हाड़ौती के प्रमुख जल संसाधन (Major water resources of Hadoti)
भारत के प्राचीन ग्रंथों में आरम्भ से ही जल की महत्ता पर बल देते हुए इसके संचयन पर जोर दिया गया है। ‘जलस्य जीवनम’ के सिद्धान्त को चरितार्थ करते हुए विश्व की समस्त प्राचीन सभ्यताओं का विकास विभिन्न नदियों की घाटियों में हुआ है।1 इसका मुख्य कारण यह है कि जल मानव जीवन के सभी पक्षों से जुड़ा रहा है। जल की उपयोगिता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए मानव समाज ने जल संचय अथवा जल संग्रह के ऐसे अनेक स्रोतों का निर्माण तथा अन्वेषण किया, जिनसे जलापूर्ति की समस्याओं का निराकरण किया जा सके।
हाड़ौती आरम्भ से अनेक जल स्रोतों से समृद्ध रहा है। लोक कल्याण की भावना से युक्त होने के कारण यहाँ के नरेशों ने समय-समय पर अनेक जल स्रोतों का निर्माण करवाया। हाड़ौती के कृषि प्रधान होने के कारण कृषि भूमि को सिंचित करने की आवश्यकता महसूस हुई परिणामस्वरूप यहाँ के शासकों ने अनेक तालाबों, कुण्डों, बावड़ियों को बनवाया। ये कुण्ड व बावड़ियाँ राज्य की जनता के लिये सदियों तक पीने योग्य पानी उपलब्ध करवाते रहे। हाड़ौती के यह जल स्रोत जहाँ एक ओर यहाँ के नरेशों की जन कल्याण की भावना की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हैं तो वहीं दूसरी ओर ये हमारी सांस्कृतिक जरूरतों को भी सदैव पूर्ण करते रहे हैं।
समाज के समृद्ध लोगों के अलावा कभी-कभी दास दासियों और कम सुविधा सम्पन्न लोग भी इन जलस्रोतों का निर्माण करवाते थे, जो निजी और सार्वजनिक उपयोग हेतु बनाये जाते थे। शहरी परकोटे के अन्दर बनी बावड़ियाँ निर्माता परिवार की महिलाओं के स्नान के उपयोग के लिये होती थी। विशेष अनुमति लेकर बावड़ियों का उपयोग रास्तों से गुजरने वाले व्यापारिक काफिलों द्वारा भी किया जाता था। इसके अलावा बाहर से साधारण या पेयजल स्रोत दिखने वाली ये बावड़ियाँ सैनिक अभियानों के समय व आपातकालीन स्थितियों में एक नये रूप में उभरकर सामने आती थी।2
बावड़ियों का निर्माण शिकार हेतु सुरक्षित स्थल के रूप में जिन्हें शिकारगाह के नाम से पुकारते हैं वहाँ आने वाले शिकारियों को सुरक्षा प्रदान कराने हेतु भी किया जाता था। बावड़ियों का उपयोग दाह संस्कार के पश्चात स्नान करने हेतु भी किया जाता था इसलिये ये प्रमाणिक है कि बावड़ियाँ सामाजिक गतिविधियों की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी थी।
बून्दी के जल संसाधन
डूमरा बावड़ी
बड़े तोपखाने के कोट की बावड़ी
डहरी बावड़ी
शुक्ल बावड़ी
चतरा धाबाई बावड़ी
कालाजी देवपुरा की बावड़ी
व्यास बावड़ी
खोड़ी की बावड़ी
खोजागेट की बावड़ी
गणेश बाग की बावड़ी
पंडितजी की बावड़ी
बिबनबा बावड़ी
शिवजी की बावड़ी
चाँदशाह की चौकी की बावड़ी
सोमाणियों की बावड़ी
तालाब गाँव की बावड़ी
सीसोला पनघट की बावड़ी
नौ चौकी की बावड़ी
सीलोर बालाजी की बावड़ी
सीलोर व्यास बावड़ी
बंगेश्वरी माता की बावड़ी
रामगंज बालाजी की बावड़ी
शालिन्दी दर्रे की बावड़ी
भाटों की बावड़ी
खजूरी बावड़ी
धावड़ की बावड़ी
