हाड़ौती क्षेत्र में जल के ऐतिहासिक स्रोत (Traditional sources of water in the Hadoti region)
प्राचीनकाल से आधुनिक समय तक मानव अभिव्यक्ति के साधनों में मिट्टीपट, मुद्रा, ताम्र पत्र, पट्टिकाएँ और स्तम्भ आदि इतिहास का बोध कराते रहे हैं। प्रारम्भ में अक्षर ज्ञान के अभाव में मनुष्य ने अपनी अभिव्यक्ति शैलचित्रों में व्यक्त की थी परन्तु जैसे-जैसे अक्षर ज्ञान का विकास प्रारम्भ हुआ वैसे ही मनुष्य ने अभिव्यक्ति के साधनों में शैलचित्रों के स्थान पर शब्दों को पत्थर पर लिखना शुरू किया। शब्दोत्कीर्ण पत्थर ही शिलालेख के नाम से प्रतिष्ठित हैं।1 ये शिलालेख शिलाओं, प्रस्तर पट्टों, भवनों या गुफाओं की दीवारों, मन्दिरों के भागों, स्तूपों, स्तम्भों, मठों, तालाबों, बावड़ियों तथा खेतों के बीच गढ़ी हुई शिलाओं पर बहुधा मिलते हैं। इनकी भाषा संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी और फारसी तथा उर्दू में समय के अनुकूल प्रयुक्त हुई है। इनमें गद्य और पद्य दोनों का समावेश दिखाई देता है।
अभिलेख मानव जीवन के साक्षात दर्पण हैं। यह सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश ही नहीं डालते अपितु आने वाले भविष्य के निर्माण हेतु प्रेरणा भी प्रदान करते हैं। मनुष्य अपनी गतिविधियों को प्राचीन काल से ही कहीं न कहीं अंकित करता रहा है। कहीं शिलालेख के रूप में, कहीं ताड़ पत्रों पर तो कहीं चर्म पर्णों पर। अन्ततः कागज के आविष्कार के पश्चात मानव ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम कागज को बनाया। आधुनिक पुरालेख राजकीय अथवा निजी संग्रहों में सुरक्षित ऐसे ही साधन हैं जो इतिहास हेतु अत्यन्त उपयोगी हैं।2
पुरातात्विक सामग्री को अभिलेख, दान पत्र, मूर्तिलेख, मुद्राएँ आदि में विभाजित किया गया है। ऐतिहासिक साहित्य में कई भाषाओं में काव्य साहित्य, ऐतिहासिक ग्रंथ, तवारीखो तथा यात्रा-वृतान्त सम्मलित है। कला में भित्ति चित्रपट, तस्वीर तथा चित्रित ग्रन्थों को समावेशित करते हैं। पुरालेख के अन्तर्गत हिन्दी, राजस्थानी व अंग्रेजी में लिखित वह सामग्री मिलती है जो पत्रों, बहियों, पट्टों, फाइलों, फरमानों आदि के रूप में उपलब्ध है एवं वर्तमान कालीन ग्रन्थ सभी भाषाओं में पत्र पत्रिकाओं, गजेटियर्स, रिपोर्ट आदि में मिलते हैं। हाड़ौती क्षेत्र में जल के स्रोतों पर शिलालेख अंकित किये गये हैं जो उनके निर्माता एवं निर्माण के सम्बन्ध में जानकारी देते हैं ये शिलालेख निम्नांकित हैः-
(क) हाड़ौती के जल स्रोतों पर उपलब्ध शिलालेख
(अ) बून्दी के शिलालेख
कवाल जी का शिलालेख (1288 ई.)
व्यासों की बावड़ी का लेख (1600 ई.)
देव कुण्ड की माताजी के दर्रे का शिलालेख (1601 ई.)
धाय भाई जी के कुण्ड का शिलालेख (1654 ई.)
“राव श्री भावसिंह जी धाय सवीरा धाबड़ गोपी ल्होड़ी सुहादव वारिती।। तीरो बेटो धाय भाई कान्हाजी त्यांको कुड़ छत्री, कान्हजी की बहू भानवा हाड़ी बेट्या धायजी की श्यामा सुहादन सुमिर गोल्हा की केसरी रावजी का कोटवाल, रामचन्द्र उस्ता ढोलो सिलावट भोपती, सिलावट मेघो कायथ सीहमल, भटनागर, मोसिल देवो, पंवार भोपति भाटी कल्याण को बारहट उदो मोहिला को गोत सीगी गोपीजी को भाई आसोजी ती का बेटा हरिराम जगरूप प्रोहित मोहन रामचन्द्र उस्ता दहिवो पल्हेडवाला हीवो। संवत 1702 अगहण सुदी 5 सवंत 1711 माह सुदी 5 गुरूवार पुण्य नक्षत्र में रूपवालो गुजर फकीरो वासल्यो त्योदा का थे मंगल लेष का वांच मंगल सर्व लोकानां भुवैन मंगल।। लिषिंत तिवाड़ी पुरूषोतम तत्पुत्र कचरा गुर्जर गौड़ भवानी तत्पुत्र सावरामजी श्री रस्तु ज्योस्तु तुहाता भो पतेनं सवंत कोर जा वगे.....श्री गोपालदास जी की मूर्ति।। बेटा कनीराम बगसु सुद रामचन्द्रजी शवासि शीतलार हुई ताको विहीरा द्धय कुण्ड उपर है महंत सामी गोपालदास जी”
इस कुण्ड के पास दो बड़ी छतरियाँ हैं जिसमें एक पर एक लघु लेख पत्थर की शिला पर खुदा है। कुण्ड के शिलालेख के चारों ओर अनेक मानव व देव आकृतियाँ उत्कीर्ण की गई हैं जो बून्दी राज्य की सामाजिक व धार्मिक दशा को बयां करती हैं। लेख का वर्णन निम्न प्रकार से है8 -
स्वस्ति श्री गणपति कुलदेव्या प्रसादात्रात यं बह्य वेदान्त विदो वदन्ति परंप्रमाण पुरूषोतथान्येः।
विश्वोद्गतेः कारणमींशवरं वा तस्मै नमो विघ्न विनाशनाय ।।
चौहान कुले हाड़ावंशे सुरजनो भूत महीपति एतस्या भूत्तनयो भोजो भुज निर्जित भूमिपाः।।
भोजस्यं तनयो वभूव रत्नः तस्य सुतोऽरत्नः भवद गोपीनाथः ।।
गोपीनाथ कुमारस्य शत्रुशल्यः सुतोभवत ।
शत्रुशल्यस्य तनयो भाव सिंहस्ति भूमिपः।।
अस्तेको प्रवरो रणांगण तले यस्य प्रतापानलः।
संपूर्णारि द्युति वा भूरस्तिरानन्वती श्री भवसिंहो लघुभ्राता
भीमसिंहो महाबलः तस्यात्मजो करण सिंहो तस्यात्मजो
अस्ति धर्म महाबाहो कीर्ति विख्यात निश्चल।।
तत्पुत्र भाणोजी तत्पुत्रो गोपी धावड़ तत्पुत्र कन्हीराम।।
शालीवाहन शाकस्य इह पंच मुनि रसा सागर संप्रतिधियो कुंड भावेन सागरं।
मासस्य माधवं श्चैव शुक्ल पक्षस्य पंचमी गुरोवारे च नक्षत्रे पौस्स्नं चैव मीरितं
श्रीमद राजाधिराजस्य भाव सिंहस्य भूपतिः
तस्य धाय सवीराख्य कीर्ति विख्यात भूतले ।।10।।
तस्या पुत्र कन्हीराम शीलवंत विचक्षणः
गोदानंच शतंवापि सहिरण्यं सवस्त्रकं ।।11।।
पट्ठकूलं च वंस्त्र च भूमिदान विशेषतः ।।12।।
कन्यादाननेवाचं वस्त्रालंकार भूषणं।
महादानं च कर्तव्यं दापयेद्विज सत्तम।।13।।
गुर्जर गौड़ देशेतु मालव धाम चरूस्थली ।
मेवाड़ चैव बंगाले कीर्ति विख्यात निश्चला।।14।।
देव द्विजार्च्चारिंजस्य माने ददाति कृतभाव भक्ति
प्रनमता सांकर संपुटानि उमेश्वर पूजन तत्परंच।।15।।
पुनरप्य हुते जने चतुरस्त्रद्वयं तथा
त्रिमति शोमाह्यं छत्र चामर संयुतं ।।16।।
विवाहं चैव कर्तव्य माघ मासे शुभे दिने।
पंचमी भोम संयुक्त दान धर्म विशेषतः।।17।।
रजपुत्रं जगति मोहिल्येजी ए प्रमातु
प्रपूजकः वाघोजी तस्य जातस्य भाणोयं उदयंकरूः।।19।।
तस्यपुत्रस्य सगीषीजी तस्य पत्न्या द्वंय तथा लघुपत्नी पुत्र जातः कन्ही रीमाविचक्षण ।।20।।
कुरू प्रारम्भमाख्यातं आयुं प्राप्त सवेदकं ।
विवाहं तत्र कर्तव्य माघ सु पंचमी तिथ्यां।।21।।
भावसिंह महाराज कर्णवद्दान तत्परः
निर्जितं भूमिपालानां देश देशान्तरे मतं।।22।।
माटून्दा की बावड़ी का शिलालेख (1659 ई.)
नाहरदुस की बावड़ी का शिलालेख (1664 ई.)
भाटों की बावड़ी का शिलालेख (1667 ई.)
दधिमति माता मन्दिर की बावड़ी का शिलालेख (1668 ई.)
भावल्दी की बावड़ी का शिलालेख (1671 ई.)
