बस्तर जिले का अंतर्भौम जल (Subsurface Water of Bastar District)

Published on
12 min read

अंतर्भौम जल : अंतर्भौम जल का स्थानिक प्रतिरूप, विशिष्ट प्राप्ति पारगम्यता, अंतर्भौम जलस्तर की सार्थकता, अंतर्भौम जल की मानसून के पूर्व पश्चात गहराई, अंतर्भौम जल की सममान रेखाएँ, अंतर्भौम जल का पुन: पूर्ण एवं विसर्जन।

भू-गर्भ जल

(1) लेटेराइट लौह अयस्क :

यह अवसादी नूतन चट्टान हैं। यह चट्टान जिले के मध्य में बैलाडीला एवं भानुप्रतापपुर के मध्य में पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है। इन चट्टानों में कई परतें एक दूसरे के ऊपर सटी रहती है। इन चट्टानों में जोड़ तथा संधियाँ पायी जाती हैं। इन संधियों में अपरदित सतह ही भू-गर्भ जल उपलब्धता को सुगम बनाते हैं। अपक्षयित चट्टान की अपरदित सतह की गहराई 25 से 35 मीटर तक है।

(2) इंद्रावती समूह एवं सबरी समूह :

इन चट्टानों में क्वार्टजाइट, बलुआ पत्थर, चूना पत्थर इत्यादि चट्टाने हैं। ये चट्टाने जगदलपुर तहसील तथा दक्षिण-पश्चिम सीमा पर भोपालपटनम के उत्तर पश्चिम में पायी जाती है। यहाँ चूना पत्थर कठोर, सघन एवं सिलिकायुक्त है। सामान्यत: भू-गर्भ जल संधियाँ अपरदित कंदरायुक्त चूना पत्थर भू-गर्भ जल उपलब्धता को सुगम बनाते हैं। बलुआ पत्थर का निर्माण, रवेदार संरचनायुक्त रेतीले चट्टान एवं मिट्टी के आपस में चिपकने से हुआ है। क्वार्टजाइट का निर्माण बलुआ पत्थर के रूपांतर से हुआ है। बलुआ पत्थर एवं चूना पत्थर में भू-गर्भ जल की मात्रा अधिक है। जहाँ क्वार्टजाइट चट्टान हैं, वहाँ भू-गर्भ जल की मात्रा कम है। अपरदित शैल एवं संधियों के कारण इनकी गहराई 20 मीटर तक है। यहाँ पर जल की औसत गहराई 4 से 8 मीटर है।

(3) अबुझमाड़ समूह :

इस समूह में क्षारीय चट्टान होती है। यह आग्नेय चट्टानों के अपक्षय के द्वारा अवसाद के रूप में निर्मित चट्टान है। इसमें बालु तथा सिलिका की मात्रा कम होती है। बस्तर जिले में इसका विस्तार अबुझमाड़ की पहाड़ी क्षेत्र तथा दुर्गकोंदल के पश्चिम क्षेत्र में है। इन अपक्षयित तहों की मोटाई 15 मीटर है। इस चट्टान में भू-गर्भ जल की उपलब्धता कम पायी जाती है।

(4) मेटा अवसाद :

यह निस्रावी आग्नेय चट्टान है। लावा के शीघ्रता से ठंडा हो जाने के कारण इन चट्टानों में प्राय: रवे नहीं पड़ते। ये चट्टानें सुकमा एवं छिंदगढ़ विकासखंड के पश्चिमी क्षेत्र तथा बैलाडीला के पूर्वी सीमा क्षेत्र पर पाये जाते हैं। इनमें सरंध्रता कम पायी जाती है।

(5) बैलाडीला :

यह कायांतरित अवसादी शैल है। ये चट्टानें भू-गर्भ में बहुत ही भ्रशित एवं वलित रूप में पाये जाते हैं। जिले में इनका विस्तार बैलाडीला पहाड़ी के उत्तरी किनारे पर, नारायणपुर तहसील के रावघाट पहाड़ी क्षेत्र में तथा भानुप्रतापपुर के मध्य में है। ये चट्टानें परतदार होती हैं। इनमें संधियाँ पायी जाती है। भू-गर्भ में बहुत ही भ्रंश एवं वलित होने के कारण इनकी सरंध्रता अधिक है।

(6) ग्रेनाइट नाइस शैल समूह :