हीराखाती की बावड़ी
गुता ग्राम की बावड़ी
गेन्डोली बावड़ी
डाटुन्दा बावड़ी
इमलियों की बावड़ी
धाबाइयों के नये गाँव की बावड़ी
अमरनाथ महादेव की बावड़ी
चैनराय जी के कटले की बावड़ी
वैद्यनाथ महादेव के सामने की बावड़ी
डाक बंगला बावड़ी
धौला देवरा की बावड़ी
सथूर दर्रा की बावड़ी
महादेवजी महाराज की बावड़ी
रामगंज कुण्ड
चौथमाता के बाग का कुण्ड
बडारण कुण्ड
ओगड़ का कुण्ड
बोरखण्डी बालाजी का कुण्ड
अमरनाथ महादेव का बड़ा कुण्ड
हर्षदा माता के समीप का कुण्ड
जैतसागर तालाब
कनक सागर
सिंहोलाव तालाब
चरखियों का कुआँ
मेजनदी
कोटा के जल संसाधन
बारह बिवरियाँ
कोटा से 95 किमी दूर 300 वर्ष पूर्व करवाड़ में महाराजा आनन्दसिंह जी के शासनकाल में एक बनिये के द्वारा इन बिवरियों का निर्माण करवाया गया। कहा जाता है कि बनिये को स्वप्न में शिवजी ने अपनी प्रतिमा नदी में होने की बात कही। बनिये को नदी में बारह प्रतिमा व शिवलिंग मिले। उसने तुरन्त वहाँ बारह बिवरियों व कुण्ड का निर्माण करवाया। कुण्ड में पानी भरा है और कई बिवरियाँ पानी में डूबी हुयी हैं।63
रामपुरा की बावड़ी
अयाना की बावड़ी
चश्मे की बावड़ी
तार बावड़ी
नाथों की बावड़ी
बड़ौद की बावड़ी
खारी बावड़ी
हाड़ा की बावड़ी
भेरूजी की बावड़ी
गोरूजी की बावड़ी
खीमच की बावड़ी
राजपूतों की बावड़ी
छतरीवाली बावड़ी
फतमल की बावड़ी
छतरी वाली बावड़ी
खेल की बावड़ी
पन बावड़ी
फूटी बावड़ी
महाजनों की बावड़ी
छीपो की बावड़ी
माताजी की बावड़ी
धुलेट की बावड़ी
खजूरी की बावड़ी
ब्रजनगर की बावड़ी
चौमाकोट की बावड़ी
जालिमपुरा की बावड़ी
गगटाना का कुण्ड व बावड़ी
जालीपुरा की बावड़ी
बनियानी की बावड़ी
बड़ोदिया की बावड़ी
बनेढिया की बावड़ी
कचोलिया की बावड़ी
मूढ़ला की बावड़ी
भौरा की बावड़ी
पारलिया की बावड़ी
पड़ासल्या की बावड़ी
सनिजा बावड़ी
सरोला बावड़ी
शीशफूल की बावड़ी
सुनारों का कुआँ
दुलाजी की बावड़ी
चरतराय जी की बावड़ी
पक्की बावड़ी
सीमलिया की बावड़ी
सामरिया की बड़ी बावड़ी
हनुमान जी की बावड़ी
दीगोद की बावड़ी
उम्मेदगंज की बावड़ी
जयाराम भगवत की बावड़ी
बड़ी बावड़ी
मंथ महाराज की बावड़ी
कतवारी बावड़ी
मदारिया की बावड़ी एवं कुण्ड
बनासा की बावड़ी
व्यास बावड़ी
हनुमान जी के मन्दिर की बावड़ी
तीन मंजिला बावड़ी
मंवासा की बावड़ी
गाज की बावड़ी
गिरधरपुरा की बावड़ी
परल्या का कुआँ
डाबेडा की बावड़ी
आशारावल जी की बावड़ी
भाटों की बावड़ी
शाहपुरा की बावड़ी
बगीची की बावड़ी
चारणहेड़ी की बावड़ी
ताथेड़ की बावड़ी
जगतपुरा की बावड़ी
रहट की बावड़ी
अरल्या की बावड़ी
महादेव जी कुण्ड
भीतरिया कुण्ड
आकोड़िया का कुण्ड
खाजी का कुण्ड
ताखेश्वर का कुण्ड
नहरावली का कुण्ड
क्षारबाग का कुण्ड
चित्तौड़ा का कुण्ड
गिरधरपुरा का कुण्ड
चार छतरियों का कुण्ड
ताथेड़ का कुण्ड
दीगोद का तालाब
बड़ा तालाब
दाता का तालाब
हरिपुरा का तालाब
पदमपुरा का तालाब
रामसागर तालाब
रावठा का तालाब
रानपुर का तालाब
गोदल्याहेड़ी का तालाब
प्रहलादपुरा का कुआँ
राजपूतों का कुआँ
देव कृष्ण गुर्जर का कुआँ
भोपन का कुआँ
अरल्या का मोती कुआँ
