स्वच्छता की डगर पर अगर-मगर

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हर घर में शौचालय होना चाहिए। यह 21वीं सदी में दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है। दरअसल विश्व में करीब 100 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं। दुनिया को 2030 तक इससे मुक्त करने का लक्ष्य है। यह तभी सम्भव है जब भारत 2019 तक खुले में शौच मुक्त करने के लक्ष्य को हासिल करता है क्योंकि भारत की करीब 60 करोड़ की आबादी इसमें शामिल है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बिहार, झारखंड, ओडिशा और उत्तर प्रदेश सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं क्योंकि देशभर में खुले में शौच करने वाली आबादी का 60 प्रतिशत इन चार राज्यों में है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये राज्य खुले में शौच से मुक्त हो पाएँगे? इसकी पड़ताल करने के लिये सुष्मिता सेनगुप्ता और रश्मि वर्मा ने इन राज्यों का दौरा कर हालात का जायजा लिया

बिहार के बाढ़ प्रभावित खगड़िया जिले के रहीमपुर उत्तरारी गाँव के निवासियों ने शौच की सबसे मुश्किल चुनौती का सामना किया है। वे सभी जल्दी उठ जाते हैं और शौच के लिये जगह की तलाश करते। 35 वर्षीय मोहित यादव कहते हैं कि महिलाओं की स्थिति बहुत कठिन है। मॉनसून के दौरान शौच के लिये उनकी पत्नी और बेटियाँ सूर्योदय से पहले खुले स्थान की तलाश के लिये गहरे बाढ़ के पानी से गुजरती हैं। रहीमपुर उत्तरारी गाँव गंगा के तट पर बसा है। ऐसा नहीं है कि गाँव में शौचालय नहीं है। यहाँ स्वच्छ भारत अभियान (एसबीएम) के तहत बनाए गए शौचालयों की संख्या बहुत है। इस अभियान के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2 अक्टूबर 2019 महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक भारत को खुले में शौच से मुक्त बनाना चाहते हैं। गांधीजी ने कहा था कि स्वच्छता आजादी से अधिक महत्त्वपूर्ण है। लेकिन शौचालय होने का मतलब यह नहीं है कि इसका इस्तेमाल होगा।

इस क्षेत्र में नियमित बाढ़ को ध्यान में रखते हुए रहीमपुर उत्तरारी में शौचालय बनाए गए थे। शौचालयों को जमीन से चार फीट ऊपर बनाया गया ताकि उन्हें बाढ़ के पानी से नुकसान न पहुँचे। लेकिन ठेकेदार ने सोकपिट (सोख्ता गड्ढों) को बाढ़ के स्तर पर ही बना दिया। यादव कहते हैं कि मानसून के दौरान सोक पिट भर जाते हैं। हम उन्हें इस्तेमाल नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री मोदी की ओर से शौचालय बनाने की निर्धारित समय सीमा निकट आ रही है। अधिकारियों पर अधिक से अधिक शौचालय बनाने का दबाव है, भले ही उपयोग न किये जाएँ।

रहीमपुर से सन्देश

बिहार: ढिलाई से काम

“पिछले छह महीनों में 80 प्रतिशत से अधिक घरों में शौचालयों का निर्माण किया गया है।”
“मैंने घर में शौचालय बनाने के लिये 18,000 रुपये खर्च नहीं किए, मुझे अब तक सरकार से कोई मदद नहीं मिली है। अधिकारियों का कहना है कि जब तक वॉर्ड के सभी घरों में शौचालय नहीं बन जाता, तब तक आधिकारिक रूप से धनराशि जारी नहीं हो सकती।”

उत्तर प्रदेश : गरीबी खुले में शौच से मुक्ति में बाधक

“मैंने शौचालय निर्माण के लिये बहुत पहले ही आवेदन अधिकारियों को सौंप दिया था। मेरे बेटों ने डिजाइन के मुताबिक, 10 फीट गहरे गड्ढे खोदे थे। छह महीने बीत गए हैं, न तो अधिकारी वापस आए और न ही पैसा मिला।”
“हम अक्सर बीडीओ कार्यालय में संवेदीकरण की बैठकों के लिये ग्रामीणों को बुलाते हैं और जागरूकता अभियान आयोजित करते हैं, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होता।”

ओडिशा : केंद्रीयकरण स्वच्छता अभियान पर अडंगा

“उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में खराब प्रदर्शन में मानो एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा है।”
“मेरे क्षेत्र में पानी की माँग टैंकरों से पूरी होती है। पीने के लिये पानी नहीं है तो लोग शौचालय के लिये पानी की व्यवस्था कैसे कर सकते हैं!”
“कार्यक्रम माँग के आधार पर नहीं चल रहा है।”

झारखंड: एक कदम आगे

“हम सुनिश्चित करते हैं कि अभियान के तहत पैसा बर्बाद नहीं होना चाहिए। हम ग्रामीणों को प्रेरित करते हैं और व्यवहारिक परिवर्तन लाने की कोशिश करते हैं। हमने 100 प्रतिशत शौचालय लक्ष्य हासिल किया है और इनका उपयोग भी होता है।”
“जिले में करीब 15,000 बेकार शौचालय थे, जिन्हें जिला खनिज न्यास (डीएमएफ) और विधायक निधि से कवर किया गया था।”
“बेहतर निर्माण के लिये कई गाँवों के लाभार्थियों ने श्रमिक के रूप में स्वयं काम किया था। क्षेत्र में दो गड्ढों वाला शौचालय डिजाइन का इस्तेमाल किया गया है।”

आगे का रास्ता

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