बाराबंकी-नवीन कृषि पद्धति से संवरता भविष्य
बाराबंकी, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद मंडल के चार जिलों में से एक है। यह घाघरा व गोमती की सम्यांतर धाराओं के बीच स्थित है। कृषि वातावरण तालिका में बाराबंकी को उत्तर प्रदेश पूर्वी समतल क्षेत्र में रखा गया है। बाराबंकी में औसत वार्षिक वर्षा 1002.7 मिमी होती है, जो कि जून से लेकर अक्टूबर के बीच होती है (तालिका-1)।
तालिका-1 : वर्षा की स्थिति (जिला बाराबंकी) | |
वर्षा | औसत वर्षा (मिमी) |
जून से सितम्बर | 883.3 |
अक्टूबर से दिसम्बर | 54.8 |
जनवरी से मार्च | 44.4 |
अप्रैल से मई | 120.2 |
वार्षिक | 1002.7 |
भू-उपयोग –
बाराबंकी का कुल क्षेत्रफल 442.8 हेक्टेयर है जिसमें 258.4 हेक्टेयर क्षेत्र में फसल उगाई जाती है। (तालिका-2) जबकि 250.6 हेक्टेयर क्षेत्रफल में वर्ष में एक बार से अधिक बुआई की जाती है। जिले का 460.9 हेक्टेयर क्षेत्रफल विभिन्न साधनों द्वारा सिंचित है। जबकि 24.3 हेक्टेयर क्षेत्रफल सिंचाई के लिये वर्षा पर निर्भर है।
तालिका-2: भू उपयोग की स्थिति (जिला बाराबंकी) | |
बाराबंकी जिले में भूउपयोग की स्थिति (वर्तमान) | क्षेत्रफल (हेक्टेयर) |
भौगोलिक क्षेत्रफल | 442.8 |
कृषि कार्य हेतु | 258.4 |
वन क्षेत्र | 5.9 |
गैर कृषि हेतु | 56.3 |
बंजर क्षेत्र | 3.1 |
मृदा प्रकार-
कुल कृषि भूमि का 39 प्रतिशत गहरी लोम मृदा है, 28 प्रतिशत गहरी महीन मिट्टी जिसमें लोम मिट्टी थोड़ी क्षारीय है, 16 प्रतिशत मिट्टी गहरी स्लिट है जोकि थोड़ी क्षारीय मिट्टी है।
परम्परागत कृषि फसलें-
पराम्परागत कृषि में यहाँ चावल, गेहूँ, मक्का, मसूर, सरसों, गन्ना, आलू, मटर, प्याज व सब्जियों को उत्पन्न किया जाता है (तालिका-3) जोकि अक्सर सूखे, पाला व घाघरा नदी में आने वाली बाढ़ से क्षतिग्रस्त हो जाती है, और किसानों को अत्यधिक आर्थिक हानि होती है। जिले के कृषक अपनी आजीविका में होने वाले लगातार नुकसान से परेशान रहते हैं। भरपूर मेहनत के बाद भी उनको उगाई गई फसल से लाभ की आशा कम ही रहती है। अत: अब जिले के विभिन्न भागों के कुछ नवोन्मेषी कृषक कुछ नये तरीके से कृषि के क्षेत्र में प्रयोग करने लगे हैं।
इन विधियों में फसलों का चक्रिय क्रम, टपका पद्धति से सिंचाई व जैविक खाद का प्रयोग व तापमान नियंत्रण हेतु पॉली हाउस का प्रयोग मुख्य है। इनमें से कुछ कृषक अन्य कृषकों के लिये प्रेरणास्रोत के रूप में उभर कर सामने आये हैं। इन कृषकों में कुछ उच्च शिक्षित हैं तो कुछ अल्प शिक्षित हैं परंतु कुछ नया करने की प्रयोगधर्मिता के कारण आज दोनों ही सफलता के सौपान पर खड़े हैं तथा अन्य कृषकों को भी अपनी तकनीक से लाभान्वित कर रहे हैं। इन कृषकों ने परम्परागत कृषि को त्याग कर फूलों, फलों व सब्जियों की खेती पर ध्यान दिया है, और इस क्षेत्र में अत्यधिक सफलता प्राप्त कर बाराबंकी का नाम न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी अपने फूलों की खुशबू के कारण चर्चित किया है, कुछ ऐसे चर्चित कृषक हैं-