राज का कुआँ
दलापुरा का कुआँ
प्रेमपुरा का कुआँ
बादली का कुआँ
मशीन वालों का कुआँ
उम्मेदगंज का कुआँ
नान्ता महल के जल स्रोत
चम्बल नदी
1. प्रथम चरण-
प्रथम चरण में गाँधी सागर बाँध, गाँधी सागर विद्युत गृह, कोटा सिंचाई बाँध एवं दोनों ओर नहरों के निर्माण का कार्य किया गया।
2. द्वितीय चरण-
राणा प्रताप सागर बाँध, राणा प्रताप विद्युत गृह का निर्माण कार्य सम्पन्न किया गया।
3. तृतीय चरण-
इसके अन्तर्गत जवाहर सागर बाँध एवं जवाहर सागर विद्युत गृह निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।
गाँधी सागर बाँध एवं विद्युतगृह-
गाँधीसागर बाँध चम्बल परियोजना का प्रथम बाँध है जो मन्दसौर जिले के चौरासीगढ़ दुर्ग से लगभग 8 किलोमीटर नीचे रामपुरा-भानपुरा पठारों के बीच चम्बल नदी पर 1959 ई. में निर्मित किया गया था। चम्बल एक ऐसी नदी है जिसका अपार जल इस बाँध के निर्माण से पहले बिना किसी उपयोग के ही बह जाता था। इस जल राशि का उपयोग राष्ट्र-कल्याण में करने के लिये ही चम्बल नदी पर सर्वप्रथम गाँधीसागर बाँध का निर्माण किया गया। जिसका लाभ केवल मध्य प्रदेश को ही नहीं बल्कि राजस्थान को भी मिल रहा है।
यह बाँध 513.5 मीटर लम्बा एवं 62 मीटर ऊँचा है। गाँधी सागर का क्षेत्रफल 580 वर्ग किलोमीटर एवं जल संग्रह क्षमता 77460 लाख घनमीटर है तथा उपयोगी जल ग्रहण क्षमता 69200 लाख घनमीटर है। विद्युत उत्पादन हेतु इस बाँध पर 23 हजार किलोवाट क्षमता वाली पाँच इकाइयाँ स्थापित की गई हैं जिनकी सम्मिलित उत्पादन क्षमता 115 हजार किलोवाट है। प्रत्येक टरबाइन से उपयोग के बाद निकलने वाले जल द्वारा कोटा बैराज से, जो चम्बल परियोजना का सबसे नीचे का बाँध है के दोनों तरफ दो नहरें निकाली गई गई हैं। दायीं ओर से निकाली गई नहर की जल क्षमता 6660 क्यूसेक है। यह नहर 425 किलोमीटर लम्बी है। इस नहर का 127 किलोमीटर भाग राजस्थान तथा शेष 298 किलोमीटर मध्य प्रदेश में है। इसकी सहायक नहरों की लम्बाई 560 किलोमीटर है। बायीं नहर 65 किलोमीटर बहती हुई अन्त में बून्दी जिले की मेजा नदी में जाकर मिल जाती है। इसकी जल क्षमता 1270 क्यूसेक है। इन दोनों नहरों से कोटा, बून्दी, टोंक व सवाईमाधोपुर जिलों की लगभग 4.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो रही है। बाँध के निर्माण में नींव का बहुत महत्त्व है और विशेष रूप से नदी की धारा में जहाँ पर बाढ़ के पानी की निकासी हेतु उत्पलव मार्ग का निर्माण किया जाता है। इसलिये नदी तल की सभी कमजोर चट्टानों को हटाकर समुचित रूप से सीमेंट, कंकरीट ग्राउटिंग करके संभावित दबावों को वहन करने योग्य एक मजबूत आधार तैयार किया गया। बाँध के नीचे का दबाव कम करने के लिये एक “ड्रेनेज गैलरी निकास दीर्घा” का निर्माण किया गया, जिसमें 7.5 से 10 सें. मी. व्यास के 12 से 15 मी. गहरे तथा 6 मी. के अन्तराल पर छेद किए गए हैं। उत्पलव मार्ग बकैट के नीचे भी जल निकासी प्रणाली का प्रावधान है। गाँधी सागर बाँध के उत्पलव मार्ग के निर्माण में पत्थरों की चिनाई के साथ-साथ सीमेंट, कंकरीट का भी उपयोग