स्वस्ति श्री जयो मंगलमभ्युदयश्व ।।
यं ब्रह्य वेदान्त विदो बदन्ति परंप्रमाण पुरूष तथान्यः
विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरंवा तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय।।
कृपालव सुधा परिशीलनेन विभात्यऽते पाम गणो पिः पुमान पुराणः
मुन्मतगम सार गिरामुपास्यमास उरां पुरुष कारवति मुरारेः ।।2।।
चहुमाण कुले हाड़ा श्री सुरतनजी अभूत महीपतिः
तस्या भूत्तनयो भोजो भुज निर्ज्जित भूमिपः ।।3।।
कृपालव सुधा परिशीलनेन विभात्यऽते पाम गणो पिः पुमान पुराणः
मन्मतगम सार गिरामुपास्यमास ।। उरां पुरुष कारवति मुरारेः।।2।।
चहुमाण कुले हाड़ा श्री सुरजनजी अभूत महीपतिः
तस्या भूत्तनयो भोजो भुज निर्ज्जत भूमिपः ।।3।।
भोजस्य सुतो रत्नः नृप शत्रु शल्यः सुतोभवत ।।4।।
शत्रुशल्यस्य तनयो भावसिंहोऽस्ति भूमिपः ।।5।।
आस्तेऽर्क प्रखरो रणप्रांगण यस्य प्रतापनलः
सं मूर्ध्वन्तरिदंतिदंतदलनादयाति संघट्ठनात।। कीर्ति कुंदति।।
मात्रु गर्व नायिनी मूर्तिश्च कामाकीधिकतिनेय वृशभात सिंह पतिना भूवास्ते वाजन्वती
अथ संवत्सरे श्री नृपति विक्रमार्क समयातीत ।।
संवत 1734 वर्षे शाके 1599 प्रवर्तमाने प्रभवनाम उत्तरायणे भानौ।।
वसंत ऋतौ मंगल प्रदे वैशाख मासे शुभ शुक्ल पक्षे
अक्षयतृतीयायां पुण्य तिथौ मंगलवासरे घटी 58
रोहणी नक्षत्र घटी 13 उपरान्त मार्गशीर्ष अति गंड योग
घटी 19 तैतल करणे।। एवं पंचांग श्रुद्धि दिने।।
महाराजाधिराज महाराव श्री भावसिंहजी वर्मणां ज्येष्ठ
पत्नी राणीजी श्री भावलदेजी सीसोद्दी महारावत
श्री जसवन्तसिंहजी ग्रहे वधु चहुवाणी राजि श्री बाई
चंपा देजी की बेटी रावत सींधजी की पौत्री महारावत
श्री हरिसिंहजी की बहणि ।। त्यान्है बावड़ी कराई सगली प्रजा का सुष के वास्ते श्री
सिंह लग्न
अभिजित मुहूर्त में डोरो फेरो प्रोहित कीकोजी
पालि के वैसाण्यो दान धर्ग उछव हुवा ।। ताहा जोतिसी
भट कीसनजी ती समय बूंदी गढ़ मध्ये व्यास
कमलनयनजी प्रधान सीह सेषाजी कोटवाल रामचन्द्रजी
कारकून शंकर वैकूण्ठरायजी अनोपचन्द्रजी शुभ
करण्जी एजो राज टहलवा तथा श्री राणीजी के हजूरी
षवांसी आसाधरी कनकवेली वनराव दासी मनु
रूपा राजू .......... बड़ी कामा मध्य बडारणी कसुंभी सवालेषा
कमता कमली मासील बाई कान्हू रसोईदार बाई
जगारू ।। मीर ...... राऊजी उस्ता ..........आलम पंचौली
जोधराज पंचौली हरदेवा रामजी को बेटो रामदत जी
रामसा बावड़ी का शिलालेख (1670 ई.)
अचलेश्वर महादेव मंदिर की बावड़ी का शिलालेख (1676 ई.)
गेण्डोली के तालाब का शिलालेख (1676 ई.)
द्वितीय शिलालेख वि. स. 1661
1. सीद्यी श्री संवत 169 (1) वर्षे
2. पतीवर (लार) महरानी हुई श्री सीसपाल
3. ..........................................
इन्द्रगढ़ की काकीजी की बावड़ी का शिलालेख (1683 ई.)
देवपुरा गणेश बाग के सामने की बावड़ी का शिलालेख (1690 ई.)
सिद्ध श्री गणेश प्रसादातः गुरू श्लोकः गुरूवो नमः प्रथमगुरूनामः
कालाजी देवपुरा की बावड़ी का शिलालेख (1695 ई.)
रानीजी की बावड़ी का शिलालेख (1700 ई.)
पंक्ति 1 ।। श्री रस्तु ।।
2.।। स्वस्ति श्रीः र्ज्जयोमंगलमभ्युदयश्च ।।(श्रं।।)
3.।। सिधि श्री ।। गणपति कुलदेव्यो प्रसादात।। स्वस्तिश्री ।। वक्रतुण्ड महाकायः सूर्य्य
कोटि सम प्रभ अविघ्न कुर में।।
4. ।। देव सर्व कार्येषु सर्वदा ।। 1।। यो देवः सिद्धि दाता त्रिभुवन सकले सर्व माँगल्य
हेतुः यो देवो हस्तिरूपः कर फरश।।
5. ।। घर मूषको वाहनस्यात् ।। यो देवो एकदंतो सकल गुणनिधिः विघ्न हर्ता समस्ताँ यो देवो नित्य नित्य अंयह।।
6. ।। रतुभयं पातु वो गौरिपुत्रः।। 2।। कस्तुरी तिलंक ललाट पटेल वक्षास्थले कोस्तुभां
नामाग्रे नवमौक्तिकं क।।
7. ।। रतल वेणुः करे कंकण।। सर्वागे हरिचंदन मल जय कंठे च मुक्तावलिर्गोप स्त्रीय
रि वेष्टितो विजयते गे।।
8. ।। पाल चूड़ामणिः ।।3।। आदौ ब्रह्मान् विष्णुः क्षिति तल गमन नैव बह्मांड़ षंड़ शक्रा माने व नागा गृह।।
9. ।। रा ऋष यौने व नक्षत्र माला चंद्रादित्यौन वह्मि न बहति पवनो नैव कालीन जीवः तत्रै कोपि स्वंयभूस्त्रि
10.।। भुवन नृपते पातु व श्रेष्टिकर्ता।। 4।। ये कुरति शुभाशुभ निगदिता इछेति वे संपदा ये पूजा बलि होम दा।
11.।। म विधि भिनिध्नंति विघ्नानि च ।। योग वियोग दुख जानता सर्वे सुराः स्व ब
रास्तेतिऽमा श पुरो गभाग्र।।
12. ।। ह गणः शाँति प्रयछंति च ।।5।। अथ संवत्सरे ।। स्वस्ति श्री मन्नृपति विक्रमार्क
राज्य समयातीत।। संवत्।
13. ।। 1757 वर्षे शाक 1622 प्रवर्तमाने ।। षण्टाब्दयां र मध्ये।। विकृत नाम संवत्सरे।।उत्तरायने दक्षिण गोले श्री।
14. ।। सूर्य शिशिरूत्यौ।। माहामांगलिक शुभ ।। तथा फाल्गुन मासे शुभे कृस्न पक्षे पंचम्यां तिथौ 5 दीतवार घटी 1
15. ।। 28 स्वाति नक्षत्र घटी 29 ध्रुव नाम योगे घटी 21 तैतल नाम कर्ण घटी 28 एवं पंचाग श्रुद्ध दिने।। बावड़ी को ड
16. ।। छापन उछव कीयो।। श्री देवी आसापुरा प्रसादात् ।। बसंत द्धि कुई।। गढ बून्दी का राजा हाड़ा चहुवाण हु
17. ।। वा ।। अति पराक्रमी हुवा।। अबि सात री पीढीया राजा पाट पतिलव्या छै।। प्रथम माहाराजाधिराज महाराव श्री
18. ।। भोज जी हुवा।। तत पुत्र माहाराजाधिराज महाराज श्री राव रतन हुवा।। तत पुत्र
महाराजकुमारश्री
19. ।। गोपीनाथजी हुवा।। तत पुत्र माहाराजाधिराज महाराव श्री सत्रुशाल हुवा।। तत् पुत्र माहाराजाधिरा।
20. ।। ज माहाराव श्री भावसिध जी हुवा पाट पति ।। अर सत्रशालजी कौ दुसिरौ पुत्र महाराजकुमार श्री श्री भीम सी
21. ।। ध जी हुवा।। तत पुत्र माहाराजकुमार श्री कीसन सीध जी हुवा। तत पुत्र माहाराजधिराज महाराव श्री अ।
22.।। नरध सीध जी हुवा।। तस्य गृहे भार्या उभय वंस विसूथ दान सील तप भावनादि सहित राणीजी श्री नाथावतरा जी हू
23.।। वा तस्य कुंक्षे पुत्र रत्नमजी जनत प्रथम पाटपति महाराजाधिराज महाराव श्री बुध सीधै जी विजय राज्ये।। तथा माहाराजा।
24.।। धिराज माहाराजाजी श्री जोधसिंह जी हुवा ।। याकी माता माहाराजा श्री नाथावात
फतेसीधे जी की पोति माहाराजि श्री जसवंत
25.।। सिध जी की बेटी महारानि श्री बाई लड़ (लाड़) कुंवरि जी त्यानहै बावड़ी कराई गढ बून्दी मध्ये संसार का सुप कैव । सतै धर्म हेतिनि
26.।। बा- करायो ।। तिहाँ अगवाली प्रेहित भवानीदास जी तथा प्रोहीत सिवदूत जी तथा व्यास विरेसुरजी तथा व्यास मा
27.।। न जी तथा व्यास हरि वल्लभ जी जोतिशीभट् गोब्यद जी ।। उपाध्या विश्वेसुर जी पीतांबर जी ।। तथा कोटवाल रामचन्द्र जी।।
28.।। धावड़ जी गंगाराम जी परधान साह जोधराज जी कारकुन पंचोली भइीया वदै चदैनी तथा पंचोली कान्है जी।
29.।। बावड़ी का कामदार दरोगो पुहाल कान्ह जी ।। मुसरफ पचो रूघनाथ।। बावड़ी का उसतागार पटल सदाराम।
30.।। पटैल मीरू। लष्यंत जोसि श्री पति। ततपुत्र जोसि बगसु। बेटा भोपति । पीताम्बर।
गढ़ बुंदी मध्ये बास तथ ।। आयुष्ट द्धिय।
31.।। शा तृ थि तृधि प्राज्ञा सुख श्री या ।। धर्म स तान वृद्धि श्र संधैत सुख वृधय इती।। 1 ।। बड़ारणी ला छ बडारणी सुषा :।। श्री ।।
-इति-
बोरखण्डी की बावड़ी का शिलालेख (1712 ई.)
अभय नाथ की बावड़ी का शिलालेख (1703 ई.)