तालिका-3 : महत्त्वपूर्ण फसलों/सब्जियों का उत्पादन (जिला बाराबंकी) | ||
महत्त्वपूर्ण फसल व सब्जियाँ | कुल उत्पादन | |
उत्पादन (टन) | उत्पादकता (किग्रा/हेक्ट) | |
चावल | 384.7 | 2207 |
मक्का | 2.5 | 551 |
गेहूँ | 516.8 | 3179 |
मसूर | 13.0 | 802 |
सरसों | 12.2 | 834 |
गन्ना | 550.0 | 53693 |
(सब्जियाँ-कुल एकड औसत के आधार पर) | ||
आलू | 182.40 | 13.20 |
प्याज | 7.400 | 22.90 |
मटर | 10.70 | 5.90 |
अन्य सब्जियाँ | 30.20 | 29.80 |
1. राम शरण वर्मा - ग्राम दौलतपुर
2. अनिल कुमार - ग्राम मलूक पुर
3. राहुल व रचना मिश्रा - ग्राम सरैया
4. मुइनुद्दीन - ग्राम दफेदार पुरवा
दौलतपुर (बाराबंकी) : रामशरण ईजार करते हैं किसानी के नये-नये तरीके -
लखनऊ-फैजाबाद हाइवे पर, बाराबंकी से पूर्व की ओर 20 किमी दूर दौलतपुर गाँव का ये किसान अब लोगों का प्रेरणास्रोत बन चुका है। किसानों को हाईटेक खेती करने की सलाह देने के साथ ही खुद भी रामशरण उन्नत तरीकों को काफी अपनाते है, मिट्टी की जाँच, अच्छे किस्म के बीज, उन्नत तकनीक और उचित खाद का प्रयोग कर भरपूर सफलता पाई। रामशरण बताते हैं, शुरूआत धान, गेहूँ की खेती से की लेकिन उसमें भी प्रयोगों को जारी रखा। खेती में कुछ नया करने की चाह हमेशा ही बनी रही, फिर एक मैगज़ीन से केले की खेती के बारे में जानकारी मिली और केले की खेती करने की ठान ली।
केले की खेती के लिये वर्ष 1990 में सबसे पहले एक कंपनी से पौध खरीदी और खेती शुरू की, बाद में टिश्यूकल्चर से ग्रीन हाउस में पौध तैयार करनी भी शुरू कर दी जिसमें अपार सफलता मिली। मात्र 6 एकड़ पैत्रक भूमि पर उन्नत खेती शुरू करने वाले रामशरण आज करीब 90 एकड़ के कास्तकार हैं, जिसमें से 84 बीघा भूमि लीज पर ले रखी है इस समय 50 एकड़ केला, 10 एकड़ टमाटर, 15 एकड़ मेन्था और 25 एकड़ में आलू की खेती कर रहे हैं। रामशरण वेबसाइट के जरिए भी किसानों को खेती के नये प्रयोगों से अवगत कराते हैं। वेबसाइट को अपडेट करने में लखनऊ में बीबीए कर रहा उनका बेटा भी मदद करता है। उनकी तमन्ना है कि बेटा भी खेती से जुड़े और उसे आगे बढ़ाए।
रामशरण बाते हैं, बाहर जाने के लिये हमेशा हवाई जहाज में सफर करना और ब्रांडेड कपड़े पहनना मेरा शौक है। हवाई जहाज का टिकट खरीदना, मेरे लिये बस का टिकट खरीदने जैसा है मेरे परिवार सालाना खर्च करीब 10 लाख रूपये है। खेती के साथ-साथ रामशरण सलाहकार की भूमिका में भी सक्रिय रहते हैं, आस-पास के गाँवों के अलावा पूरे राज्य से लोग उनसे खेती के गुर सीखने के लिये आते रहते हैं, और वे भी उनसे खुशी-खुशी अपने अनुभवों को साझा करते हैं। जो नि:शुक्ल फोन पर जानकारी चाहते हैं उनकी फोन से मदद करते हैं।