किया गया है। पूरे बाँध के निर्माण में 1.7 लाख घनमीटर कंकरीट का उपयोग हुआ है। विभिन्न प्रकार के दबावों को वहन करने हेतु लौह मिश्रित कंकरीट का भी उपयोग किया गया है। निर्माण की दृष्टि से यह बाँध चिनाई का बाँध (मेसनरी डैम) है, जो पत्थर की चिनाई से बना है। इसके निर्माण में मुख्य सामग्री लाल सीमेंट जिसमें 25 प्रतिशत मिलाया हुआ ईंट का बुरादा था, प्रयोग की गई थी। इसकी संरचना में “कुनू साइफन” का निर्माण एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
तकनीकी दृष्टि से इस बाँध का मुख्य भाग जल-विद्युतगृह है, जो कि बाँध के नीचे दाहिनी ओर 93.3 मी. लंबे तथा 17.7 मी. चौड़े आकार का बनाया गया है। यह लौह मिश्रित कंकरीट की संरचना है। इस विद्युतगृह (बिजलीघर) की स्थापित क्षमता 115 हजार किलोवाट है। इसमें प्रत्येक 23 हजार किलोवाट की 5 इकाइयाँ निर्मित की गई हैं। विद्युतगृह का मुख्य भाग “जनरेटर हॉल” है, जो कि 32 लौह मिश्रित कंकरीट के खंभे पर आधारित है। इसमें लगे तीन जनरेटरों की विशेषता विद्युत उत्पादन के लिये इलेक्ट्रिकल शैफ्ट सिस्टम का प्रावधान, वोल्टेज विनियमन के लिये चुंबकीय एम्पलीफायर का प्रयोग एवं न्यूट्रल इन्सोलेशन है। चौथी विद्युत उत्पादन इकाई के लिये पारम्परिक एक्साइटेशन और वोल्टेज विनियमन का प्रावधान है तथा द्वितीय चरण की ओर न्यूट्रल को प्रतिरोधक द्वारा अर्थिंग ट्रांसफॉर्मर से भूमि से जोड़ दिया गया है।89
राणा प्रताप सागर बाँध एवं विद्युत गृह-
गाँधी सागर से 48 किलोमीटर दूर राजस्थान में चम्बल नदी पर चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा में चुलिया जल-प्रपात के निकट यह बाँध बनाया गया है जहाँ नदी अत्यन्त संकीर्ण घाटी से गुजरती है। इस बाँध की लम्बाई 1100 मीटर व ऊँचाई 36 मीटर है। यह बाँध 1970 ई. में 31 करोड़ की लागत से पूर्ण हुआ था। इसके जलाशय का क्षेत्र 113 वर्ग किलोमीटर है और इससे निकाली गई नहरों से लगभग 1.2 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की जाती है। बाँध के ठीक नीचे जल विद्युत गृह बनाया गया है। जिसमें 43000 किलोवाट विद्युत क्षमता की चार इकाइयाँ सक्रिय हैं। इसके निकट ही राजस्थान परमाणु शक्ति गृह भी बना है।
जवाहर सागर बाँध एवं विद्युत गृह-
इस बाँध का निर्माण राजस्थान में राणा प्रताप सागर बाँध से 33 किलोमीटर दूर उत्तर में बोरावास गाँव के समीप किया गया है। यह बाँध 440 मीटर लम्बा एवं 45 मीटर ऊँचा है। पहले दो बाँधों से छोड़ा गया जल ही मुख्यतः इसमें आता है। इस बाँध के नीचे की ओर निर्मित विद्युत गृह में 33-33 हजार किलोवाट विद्युत क्षमता की तीन इकाइयाँ हैं, जिनकी कुल विद्युत उत्पादन क्षमता 99 हजार किलोवाट है। यह एक बहुमुखी परियोजना है, जिसका निर्माण बिजली उत्पन्न करने, बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये तथा जलग्रहण क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा के लिये किया गया है।