श्री रामचंद्राय नमः
महाराजा श्री भावसिंह जी सहाय
सिधि श्री गणपति कुलाम्बिकायै नमः
चर्तुभुजो गौड़कुले महायोग भावंतारः शुभकर्म कर्ता
तस्यात्मजो भूद्भवि पेमसिंहः सत्यव्रतः सत्य धृति क्षितीशः ।।1।।
सम्मानितः श्री बुधसिंह नाम्ना बूंदीशभूमृन्मणि मणिना महात्मा ।।
श्री रामचन्द्रस्तनय स्तदीयः सत् स्वामिधर्मो भवता च्चिरायु।।2।।
आगम धर्म बुद्धया विविध विटपिभि
नंदनानंदकंवा वापी तृष्णार्तिहंत्री जगति जनि भृता मुत्तमगाध नीरा।।
कृत्वा सत्छत्रिका योऽधि धरणि विदधे राममूर्तेः
प्रतिष्ठां जीयादावेदतारं हरिचरणरतौ सो चिरं रामचन्द्रः।।3।।
शाकेऽब्दादि रसावनि पर परिमाते 1625 आषाढ मासे
सिते पक्षे भानू तिथौ बुधाभि दिने नेवासणाभे श्रुमे।
विकुभे ववरातरेव करणे सिंह बिलग्ने पेधा द्वाप्पुसर्ग मुदग्र विधिना श्री रामचन्द्रः-
सुधीः। संवतु 1760 आषाढ़ बदि 7 बुधवार नै महाराव श्री बुधसिंहजी का राज मैं राज्यश्री रामचन्द्र जी गोड़ पेमाजी को बेटो, चतुर्भुज जी को पोतो माता आसा दादी, केसरी नानी, राजा रामचन्द्र जी इकी बेटी बाई चंदेल रामवादू रामदास की बेटी, कवराम की पोती, पवरि मना की बेटी, इकी बाई अनोपा, तुलछी बेटो धनराज,ल्होड़ी बहू मनासीसोदणी, रामसिंह की बेटी, कवराम की पोती चंदा की बेटी, इकी बेटी अजयकुवारि बेटो उदयसिंह त्याने बावड़ी न डोरो फेरो मोसी गंगाराम पाती रूपा को संगतराम, सुपा भालो नाथुलोहट, सोमो सिलावट आलम लाड़ से मसरफ हरदेव - बाध्यो विश्वेश्वर जोगी को लिषत प्रोहित भवानीदास सुषदेवशे प्रो. हाड़ा रो श्री रस्तु शुभं भवतु।25
बोहरा जी के कुण्ड का शिलालेख (1732 ई.)
सालिन्द्रीदरे की बावड़ी का शिलालेख (1756 ई.)
आसकरण जी की बावड़ी का स्तम्भ लेख (1756 ई.)
वि. सं. 1813
1. सिधिश्री गणेसायनमः। समत 1812 वरषै वैशाख
2. प्रवरतमाने मासोत मासे ............ मासे सुकल पखे
3. पड़वा वरसपतवार बावड़ी कराई फागण बुदी 8 आ
4. दितवार ................श्री बालाजी को मोजे
5. तलवास म प्रीहित प्रभुजी ततपुत्र प्रोहित आस
6. करणजी बावड़ी कराई तलवास मह आसगीर
7. पड़ श्यामजी पंचौली तेज रामजी पटेल मफत
8. राम पटवारी ब्राह्मण घासीराम उसल सोजी
9. रामपुरो हो (हुओ) ........ बरस एकम
10. समत 1813 का सालम
11. मती जेठ सुदी 15 वार बुध
12. वार उणापुण ..........................
13. उधरण करो....... जो षेमाजी पत
14. रायत ..............मल्लण काना
15. पटेल ........................।। 1।।
ठण्डी बावड़ी का शिलालेख (1759 ई.)
श्री मंगलमूर्तेनमः। ।।श्री उम्मेदसिंह जी।। स्वस्ति श्रीर्भयोमंगलमभ्युदधक्षावरक्त।। श्री गणपति कुल देवो प्रसादात।। यबदामतविंदोवदति पर प्रधानं पुरुषंतधान्यो विश्वेद्वेतेकारणमीन्वदेवा तरमने।।1।। यं ब्रह्मावरूणेन्द्ररूद्रमस्तः स्तुवतिदित्येस्त्रवैः वेदेर्सोगणदत्रमोक्षश्रीतिषं सामगाः।। ध्यानावस्थितहतेनयन सामस्थति-यधोमिनोयस्यातंनययुः सुरवायेदेवाय तस्मैनमः।।2।। अथसवन्तसरेस्मिनुपति श्री विक्रमादित्यराज्यैसमयातित 1816 वर्ष शाके श्री शालिवाहन शाके 1681 प्रवर्तमाने षष्टाष्ट्योर्मध्ये विक्रमनामसंवत्सरे उत्तरायणेगते श्री सुर्य वृतरगोले ग्रीकस्टवोमासाणो मासोत्तम आसाढ़ मासे शुक्ल पक्षे सप्तम्यांपुर्ण्यतिथो घटी 50 पत्ररदविवासरे।। उत्तरा फाल्गुन मानक्रत्रघटी 34 पल 7 वरिधालू योगे घटी 34 पल 47 तात्कालिक गिरकरण एवं पंचागसुद दिने श्री सुर्यौदयात इष्टघटी 11 पल 25 समये सिंहलग्नोदये पृथ्वीपति एवं पंचागसुद दिने श्री सुर्यौदयात इष्टघटी 11 पल 25 समये सिंहलग्नोदये पृथ्वीपति पात्सयाह आलमगीर राज्ये।।
महाराजाधिराज महाराव राजा श्री जी विजयराज्ये तस्म मुख्यामात्य कायस्थ जाति माथूराचय ये तो हो नगस्रा गोत्रे पुण्य पवित्र ठाकूर श्री हरराम जी तत्पुत्र ठाकुर जी महाराम जी तस्यात्मज धर्ममूर्ति गो ब्राह्मण प्रतिपालक मुद्रामान्य जी ठाकूर जी माया मजी के नवात्यारामौधतो चिरस्थायीभुतः।। तस्य ज्येष्ठ माता बन्नाबाई क निकटस्थ माता मानबाई दादी सदाबाई नानी हरकुंवरी तस्य पत्नी बहु जी नगीना तत्तपुत्र कुँवरजी दौलतराम जी हरकिशन जी।। आचार्य भदजान की बहू भज्योत सीर्खरस्ये अमरेष्व सिखववाल रूपोंनाईक दयाराम।। वाप्याराम को कार्यकर्ता भाई करमचंद।। दरोगो लक्षीराम गुजरगोड।। उस्ताकार घासी।। संगतरास शंभु।। तोवीरस्यावाभस्यातां अतसीकुसमोप मेघ कातिर्यमुना कुलक कंदब मध्यवर्तात नवगोयवधुत्स शाली वन भीलीवितनो तुमंगलीनि।।1।। संवत् 1810 का आसोजश्रुदी विजयदषमी क दीन आरंभ कीयो।। श्री परमेश्वर प्रतीए कोत्तर संकुल उद्धार निमत्त अनेक चतुर्वा फल प्राप्ति महामोक्षमाप्ति इष्ट फल प्राप्ति काम सिर्ध्यर्थमहापातक निवर्तयत्येवाप्पीरामोत्सर्ग कृतं।। शुभस्तु
सूंथड़ी की बावड़ी का शिलालेख (1776 ई.)
श्री रामजी
1. श्री गणेशाय नमः।। स्वस्ति श्री गणेशां विष्णयोः प्रशादात लाभमंग
2. ला सदा .............अंक जनी पति कुमुदिनी प्राणेश्वरी .................
3. मर कि सुवराज वंदित पदो दैत्येन्द्र मंत्री शनिः ।। शुभ (खवा गणोगणपति)
4. विस्ने सलक्ष्मी .....................दैव विमला वापी शुभा निर्मिता।।1।। अथाश्रि
5. अष्ट वर्ग नाम संवत्सरे विक्रमार्क राजा संवत 1833 शाके 1698 प्रवर्तमानेउ
6. त्तरायणे ..............पक्षे तिथौ 5
7. श्रवण नक्षत्रे ...........39 को लवकरणे रा पंच शुद्धाद अ
8. .............गोपाल गोत्र सांवलिया ......जी तत्पुत्र
9. साहजी श्री माधवदास तत्पुत्र साहजी श्री हेमराज जी तत्पुत्र सोनाथजी
10. रामदत्तजी हर बिलास जी दीनानाथ जी .............
11. वद्धी कराई रविदतजी के बेटा 3 सावलजी बालमुकुद राधादास............बेटा
12. सोनथली मै महाराजजी श्री ............जी अम
13. ल मैं प्रगन नैनवा मै सोनथली मुकामों पण्डित सदासिवजी का अमल में डोरो
14. फेरो बावड़ी कोटरो .................
15. चार्य सो ती जीवन राम.....................
16. श्लोकः ।। ........हेमराजो तत्स ... मध्ये .................
17. ...............।।1।। बावड़ी को आरम्भ
18. संवत् 1828 का साल मैं .....संवत् 1833 का साल मैं
चौथमाता के बाग के कुण्ड का शिलालेख (1778 ई.)
जलेश्वर तालाब का शिलालेख (1795 ई.)
(ब) कोटा के शिलालेख
1. अरण्डखेड़ा की बावड़ी का शिलालेख (1615 ई.)
1. कैथून के विभीषण कुण्ड का शिलालेख (1756 ई.)
सीधे श्री गणेशाय ............. संवत्
1815 वर्षे शाके 1680 प्रवृतमाने उतरायेन
भादो मासो तम मासे मा प्रभासे शुक्ल पक्षे
पुनेते .............. 5 गुरूवार दीने कणा (कुण्ड) करायोसा
...... दतुराम जी साहा बुधनाथ जी को बेटो
तकी बहुन गोत खुहाले वाके कैथून
कोटा क ........ गणमान साहा श्री मद साहा जी
कोटा महाराज महाराव जी श्री
दुरजनसाल जी प्रधान चाहा श्री जा श्री
गोपालदास जी मुनीम रामदास न जी
केथान महवाल गीर जोशी क्षे मीराम
पंचोली जयचदजी ..........................
जोशी केसर राम गुर्जर गोड़
जसुराम जी .................... गपरराम....
मुकुदराम जी की काकी
3. जवाहर सागर तालाब का शिलालेख (1796 ई.)
सूर्य, चन्द्र
श्री गोवर्धन नाथ जी
श्री नवनीत प्रिया जी
श्री गणेश। विनाभ्यानमः।
स्वस्ति श्री ऋद्धि वृद्धिज्जयां मंगलभय्युदय 9- वास्तु विक्रमार्क वाज्यात संवत 1856 शालिवाहन शाके 1918 प्रवर्तनाम शंवच्छरे दक्षिणायन गते श्री सूर्ये वृक्षा ऋतौ मासोतमे श्रावण शुक्ल 8 गुरौ 7/3 अनुराधा नक्षत्रे ब्रहामाम योगे 12/41 वघकर्णा एवं पंचागे शुभ तिथौ दलीपति..........विधमान महाराव जी श्री उम्मेदसिंह जी विजय राज्ये सेनापति राजराणा जालिमसिंह जी योग्य पत्नि जोहोराजी (ज्वार जी) तत्पुत्र गोवर्द्धनदास जी त्यान जवहार सागर तालाब बणयो मारफत साला सोलल जी डोड का प्रधान महंत जीवनराम जी पंचौली जय कृष्ण। उसता हीरानन्द। उसता सोजी।।
(स) झालावाड़ के शिलालेख
1.चाँदखेड़ी के तालाब का शिलालेख (1493 ई.)
