बच्चों की मस्तिष्क संरचना को प्रभावित कर रहा वायु प्रदूषण
फोटो - https://journals.plos.org/plosone/article?id=10.1371/journal.pone.0228092
इंसान के दिमाग (मस्तिष्क) में ध्यान, जागरुकता, विचार, भाषा, याददाश्त और चेतना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बाहरी परत को ग्रे मैटर कहा जाता है, जबकि कार्टिकल बच्चों की बुद्धिमता से जुड़ी हुई है, लेकिन वायु प्रदूषण के कारण इन दोनों पर प्रभाव पड़ रहा है। ये परत सामान्य तौर पर मोटी हो जाती है, जिससे बच्चों के मस्तिष्क की संरचना प्रभावित हो रही है। इस बात की जानकारी अमेरिका में किए गए एक शोध में सामने आई है। शोध को अंतर्राष्ट्रीय जर्नल प्लोस में प्रकाशित किया गया है।
हम आए दिन वायु प्रदूषण के बरे में पढ़-सुन रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर प्रदूषण के असर को प्रत्यक्ष तौर पर देखते भी हैं। यदि हम दिल्ली, मुंबई, कानपुर, गाजियाबाद, हरियाणा जैसे शहरों रहते हैं या कभी वहां गए हैं, तो वायु प्रदूषण की भयावहता से भलिभांति परिचित भी होंगे। हालाकि भारत वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित है और हर साल भारत में 6 लाख से ज्यादा लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है, जबकि वैश्विक स्तर पर ये आंकड़ा लगभग 4.2 मिलियन है। बच्चों के मामले में ये आंकड़ा भयावह है, लेकिन पूरा विश्व विकास की ओर तेजी से दौड़ा चला जा रहा है और वायु प्रदूषण अपने चरम पर पहुंच गया है। ऐसे में वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा खतरा देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों पर पड़ रहा है। जिसके बारेे में कई शोध में चेताया भी गया है, लेकिन हाल ही में अमेरिका के ओहियो स्थित सिनसिनाटी चिल्ड्रन हाॅस्पिटल मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं ने बच्चों के दिमाग पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को जानने के लिए शोध का हिस्सा रहे बच्चों का छह माह की आयु से अध्ययन किया। ये बच्चे अपनी आयु के शुरुआती एक वर्ष, इससे कम या अधिक समय तक वायु प्रदूषण शिकार हुए थे। वायु प्रदूषण के प्रभाव को जानने के लिए बच्चों के दिमाग के छवियों की आवश्यकता थी, जिसके लिए मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग तकनीक का उपयोग किया गया। शोधकर्ताओं ने सिनसिनाटी क्षेत्र की 27 साइटों पर एयर सैंपलिंग नेटवर्क का उपयोग किया। इससे मिले आंकड़ों के आधार पर प्रदूषण के प्रभाव का अनुमान लगाया गया। फिर बच्चों के दिमाग की 1, 2, 3, 4, 7 और 12 वर्ष की आयु की जांच की गई। शोध में सामने आया कि वायु प्रदूषण के चलते बच्चों के दिमाग में ग्रे-मैटर और काॅर्टिकल की मोटाई सामान्य से अधिक गई गई है। इससे बच्चों के समझने और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है, जो उनके विकास में बाधा होने के साथ ही एक बड़ा खतरा हैं। हालाकि इसका असर उन बच्चों पर अधिक पड़ता है, जो जन्म के समय से अधिक प्रदेषण वाले इलाकों में रहते हैं।
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