ये चट्टानें जिले की प्राचीनतम चट्टानें हैं। ये चट्टानें बस्तर जिले के लगभग तीन चौथाई क्षेत्र में फैले हुये हैं। जिले के कांकेर, केशकाल, नारायणपुर तहसील के पूर्वी भाग, दंतेवाड़ा के पश्चिमी क्षेत्र, तोकापाल, बास्तानार क्षेत्र में ग्रेनाइट चट्टान पायी जाती है। यह चट्टान अत्यंत कठोर आग्नेय चट्टान है। इसका भौतिकी स्वरूप खुरदुरा तथा सतह पर संधियाँ पायी जाती है। अत: ये एक जलागार के रूप में कार्य करते हैं। ग्रेनाइट नाइस क्षेत्र का विस्तार, भानुप्रतापपुर, दुर्गकोंदल, अंतागढ़, छोटे डोंगर, भोपालपटनम के उत्तर पश्चिम क्षेत्र, बीजापुर, उसूर, कोंटा, सुकमा, छिंदगढ़ के उत्तरी क्षेत्र में है। इस चट्टान में जल सरंध्रता कम पायी जाती है।

भू-गर्भ जल क्षेत्र :

भू-गर्भ जल उपलब्धता तथा भू गर्भिक संरचना के आधार पर जिले को निम्नलिखित प्रदेशों में विभक्त किया जाता है :

(1) विंध्यन शैल प्रदेश :

प्रीकेम्ब्रियन युग की चट्टानी संरचना में विंध्यन चट्टानी क्रम संग्रहीत है। इस क्षेत्र की प्रमुख चट्टानें क्वार्टजाइट, बलुआ पत्थर है। जिनका विस्तार केशकाल के पूर्व एवं पश्चिमी भाग, कांकेर एवं कोंडागाँव की सीमा के बीच है। जल की सरंध्रता क्वार्टजाइट में 0.5-8 प्रतिशत, बलुआ पत्थर 4-30 प्रतिशत है। अत्यंत संगठित एवं सघन संरचनायुक्त इन चट्टानों में प्राथमिक सरंध्रता का प्रतिशत न्यून है।

(2) कड़प्पा शैल :

कड़प्पा युगीन शैल बस्तर के एक-चौथाई भाग में पाए जाते हैं। ये चट्टानें जगदलपुर तहसील, कोंडागाँव की दक्षिण सीमा में चित्रकूट, तीरथगढ़ में तथा दक्षिण-पश्चिम सीमा में भोपालपटनम से उत्तर-पश्चिम की ओर कोटापल्ली में दक्षिण-पूर्व की ओर हैं। इसके अलावा यह शैल अबुझमाड़ की पहाड़ियों में परालकोट में भी पाया जाता है। यहाँ जल की सरंध्रता क्वार्टजाइट में 05-8 प्रतिशत, बलुआ पत्थर 4-30 प्रतिशत, चूना पत्थर 05-17 प्रतिशत है। क्वार्टजाइट कठोर सघन चट्टान है। चूना पत्थर, बलुआ पत्थर में भू-गर्भ-जल संधियाँ जल उपलब्धता को सुगम बनाते हैं।

(3) प्राचीन ट्रेप :

यह विंध्यन और कड़प्पा से भी प्राचीन है। जिले में इसका विस्तार अबुझमाड़ की पहाड़ी क्षेत्र तक है, जो ओरछा के पश्चिम में तथा कोयलीबेड़ा एवं परालपुर के बीच में है। प्राचीन ट्रेप अत्यंत कठोर चट्टान है। यह अपरदित चट्टान है, जिसमें यत्र-तत्र संधियाँ एवं दरारे हैं। भू-गर्भ जल मुख्यत: दो स्थितियों पर निर्भर करता है। पहला चट्टान कितना अपरदित है तथा दूसरा चट्टान कितना कठोर है। यहाँ बलुकाश्म क्षारीय चट्टान हैं, जल-सरंध्रता 4-30 प्रतिशत तक है।

(4) आर्किनियन ग्रेनाइट और नाइस चट्टानें :