झालावाड़ से 35 कि.मी. दूर पूर्व में स्थित खानपुर क्षेत्र का एक प्राचीन ग्राम मोहपुर है। यह स्थल मध्ययुगीन खींची राजपूतों की राजधानी रहा है। यहाँ के तालाब पर 1493 ई. का एक लेख है। यह लेख एक सती स्मारक है। इसमें धारनदेव खींची एक वीर शासक का उल्लेख है जो जायल (मारवाड़) स्थल गोत्र के थे। जायल के खींचीइतिहास प्रसिद्ध रहे हैं। लेख में उनकी मृत्यु के उपरान्त उनकी देह के साथ उनकी दो रानियों के सती होने का हवाला है। लेख निम्न प्रकार हैं41 संवत 1550 साके 1415 आषाढ़ सुदी दसमीं सेमवारे (अर्थात 8 जुलाई 1493 ई.) कू राजतिलका श्री धारूदेव खींची जायलवाल के साथ धीरोदे बागड़नी अर सूरतदे कुछवाही सती हुई।।
यही का एक अन्य लेख राजा खींची कुंभदेव का मृत्यू लेख है इसमें उनकी सती रानियों का वर्णन है।
“सवंत् 1555 साके 1420 श्रावण बदी 10 शनिवार का दिन (जुलाई 1498 ई.) को मोढपुर का राजा श्री कुंभदेव जो जायलवाल धीरादेव खींची कू पुत्र थे, देव लोक को पधारया। साथ में कछवाही राणी छत्रवती अर दो सौलकिणी राणियाँ भी सती.........”
2. रातादोई जलाशय का शिलालेख (1493 ई.)
झालावाड़ मुख्यालय से पूर्व की ओर अकलेरा मार्ग पर 25 कि. मी. दूर असनावर कस्बा स्थित है। यहाँ से 7 कि.मी. दूर उत्तर दिशा में लावासल पंचायत के अन्तर्गत रातादेवी तीर्थ स्थल है। यह स्थल इतिहास में खींची राजपूत शासकों से जुड़ा है।
रातादेवी मन्दिर के ठीक सामने मानसरोवर नामक जलाशय है इसके लम्बे किनारे पर खींची शासकों के स्मारक व लेख है ये राजपूती परम्परा के आपसी सम्बन्धों को दर्शाते हैं। किनारे की पाल पर एक कलात्मक छतरी में एक शिलालेख 1493 ई. का है यह लेख महाराज गंगदास का मृत्यु लेख है42 इसके अलावा अन्य लेख है जो निम्नानुसार है -
(1) संवत् 1578 वर्षे पोष शुक्ल, ग्यारस, सोमवार (1521 ई.) का
(2) दिन राजा श्री रावश्रिय देवलोक गया वि.सं. 1550
(3) गंगादास मृत्यूलोक गये।।
वैषाख शुक्ल दशमी संवत् 1567 खँवास जी श्री गंगासिह जी सेठकरा पुत्र श्री रामजी देवलोक गया।।
(4) राजा हन्वतंत सिंह - संवत् 1565
(5) राजा हरिसिंह, संवत्, 1558
(6) राजा देवसिंह का पुत्र शिवसक्ति, संवत् 1566
(7) रावराजा शवदत्तसिंह, संवत् 1555
(8) शिसिंह अथवा श्योसिंह- संवत् 1551
(9) पुत्र महाराजा रणसिंह - संवत् 1587
3. क्षारबाग बावड़ी का शिलालेख (1500 ई.)
चांदखेड़ी (खानपुर) स्थित क्षारबाग बावड़ी के ऊपर पाषाण स्तम्भ पर अगहन वद् पाँच सोमवार 1500 ई. का लेख है। उसका भावार्थ यह है कि श्री राज श्री धारूदेव के बेटे शक्तुदेव के भाई कुंभदेव का बेटा श्री वर्मादेव की राणी रावतसिंह की पुत्री उम्मादे ने बावड़ी बनवाई।43 वर्तमान में ये लेख पानी की मार से धुंधले हो गये हैं - श्री राज श्री धारूदेव का पुत्र शक्तुदेव को भ्राता कुंभदेव का पुत्र सीरी वर्मादेव की राणी उमादे जो रावतसिंह की पुत्री..... ने याँ बावड़ी को निर्माण करवायों। संवत् 1557 ........।
4. उन्हेल की दबे ब्राह्मण की बावड़ी का शिलालेख (1630 ई.)
उन्हेल ग्राम के पश्चिमी दरवाजे के बायीं ओर दबे ब्राह्मणों की बावड़ी है। इस बावड़ी का निर्माण 1630 ई. में दवे वाधा व उसके भाइयों द्वारा करवाया गया। उनके पिता का नाम दवे नरसिंह और भाइयों के नाम दवेखेता व मंडा थे। बावड़ी का सूत्रधार महेशदास, धरमदास था। बावड़ी का निर्माण जनपुण्यार्थ करवाया गया था। इस बावड़ी पर एक लेख अंकित है जो निम्न है44 -संवत् 1687 बरसे मास वैशाख बदी
दबे नरसिंग सुत दबे।
वधा दबे खेता दबे मंडा सूत्रधार महेशदास
धरमदास ने बावड़ी कीधी राम पुन्यार्थ
5. उन्हेल की बावड़ी का शिलालेख (1637 ई.)
6. बोहरा की बावड़ी का शिलालेख (1642 ई.)
गंगधार से 15 किलोमीटर दक्षिण की ओर के ग्राम उन्हेल के पश्चिम दरवाजे से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बोहरा जी की बावड़ी स्थित है। इस बावड़ी पर स्थित प्रस्तर शिलालेख में अंकित है कि माघमास की शुक्ल पक्ष की पंचमी, 1642 ई. बृहस्पतिवार को मालवा क्षेत्र के अन्तर्गत गंगराड़ (वर्तमान गंगधार) परगने में स्थित ग्राम उन्हेल जो कि झाला दयालदास की जागीर में स्थित था तथा उस समय इस मन्दिर के समीप गोलवाल जाति और कश्यप गोत्र के बोहरा मुकुन्द के पुत्र बोहरा महेशदास उनके पुत्र कानजी और उनके भ्राताओ विष्णुदास, श्यामदास और गोकुल ने इस बावड़ी का निर्माण करवाया। इस बावड़ी के शिल्पकार महेश का पुत्र धर्मदास था। शिलालेख का मूल पाठ निम्नानुसार है46
“संवत 1699 वरसे शाके 1564 प्रवर्तमाने रवि उतरायन गते श्री सूर्य वसंत रीतै महामांगल्य पद्दे माघ मासे शुक्ल पषो पुन्यतिथी गुरूवासरे अघसी मालव देसे प्रगड़ेगंगराड़ पातसाह श्री साहजहाँ विजयराज्य जागीर झाला रावत दयालदास ग्राम उणेल नांगा सानीधो गोलवाल गीन्यात कास्यप गोत्र बोहोरा मुकन्द सुत बोहोरा महेशदास सुत कान जी भ्रात स्यामजी भ्रात गौकल तस्य सुक्रत बावड़ी बधाई । “सूत्रधार महेश पुत्र सुतधरमदास ने बावड़ी की धी।”
7. बड़लिया वीरजी की बावड़ी (1643 ई.)
गंगधार के निकट स्थित ग्राम बड़लिया वीरजी से आधा कि. मी. दूर पश्चिम में एक बावड़ी है। बादशाह शाहजहाँ के युग में 1643 ई. में बगड़ावत नरहरदास और उसके भाइयों ने इस बावड़ी को निर्मित कराया। उस समय गंगधार नरेश रावत दयालदास की जागीर में यह प्रदेश था। इसमें गंगधार शासक रावत दयालदास झाला के समय का एक शिलालेख लगा है। लेख में सिलावट का नाम विलुप्त है। लेख का मूल पाठ निम्नानुसार है47
राम श्री गणेशाय नमः।। संवत् 1699 वरखे साके 1564 प्रवर्तमाने रवि उत्तरान गते श्री सूर्ये वसंत रीतौ महामांगल्य प्रदे मासोत्रम माघ सुकल पक्षे पंचम्यां पुन्य तीर्थो खी वासे पातसाह शाहजहाँ वीजे राज्ये मालवा देसे प्रगने गंगराड़ जागीर झाला दयालदास जी गाम बरड़िया बहाड़ावत देवकरण सुत बगड़ावत वीरजी सुत केशवदास सुत नरहरदास भ्रात तेजा भ्रात रामा भ्रात भारतल अचलदास राहामजी तस्य सुक्रत बावड़ी बंधाईसिलावट।।
8. दबीओं की बावड़ी का शिलालेख (1650 ई.)
उन्हेल के पश्चिम दरवाजे के बाहर दबीओ की बावड़ी स्थित है। इस बावड़ी में एक प्रस्तर शिलालेख लगा हुआ है। इस लेख में सर्वप्रथम श्री गणेश और श्रीराम की स्तुति की गई है। इसके पश्चात बावड़ी के निर्माण की तिथि माघ मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, सोमवार संवत् 1707 अंकित है। ग्राम उन्हेल परगना गंगराड़ (वर्तमान गंगधार) में नागेश्वर मन्दिर के समीप इसका निर्माण करवाया गया। उस समय इस भू-भाग पर रावदयाल दास झाला का राज्य था और भारत में बादशाह शाहजहाँ का साम्राज्य था। इस बावड़ी का निर्माण गोलवाल गाँव के निवासी पीताम्बर दुबे के पुत्र मनोहर ने कराया तथा इसका शिल्पकार महेश का पुत्र धरमदास तथा उसका भाई इसरसोना था। लेख में मंडलोई, टोडरमल और पटेल गोपालदास जाति सुथार का भी वर्णन है। इस लेख को कायत नाथू बागवान ने लिखा। प्रस्तर शिलालेख का मूल पाठ इस प्रकार है :-
सांब प्रसादात सीध दाता गणेश श्री रामो जयति गणेश गोत्रे देव्यौ प्रसादात संवत् 1707 वरसे शाके 1542 प्रर्वतमाने रवि उतरायन श्री सूर्ये शीशीर रतौ महामांगल्य प्रदभासोत्त में माघमासे सुकल पक्षे त्रयोदसी सोमवार नक्षत्र पुक्ष पातसाह भी साहजहाँ वीजेराज्ये प्रगणे गंगराड़ ग्रामे उणहल नागेश्वर सनीधो जागीर झालारावत श्री दयालदास जी गोलवाल वासी दूबे श्री 5 पीताम्बर सुत दबे मनोहर तस्य सुक्रत बावड़ी मंडावी सूत्रधार महेश सुत धरमदास भाई ईसर सोना बावड़ी बांधी रामपुर मध्वे रहता विष्णु प्रीतअरथ पटेली आठड़ा गोपालदास बाल सुधार राणस्या रावतदयाल दास सुंभवंतु कल्याण मस्तु मंडलोई टोडरमल लीखत कायथनाथू बागवान पदमषेता।48
9. जेतखेड़ी तालाब का शिलालेख (1699 ई.)