चम्बल परियोजना राजस्थान एवं मध्य प्रदेश दोनों राज्यों के लिये बड़ी लाभप्रद रही है। इसमें दोनों राज्यों की लगभग 6 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई एवं 3.86 लाख किलोवाट जल-विद्युत का उत्पादन हो रहा है। इस प्रकार कोटा, लाखेरी सवाईमाधोपुर, उदयपुर, चितौड़गढ़ जयपुर साँभर किषनगढ़ झालावाड़ आदि नगरों एवं मध्य प्रदेश राज्य के मन्दसौर, रतलाम उज्जैन, ग्वालियर आदि नगरों का द्रुतगति से औद्योगिक विकास हो रहा है। उपरोक्त के अतिरिक्त इस परियोजना से मिट्टी के कटाव पर रोक, मत्स्य पालन, वृक्षारोपण, मलेरिया पर नियन्त्रण, पेयजल की सुविधा जैसे उद्देश्यों की पूर्ति हो रही है।90
पार्वती नदी
झालावाड़ के जल संसाधन
बाई जी की बावड़ी
व्यासों की बावड़ी
अंधेरा बाग की बावड़ी
त्रिमुखी बावड़ी
राज बावड़ी
केसर बावड़ी
सुदामा बावड़ी
जैन मन्दिर बावड़ी
क्यासरा की बावड़ी
गोरवालों की बावड़ियाँ
नन्दपुर लुहारिया की बावड़ी
बड़ के बालाजी की बावड़ी
मंगलपुरा की बावड़ी
मोती कुण्ड
मोडी की झर का कुण्ड
रानीजी की तलाई
उन्हैल का तालाब
दलसागर तालाब
गोमती सागर तालाब
मोती कुआँ
संगम घाट
कालिसिन्ध
चन्द्रभागा नदी
चन्द्रसेन को भागते प्रकट हि सुरसरि आय।
ऐहि कारण तिय नाम से भागा चन्द्र कहाय।।
झालरापाटन कस्बा चन्द्रभाग नदी के किनारे पर स्थित है यह नदी नगर के पश्चिम की ओर बह कर आती है तथा दक्षिण हिस्से को छूती हुई उत्तर में मुड़ कर कालिसिन्ध नदी में मिल जाती है। चन्द्रभागा नदी के किनारे झालावाड़ जिले का सबसे बड़ा मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर झालरापाटन नगर के समीप चन्द्रभागा नदी के किनारे इस मेले का आयोजन पशुपालन विभाग द्वारा किया जाता है। मेले में हजारों की संख्या में विभिन्न प्रकार के पशुओं का क्रय-विक्रय होता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पावन चन्द्रभागा नदी में स्नान करते हैं।101
बारां के जल संसाधन
इकलेरा बावड़ी
बेगन बावड़ी
भुमा साहब की बावड़ी
करमा जी की बावड़ी
गढ़ की बावड़ी
मीरा बाई की बावड़ी
कालाखेड़ा की बावड़ी
मण्डोला की बावड़ी
दीलोदा की बावड़ी
गोरधनपुरा की बावड़ी
खील खुली माताजी की बावड़ी
मकबरा बावड़ी
सोरती बावड़ी
पानी की बावड़ी
मुण्डियर की बावड़ी
पोखारामजी की बावड़ी
सती की बावड़ी
बमौरी घाटा की बावड़ी
कालिका माता बावड़ी
मजिनाग मन्दिर की बावड़ी
दीगोद की बावड़ी
फलिया की बावड़ी
अमलावदा की बावड़ी
गडारी की बावड़ी
कांकड़दा की बावड़ी
संतराम बाग की बावड़ी
किला बावड़ी
पदमपुरा की बावड़ी
पगारा की बावड़ी
ब्रह्म साहब की बावड़ी
काचकरण जी की बावड़ी
देवरा की बावड़ी
मोरेली की बावड़ी
खेल बावड़ी
रामदास जी की बावड़ी
झालीजी की बावड़ी
बालाखेड़ा की बावड़ी
बालदड़ा की बावड़ी
बिसोली माताजी की बावड़ी
गोकुल जी की बावड़ी
खेल भराई बावड़ी
छतरी हाली बावड़ी
जमनापरी बावड़ी
गढ़ की बावड़ी
महादेव मन्दिर की बावड़ी
पोखरा बावड़ी
पचेल खुर्द की बावड़ी
खावंताजी की बावड़ी
कलकल्या महाराज की बावड़ी
मन्दिर परिसर की बावड़ी
सरकन्या की बावड़ी
खारी बावड़ी
जिन्द महाराज की बावड़ी
मोठपुर की बावड़ी
तेजाजी की बावड़ी
कंकाली जी बावड़ी