ये चट्टानें बस्तर जिले के लगभग तीन-चौथाई क्षेत्र में पायी जाती हैं, जो प्राचीन ट्रेप से भी पुरानी है। यह कांकेर, केशकाल, अबुझमाड़ की पहाड़ी प्रदेश, भोपालपटनम, बीजापुर, दंतेवाड़ा, उसूर, सुकमा, छिंदगढ़, कोंटा तथा भानुप्रतापपुर एवं कोयलीबेड़ा के आधे भाग में पायी जाती है। यहाँ ग्रेनाइट तथा नाइस चट्टानें पायी जाती हैं। इस प्रदेश की प्रमुख चट्टानें : हार्नब्लेड, शिष्ट, चार्नोकाइट, काग्लोमरेट, डोलेराईट, पेग्मेटाइट, क्वार्टजाईट इत्यादि हैं। उपर्युक्त चट्टानी संरचना की जल सरंध्रता 0.02-2 प्रतिशत है।

(5) धारवाड़ क्रम की चट्टान :

यहाँ लेटेराइट लौह अयस्क एवं धारीदार लौहयुक्त शैल पायी जाती है। इसका विस्तार बैलाडीला पहाड़ी, रावघाट पहाड़ी, भानुप्रतापपुर के मध्य पहाड़ी क्षेत्र में है। यह नूतन काल की कायांतरित अवसादी चट्टान है। चट्टानें परतदार संधियों से युक्त हैं। भू-गर्भ में अनेक भ्रंश एवं वलित होने के कारण जल सरंध्रता 0.5-15 प्रतिशत तक है।

बस्तर जिले में मुख्यतया, ग्रेनाइट, नीस, शिष्ट एवं अन्य चूना पत्थर, शेल, बलुआ इत्यादि चट्टानें पाई जाती हैं। ये सभी चट्टानें ठोस तथा कठोर होती हैं। इन चट्टानों में भूमिगत जल को संचित करने के गुणों का लगभग अभाव रहता है। यह अभाव इन चट्टानों के विभिन्न कणों के बीच खाली स्थानों की कमी या इन स्थानों में ठोस पदार्थ के भर जाने के कारण होता है। ये चट्टानें भूमिगत जल संचयन एवं दोहन की दृष्टि से अधिक उपयुक्त नहीं होती हैं।

भू-गर्भ जल के अवलोकित कुओं की स्थिति :

(1) मानसून पूर्व भूजल स्तर :

बस्तर जिले में पूर्व मानसून काल में भू-गर्भ जलस्तर की गहराई का विस्तार अधिकतम 15.96 मीटर (पंडरीपानी) से न्यूनतम 2.90 मीटर (हाथीधारा) के मध्य रहता है।

जिले के 6 प्रतिशत कुओं में जलस्तर की गहराई 0-4 मीटर, 62 प्रतिशत कुओं में 4-8 मीटर, 30 प्रतिशत कुओं में 8-12 मीटर एवं 2 प्रतिशत कुओं में 12 मीटर से अधिक है। बस्तर जिले के कड़प्पा क्रम की क्वार्टजाइट चट्टानी क्षेत्र में जलस्तर अधिकतम है। इन क्षेत्रों में कुओं में जलस्तर पंडरीपानी में 15.96 मीटर, आसना में 12.67 मीटर, बस्तर में 12.22 मीटर एवं धनपुँजी में 12.15 मीटर है। जिले में चार छोटे क्षेत्र हैं, जहाँ जलस्तर की गहराई न्यून क्षेत्र में है। हाथी धारा (2.9 मीटर) कोडेनार (3.09 मीटर), नेगानार (3.43 मीटर) एवं दुर्गकोंदल (3.43 मीटर) है। बालुकाश्म चट्टानों की उपलब्धता के कारण इन क्षेत्रों में जल की उपलब्धता अधिक है। जिले में 90 प्रतिशत क्षेत्र में ग्रेनाइट, नीस एवं कड़प्पा क्षेत्र में स्थित ग्रामों में भू-गर्भ जलस्तर की गहराई 4-8 मीटर एवं 8-12 मीटर के मध्य रहता है।

मानसून पश्चात भूजल स्तर :