गंगधार से तीन कि. मी. की दूरी पर मण्डाला गाँव के लगता हुआ गाँव जेतखेड़ी है। जेतखेड़ी में एक दलसागर तालाब है उसके किनारे पर एक सीधा लेख खड़ा हुआ है जो गंगधार नरेश रावत झाला दयालदास का है। यह लेख उसकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र रावत प्रतापसिंह ने स्थापित करवाया था जिसका लेख निम्नानुसार है49
श्री गणेशाय नमः ।। स्वस्ति श्री मन्नपति वीक्रमार्क समयातीत कालात संवत् 1726 वर्षे साके 1588 प्रवर्तमाने उत्तरायने गते श्री सूर्य ग्रीष्म रितौ महामांगल्य मसोत्रम ये (ज्येष्ट) मासे शुक्ल पक्षे दषम्यां तीर्थो भृगुवासरें झालावंश महाराज रावत श्री नरहरीदासजी सुत महारावत श्री दयालदास जी सती तीन सहित बहुराठौड़ रूक्मावता तथा बहु मेड़तणी कुशलकुंअर तथा खवासण इन्द्रबाई रजपूत 105 सुउजैण की लड़ाई माहे काम आया जणारी छत्री तालाब री पाल पर रावत श्री प्रतापसिंह जी धी मातशाह अवरंग विजय राज्य।।
10. ठाकुर जी बावड़ी का शिलालेख (1786 ई.)
झालावाड़ एवं झालरापाटन के मध्य गिन्दौर नामक ग्राम स्थित है इसमें ठाकुर साहब का प्राचीन स्थान बड़ा ही श्रद्धाधाम है। यहाँ शीतल व सुस्वाद जल की एक कलात्मक बावड़ी है। इसकी दीवार पर इसके धार्मिक निर्माण का लेख अंकित है जो निम्नानुसार है50 -
श्री गणेशाय नमः
....... महाराव श्री रूपसिंह जी,
श्री राजस्थान घाटी का हाड़ा धरममूर्ति जी श्री
रूपसिहं जी.................... धरममूर्ति रावतजी श्री
इन्दरसींह जी, ग्रहे भाखान राठौड़ जी राव चंदर
कंवर राण जोधा जी डूंगर गाँव की बेटी
ठाकार श्री जसोत सिंह जी की पोती ठाकुर
श्री मानदेव जी, ने बावड़ी कराई संवत् 1843
का साल मह डोरो फेरो बावड़ी को नाम
चंदर बाई कंवर जी श्री .........................
सुत कंवर जी श्री
ईकलींग सिंह जी चीरंजीव उसताकार सलावट
जीम जी श्री श्री ........... कल्याण मल जी श्री श्री
पात श्री ............................
11. राजराजेश्वर मन्दिर की बावड़ी का शिलालेख
“पृथ्वीराज वरम राजपुरोहित जीवनरामः जयतु निर्मित शिव सदन लेख में महाराज जालिम सिंह, माधोसिंह, मदनसिंह एवं पृथ्वीराज जी की यश गाथा वर्णित है। लेख में इस राज्य के इष्ट देव द्वारकाधीश व नवनीत प्रिया की स्तुति भी है इस लेख में मन्दिर के चतुष्कोणाकार, वाटिका, गौशाला, बावड़ी का भी सुन्दर उल्लेख है।”
12. शान्तिनाथ जी जैन मन्दिर का शिलालेख
झालावाड़ से 7 कि.मी. दूर झालरापाटन में शान्तिनाथ जैन मन्दिर में एक बावड़ी है। इस बावड़ी के सम्बन्ध में मन्दिर परिसर में प्रवेश द्वार के दायीं ओर पत्थर पर एक लेख अंकित है जो जीर्णशीर्ण एवं टूटा हुआ है जो 13 पक्तियों में अंकित है एवं निम्नानुसार है।51
ऊँ श्री शान्तिनाथ जी जैन मन्दिर
की पंचायत बावड़ी
बावड़ी का जल श्री ठाकुरजी
क्षाल में काम आता है इसलिये
बावड़ी में नहाना, टट्टी के हाथ धोना
मना, कुल्ले करना व थूकना भी
...... डालना, बर्तन मांजना और कपड़े
...... न बिल्कुल मना है जो जैता स
...... को नहीं मानेगा उसे अपने धर्म
...... ओर मुसलमान नीयत को
है फिर भी कोई न......................
ओर सरकार का कसूर
वार ठहरेगा पाटन 9-8-18(9) 23 ई.
(द) बारां के शिलालेख
सोरसन माताजी के कुण्ड का शिलालेख
श्रीराम जी 1 श्री कोठोगै ढेः गाव................ केथौन : बाच....................सीनाद़ ढे. दुबे
नराईन जी कौ बेटोः बोली भदर : जान..................... करायो संवत 1750
(ख) अभिलेखागारीय जल स्रोत
(ग) समकालीन साहित्यिक स्रोत
(क) वीर विनोद
(ख) मुहणोत नैणसी री ख्यात
1 पास 2 जागीरदार के घर 3 मध्य में 4 सर्वथा 5 शहर में आने पर पानी पीने को मिलता है 6 अरावली पहाड़ शहर के निकट 7 पास 8 मोरी बहती है 9 बाग और बाड़िया 10 निकलती है 11 गुड़गाँव के स्रोत का पानी 12 यही 13 नीचे 14 पानी को रोकने के लिये बाँध के रूप में बनाई गई दीवार 15 नदी नालों का पानी सोखने से कुआँ आदि में पानी का बहाव 16 महल 17 पीछे 18 जिसका पानी गढ में घेरकर लाया गया है 19 चम्बल जमीन के अन्दर का पानी
(ग) वंश भास्कर
नमोस्तूर्मिचञपद्ध्रुवस्थानमीने नमस्तारकामण्डला ऽऽ स्फाललीनै।।
नमस्त्रय घ्वगे श्रर्म्म भूभृत्पताकै नमः पीतसिक्पत्रडित्वद्धलोके।। 11।।
इसके अलावा इसमें बहुत सी नदियों-गोमती, चमर्णवती, तुंगभद्रा, सिन्धु, अलकानन्द, अरुणा की महत्ता का महिमामण्डन किया गया है।88
वंश भास्कर के भाग-2 के चाहुवाण वंश वर्णन अध्याय में राजा रामसिंह के वंशजों द्वारा ब्राह्मणों, चारणों व पण्डितों को दिये गए दान का उल्लेख करते हुए उन्हें सतलज नदी व शतद्रु नदी की भूमि को आस-पास के ग्रामों को दिए जाने की जानकारी प्राप्त होती है।89
रीवा, मच्छीबार इक सतलज धारजह ।।
कालेन्द्रिय रू सतद्रुसेव्य रुप्पड़ गढ़ून सह।। 10।।
वंश भास्कर के भाग-3 में राजा अस्थिपाल का गोदावरी नदी के समीप नगर बसाकर रहने का उल्लेख है।90 वंश भास्कर के भाग-4 से चहुवाणवंश में कुमार देवी सिंह के द्वारा बून्दी में एक बावड़ी बनाकर ढोली को देने का उल्लेख किया है एवं बाणगंगा के प्रवाह को रोककर रावसुर्जन की माता द्वारा खुदवाये गए तालाब जिसे अब जैतसागर कहते हैं उल्लेख भी है।91
जिण समय तीन सै घरॉरी बसतीरा बूंदी ग्राम मै जिकण बापी बणाई डूमनू दीघी तिणा कारण डूमड़ाबाइ कही जै तिकरा आबूरा पोता अर जिकरारी बराई गोल्हा बाईरकहीजे तिरा गोल्हा 2 रा पुत्र उसारा जातिरा मीरा जैतारो अमल रहै।। अर बारागंगारो प्रवाह रोकि जिकरारो बणायो छोटो तलाब हाडॉ 61 रा राज मैं सुर्जन री माता बड़ो कीधो तो भी जिणनै अजै संसार 301 राही नामकरि जैतसागर कहै ।। 20।।
देवी सिंह द्वारा मीणों को मार बून्दी पर अधिकार करने से पूर्व उमरथुणा नामक ग्राम की सीमा में अपने पिता के नाम से चिंहवाले बावड़ी सहित श्रेष्ठ मन्दिर में बडेश्रवरी (बंगेश्वरी) की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया था। जिसमें हंडाधिराज बंगदेव ने आकर पूजा अर्चना भी की थी।
“कुमारतदूमरथुणाभिधनिवस थसीमपितृनामांकित वापिका को पेतसुमन्दिर बड्डे. श्वरदेवी प्रतिमाप्रति पटापन”
बून्दी के शासक भाणदेव या सुभाड़ देव के काल में घोर दुभिक्ष पड़ा जिसमें उसने तीन वर्ष तक संचय किया हुआ अनाज गरीबों में बाँट दिया और खितोलाव तालाब का निर्माण करवाया।
भूपहि खितल भनिय अप्प अकिय दुकाल इम
ममनामहु छितिमाहि करहु कछुरीति रहै किम
सुनिनृप पन्द्रहसहॅस 15000 कढि रुप्पय निजकोसन
बिक्खि समय सुभ बुल्लि निपुन सिल्पिन निर्दोसन
दुबलानतैं जु पवमानदिस पाई उचितथल कोस 2 पर कासार रचिय तसनामकरि विदित सु खितोलाव 2 बर (49)
नाम भवानीपुर नियत अब निबसथ जँहॅ आस
देवी खितोला सदन ताल गिनहु वह तास (50)
1 कासार-तालाब, 2 निबसथ-ग्राम
मन्त्री क्षेत्रल (खेतल) के प्रार्थना करने पर राजा का जनाये हुए स्थान पर पन्द्रह हजार रुपये खर्च करके बनिया के नाम को जनाने वाले खेतालोव तालाब का निर्माण करवाया क्योंकि बनिया खेता ने ही राजा को दुर्भिक्ष से आगाह किया था। इसके अलावा इसमें गोल्हू बावड़ी, धावड़वाब अथवा धाऊ की बावड़ी का उल्लेख भी मिलता है।92