रायबरेली से खेती के गुर सीखने आए विवेक सिंह बताते हैं, ‘‘रामशरण के बारे में जानकारी इंटरनेट से मिली जिसके बाद फोन पर बात होने के बाद उनसे मिलने आए हैं, मैं भी केले की खेती शुरू करना चाहता हूँ’’।
इतना ही नहीं रामशरण किसानों को पौध भी तैयार करके देते हैं जिसके लिये अग्रिम बुकिंग करनी पड़ती है। फार्म हाउस पर अपने संसाधनों से साल में एक बार किसान मेला भी आयोजित करते हैं जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं। जिला, राज्य व भारत सरकार की कई कमेटियों के सदसय रामशरण को समय-समय पर योजना आयोग की बैठक में भी शामिल होना होता है, साथ ही राज्य सरकार के लिये भी सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं। राज्यपाल बीएल जोशी समेत देश-विदेश के कई नेता और वैज्ञानिक उनकी सफलता का राज जानने उनके फार्म हाउस पर आ चुके हैं। कृषि में उनकी अपार सफलता के चलते उन्हें जगजीवन राम पुरस्कार समेत कई पुरस्कारों से नवाजा भी जा चुका है।
साल 2011-12 में कृषि का योगदान 12.9 फीसदी रहा, अगर आँकड़ों पर गौर करें तो 2001 की जनगणना के हिसाब से करीब 58 फीसदी को कृषि क्षेत्र से रोजगार मिलता है साफ है कि कृषि पर आश्रित लोगों की अपेक्षा जीडीपी में अनुपात बहुत कम है। अगर उन्नत खेती को अपनाया जाए तो जीडीपी में कृषि के अनुपात में काफी बढ़ोत्तरी हो सकती है। रामशरण चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोग परंपरागत खेती को छोड़कर उन्नत खेती के तरीके अपनाएँ ताकि इसे घाटे का सौदा न कहा जाए ऐसा नहीं है कि कम पढ़े-लिखे लोग इस तरह से खेती नहीं कर सकते हैं।
फसल चक्र अपनाने की सलाह-
रामशरण अपने खेतों में फसल चक्र के हिसाब से खेती करते हैं। उनका मानना है कि इसे अपनाकर अगर खेती की जाए तो कम लागत में ज्यादा कमाया जा सकता है। यह चक्र तीन साल का होता है। फसल चक्र समझाते हुए कहते हैं कि अगर एक खेत में केले की खेती की जाती है और पेड़ी की फसल को मिलाकर 25 महीने खेत में फसल खड़ी रहती है उसके बाद आलू बो दिया जाता है जिसमें 4 माह का समय लगता है और खेत की जुताई भी ठीक से हो जाती है फिर मेथा लगा दिया जाता है जिसमें 3 माह लगते हैं बाकी समय में टमाटर या फिर हरित खाद के लिये धैन्चा बो देते हैं या परती छोड़ दिया जाता है, जिससे कम खाद और पानी से अधिक पैदावार की जा सकती है इस तरह से एक फसल चक्र पूरा हो जाता है।
पौधों पर करते हैं शोध-