रतनपुरा की बावड़ी
सरसोडिया की बावड़ी
गढ़ी की पुरानी बावड़ी
घोड़ा बावड़ी
बोहत ग्राम की बावड़ी
देवकरण जी की बावड़ी
सिन्धपुरी की बावड़ी
देवनारायण जी का कुण्ड
मण्डोला का कुण्ड
लेवा का कुण्ड
शाहजी का कुण्ड
सीताबाडी के कुण्ड
रामगढ़ किले का कुण्ड
तोपिया मिया का कुण्ड
वरला कुण्ड
दह का कुण्ड
नागदा के शिव मन्दिर का कुण्ड
तेजाजी का कुण्ड
नागेश्वर कुण्ड
गणगौरा कुण्ड
खीचिंयों का कुण्ड
कानूगो का कुण्ड
टाटोन के कुण्ड
गणेश जी का कुण्ड
बाबाजी के बाग का कुण्ड
मोठपुर का तालाब
पुरेनी सनदोकड़ा का तालाब
कल्याण कुई प्रथम
कल्याण कुईं द्वितीय
मांगरोल का कुआँ
संदर्भ
1. एस.एल. नागौरी- विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ, पृ. सं. 32 श्री सरस्वती सदन नई दिल्ली1992
2. कुसुम सोलंकी- सभ्यता के विभिन्न आयामों को दर्शाती राजपूताना की पारम्परिकबावड़ियाँ, शोधक पत्रिका, वॉल्यूम -41 पृ.सं. 269 सितम्बर-दिसम्बर 2011
3. जवाहर लाल माथुर- बून्दी के देवालयों का इतिहास पृ.सं. 37 (हस्तलिखित) 1898 ई.
4. स्टेपवेल्स ऑफ बून्दी पृ.सं. 9 जिला प्रशासन बून्दी 2006
5. दुर्गाप्रसाद माथुर-बून्दी राज्य का सम्पूर्ण इतिहास पृ.सं. 244 चित्रगुप्त प्रकाशन बून्दी 2010
6. डॉ. पूनम सिंह- बून्दी के जलस्रोत, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अध्ययन, पृ.सं. 59राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर 2014
7. शुक्ल बावड़ी के पास स्थित सतीलेख
8. स्टेपवेल्स ऑफ बून्दी पृ.सं. 10
9. चतरा धाबाई की बावड़ी का लेख
10. जवाहर लाल माथुर - उपरोक्त, पृ.सं. 30
11. स्टेपवेल्स ऑफ बून्दी पृ.सं. 8
12. शोधार्थी द्वारा वर्णित
13. दुर्गाप्रसाद माथुर - उपरोक्त,पृ.सं. 245
14. खोड़ी की बावड़ी का शिलालेख
15. दुर्गाप्रसाद माथुर- उपरोक्त, पृ.सं. 247
16. डॉ. पूनम सिंह- उपरोक्त, पृ.सं. 75
17. पंडितजी की बावड़ी के कीर्ति स्तम्भ का लेख।
18. स्टेपवेल्स ऑफ बून्दी पृ.सं. 69
19. पण्डित गंगासहाय - वंशप्रकाश पृ.सं. 52 श्री रंगनाथ मुद्रणालय बून्दी 1927
20. शिवजी की बावड़ी का शिलालेख
21. स्टेपवेल्स ऑफ बून्दी पृ.सं. 41
22. जवाहरलाल माथुर- उपरोक्त, पृ.सं. 39
23. सोमाणियों की बावड़ी का शिलालेख
24. तालाब गाँव के मंदिर का शिलालेख
25. पनघट की बावड़ी का शिलालेख
26. नौ चौकी की बावड़ी का शिलालेख
27. दुर्गाप्रसाद माथुर - उपरोक्त, पृ.सं. 250
28. सीलोर शिव मंदिर का शिलालेख
29. जवाहर लाल माथुर- उपरोक्त, पृ.सं. 49
30. शालिन्दी दर्रे की बावड़ी का शिलालेख
31. भाटाें की बावड़ी का शिलालेख
32. खजूरी बावड़ी का शिलालेख
33. दुर्गाप्रसाद माथुर - उपरोक्त, पृ.सं. 249
34. हीराखाती की बावड़ी का लेख
35. गुता ग्राम की बावड़ी का लेख
36. गेन्डोली बावड़ी का लेख
37. डाटुन्दा बावड़ी का स्तम्भ लेख
38. इमलियों की बावड़ी का स्तम्भ लेख़
39. लक्ष्मीनाथ के मंदिर का लेख
40. दुर्गाप्रसाद माथुर- उपरोक्त, पृ. सं. 24541. दुर्गाप्रसाद माथुर- उपरोक्त,पृ. सं. 24942. जवाहर लाल माथुर- उपरोक्त,पृ. सं. 3643. दुर्गाप्रसाद माथुर- उपरोक्त,पृ. सं. 24944. राजस्थान रिडिस्कवर्ड, जरनी थ्रू द हेरिटेज पृ. सं. 124 कला संस्कृति विभाग राजस्थानजयपुर 2011