वर्षा भू-गर्भ जल के संभरण का प्रमुख स्रोत है। अत: मानसून के पश्चात जिले के सभी भागों में भू-गर्भ जल का स्तर न्यून रहता है। मानसून के पश्चात अधिकतम भू-गर्भ जल का स्तर संकनपाली में (6.60 मीटर) एवं न्यूनतम माडीड (0.66 मीटर) के मध्य रहता है। जिले के 2 प्रतिशत कुओं में भू-गर्भ जल का स्तर एक मीटर से कम, 20 प्रतिशत कुओं में 1-2 मीटर, 28 प्रतिशत कुओं में 2-3 मीटर, 30 प्रतिशत कुओं में 3-4 मीटर, 15 प्रतिशत कुओं में 4-5 मीटर एवं 5 प्रतिशत कुओं में जलस्तर की गहराई 5 मीटर से अधिक है (मानचित्र क्र. 4.4)। जिले के ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट चट्टानी प्रदेशों में इस अवधि में जल का स्तर अधिकतम होता है। इन क्षेत्रों में कुटम्बसर (6.53 मीटर), सुकमा (5.85 मीटर), संकनपाली (6.60 मीटर) एवं कुटरू (5.88) मीटर है। जिले में तीन छोटे क्षेत्र हैं। जहाँ जलस्तर की गहराई न्यून है। ये क्षेत्र बोरगुडा (0.88 मीटर), नेगानार (0.94 मीटर) एवं माडीड (0.66 मीटर) है। सघन वन, अधिक वर्षा बालुकाश्म चट्टानें होने के कारण इन भागों में जल का स्तर कम है। जिले के 80 प्रतिशत क्षेत्र में मानसून के पश्चात जल के स्तर की गहराई 2-5 मीटर के मध्य रहती है। जिले में मानसून के पश्चात दिसंबर तक जल का स्तर ठीक रहता है और इसके बाद घटने लगता है, जिससे जल का अभाव होता है। जिले में कठोर चट्टान होने के कारण वर्षा के जल 75 प्रतिशत प्रवाहित हो जाता है।

भूजल स्तर में उतार चढ़ाव :

भू-गर्भ में जलागमन एवं जल निस्सरण के कारण जलस्तर परिवर्तित होता रहता है। जलागमन की मात्रा जल निस्सरण की मात्रा से अधिक होने के कारण भू-गर्भ जल सतह में वृद्धि होती है। भू-गर्भ जल की निकासी की मात्रा जलागमन की मात्रा से अधिक होने की दशा में जल सतह न्यून हो जाती है। बस्तर जिले के जगदलपुर, दुर्गकोंदल, सुकमा क्षेत्र के कुओं में भू-गर्भ जल सतह का उतार चढ़ाव सर्वाधिक (6-8 मीटर) है। जबकि जिले के अन्य भागों में यह परिवर्तन 2 से 6 मीटर के मध्य है।

मानसून के पूर्व जलस्तर की अधिकतम गहराई 15.96 मीटर एवं न्यूनतम 2.90 मीटर तक रहती है। मानसून के पश्चात जल के स्तर की अधिकतम गहराई 6.60 मीटर एवं न्यूनतम 0.66 मीटर रहती है। जल तल का जिले में औसत अधिकतम उतार-चढ़ाव 9.97 मीटर धनपुँजी एवं सकनपाली में 1.52 मीटर पाया गया। जिले में 3 प्रतिशत कुओं में भूगर्भ जल के स्तर का उतार चढ़ाव 2 मीटर से कम, 35 प्रतिशत कुओं में 2-4 मीटर, 48 प्रतिशत कुओं में 4-6 मीटर, 12 प्रतिशत कुओं में 6-8 मीटर तथा 2 प्रतिशत कुओं में 8 मीटर से अधिक है। औसत भू-गर्भ जल का उतार चढ़ाव बलुकाश्म, चूना पत्थर क्षेत्र की तुलना में कड़प्पा एवं ग्रेनाइट नाइस की कठोर सघन चट्टान में अधिक है।

औसत भू-गर्भ जल स्तर :

बस्तर जिले में सामान्यत: सतही समोच्च रेखा उत्तर पूर्व से दक्षिण की ओर ह्रासमान है। इसी तरह जल स्तर के समोच्च रेखाओं के मूल्य में भी उत्तर पूर्व से दक्षिण की ओर ह्रास होता गया है। जिले में भूजल स्तर समोच्च रेखाओं की अधिकतम ऊँचाई दक्षिण मध्य में समुद्र सतह से 848.21 मीटर एवं न्यूनतम ऊँचाई समुद्र सतह से 206.66 मीटर (बड़ेगुडरा)।