बून्दी के शासक राव सुरताण के समय माण्डूपति ने यवन सेना लेकर बून्दी पर धावा बोल दिया। राव सुरताण ने कायरता का परिचय देते हुए युद्ध में शामिल नहीं हुआ। तब रायमल, कल्याणमल, सँहसमल और सातल जैसे सामन्तों ने घमासान युद्ध किया जिससे माण्डूपति घबराकर भाग गया। बून्दी दुर्ग के पूर्व द्वार के बाहर जो दो बावड़ियाँ बनी हुई इन दोनों का निर्माण सँहसमल और सात्तल ने करवाया ।93 राव सुर्जन के पुत्र राव भौज की पत्नी कुवॅरानी ने विक्रम संवत् 1625 को राजकुमार को जन्म दिया। राव भोज की माता जयवती ने इस उपलक्ष्य में एक बड़ा उत्सव किया। राव सुर्जन भी दिल्ली से अपने पौत्र की सूचना पर बून्दी आये तब राजा की माता ने इस अवसर पर तारागढ़ दुर्ग की पूर्व दिशा की ओर मीणों द्वारा बनवाये गये तालाब को बड़ा बनवाया। रुपये लगाकर व खुदाई करवाकर उसे गहरा करवाया और पाल का निर्माण करवाया। इसके बाद इस तालाब का नामकरण अपने नाम से किया। इस तालाब की पाल को पर्वत की तरह ऊँचा बनवाया और पाल के बाये हिस्से में बावड़ी की तरफ द्वार बनवाया और पुरानी सारी सीढ़ियों को तुड़वाकर पंक्तिबद्ध नई सीढ़ियों का निर्माण करवाया।94
“पल्लव जुहि मैनन किय तारागढ़ पुब्ब घां।
हड्डापति माइ हाल विस्तृत किय ताल ह्मां।
लक्खन खनिबे लगाई दीनन अवलंब दै।
रक्खन निज किति दम्मन लक्खन निकुरबं दै ।। 41।।
ताल सु गहिरो खुदाई अंकिय निज नामतै।
पालिहु गिरि प्रभान तास बंधिय बिधि बाम तैं।
बापि समदार तास सेतुहि बिच बंधयो।
सीढ़िन सुघराई पंति पद्धर पथ संधयो”।। 42।।
इस तालाब का नई पाल में बाएँ और दाएँ दो कोठरियाँ बनवाई और यहाँ एक कोठरी में शुद्ध (अच्छे) पत्थर पर उसका बीजक उत्कीर्ण करवाया। इसके अलावा गोल्हा द्वारा बनवाई गोला बावड़ी के अग्रिकोण वाली दिशा में जो हरिमन्दिर था उसका पूरा जीर्णोद्वार करवाकर रानी जयमति ने पूरी श्रद्धा के साथ नया मन्दिर बनवाया और भगवान के विग्रह के साथ लक्ष्मी की मूर्ति भी वहाँ स्थापित करवायी। इसी प्रकार एक नया तालाब और मन्दिर हाड़ा अर्जुन ने भी बून्दी में बनवाया और राजा सुर्जन के बून्दी आगमन पर इसका बड़ा उत्सव आयोजित किया गया।
अंदर अपसत्य सव्य रक्खिय दुव ओवरी ।
बीचक लिपि सव्य सुद्ध पत्थर तंह बिस्तरी ।
गोल्हा कृत बापी दिग सिखिदिस हरिगेह जो।
नूतन बिरच्यो अपुब्व जयवति अति नेहजो
लच्छी सह नारायण थाप्पिय तंह लाड सों
उच्छितपन मंदिर वह छन्न न कंहुं आड सो।। 44।।
नव इम सर मंदिर जुग अर्जुन तिय निर्मयो
भूपति अब आतहि तिन्ह उच्छव बिधि सौं भयो।
राव सुर्जन की मध्यम रानी कनकवती ने बून्दी के दुर्गापुरी गाँव में एक तालाब का निर्माण करवाया जिसे कनक सागर कहा गया है
“रानी मध्यमा 2 जो सुर्जन कै कनकवती
दुर्गापुरी ताके तँह ताल तिहि निर्मयो।
सो कनकसागर कहावत अब हू ख्यात
राम नरनाह देखो तबको खन्योगयो।95
राव सुर्जन ने काशी को अपना निवास स्थान बनाने के पश्चात् राजमहल का निर्माण, घाटों की इमारतें, सुन्दर बाग, मन्दिरों और 20 जलाशयों का निर्माण करवाया।
“सौध नव रचन उपक्रम लगाई शिल्पी।
चिति रचंना मैं मतिभान चुनि चाह सों।
बेल बिबुधालय निपान हु बनाइबे को,
बिबिध बिदग्ध राखि राज रूचि राह सों।
राव रतनसिंह की पहली रानी राजकुंवरी ने एक बापी (बावड़ी) का निर्माण करवाया जिसे बून्दी नगर के सभी चतुर लोग जानते हैं। पहले कटले के पास वाले पश्चिम द्वार से दक्षिण दिशा की ओर बल्लनोत वंशीय रानी का यश दिप-दिप करता है जो कई कवियों के काव्य की साक्षी से मंडित है। मन्दिर, जलाशय और बाग उपवन कानिर्माण राजा रत्नसिंह ने करवाया और द्वारिका में भी भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया।96
रानी जेठी राजकुमारि बापी इक कीनी
बुंदीपुर वह बिदित चतुर लोकन इम चीनी।
पहिले कटले पास द्वार पच्छिम सन दक्खिन
जुपै बल्लनोति जस सरस बाढत कवि सक्खिन।
प्रभुगृह निपान उपवन पुनि सु रतन राज्य करतहु रचहि।
द्वारावतीहू इक हरिसदन मंडत मंह भावी सचहि।। 74।।
हाड़ा राजा भोज की अत्यन्त गुणवती पासवान फूललता ने झोझू नामक छोटे तालाब का पुनर्निर्माण करवाकर उसे बड़े जलाशय में परिवर्तित करवाया। कई हजार रुपये खर्च कर उस पासवान फुललता ने जो जलाशय बनवाया उसका नाम अपने नाम पर “फूलसागर” रखा97 जो 1602 ई. में पूर्ण हुआ था। चतुर राजा भोजराज ने भी एक नयनाभिराम उपवन का बून्दी में निर्माण करवाया जिसका नाम नवलक्खा रखा। अभी जहाँ पर ताल बना हुआ है उसके पूर्व में रामबाग नामक सुन्दर बाग विद्यमान था।98
भोज भुजिष्या जो भनिय, फुल्ललता गुन फार ।
तिहि लघु झोझू ताल को किय सु महा कासार।। 75।।
बहु संहसन करि दम्भ व्यय, नियत फुल्लसर नाम।
जिहि सक नवसर अष्टि जह रचिय ताल अभिराम।। 76।।
बिरच्यो उपवन भोज बुध, नवलक्खा तस नाम।
अब जंह ताल रू पुब्ब इत, रामबाग अभिराम।। 78।।
हाड़ा अर्जुन की गुहिलोत वंशीय पत्नी ने एक सुन्दर ताल (जलाशय) का निर्माण करवाया था। इस ताल के किनारे भगवान का एक मन्दिर भी बनवाया था। इस तालाब के निर्माण कार्य की देखभाल के लिये एक माधव नामक कायस्थ को नियुक्त किया था। उस ताल पर तारागढ़ दुर्ग की दिशा में एक घाट अभी भी माधव घाट के नाम से जाना जाता है।
तिम पहिलै गहिलोतनी, अर्जुन पतनी अत्थ ।
ताल रच्यो जो जयवतिय श्री हरिमंदिर सत्थ ।। 82।।
ताल काम पर नियत तब किय माधव कायस्थ।
अवहु तदंकित घट्ट इक, तारागढ़ दिस तत्थ ।। 83।।
हाड़ा राजा रत्नसिंह की माँ ने बून्दी में एक सुरम्य बावड़ी पूर्व में बनवाई थी। उसी तरह की एक नई बावड़ी मऊ क्षेत्र के गोपाना नामक गाँव में बनवाई। इसके साथ ही केशवपुर में राजा की माँ ने एक भव्य और सुन्दर उपवन का निर्माण करवाया । इस तरह रानी माँ ने तीन मन्दिर, दो सुन्दर बावड़ियाँ और एक सुरम्य उपवन का निर्माण कराकर जगत में यश अर्जित किया।
बापी इक पुब्वहि बनवाई रैन प्रसू बुदियपुर रम्य
बिरचिय तिमहि मऊ ग्रामन बिच गोपना दूजी जलगम्य
केसवपुर चोमां उपवन किय नृप माता इक रूचिर नवीन
मंदिर त्रय बापी द्धय मंजुल करि इक बेल सु जसजग कीन ।। 46।।
बून्दी नरेश राव भोज के शासन काल में कवि ईसरदास का एक कामदार (सचिव) रामलाल नामक बनिया था। उसे सुकवि ने अपनी जागीर का गाँव दोडूंढा देकर समृद्ध बनाया। इस सचिव रामलाल की कन्या का विवाह हम्मीर हाड़ा की जागीर हिंडोली में यह जानकर किया कि गाँव के नजदीक है और उसे यहाँ सुख मिलेगा। दोडूंढा गाँव में बरसात के दिनों में काफी दलदल हो जाता था। एक बार वह कन्या बिना बैलगाड़ी के पैदल ही अपने ससुराल आई। उस समय उसके पाँव कीचड़ मिट्टी से सने थे। उसने घर के बाहर पहुँचकर अपनी सास से पैर धोने के लिये पानी माँगने पर उसकी सास ने ताना दिया कि तेरे बाप के पास बहुत सारी संचित की हुई सम्पत्ति है इसलिये क्यों नहीं अपने पिता से कहकर मार्ग में तालाब बनवा लेती। फिर आराम से नाव में बैठकर आया करना जिससे तेरे पाँवों में कीचड़ न लगेगा। तब वणिक कन्या ने अपने पिता रामलाल को सास द्वारा दिया गया ताना सुनाया तो उसके पिता ने अपने खजाने से पैसा व्यय कर एक बड़ा तालाब बनवाया जिसका नाम रामसागर तालाब रखा गया । यह तालाब हिंडोली और दोडूंढा गाँव के मध्य में स्थित है।
“ईस्वर कै हुव सचिव इक बनिक राम बसु बित।
दोडुंढा कवि तिहि दयो, चहि सासन बस चित।। 51।।
कन्या हुव इक राम कै सो हम्मीर सुथान
हिंडोली ब्याही हुति, भनी समीप सुखभान।। 52।।
दोडुंढा पाउस दिनन कबहु न जाई कनी सु
आई घर रथते उतरि, स्वचरन पंक सनी सु ।। 53।।
सस्सू प्रति मंगिय सलिल, अघ्रिन धोवन अक्खि
बुल्ली वह तव बप्प कै, संचित धन जग सक्खि।। 54।।
