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मावलिन्नांग से सीखें सफाई का ककहरा

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2003 से पहले मावलिन्नांग में कोई पर्यटक नहीं आता था। वर्ष 2003 में जब गाँव वालों ने अपने लिये खुद पहली सड़क बनाई, तो डिस्कवर इण्डिया पत्रिका का एक पत्रकार यहाँ आया। उसने मावलिन्नांग की स्वच्छता को सबके सामने रखा। वर्ष - 2005 में बीबीसी ने इसे प्रचार दिया। बाद में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने स्वयं अपने रेडियो प्रसारण में मावलिन्नांग गाँव को सराहा। ग्रामवासियों का कहना है कि स्वच्छता का उनका संस्कार एक तरफ तो मावलिन्नांग की प्रसिद्धि का कारण बना है, लेकिन दूसरी ओर इसके कारण अब कई नई चुनौतियाँ पेश आ रही हैं। हर घर में शौचालय हो; गाँव-गाँव सफाई हो; सभी को स्वच्छ-सुरक्षित पीने का पानी मिले; हर शहर में ठोस-द्रव अपशिष्ट निपटान की व्यवस्था हो- इन्हीं उद्देश्यों को लेकर दो अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई थी। कहा गया कि जब दो अक्टूबर, 2019 को महात्मा गाँधी जी का 150वाँ जन्मदिवस मनाया जाये, तब तक स्वच्छ भारत अभियान अपना लक्ष्य हासिल कर ले; राष्ट्रपिता को राष्ट्र की ओर यही सबसे अच्छी और सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

इस लक्ष्य प्राप्ति के लिये 62,009 करोड़ का पंचवर्षीय अनुमानित बजट भी तय किया गया था। अब हम मार्च, 2017 में हैं। अभियान की शुरुआत हुए ढाई वर्ष यानी आधा समय बीत चुका है। लक्ष्य का आधा हासिल हो जाना चाहिए था। खर्च तो आधे से अधिक का आँकड़ा पार करता दिखाई दे रहा है। कितने करोड़ तो विज्ञापन पर ही खर्च हो गए। हमारी सरकारें अभी सिर्फ शौचालयों की गिनती बढ़ाने में लगी हैं। सफाई के असल पैमाने पर हम आगेे बढ़े हों; इसकी कोई हलचल देश में दिखाई नहीं दे रही।

स्वच्छता को संस्कार की दरकार

सबसे स्वच्छ मावलिन्नांग

यहाँ जन्मघूँटी में मिलती है स्वच्छता

लक्ष्मण रेखा जरूरी

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