Saansad Adarsh Gram Yojana
Saansad Adarsh Gram Yojana

गांव की स्लेट पर सुलेख लिखेंगे सांसद

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आज भारत आर्थिक साम्राज्यवाद की जिस मंडी की गिरफ्त में है, वहां आदर्शों का मोलभाव सट्टेबाजों की बोलियों की तरह होता है। ऐसे में पहले आर्थिक साम्राज्यवाद की बाहर निकलकर, आदर्श राष्ट्रवाद को जमीन पर उतारा जाए। इसके बगैर, आदर्श ग्राम की बात करना दिखावटी बोल ही हैं। ये सब विचार सही हो सकते हैं। किंतु इन विचारों को आगे बढाने से योजना और इसके लाभार्थियों को कुछ भला नहीं होगा।पंडित दीनदयाल उपाध्याय, महात्मा गांधी और जेपी; तीन वैचारिक शक्तियां, तीन तारीखें और तीन श्रीगणेश: क्रमशः 25 सितम्बर को ‘मेक इन इंडिया’, दो अक्तूबर को ‘स्वच्छ भारत’ और 11 अक्तूबर को ‘सांसद आदर्श ग्राम’। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं; इसके भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे अच्छी राजनीति की शुरुआत कहा। कहने वाले इसे प्रतीक पुरुषों का राजनैतिक इस्तेमाल भी कह सकते हैं। खैर, विपक्षी इसे दिखावटी बोल कह रहे हैं। आप इसे देश के समक्ष चुनौती बनकर खड़े महंगाई, भ्रष्टाचार, काला धन वापसी, पर्यावरण, सम्प्रदायवाद, आतंकवाद, सीमा और बुनियादी ढांचे के विकास के जैसे बड़े बुनियादी मुद्दों से ध्यान भटकाने की राजनैतिक कोशिश भी कह सकते हैं। आप इसे निवेश की भूख में सर्वहित भूल जाने के आरोप से बचने की साजिश कहने के लिए भी स्वतंत्र हैं। आप कह सकते हैं कि आज भारत आर्थिक साम्राज्यवाद की जिस मंडी की गिरफ्त में है, वहां आदर्शों का मोलभाव सट्टेबाजों की बोलियों की तरह होता है। ऐसे में पहले आर्थिक साम्राज्यवाद की बाहर निकलकर, आदर्श राष्ट्रवाद को जमीन पर उतारा जाए। इसके बगैर, आदर्श ग्राम की बात करना दिखावटी बोल ही हैं। ये सब विचार सही हो सकते हैं। किंतु इन विचारों को आगे बढाने से योजना और इसके लाभार्थियों को कुछ भला नहीं होगा। अतः यदि हम चाहते हैं कि यह योजना कुछ सकारात्मक परिणाम दे सके, तो सिक्के के दूसरे पहलू पर चर्चा कर लेना ज्यादा मुफीद रहेगा।

सांसदों के लिए भिन्न करने का मौका

भिन्नता के सूत्र

‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’

शामिल मूल्य और सांसदों की जवाबदेही

सांसद आदर्श ग्राम योजना, सांसदों के आदर्श की परीक्षा की पहल भी है। सांसदों का इस इम्तहान की खूबी यह है, जिसमें जनता का भी फायदा होने वाला है। प्रश्न-पत्र बांटे जा चुके हैं। सांसद इस परीक्षा में फेल न हों, इसलिए उत्तर भी बता दिए गए हैं। गांधी, विनोबा और जेपी की लिखी इबारत उन्हें दे दी गई है। उन्हे सिर्फ इस इबारत को दोबारा लिखना है। कॉपी कैसी हो, यह उन्हे खुद चुनना है। बस! घर और ससुराल से कॉपी लाने की मनाही है।

गांव समाज की भारतीय अवधारणा

‘सहजीवन’
‘सहअस्तित्व’

गांवों की मूल शक्ति लौटे, तभी आदर्श

राजीव गांधी ने संविधान के 73वें संशोधन के जरिए सत्ता सीधे गांव के हाथ में सौंपने का सपना देखा। विनोबा के गांव को गोकुल बनाना चाहते थे। उनके आदर्श गांव में गीता और कुरान के मिलने, चरखे का सूरज निकलने, समता के पौधे पनपने, एक बनने - नेक बनने, भूमिहीन को भूमि और गरीबी से मुक्ति के सपने थे।

दैनिक जरूरतों की पूर्ति जरूरी

मवेशियों की पर्याप्त संख्या, अकाल में आत्महत्या रोक सकती है। चारा होगा तो खेतों को खाद मिलेगी। उत्पादन की गुणवत्ता बढेगी और गांव की सेहत की भी। अतः आदर्श गांव की परिकल्पना में अच्छे मवेशी, अच्छा पानी, अच्छी खेती और अच्छे बीज को भी शामिल करना चाहिए।

ग्रामोद्योग, तभी समग्र संजोग

“यदि ग्रामोद्योगों का लोप हो गया, तो भारत के सात लाख गांवों का सर्वनाश हो गया समझिए।”
‘खाली समय शैतान का घर’
‘दीनदयाल श्रमेव जयते’

परीक्षार्थी मोदी भी, जांचेंगी जनता

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