कहि तासों व्यय करि कछुक, बिरचि तालमय बीच
नाव चढी आवहु निलय, कबहु न लग्गै कीच।। 55।।
इति अक्खिय तातहि यहै तिहि जल संभव तुल्लि।
रचिय रामसागर सर सु, खरच खजांना खुल्लि।। 56।।
राजा शत्रुशाल की तीसरी रानी राजकुमारी ने भी बून्दी से कोटा जाने वाले मार्ग पर बावड़ियों का निर्माण करवाया। राजा की पाँचवी चालुक्य वंशीय रानी सूरजकुँवरी ने क्षारबाग से दक्षिण दिशा में थोड़ी दूर पर बाग व बावड़ियाँ बनवाई। राजा की आठवीं राणावत रानी चंद्रकुँवरी द्वारा बनवाए हुए बाग और बावड़ी कुमारति के मार्ग पर अवस्थित है। राजा की दसवीं राठौड़ रानी कल्याण कुँवरी द्वारा बनवाई हुई बावड़ी और वाटिका दोनों बून्दी से दक्षिण दिशा में और क्षारबाग के पास ही स्थित है, जो इसके सुयस के बल की सूचना देते हैं। राजा की ग्यारवीं राठौड़ रानी फूल कुँवरी, जो अत्यन्त गुणवती थी, के द्वारा बनवायी गई बावड़ी और वाटिका बून्दी से माटूंडा जाने वाले मार्ग पर बून्दी से पूर्व दिशा की और विद्यमान है, जो इसकी कीर्ति के सूचक है। इसके अलावा अपने मृत स्वामी शत्रुशाल के साथ जलने वाली दूसरी पासवान अनारा के द्वारा बून्दी के शहर द्वार के बाहर बसे हुए छोटे से गाँव पुरा में एक बावड़ी और मन्दिर बनवाने का उल्लेख है।99
प्रिया चालुकी पंचमी सूरजकुमारि सनाम।
ऐकी हठी पहिलै जरत, अब सुजरी अभिराम।। 15।।
जाके बापी बाग जुग, अबहू सुजस अंकूर ।
क्षारबाग सन इत सु छवि, दिस दक्खिन कछु दूर ।। 16।।
रानी सप्तम हर कुमारि, उदित चालुकी आहि ।
रानाउति अष्टम रूचिर, चन्द्रकुमरिजस चाहि।। 17।।
जाके बापी बाग जुग, मिलत कुमारति मग्ग
इमहि जरी तंहं अष्टमी, करि किति उदग्ग।। 18।।
काबंधी दसमी कही, क्रम कल्यान कुमारि।
सोहुजरी अति प्रीति सह असह बिरह अवधारि ।। 19।।
बिदित बेल अस बापिका याके दक्खिन ओर
छारबाग के ढिगहि छबि, जे सूचत जस जोर।। 20।।
काबंधी एकादशी, फुल्लकुमारि गुन फीत
जो महलन बासी जरी भूप बिरह अवभीत ।। 21।।
जासबेल बापी जुग हि, मांटुदापुर मग्ग
अंकित जससूचक अबहु, लसत पुब्ब दिस लग्ग। 22।।
इम खवासि दूजी इंहा जरी अनारां जास
पुर साखापुर छत्रपुर बापि हरिगृह बास ।। 23।।
हाड़ा राजा शत्रुशाल ने अपनी धाय माँ पत्ती के नाम पर एक तालाब बनवाया। इस प्रताप सागर नामक तालाब का निर्माण करवाकर राजा ने यश अर्जित किया। राजा ने प्रताप सागर के निकट बहुत बड़े उच्छाह के साथ एक कुण्ड और एक छत्री अपनी धाय माँ पत्ती की स्मृति में बनवाए।
पत्ती नाम निज धाई पटु, ताके नाम तड़ाग
रूचि प्रताप सागर रूचिर, भूप भज्यो जसभाग ।। 70।।
एक कुण्ड छत्री उभय धन्य पती नृपधाई
किय प्रताप सागर निकट पहु मह अह पधराई।। 71।।
हाड़ा राजा भावसिंह ने अपने ही राज्य के वैष्णव संत आध्यामदास के कहने पर बून्दी से ईसान कोण में अवस्थित और लाखेरी नगर के पास एक मन्दिर और एक बापी (बावड़ी) का निर्माण करवाया। इस बावड़ी के निर्माण कार्य की देखरेख के लिये राजा ने जिस लूणकर्ण नामक कायस्थ को नियुक्त किया था। उसी लूणकर्ण के नाम से आज भी यह बावड़ी ‘लूणाबाव‘ के नाम से विख्यात है। इसके अलावा राजा ने फूलसरोवर के तट पर सुन्दर उपवन का निर्माण करवाकर नयनाभिराम फव्वारों का निर्माण भी करवाया था।100
पुर लक्खैरिय पास, दिपत कोण ईसान दिस
अधिप पूरि तस आस, मंदिर बापी निर्भये ।। 81।।
ताकि निर्मितकाज, लुणकरण कायथ ललित
रक्खि भाऊ अधिराज लूणावाय प्रसिद्ध हुव।। 82।।
हाड़ा राजा अनिरुद्ध की चालुक्य वंशीय रानी लाडकुँवरी ने दो बावड़ियों और एक बाग का निर्माण करवाया। हर्षदादेवी से पश्चिम दिशा वाले प्रदेश में एक बड़े विस्तार की बावड़ी के निर्माण पर बाईस हजार रुपये खर्च किये गये। इसके अतिरिक्त दूसरी बावड़ी शहर के बाहर वाले पुर अर्थात् देवपुरा के पास बनवाई और इसके पास ही सुन्दर बाग का निर्माण करवाया।
नाथाउति दूजी लाडकुमरि नमानां स्वीय,
बापी जुग बाग एक जाके बनवाये प्रभु ।। 7।।
देवी हर्षदा सों दीप पच्छिम प्रदेश पर
बापी बनी एक यह सों है बड़े विस्तार
साखापुर देवपुरा ताके जो समीप बापी
दूजी सो रू ताहि के समीप बाग छबिदार।। 8।।
राजा अनिरुद्ध की चौथी रानी बख्त कुँवरी ने बून्दी में पूर्व दिशा की ओर खान नामक खवास की हवेली के पास एक वापिका का निर्माण करवाया जो आज भी यश रूपी स्तम्भ की तरह साक्षी के रूप में विद्यमान है।101
कन्या फतैसिंह की नरूकी बख्त कुमारि कको,
र की बिबाहि कछवाही चोथी रूचिरूप ।
प्राची खाननामक खवास की हवेली पास,
जाकि बापिका है लख्यो पुष्य सत्र जसजूप।। 6।।
इसके अलावा अनिरुद्ध सिंह के धायभाई देवा ने शहर के बाहर वाले भाग में देवपुरा नामक गाँव बसाकर वहा पर बावड़ी, बाग व महल बनवाया।
नृप धात्रेयहु देव सनामक बाढिय जस जग मुख संवाद
निज आख्या करि देवपुरा नवसाखापुर यह रचिय सयान
वापि उपवन महल बनाई रू थिति किय तंह सुहि गिनि निज थान ।। 72।।
हाडा राजा बुधसिंह के अनुज जौधसिंह गणगौर उत्सव के समय अपनी पत्नी स्वरूपकँवर के साथ जैतसागर विहार करते समय हाथी द्वारा नौका को उलट देने से गणगौर सहित मृत्यु को प्राप्त हो गये।102 उम्मेद सिंह ने अपने काका जौधसिंह के मरने से प्रतिबन्धित किये गये गणगौर के उत्सव को बून्दी में सावन मास की शुक्ल पक्ष की तीज के दिन पुनः स्थापना करवायी और एक बड़ा महोत्सव जैतसागर तालाब पर करवाया। इसके दूसरे दिन अपराह्न में गरज कर पानी बरसा। पानी की अधिक आवक के कारण एक जोरदार धमाके के साथ तालाब का पाल टूट गई और देखते ही देखते पानी कोसों तक फैल गया।103 राजा ने तालाब की पाल की मरम्मत करवाकर पुनः तैयार करवाया।
इसके अतिरिक्त हाड़ा राव उम्मेद सिंह ने तारागढ़ दुर्ग के मध्य एक मन्दिर और एक कोस लम्बा चौड़ा तालाब बनवाया और देव विलास के पास अग्निकोण में एक बड़े कुण्ड का निर्माण कराया और अपने महल शिकारबुर्ज मात्र जड़ाऊ पत्थरों से निर्मित एक नहर (नाला) का निर्माण करवाया जो कुण्ड (छोटा तालाब) से जुड़ी है और कुण्ड के पानी का स्रोत भी है।
‘तारागढ बिच हरि सदन, आयत कोस निवान
विष्णुसिंह नृप चरित बिच रचित कहे त्रय थान ।। 51।।
तास ढिगहि सिखि कोन तंह, रचित कुंड अभिराम
तासॉ लगि आवाच्य तट, धवल तुंग निज धाम।। 58।।
राजा विष्णुसिंह के शासनकाल में उनकी उपपत्नी सुन्दरशोभा ने गाँव में तालाब बनवाया और इस तालाब के किनारे एक सुन्दर घाट का निर्माण करवाया।104
“सुन्दर घट बनायो, सुन्दरशोभा खवासि संभर की।
हरि मन्दिर जुत ठायो, प्रासादगन जह ताल तटपुर मैं।। 147।।
(घ) शत्रुशल्य चरित महाकाव्य
वर्षा ऋतु का चित्रण :-
विशन स्वेश्मप्रतिहारभूमि
समीपतः पीनपयोध रांसः।
चिंर वियोगान्य लिनाम्बसन्ता
कान्तामय प्रावृषमैक्षोच्चै।। शत्रु 19/129
बसन्त ऋतु का चित्रण :-
उतुड.+गमड.लमृदडि.तभृड.गुञ
माकन्दवृन्दविकसत्पिकनादनादि
मन्दानिलोतरलवल्लिताभिनीत
प्रावर्त्यतर्तुपतिना रतिनाथनाटयम्।।
आलिंड.गन भुजविटपलता बलानां
सोत्कम्प सदधर पल्लव च चुम्बन।
किज्वासा स्तवककुंच स्पृशन्नशड्क
कामीवाल सदनिलोऽथ दक्षिणात्यः।।
(ड़) “सुर्जन चरित महाकाव्य”
सुर्जन चरित महाकाव्य के रचियता चन्द्रशेखर राव सुर्जन के राज्याश्रित कवि रहे हैं। महाकवि ने अपनी एक मात्र कृति सुर्जनचरित्र महाकाव्य के अन्तिम श्लोक में अपना कुछ परिचय दिया है। इस श्लोक के अनुसार वे गौड़ देश (बंगाल) के निवासी थे। उनके पिता का नाम जितामित्र तथा कुल नाम अम्बप्ठ था। काशी में रहकर राव सुर्जन के अनुरोध से उन्होंने इस महाकाव्य का प्रणयन किया था।106
