खुले में शोच करें तो सबके सामने उजागर हों
भाव: गांव का एक बड़ा समूह शौचालयों के निर्माण के लिए ग्रामसभा प्रस्ताव का अनुपालन नहीं कर रहा था। ग्रामसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया कि ग्रामपंचायत ऐसे किसी भी परिवार को कोई भी दस्तावेज अथवा प्रमाणपत्र (दाखला) नहीं जारी करेगा जो शौचालय का निर्माण नहीं करता हो। ग्रामसभा ने आगे पारित किया कि पीडीएस दुकानों अर्थात सार्वजनिक वितरण प्रणाली की किसी भी दुकान से ''राशन आपूर्ति'' ऐसे परिवारों को नहीं दी जाएगी जिनके यहां शौचालय नहीं हैं। इस घोषणा के दबाव ने लोगों पर अपना प्रभाव दिखाया। कुछ लोगों की तो शौचालय होने के बावजूद खुले में शोच करने की ही आदत थी। स्वैच्छिक गार्ड दल खुले में शोच करने वालों को उजागर करने के लिए न केवल टार्च (फ्लेशलाइट) जलाकर रोशनी में लाते थे अपितु सीटियां भी बजाते थे। इस शर्मनाक दबाव ने लोगों को शौचालयों का उपयोग करने पर विवश कर दिया।
पूर्व शर्तें:
प्रारंभिक चेतना अभियान शौचालय निर्माण करने के अपने उद्देश्य में अधिकांश ग्रामीणों का विश्वास जीतने में सफल रहा। इसके बावजूद लगभग 40 प्रतिशत लोगों ने शौचालयों का निर्माण नहीं करवाया। वृद्ध लोग तथा कुछ अन्य लोग शौचालय बनने के बाद भी उनका उपयोग नहीं करते थे।
परिवर्तन की प्रक्रिया:
आरंभ में संतुष्ट होने के बाद गांव का अग्रणी तंत्र जैसे सरपंच, ग्राम पंचायत(जीपी) के सदस्य, भूतपूर्व सदस्य और ग्रामसेवकों ने अपने घरों में शौचालयों का निर्माण करवाया। ग्राम के अन्य नेताओं ने भी ऐसा ही किया जिससे गांव के बहुत से लोग प्रेरित हुए। सामूहिक सभाओं, घर-घर में जाने तथा ग्रामसभाओं ने अच्छे परिणाम दिखाए और लगभग 60 प्रतिशत घरों को इसी सीमा में लाया गया। कुछ पुराने शौचालयों को नया बनाया गया और उनकी मरम्मत कर उपयोग हेतु बनाया गया जबकि बहुत से नए शौचालयों का निर्माण करवाया गया। अभी भी 40 प्रतिशत परिवार खुले में ही शौच जाते हैं। वीडबल्यूएससी ने एसओ से परामर्श कर एक रणनीति बनाई। उन्होंने ग्रामसभा से एक प्रस्ताव पारित करवाया कि ग्राम पंचायत, सरपंच अथवा ग्रामसेवक किसी ऐसे परिवार को कोई प्रमाण-पत्र अथवा दस्तावेज़ (दाखला) जारी नहीं करें जो शौचालय का उपयोग नहीं कर रहे हों। इस घोषणा ने बहुत से परिवारों पर अपना प्रभाव दिखाया और उन्होंने शौचालय निर्माण के कार्य को प्राथमिकता दी। अभी भी कुछ परिवार हैं जिन्हें ग्राम पंचायत से कभी किसी प्रमाण-पत्र की जरूरत नहीं पड़ी। ये परिवार टस से मस नहीं हुए। ग्रामसभा के अन्य प्रस्ताव के अंतर्गत ऐसे परिवारों को राशन की आपूर्ति (पीडीएस दुकानों से) रोक दी गई। इससे इस कार्य को प्रोत्साहन मिला और अब गांव में लभग 95 प्रतिशत घरों में शौचालय बन गए हैं।
अंत में केवल दो परिवार ही शेष रह गए हैं। एसओ और वीडबल्यूएससी ने पुलिस सहयोग के लिए अनुरोध किया और इन दो परिवारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया है। एक दिन की पुलिस हिरासत और पुलिस के हल्के से दबदबे ने अपना काम कर दिखाया। किसी प्रकार की और अधिक कानूनी कार्यवाही के बिना मामला निपटा दिया गया। अब इस गांव मे 100 प्रतिशत घरों में शौचालय बन गए हैं। किंतु अभी भी कुछ लोगों की खुले में शोच करने की आदत बनी हुई है। इसलिए गांव के स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं के दो दलों का गठन किया गया है। ये दोनों दल प्रात:काल 4 बजे उठ जाते हैं और निगरानी के लिए निकल पड़ते हैं। ये लोग खुले में शौच करने वाले लोगों पर ''किसान बैटरी'' नामक टार्चों से रोशनी फैंकते हैं तथा उनपर सीटियां भी बजाते हैं। इससे उन्हें शर्मिन्दा होना पड़ता है और उन्होंने धीरे-धीरे खुले में शौच करना बंद कर दिया। वाकू बी जो खुले में शौच से मुक्त है को निर्मल ग्राम बनने पर गर्व है।
जलापूर्ति एवं स्वच्छता विभाग, महाराष्ट्र सरकार