जिले के उत्तरी क्षेत्रों में भूजल स्तर की समोच्च रेखाएँ उत्तर-पूर्व से उत्तर-पश्चिम में कम होती जा रही हैं। जबकि जिले के दक्षिण क्षेत्रों में जलस्तर की समोच्च रेखाओं में अनियमितता है। इसके कारण छोटे-छोटे बेसिन स्वरूपों का निर्माण हुआ है। इस क्षेत्र में जलीय प्रवणता अधिक है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में जलीय प्रवणता कम है। यह प्रवणता उत्तर-पश्चिम में एवं दक्षिण-पश्चिम में ढाल के साथ अधिक होती जाती है।

जल प्रवाह की दिशा मुख्यत: जलीय विशेषता, धरातलीय स्वरूप एवं चट्टानी संरचना पर निर्भर होती है। जिले में जल प्रवाह की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण की ओर है। जिले के दक्षिण में जलस्तर के प्रवाह में बलुआ पत्थर क्षेत्र, चूना क्षेत्र तथा ग्रेनाइट-नाइस क्षेत्र में भ्रंश, वलयन, नमन चट्टानों की संरचना के अंतर के कारण विभिन्नताएँ परिलक्षित होती है।

भू-गर्भ जल स्वरूप :

जिले को भू-गर्भ जलस्तर की समोच्च रेखाओं द्वारा निर्मित प्रवणता के आधार पर दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है :

(1) इंद्रावती नदी का उत्तरी क्षेत्र (2) इंद्रावती नदी का दक्षिणी क्षेत्र।

(1) इंद्रावती नदी का उत्तरी क्षेत्र :

इंद्रावती नदी बस्तर जिले के मध्य से होकर बहती है, जिसके कारण जिला उत्तरी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में बँटा हुआ है। उत्तर-पश्चिम में भू जल स्तर न्यूनतम गहराई पर है एवं पूर्व में अधिक गहराई युक्त केशकाल घाटी निर्मित हो गई है। यहाँ भूजल स्तर समुद्र सतह से 700-800 मीटर तक है। इस क्षेत्र के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में भूजल स्तर समुद्र सतह से 300-400 मीटर तक है। इंद्रावती नदी के उत्तरी क्षेत्र में भूजल स्तर समोच्च रेखाएँ सामांतर एवं विरल है। अत: प्रवणता कम है। पश्चिम से पूर्व की ओर भूजल गहराई बढ़ने के कारण पूर्व के थोड़े क्षेत्र में घाटी निर्मित हो गई है। अत: प्रवणता अधिक है। उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ने में समोच्च रेखाओं में विभिन्नता आती गई है।

(2) इंद्रावती नदी का दक्षिणी क्षेत्र :

जिले के दक्षिणी भाग में भू-गर्भ जल समोच्च रेखाएँ अनियमित प्रतिरूप में है। यहाँ सबरी नदी तल के नीचे कम गहराई युक्त घाटी निर्मित हो गई है। यहाँ भूजल स्तर समुद्र सतह से 300 से 500 मीटर तक है। समोच्च रेखाओं की दूरी बराबर एवं सघन है। अत: प्रवणता अधिक है। समोच्च रेखाओं का अंतराल पश्चिमी भाग में विरल है तथा दक्षिणी पूर्व भाग में अंतराल समान है। जिले के दक्षिणी मध्य भाग में मलेएंग नदी के तल के नीचे अधिक गहराई युक्त घाटी निर्मित हो गई है। यहाँ पर भूजल स्तर समुद्र सतह से 400 से 800 मीटर तक है। बैलाडीला पहाड़ी क्षेत्र में समोच्च रेखाओं की दूरी बराबर एवं सघन है। अत: प्रवणता अधिक है। पहाड़ी के पूर्व और पश्चिम भाग में समोच्च रेखा का अंतराल बढ़ता गया है। अत: प्रवणता कम है। दक्षिणी क्षेत्र में दो घाटी निर्मित हो गई है।

भू-गर्भ जल का पुन: पूरण :

भू-गर्भ जल निकासी :

धरातल के ऊपर किसी भी स्रोत के द्वारा रिसाव, संभाव्य वाष्पोत्सर्जन इत्यादि भू-गर्भ जल निकासी के माध्यम हैं। जिले में भू-गर्भ जल का पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। जिले में भू-गर्भ जल निकासी मुख्यत: सार्वजनिक अथवा निजी नलकूपों, कुओं, पम्प एवं खुले उथले कुओं के माध्यम से होती है। जिले के इन विभिन्न स्रोतों से कुल भू-गर्भ जल की वार्षिक निकासी 48.31 लाख घन मीटर है, जो कुल भू-गर्भ जल पुन: पूर्ति का 1.35 प्रतिशत है।