45 चौथमाता बाग के कुण्ड का लेख
46. बालाजी के कुण्ड का सती स्तम्भ लेख
47. दुर्गा प्रसाद माथुर- उपरोक्त, पृ.सं. 245
48. द इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इन्डिया, प्रोविन्शीयल सीरीज राजपूताना, भाग 9 पृ.सं. 88सुप्रिन्टेडेन्ट गवर्नमेन्ट प्रेस कोलकाता 1908
49. डॉ. अरविन्द कुमार- उपरोक्त, पृ. सं. राजस्थान साहित्य संस्थान जोधपुर 1994 ई.
50. डॉ. शान्तिनाथ भारद्वाज- हाड़ौती का पुरातत्व, पृ.सं. 57 हाड़ौती शोध प्रतिष्ठान कोटा1989
51. जवाहर लाल माथुर- उपरोक्त, पृ. सं. 39
52. कविवर श्यामलदास- वीर विनोद, भाग 2, पृ. सं. 114, राज यन्त्रालय उदयपुर 1943
53. अरविन्द कुमार सक्सेना- पृ.सं. 250, राजस्थान साहित्य संस्थान जोधपुर 1994
54. बी.एन. धौंधियाल- राजस्थान डिस्ट्रिक्ट गजेटियर बून्दी, पृ. सं. 269 गवर्नमेन्ट सेन्ट्रलप्रेस जयपुर 1964
55. स्मारिका- बून्दी 750 वां स्थापना वर्ष पृ. सं. 27, 1992 ई.
56. जगदीश सिंह गहलोत- राजपूताने का इतिहास (बून्दी राज्य) पृ.सं. 6, हिन्दी साहित्यमन्दिर, जोधपुर, 1960
57. पण्डित गंगासहाय -उपरोक्त, पृष्ठ 63
58. जवाहरलाल माथुर- उपरोक्त, पृष्ठ 42
59. जगदीश सिंह गहलोत- उपरोक्त, पृष्ठ 5
60. दुर्गाप्रसाद माथुर- उपरोक्त, पृ.सं. 250
61 पंडित गंगासहाय- वंशप्रकाश पृ.सं. 89
62. डॉ अनिल कुमार तिवारी,डॉ. हरिमोहन सक्सेना -राजस्थान का प्रादेशिक भूगोल,पृ.सं. 184, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, 2010
63. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण भाग-क जिला कोटा जवाहर कला केन्द्र जयपुर 2008
64. उपरोक्त, भाग-ख
65. उपरोक्त, भाग-ग
66. उपरोक्त, भाग-ड
67. उपरोक्त,भाग-च
68. उपरोक्त, भाग-छ
69. उपरोक्त, भाग-ज
70. उपरोक्त, भाग-झ
71. उपरोक्त, भाग-ण
72. उपरोक्त, भाग-ट
73. यह तथ्य जनश्रुति के आधार पर लिया गया है
74. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण भाग-ठ
75. उपरोक्त, भाग-ड़
76. उपरोक्त, भाग-ढ
77. उपरोक्त, भाग-द
78. उपरोक्त, भाग-16
79. उपरोक्त, भाग-घ
80. डॉ मोहन लाल गुप्ता -कोटा संभाग का जिलेवार सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अध्ययनपृ.सं. 65 राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर 2009
81. डॉ मोहन लाल गुप्ता - उपरोक्त, पृ.सं. 68
82. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण भाग-17
83. उपरोक्त, भाग-18
84. राजस्थान रिडिस्कवर्ड, जरनी थ्रू द हेरिटेज पृ.सं. 13 कला संस्कृति विभाग राज.जयपुर 2011
85. हाड़ौतिका वर्ष 13 अंक 3 पृ. सं. 12-14, शिकारखाना हवेली रेतवाली कोटा, 2008
86. राधाकान्त भारती- भारत की नदियाँ, पृ.सं. 7 नेशनल बुक ट्रस्ट इन्डिया नई दिल्ली 1987
87. राधाकान्त भारती- उपरोक्त, पृ.सं. 18-19
88. माजिद हुसैन, रमेश सिंह- भारत का भूगोल, पृ.सं. 314-15 टाटा मक्ग्रा हिल एजुकेशनप्राइवेट लिमिटेड़ न्यू दिल्ली 2009
