रामदास माने
रामदास माने

औरतों की दुर्दशा देख स्मार्ट टॉयलेट बनाया

Published on
3 min read


मेरा बचपन सतारा में बीता। हमारा परिवार बहुत सामान्य था। मैं बचपन में घर की महिलाओं को खुले में शौच करने के लिये जाते हुए देखता था। वे या तो सुबह के झुटपुटे में या शाम को अंधेरा ढलने पर समूह में जंगल की ओर निकलती थीं। मुझे यह देखकर बहुत खराब लगता था।

घर की किसी महिला को अगर दिन में शौच जाने की जरूरत महसूस होती, तो उन्हें शाम तक रुकना पड़ता था, जो कई बार बहुत कष्टकर होता था। यह सिर्फ मेरे घर की बात नहीं थी। मेरे गाँव में किसी के भी घर में शौचालय नहीं था। उसी वक्त मैंने यह सोच लिया था कि अपने पैरों पर खड़ा होने के बाद मैं घर में तो शौचालय बनवाऊँगा ही, ताकि घर की औरतों को बाहर न जाना पड़े, दूसरी महिलाओं के लिये भी मैं शौचालय की व्यवस्था करुँगा। पढ़ाई जारी रखने के लिये मैंने कुछ समय तक होटल में वेटर की नौकरी की।

थोड़े दिनों तक कंस्ट्रक्शन साइट पर मैंने मजदूरी भी की। बाद में पुणे में महिंद्रा एंड महिंद्रा कम्पनी में मेरी नौकरी लग गई। कुछ दिनों तक मैं शान्ति से नौकरी करता रहा, लेकिन कुछ अलग काम करने का कीड़ा लगातार मेरे दिमाग में कुलबुलाता था। आखिरकार 1994 में मैंने नौकरी छोड़ दी और थर्मोकोल मशीन बनाने की कम्पनी खोल ली। संयोग ऐसा कि अपने काम में मैं पूरी तरह रम गया। सबसे बड़ी थर्मोकोल मशीन बनाने के कारण 2007 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में मेरा नाम भी आया। उसी साल मैंने अपने बचपन की इच्छा पूरी करने की दिशा में काम शुरू कर दिया मैं स्मार्ट टॉयलेट बनाने लगा था।

2007 में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने घोषणा की थी कि सूबे का जो पहला गाँव खुले में शौच से मुक्त होगा, उसे 25 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। यह मेरे लिये एक स्वर्णिम अवसर था। डेढ़ साल में लोगों के साथ मिलकर मैंने अपने गाँव में 198 शौचालय बनवाए। अगले आठ दिन में मुझे दो और शौचालय बनवाने थे। यह काम कठिन था। ईंट, सीमेंट और दरवाजे के लिये हमें अलग-अलग जगहों पर जाना पड़ता था।

एक शौचालय बनवाने में कई दिन लग जाते थे। तब लोगों ने मुझे स्मार्ट टॉयलेट बनाने के लिये प्रेरित किया, जिसमें कम समय लगे। आखिरकार मैंने थर्मोकोल से स्मार्ट टॉयलेट बनाना शुरू किया। इसमें पहले थर्मोकोल से शौचालय का ढाँचा बनाते हैं, फिर उस पर कंक्रीट सीमेंट लगाते हैं और सूखने देते हैं। छह घंटे में मेरा स्मार्ट टॉयलेट तैयार हो जाता है। इसमें नल की सुविधा नहीं है, इसलिये अलग से पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है। इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है, इसलिये ग्रामीण इलाकों और कंस्ट्रक्शन साइट्स में मेरे इस स्मार्ट टॉयलेट की भारी माँग है।

अमूमन एक शौचालय बनवाने में पैंतीस से चालीस हजार रुपए का खर्च आता है, जबकि थर्मोकोल के स्मार्ट टॉयलेट की लागत करीब 13,000 रुपए पड़ती है। हालांकि टाइल्स या वॉश बेसिन आदि की अलग से व्यवस्था करने पर लागत थोड़ी बढ़ जाती है। थर्मोकोल का होने के बावजूद यह टिकाऊ है। अपने गाँव को खुले में शौच से मुक्त करने और बेकार थर्मोकोल से स्मार्ट टॉयलेट की शुरुआत करने के बाद आज मैं पूर्णतः यही काम कर रहा हूँ। मेरी कम्पनी का सालाना टर्नओवर आज 40 करोड़ है। स्मार्ट टॉयलेट की माँग बढ़ती ही जा रही है। मैंने 25 ऐसे नवविवाहित जोड़े को स्मार्ट टॉयलेट मुफ्त में दिये हैं, जो इन्हें खरीद नहीं सकते।

-विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित
 

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org