि उसके पास विस्थापितों के लिये जमीन नहीं है। लेकिन यही सरकार 28 से 30 अक्टूबर 2012 को इंदौर में ‘ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट’ आयोजित कर रही है और कंपनियों को जमीन देने पर आमादा है।

इन सब परिदृश्यों के सन्दर्भ में हम 26-27 अक्टूबर 2012 को भोपाल में विस्थापन और लोग विषय पर एक संवाद आयोजित कर रहे हैं। हम इस संवाद में इन बिंदुओं पर चर्चा करना चाहेंगे।

1. विस्थापन केंद्रित विकास के नाम पर संसाधनों की लूट।

2. सरकारों के लिये लोग क्यूँ महत्व नहीं रखते हैं - लोकतंत्र के सन्दर्भ में।

3. जिंदा रहने के लिये लोगों का संघर्ष

4. चार राज्यों से लोगों के संघर्ष की दास्ताँ - क्या वाकई में इन्हें विकास का लाभ मिला है ?

5. बारहवीं पंचवर्षीय योजना और विकास - इसके मायने क्या हैं - विस्थापन की एक और सुनामी?

इस कार्यक्रम में पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता डाक्टर वाल्टर फर्नांडीस अपना मूल वक्तव्य रखेंगे। कार्यक्रम का विस्तृत ब्यौरा शीघ्र ही आनलाइन होगा।

आपसे आग्रह है कि कार्यशाला में सम्मिलित होने की सूचना अनिवार्य रूप से आयोजकों को दें। ताकि व्यवस्थागत प्रबंध किया जा सके।

कार्यक्रम विवरण

दिनांक - 26-27 अक्टूबर 2012

स्थल – राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान,शामला हिल्स, भोपाल

संपर्क – 09752071393 (मनोज गुप्ता)/ 08889104455 (सौमित्र)/ 09425026331(प्रशांत)/ 09425466461(रोली)

कृपया हर हाल में आयोजकों से बात करके ही कार्यक्रम बनाएं।

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