89. राधाकान्त भारती- उपरोक्त, पृ.सं. 63-64
90. माजिद हुसैन, श्री रमेश सिंह,-उपरोक्त, पृ.सं. 819
91. डॉ महेश नारायण निगम, डॉ अनिल कुमार तिवारी - राजस्थान का भूगोल पृ.सं. 30राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर 1998
92. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण भाग-1 जिला झालावाड़, जवाहर कला केन्द्र जयपुर 2008
93. शोधार्थी द्वारा वर्णित
94. शोधार्थी द्वारा वर्णित
95. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण भाग-2 जवाहर कला केन्द्र जयपुर
96. जेतखेड़ी का शिलालेख
97. बलदेव प्रसाद मिश्र राजस्थान का इतिहास (भ्रमण वृतान्त) भाग-2, पृ.सं. 1073 खेमराजश्रीकृष्णदास मुम्बई 1982
98. ललित शर्मा - राजराणा जालिमसिंह पृ.सं. 151, झालावाड़ विकास मंच, झालावाड़ 2014
99. डॉ. महेश नारायण निगम, डॉ. अनिल कुमार तिवारी- उपरोक्त पृ.सं. 29-30,
100. डॉ. अनिल कुमार तिवाड़ी, डॉ. हरिमोहन सक्सेना- उपरोक्त, पृ.सं. 184
101. डॉ. मोहनलाल गुप्ता- कोटा संभाग का जिलेवार सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अध्ययनपृ. सं. 122 राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर 2009
102. शोधार्थी द्वारा वर्णित
103. शोधार्थी द्वारा वर्णित
104. शोधार्थी द्वारा वर्णित
105. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण, भाग-अ जिला बारां जवाहर कला केन्द्र जयपुर 2008
106. उपरोक्त, भाग-ब
107. शोधार्थी द्वारा वर्णित
108. शोधार्थी द्वारा वर्णित
109. शोधार्थी द्वारा वर्णित
110. शोधार्थी द्वारा वर्णित
111. शोधार्थी द्वारा वर्णित
112. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण भाग-द
113. शोधार्थी द्वारा वर्णित
114. मोहनलाल गुप्ता- कोटा संभाग का जिलेवार ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अध्ययनपृ. सं. 96
115. शोधार्थी द्वारा वर्णित
116. शोधार्थी द्वारा वर्णित
117. शोधार्थी द्वारा वर्णित
118. मोहनलाल गुप्ता- उपरोक्त, पृ. सं. 86
119. पुरा सम्पदा सर्वेक्षण भाग-स
120. शोधार्थी द्वारा वर्णित
121. मोहन लाल गुप्ता- उपरोक्त, पृ.सं. 69
122. शोधार्थी द्वारा वर्णित
123. पुरातत्व सर्वेक्षण भाग-ई
124. शोधार्थी द्वारा वर्णित
राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में जल विरासत - 12वीं सदी से 18वीं सदी तक (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
1 | हाड़ौती का भूगोल एवं इतिहास (Geography and history of Hadoti) |
2 | हाड़ौती क्षेत्र में जल का इतिहास एवं महत्त्व (History and significance of water in the Hadoti region) |
3 | हाड़ौती क्षेत्र में जल के ऐतिहासिक स्रोत (Historical sources of water in the Hadoti region) |
4 | हाड़ौती के प्रमुख जल संसाधन (Major water resources of Hadoti) |
5 | हाड़ौती के जलाशय निर्माण एवं तकनीक (Reservoir Construction & Techniques in the Hadoti region) |
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