रामशरण कोई नई प्रजाति का बीज या पौध अपनाने से पहले उस पर शोध भी करते हैं जैसे अलग-अलग किस्म के पौधों को समान खाद और पानी दिया जाता है। इन पौधों को एक ही तापमान में भी रखा जाता है जिसमें सबसे ज्यादा पैदावार होती है, पौधे के उसी किस्म की आगे खेती की जाती है साथ ही इन्हीं पौधों को दूसरे किसानों को भी खेती करने के लिये दिया जाता है।
मलूकपुर (बाराबंकी) : बूँद-बूँद पानी से सिंचाई कर बढ़ा रहे मुनाफा-
जिले के कई गाँवों में कई किसान खेती में सिंचाई के लिये टपका सिंचाई जैसी नवीन पद्धति को अपना रहे हैं, इससे न सिर्फ उनकी लागत घटी और मुनाफा भी बढ़ा। बाराबंकी जिला मुख्यालय के पश्चिम में मलूकपुर के अनिल कुमार, राजेश कुमार, शशिकांत व विमल कुमार जैसे कई किसान ड्रिप सिंचाई विधि से खेती कर रहे हैं। अनिल कुमार कहते हैं, ‘‘मैं केले व सब्जी की खेती ड्रिप सिंचाई विधि से करता हूँ, खरबूजे की खेती के ड्रिप के साथ-साथ मलचिंग भी की थी जिससे लगभग 1,00,000 रूपए प्रति एकड़ का शुद्ध लाभ केवल तीन माह की फसल में हुआ था।’’ प्राकृतिक पानी का 70 प्रतिशत उपयोग कृषि के लिये होता है।
टपका तकनीक की मदद से सिंचाई के दौरान पानी की बर्बादी को रोका जा सकता है। ड्रिप प्रणाली या टपका सिंचाई प्रणाली में सीधे पौधे की जड़ के पास ड्रिप लगाकर बूँद-बूँद कर पानी दिया जाता है। फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ-सथ ड्रिप सिंचाई तकनीक की विधि से रसायन एवं उर्वरकों का दक्ष उपयोग करते हुए खरपतवारों की वृद्धि में कमी सुनिश्चित की जा सकती है। ड्रिप विधि की सिंचाई 80-90 प्रतिशत सफल होती है। यह विधि मृदा के प्रकार, खेत के ढाल, जलस्रोत और किसान की दक्षता के अनुसार अधिकतर फसलों के लिये अपनाई जा सकती है। यह एक ऐसा सिंचाई तंत्र है जिसमें जल को पौधों के मूलक्षेत्र के आस-पास दिया जाता है।
ड्रिप सिंचाई से लाभ
फतेहपुर (बाराबंकी) : विदेश जाकर समझ आई खेती की अहमियत
दफेदार पुरवा (बाराबंकी) : फूलों की खेती
इनकी खेती है फायदे का सौदा | ||||
| केला | मेंथा | संकर टमाटर | आलू |
क्षेत्रफल | 1 एकड़ | 1 एकड़ | 1 एकड़ | 1 एकड़ |
पैदावार | 400 कुंतल | 1 कुंतल | 450 कुंतल | 250 कुंतल |
खर्च | 70,000 रुपये | 20,000 रुपये | 62,000 रुपये | 45,000 रुपये |
बिक्री मूल्य | 615 रु. प्रति किलो | 1200 रु. प्रति किलो | 500 रु. प्रति किलो | 700 रु. प्रति कुंतल |
कुल लाभ | 2,46,000 रुपये | 1,20,00 रुपये | 2,25,000 रुपये | 1,75,000 रुपये |
शुद्ध लाभ | 1,76,000 रुपये | 1,00,000 रुपये | 1,63,000 रुपये | 1,30,000 रुपये |
संदर्भ
1. जागरण.कॉम
2. यात्रा.कॉम
3. बाराबंकी - भारतकोश ज्ञान का महासागर
4. बाराबंकी - विकिपीडिया
सम्पर्क
प्राप्त तिथि- 17.06.2015, स्वीकृत तिथि-20.08.2015