हाथ धोने की आदत विकसित करने में मददगार हैं ये नवाचार
हाथ धोने की आदत विकसित करने में मददगार हैं ये नवाचार

हाथ धोने की आदत विकसित करने में मददगार हैं ये नवाचार

अमरीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) का कहना है कि हाथ साफ रखने से 3 में से 1 को डायरिया संबंधी बीमारियों और 5 में से 1 को सर्दी या फ्लू जैसे श्वसन संक्रमण से बचाया जा सकता है। इसी सोच के साथ दुनिया में कुछ नवाचार किए गए हैं, जिनकी मदद से लोगों में हाथ धोने की आदत को विकसित किया गया है।
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साबुन से हाथ धोना कई बीमारियों के खिलाफ सबसे प्रभावी उपचार माना जाता है। जागरूकता के बावजूद, हाथों की उचित स्वच्छता की आदत का अभाव होने के कारण इसका पालन नहीं किया जाता है। दुनिया के कई देशों में पानी की कमी है तो कहीं साबुन की उपलब्धता नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में हर साल 30 हजार महिलाओं और 4 लाख बच्चों को हाइजीन के कारण 1. हुए संक्रमण से जान से हाथ धोना पड़ता है। अमरीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) का कहना है कि हाथ साफ रखने से 3 में से 1 को डायरिया संबंधी बीमारियों और 5 में से 1 को सर्दी या फ्लू जैसे श्वसन संक्रमण से बचाया जा सकता है। इसी सोच के साथ दुनिया में कुछ नवाचार किए गए हैं, जिनकी मदद से लोगों में हाथ धोने की आदत को विकसित किया गया है।

भारत में हक्श- ई नाम का सामाजिक रोबोट विकसित किया गया है, जिसे छोटे बच्चों को) हाथ साफ रखने की दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए डिजाइन किया गया। शिक्षा मंत्रालय के इनोवेशन सेल ने इसे पुरस्कार भी दिया है। रोबोट अपने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोग्राम की मदद से बच्चों को हैंडवॉशिंग के लिए प्रेरित करता है। उन्हें हैंड हाइजीन के बारे में शिक्षित करता है, जिससे वे यह सबक पूरी जिंदगी अपने साथ रखें। रोबोट उनके साथ पूरी तरह दोस्ताना व्यवहार करता है, जिससे बच्चे उसके साथ पूरी तरह घुल-मिल जाते हैं। इस तरह वह उन्हें टैंड हाइजीन के प्रति प्रेरित करता रहता है।

जापान में अधिकतर हाथ धोने के सिंक टॉयलेट सीट के साथ जुड़े होते हैं। इसके फायदा यह है हाथ धोने से निकला पानी सिंक मे इकट्ठा हो जाता है और उसके बाद अगले फ्लश में इस पानी का इस्तेमाल किया जाता है। हाल ही भारतीय उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने अपने एक्स अकाउंट पर इस तरह की पोस्ट को साझा किया और सुझाव दिया कि इस तरह की तकनीक भारत में भी अपनाई जानी चाहिए। जापान इस तकनीक से हर साल कई करोड़ लीटर पानी बचाता है।

इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए तमिलनाडु में रियल रिलीफ नाम के संगठन से ऐसा सोप प्री सुपरटॉवल विकसित किया है, जिसमें बहुत कम पानी की जरूरत होती है जब इसका मुंबई में परीक्षण किया गया तो स्वयंसेवकों ने साबुन से धोने की तुलना में औसतन 96 फीसदी कम पानी का इस्तेमाल किया। इस तरह हाथ धोना काफी आसान हो जाता है। यह सुपरटॉवल हल्का, टिकाऊ है और इसमें एंटी- माइक्रोबियल समाधान शामिल किए गए हैं। प्रयोगशाला परीक्षणों में एस्केरिशिया कोलाई और स्टेफाइलोकोकस ऑरियस जैसे 99 फीसदी सामान्य बैक्टीरिया इससे नष्ट हो गए।

जहां बिजली नहीं है, वहां भी हाथ धोने की मशीनें अनवरत काम करती रहें, इसके लिए सोलर पावर हैंडवॉशिंग मशीनें ईजाद की गई हैं। अफ्रीका में इनका काफी इस्तेमाल हो रहा है। स्वचालित सौर-संचालित हैंडवाशिंग मशीनों में जिस मशीन की सबसे ज्यादा चर्चा है, वह मोशन सेंसर हैंडवाशिंग सिंक है, जिसे घाना के रिचर्ड क्वार्टंग ने डिजाइन किया है। इनमें नवीकरणीय ऊर्जा (सौर पीवी सिस्टम डिजाइन और स्थापना) से लेकर इलेक्ट्रोमैकेनिकल (हाइड्रोलिक्स और न्यूमेटिक्स) इंजीनियरिंग सेवाओं का बखूबी इस्तेमाल किया गया है। इन मशीनों की अफ्रीकी महाद्वीप में काफी मांग है।

क्लीनटेक नाम की यह स्वचालित टच- फ्री हैंडवाशिंग तकनीक समय और संसाधनों की बचत करते हुए 99.9 फीसदी से अधिक कीटाणुओं को  हटा देती है। पारंपरिक हाथ धोने के तरीकों की तुलना में 70 प्रतिशत कम पानी का उपयोग करते हुए, यह केवल 12 सेकंड मैं यूजर के हाथों को पूरी तरह से साफ करने में सक्षम है। यह हाथों और कलाइयों के सभी हिस्सों पर एक साथ दबाव देकर पानी और साबुन की 40 धाराएं भेजती है। यूजर हर हाथ को एक सिलेंडर में डालता है, जो साबुन और पानी पहुंचाने वाले हाथ के चारों ओर घूमता है। यह प्रक्रिया मैनुअल हैंडवॉश की तरह है, जिसमें हाथों को गीला करना, साबुन और पानी से धोना और फिर अंत में साफ करना शामिल है।

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