भारत स्वच्छता अभियान और महात्मा गांधी
कहने को तो गंदगी फैलाने पर जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। जब तक देश का प्रत्येक नागरिक सफाई में सहयोग नहीं देगा, कुछ भी संभव नहीं है। आशा है कि सभी भारतवासी भारत को स्वच्छ बनाने में योगदान करेंगे। राजनेता स्वच्छता कार्यक्रम को सिर्फ फोटो खिंचाने तक सीमित नहीं करेंगे। जन-जान जाग रहा है। स्वच्छ भारत बनकर रहेगा।महात्मा गांधी की जयंती पर दो अक्टूबर, 2014 से भारत स्वच्छता अभियान शुरू हो रहा है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका शुभारम्भ करेंगे। भारत सरकार के इस अभियान के साथ समूचा देश उठ खड़ा है। राज्य सरकारें पूरा सहयोग कर रही हैं। गांव-गांव में स्वच्छता अभियान चलेगा। स्कूल, कॉलेज, सरकारी और गैरसरकारी संस्थान इस अभियान में हाथ बढ़ा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी तो पूरी शिद्दत के साथ जुटी हुई है। पार्टी के सभी सांसद और विधायक अभियान को खासतौर पर गति देने का प्रयास कर रहे हैं। सही बात तो यह है कि हमें हर स्तर पर सफाई की जरूरत है। हम भारतवासी कितने गंदे हैं, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सफाई का आह्वान करना पड़ा। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के विकास की बात की जाती है। प्रधानमंत्री गंदगी पर बोले।
महात्मा गांधी के जन्मदिन पर स्वच्छता अभियान शुरू होना उचित ही है। गांधी जी ने स्वच्छता के सबसे बड़े हामी थे। उन्होंने एक बार कहा था ‘जिस नगर में साफ संडास नहीं हों और सड़कें तथा गलियां चौबीसों घंटे साफ नहीं रहती हों, वहां की नगरपालिका इस काबिल नहीं है कि उसे चलने दिया जाए। नगरपालिकाओं की सबसे बड़ी समस्या गंदगी है।’ महात्मा गांधी रोजाना सुबह चार बजे उठकर अपने आश्रम की सफाई किया करते थे। वर्धा आश्रम में उन्होंने अपना शौचालय स्वयं बनाया था और इसे प्रतिदिन साफ करते थे।
एक बार एक अंग्रेज ने महात्मा गांधी से पूछा, यदि आपको एक दिन के लिए भारत का बड़ा लाट साहब (वायसराय) बना दिया जाए, तो आप क्या करेंगे। गांधीजी ने कहा, राजभवन के पास जो गंदी बस्ती हैं मैं उसे साफ करूंगा। अंग्रेज ने फिर पूछा, मान लीजिए कि आपको एक और दिन उस पद पर रहने दिया जाए तब। गांधी ने फिर कहा, दूसरे दिन भी वहीं करूंगा। जब तक आप लोग अपने हाथ में झाड़ू और बाल्टी नहीं लेंगे, तब तक आप अपने नगरों को साफ नहीं रख सकते। एक स्कूल को देखने के बाद उन्होंने शिक्षकों से कहा था, आप अपने छात्रों को किताबी पढ़ाई के साथ-साथ खाना पकाना और सफाई का काम भी सिखा सके, तभी आपका विद्यालय आदर्श होगा। गांधी जी की नजर में आजादी से भी महत्वपूर्ण सफाई थी।
सच ही है कि नगरों में गंदगी की सबसे बड़ी समस्या है। एक तो स्थानीय निकाय अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे हैं, दूसरे नागरिकों का सहयोग नहीं मिल रहा है। होता क्या है कि बाजारों में सफाई कार्य सुबह हो जाता है। सुबह दस बजे दुकानदार दुकान खोलता है और सारा कूड़ा सड़क पर फेंक देता है। यही कूड़ा पूरे दिन विचरण करता रहता है। दुकानदार चाहें तो दुकान का कूड़ा थैली में रख सकते हैं, लेकिन ऐसा करना वे अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। यही हालत घरों की है। सामान्यत: लोग घरों का कूड़ा झाड़कर नाली में फेंक देते हैं। नाली में ही पॉलीथिन जाती रहती है। सारा मलबा नाले-नालियों के हवाले हो रहा है। इससे जलभराव और नाले-नाली जाम की समस्या है।
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष 2019 में है। तब तक भारत को निर्मल बनाने का लक्ष्य है। आशा की जानी चाहिए कि हम अपने देश से गंदगी पूरी तरह हटा देंगे। सफाई के लिए बड़े बजट की जरूरत नहीं है। हम अपनी सामान्य आदतों में थोड़ा सुधार कर लें, तो हर जगह सफाई दिखाई देगी। ये आदते हैं इधर-उधर न थूकना, निर्धारित स्थान पर ही गंदगी फेंकना, अपने मोहल्ले की जाम पड़ी नालियों को र्शमदाम करके खोलना और नियमित सफाई करना। अगर हम बचपन में ही सफाई की आदत डाल लें, तो कोई कारण नहीं है कि इस तरह के अभियान चलाने पड़ें। फिलहाल तो हालत यह है कि सरकारी कार्यालय में बाबू अपनी मेज पर पड़ी फाइलों की धूल तक नहीं झाड़ते हैं। कुर्सी के बराबर ही दीवार पर पान की पीक थूकते रहते हैं।
कहने को तो गंदगी फैलाने पर जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। जब तक देश का प्रत्येक नागरिक सफाई में सहयोग नहीं देगा, कुछ भी संभव नहीं है। आशा है कि सभी भारतवासी भारत को स्वच्छ बनाने में योगदान करेंगे। राजनेता स्वच्छता कार्यक्रम को सिर्फ फोटो खिंचाने तक सीमित नहीं करेंगे। जन-जान जाग रहा है। स्वच्छ भारत बनकर रहेगा।