बस्तर जिले के विभिन्न विकासखंडों में भू-गर्भ जल निकासी की सांख्यिकीय गणना (एआरडीसी) द्वारा प्रयुक्त प्रसममान के आधार पर ज्ञात की गयी है। बस्तर जिले में भू-गर्भ जल नकासी मुख्यत: कुओं के माध्यम से होती है। अतएव इसकी गणना उनके उपयोग एवं उद्वहन के प्रकार आदि के आधार पर की गई है। प्रमुख नदियों एवं उनकी सहायक धराओं (नालों) के द्वारा होने वाले भू-गर्भ निस्सरण की गणना हेतु, कुल भू-गर्भ जल निस्सरण का 15 प्रतिशत घटा दिया जाता है। इस प्रकार विभिन्न साधनों से होने वाले जल निस्सरण की गणना करके भू-गर्भ जल निकासी ज्ञात की जाती है। विभिन्न साधनों हेतु प्रयुक्त प्रसममानों का विवरण (तालिका क्र. 4.3) में दर्शाया गया है।

बस्तर जिले में भू-गर्भ जल निकासी सरोना विकासखंड में सर्वाधिक है, जो 9.97 लाख घन मीटर, अर्थात कुल भू-गर्भ जल प्राप्यता का 10.6 प्रतिशत है। जिले में भू-गर्भ जल का न्यूनतम निकासी, ओरछा, बास्तानार विकासखंड में 0.05 लाख घन मीटर अर्थात कुल भू-गर्भ जल प्राप्यता का 0.002 प्रतिशत है।

जिले के अन्य विकासखंडों में भू-गर्भ जल निकासी की मात्रा जगदलपुर, बस्तर, बकावंड, कोंडागाँव, माकड़ी, बड़ेराजपुर, केशकाल, फरसगाँव, नारायणपुर, अंतागढ़, कोयलीबेड़ा, भानुप्रतापपुर, विकासखंडों में 1-3 लाख घन मीटर लोहण्डीगुड़ा, तोकापाल, दरभा, दंतेवाड़ा, गीदम, कुआकोंडा, कटेकल्याण, बीजापुर, भैरमगढ़, भोपालपटनम, उसूर, कोंटा, सुकमा, छिंदगढ़, दुर्गकोंदल विकासखंडों में 0-1 लाख घन मीटर, कांकेर में 4.87, चारामा में 5.77 लाख घन मीटर है।

जिले में तीन विकासखंडों में भूजल निकासी अधिक है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यहाँ समतल धरातलीय स्वरूप है एवं महानदी कछारी क्षेत्र है, जिसमें जल धारण क्षमता अधिक है। जिले के अन्य विकासखंडों में भूजल की निकासी की न्यूनता है। जिले के तीन चौथाई भाग में ग्रेनाइट नाइस कठोर चट्टान इसका प्रमुख कारण है, जिसकी जल धारण क्षमता कम है तथा पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र है, जिसके कारण भूजल निकासी कम है।

बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण, शोध-प्रबंध 1997


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

प्रस्तावना : बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण (An Assessment and Development of Water Resources in Bastar District - A Geographical Analysis)

2

बस्तर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geography of Bastar district)

3

बस्तर जिले की जल संसाधन का मूल्यांकन (Water resources evaluation of Bastar)

4

बस्तर जिले का धरातलीय जल (Ground Water of Bastar District)

5

बस्तर जिले का अंतर्भौम जल (Subsurface Water of Bastar District)

6

बस्तर जिले का जल संसाधन उपयोग (Water Resources Utilization of Bastar District)

7

बस्तर जिले के जल का घरेलू और औद्योगिक उपयोग (Domestic and Industrial uses of water in Bastar district)

8

बस्तर जिले के जल का अन्य उपयोग (Other uses of water in Bastar District)

9

बस्तर जिले के जल संसाधन समस्याएँ एवं समाधान (Water Resources Problems & Solutions of Bastar District)

10

बस्तर जिले के औद्योगिक और घरेलू जल का पुन: चक्रण (Recycling of industrial and domestic water in Bastar district)

11

बस्तर जिले के जल संसाधन विकास एवं नियोजन (Water Resources Development & Planning of Bastar District)

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org