कम लागत में शौचालय तैयार करवाता हूं
कम लागत में शौचालय तैयार करवाता हूं

कम लागत में शौचालय तैयार करवाता हूं

3 min read

समाज के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए स्वच्छता बेहद जरूरी है, लेकिन भारत में सार्वजनिक स्थानों से लेकर लोगों के आचरण में स्वच्छता का अभाव है। इसी कारण देश में विभिन्न प्रकार की बीमारियों जन्म ले रही हैं और स्वच्छता को बनाए रखने के लिए एक बड़ी धनराशि इस पर खर्च हो रही हैं। जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिल रहा है, लेकिन देश में कई लोग स्वच्छता के लिए अपने निजी और संगठनात्मक स्तर पर कार्य कर रहे हैं, जिसका धरातल पर सकारात्मक असर भी देखने को मिल रहा है। ऐसे लोगोें में ही शामिल हैं मराची सुब्बारमण। तो आइये जाते हैं, मराची की कहानी उन्हें की जुबानी -

स्वच्छता देश के लिए एक समस्या है, लेकिन अब इसके बेहतर समाधान उपलब्ध हैं। हालांकि स्वच्छता के क्षेत्र में बहुत कुछ आसान बना दिया गया है। मैं तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली का रहने वाला हूं और पिछले चार दशक से ग्रामीण आबादी को स्वच्छता प्रदान करने की दिशा में काम कर रहा हूं। उस समय मेरी उम्र करीब 26 साल थी। मैंने आंध्र प्रदेश में एक संगठन के लिए काम करन शुरू किया, जो गरीब लोगों को कम लागते में घर बनाने के साथ महिला सशक्तीकरण व आजीविका का स्त्रोत प्रदान कर रहे थे। काम के चलते मेरा आसपास के गांवों में अक्सर आना-जाना लगा रहता था। एक बार एक गांव में रुकने के दौरान सुबह शौच जाने के लिए मैंने पूछा, तो गांव वालों ने मुझे एक टैंक के पास का रास्ता बता दिया, जहां वे खुद भी जाते थे। मैंने बातचीत की, तो पता चला कि गांव में ही एक टैंक है और यह वही था, जिससे पिछली रात बस से उतरते समय मैंने पानी पिया था।

वाटर डाइजेस्ट अवार्ड लेते मराची सुब्बारमण।

मैं अपने स्वास्थ्य को लेकर बुरी तरह से डर गया। मैं टैंक के पास न जाकर दूर एक झाड़ी के पास चला गया। लौटकर जब मैं, अपने ठहरने की जगह पर आया, तो मैंने जमीन के पास एक गड्ढ़ा खोदा। पास के बाजार से एक अस्थायी टाॅयलेट शीट खरीदी और गड्ढ़े के ऊपर स्थापित किया। इसके बाद मुझे बाहर जाने से राहत मिल सकी। कई गांवों में घूमने के बाद मैंने महसूस किया कि बेहतर आय का मतलब बेहतर जीवन नहीं था। मैंने महसूस किया कि घरेलू बचत का एक बड़ा हिस्सा संक्रामक रोगों के इलाज में खर्च हो जा रहा है, जिसका कारण पीने का पानी दूषित होना था। इसलिए जब केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (1986 में गांवों में शौचालय बनाने के लिए अनुदान प्राप्त करना) शुरू किया गया, तो मैंने जिले के आला अधिकारियों को माॅडल के तौर पर एक गांव विकसित करने के लिए राजी किया। इस प्रकार, तिरुचिरापल्ली का देवपुरम 1990 में स्वच्छता के लिए एक आदर्श गांव बन गया।

इसके बाद मैंने स्वच्छता के लिए काम करने के बारे में सोचा। मैंने वर्ष 1986 में स्कोप (सोसायटी फाॅर कम्युनिटी ऑर्गनाइजेशन एंड पीपुल्स एजुकेशन) नाम से एक एनजीओ बनाया था, जिसके माध्यम से लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कमा कर रहा हूं। मैंने इकोसन (मूलतः स्वीडन में आविष्कृत) नामक शौचालय की एक श्रृंखला विकसित की, जिसमें दो गड्ढ़े होते हैं, और अपशिष्ट को इस लायक बना दिया जाता है, जिससे कि कृषि कार्यों के लिए उसका उपयोग हो सके। लेकिन उपयोग के अनुकूल डिजाइन न होने के कारण वह सफल नहीं हो सका। उसी दौरान मुझे साटो शौचालय के बारे में पता चला, तो इकोसन से सस्ते और सुलभ थे। साटो के शौचालय विशेष रूप से भारत के लिए डिजाइन किए गए हैं, और मल-मूत्र की पाइपों को गड्ढ़ों  के बीच बदलने में आसानी होती है। इसमें दो प्लास्टिक पाइप का उपयोग होता है, जो टिकाऊ और निर्माण में आसान होता है। गड्ढ़ा भर जाने के बाद मल की दिशा लंबी छड़ी जैसी वस्तु का उपयोग कर बदली जा सकती है। पारंपरिक शौचालयों की तुलना में इस शौचालय में मल को टाॅयलेट से हटाने के लिए एक लीटर से भी कम पानी की आवश्यकता होती है। अब तक हम 20 हजार से ज्यादा शौचालयों को निर्माण करवा चुके हैं। वर्ष 1997 में जब केंद्र सरकार केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम की समीक्षा कर रही थी, उस समय स्कोप को उस समिति में आमंत्रित किया गया, जिसने कुल स्वच्छता अभियान (बाद में निर्मल भारत अभियान बना दिया गया) की रूपरेखा तैयार की।

TAGS

Prime Minister NarendraModi,swachh bharat mission, swachh bharat abhiyan, clean india, sanitation, cleanliness, nirmal bharat mission. ecosan toilets, m subburman story, .

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org