सुर्जनचरित्र में वर्णित है कि राव सुर्जन का सम्राट अकबर के साथ युद्ध वि. सं. 1626 (1569 ई.) के बाद वृद्धावस्था में राव सुर्जन काशीवास करने लगे। वहीं वाराणसी में रहते हुए उन्होंने अनेक घाट और तालाब व अन्य जलाशय बनवाकर जनता के लिये धर्म का कार्य किया ।107 राव सुर्जन पवित्र तीर्थों का सेवन करते हुए मकर सक्रान्ति के समय गंगा यमुना के संगम पर पहुँचे। संगम पर अनेक प्रकार के दान देकर राजा ने तुलादान भी किया काशी में गंगा तट पर मणिकर्णिका नामक घाट भी बनवाया।
संदर्भ
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6. वरदा, वर्ष 14, अंक 2, पृ.सं. 54 अप्रैल जून राजस्थान साहित्य समिति बिसाऊ 1983
7. एस. आर. खान- उपरोक्त, पृ.सं. 214-215
8. रतन लाल मिश्र- इंस्क्रीप्शन ऑफ राजस्थान, भाग 4, पृ.सं. 107-108 हिमांशु पब्लिकेशनउदयपुर 2006
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10. नाहरधूस की बावड़ी का शिलालेख
11. वरदा, वर्ष 14 अंक 2 पृ.सं. 55-64, राज साहित्य समिति बिसाऊ राज. 1971
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13. रतनलाल मिश्र-उपरोक्त, भाग 4, पृ.सं. 111,112
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15. अचलेश्वर महादेव मन्दिर का शिलालेख
16. रतनलाल मिश्र- उपरोक्त, भाग 4, पृ.सं. 110
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19. गणेशबाग के सामने की बावड़ी की बावड़ी का शिलालेख
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21. बून्दी, ए सिटी ऑफ स्टेपवेल्स, पृ.सं. 8 जिला प्रशासन बून्दी 2006
22. शोधार्थी द्वारा चित्र लिया जाकर वर्णित।
23. वरदा, वर्ष 26 अंक 2 पृ.सं. 2-6 अप्रैल-जून बिसाऊ 1983
24. डॉ. सम्पूर्णानन्द सिंह-बून्दी के शिलालेख, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन पृ.सं. 97राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर 2014
25. रतन लाल मिश्र- उपरोक्त, भाग 4, पृ.सं. 115
26. शोधार्थी द्वारा वर्णित
27. शालिन्दी दर्रे का शिलालेख
28. वरदा वर्ष 14 अंक 4, पृ.सं. 32 अक्टू.-दिसं. 1971
29. दुर्गाप्रसाद माथुर- उपरोक्त, पृ.सं. 243
30. शोधार्थी द्वारा चित्र लिया जाकर वर्णित
31. वरदा, उपरोक्त, पृ.सं. 35
32. एस. आर. खान - उपरोक्त, पृ.सं. 282
33. चौथमाता के बाग के कुण्ड का लेख
34. डॉ. पूनम सिंह- उपरोक्त, पृ.सं. 137
35. रतनलाल मिश्र - उपरोक्त, भाग 4 पृ.सं. 124,
36. शोधार्थी द्वारा जमीन से निकलवाया जाकर फोटो लेकर वर्णित किया गया
37. इतवारी पत्रिका, 17 फरवरी 1991 कोटा
38. प्रभात कुमार सिंघल -हिन्दुस्तान के बोलते पत्थर 16 अक्टू. 1983 कोटा
39. शोधार्थी द्वारा वर्णित
40. हाड़ौतिका, वर्ष 13, पृ.सं. 14, जुलाई-सित. 2008 शिकारखाना हवेली रेतवाली कोटा
41. जगदीश सिंह गहलोत - राजपूताने का इतिहास, (कोटा राज्य) भाग-2 पृ. सं. 31 हिन्दीसाहित्य मन्दिर जोधपुर 1960
42. बी.एन. धोधियाल - झालावाड़ ड्रिस्टीक गजेटियर पृ.सं. 295 गर्वनमेन्ट सेन्ट्रल प्रेस जयपुर, 1964
43. जगदीश सिंह गहलोत - उपरोक्त पृ.सं. 31
44. ललित शर्मा - झालावाड़ के प्रमुख शिलालेख पृ. स. 41 मालव लोक संस्कृति प्रतिष्ठान,उज्जैन 2013
45. एस. आर. खान- उपरोक्त पृ.सं. 206-207
46. रतनलाल मिश्र- उपरोक्त, भाग 4 पृ.सं. 89
47. डॉ मनोहर सिंह राणावत (सं.)-शोध साधना वर्ष 16 अंक 12 पृ.सं. 75-81 सीतामऊमंदसौर 1995
48. ललित शर्मा - उपरोक्त, पृ. सं. 40
49. एस. आर. खान- उपरोक्त, पृ.सं. 208-209
50. ललित शर्मा - उपरोक्त, पृ. स. 96
51. शोधार्थी द्वारा लेख में देखकर अंकित किया गया
52. शोधार्थी द्वारा वर्णित
53. अभेरड़ा की बही, भण्डार-2 मंजिल-2 बस्ता न. 169 मध्यवर्ती शाखा राज. राज्यअभिलेखागार कोटा, संवत् 1905
54. हरिगढ़ की बही, उपरोक्त
55. भाण्डाहेड़ा की बही, उपरोक्त
56. माणस गाँव की बही, उपरोक्त
57. अटरू तालका की बही, उपरोक्त
58. खेड़ा तालका का बही, बस्ता न. 72 मन्जिल 2, मध्यवर्ती शाखा राज. राज्य अभिलेखागारकोटा, संवत् 1904
59. किशन विलास की बही, उपरोक्त
60. रायपुर की बही, बस्ता उपरोक्त
61. वाजेगाँव की बही, उपरोक्त
62. कावरियाँ की बही, उपरोक्त
63. कोठी तालका की बही, उपरोक्त
64. नन्दगाँव की बही, भण्डार 2 मन्जिल 2 बस्ता संख्या 203 संवत् 1867
65. रायपुर तालका की बही, उपरोक्त।
66. जगपुरा की बही, उपरोक्त।
67. मौजा बपापर तालका की बही, भण्डार 2 मन्जिल-2, बस्ता संख्या 453 संवत् 1909
68. रामखेडा की बही, भण्डार 2 मन्जिल 2 बस्ता संख्या 453 खण्ड-2 बही संख्या 4 संवत्1909
69. नयापुरा की बही, मन्जिल 2 बस्ता संख्या के प्रथम खण्ड का बही संख्या 1 संवत् 1903
70. मोहीचालका की बही, बस्ता न. 257 खण्ड़ -2 सम्वत् 1866
71. खानपुर तालका की बही, बस्ता न. 257 भाग-2 बही न. 3 सम्वत् 1899
72. बस्ता संख्या 182 बही न. 4 सम्वत् 1904
73. बृजलाल जी की दुकान तालके की बही, बस्ता न. 182 भाग- 2 बही न. 1 सम्वत् 1907
74. डॉ. कृष्ण स्वरूप गुप्ता व डा. गोपाल बल्लभ व्यास - उपरोक्त, पृ.सं. 117, 1988
75. कविराज श्यामदास - वीर विनोद भाग 2 पृ.सं. 101 महाराव मेवाड़ हिस्टोरिकलपब्लिकेशन्स ट्रस्ट उदयपुर 2007
76. कविवर श्यामलदास- उपरोक्त, 2 पृ.सं. 114
77. उपरोक्त, भाग - 3 पृ.सं. 1405
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80. डॉ. नारायणसिंह भाटी- उपरोक्त, भाग-2 पृ.सं. 303-304
81. डॉ. नारायणसिंह भाटी- उपरोक्त, भाग-1, पृ.सं. 132
82. जोधपुर राज्य की ख्यात, भाग सं. 1 पृ.सं. 254-255 श्री नटनागर शोध संस्थान, सीता मऊमें संग्रहित हस्तलिखित प्रति।
83. बद्रीप्रसाद साकरियां-मुहतो नैणसी री ख्यात भाग 4, पृ.सं. 1-10, राजस्थान प्राच्य विधासंस्थान, जोधपुर 1967
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86. ठा. कृष्ण स्वरूप गुप्ता एवं डॉ. गोपाल वल्लभ व्यास- उपरोक्त, अध्याय-7 पृ.सं.97-102
87. स्व. पं रामकरण आसोपा (सं.)-वंश भास्कर कृत सूर्यमल मिश्रण भाग-1 पृ.सं. 273,बाफना बुक डिपो जयपुर, 1956
88. उपरोक्त, भाग-1 पृ.सं. 349
89. उपरोक्त, भाग-2 पृ.सं. 1161
90. उपरोक्त, भाग-3 पृ.सं.1463
91. उपरोक्त, भाग-4 पृ.सं. 1161
92. उपरोक्त, भाग- 4 पृ.सं. 2148
93. चन्द्रप्रकाश देवल-वंश भास्कर (महाचम्पू) भाग-5, पृ.सं. 3158, साहित्य अकादमी नईदिल्ली 2007
94. उपरोक्त पृ.सं. 3275
95. स्व. प. रामकरण आसोपा- उपरोक्त, भाग-5 पृ.सं. 2291
96. चन्द्रप्रकाश देवल-उपरोक्त, भाग- 5 पृ.सं. 3489
97. प्रगतिशील राजस्थान - बून्दी, पृ.सं. 55, जनसम्पर्क निदेशालय राजस्थान जयपुर 1967
98. चन्द्रप्रकाश देवल-उपरोक्त, भाग- 5 पृ.सं. 3490
99. उपरोक्त, पृ.सं. 3954-57
100. उपरोक्त, भाग-6 पृ.सं. 4200
101. उपरोक्त, पृ.सं. 4205
102. उपरोक्त, भाग-5 पृ.सं. 2856
103. उपरोक्त, भाग-7, पृ.सं. 5342
104. उपरोक्त, भाग-8, पृ.सं. 6018
105. उमा शर्मा-हाड़ौती प्रदेश के संस्कृत महाकाव्यां का ऐतिहासिक मूल्यांकन पृ.सं.411-415 राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर 2001
106. उमा शर्मा - हाड़ौती के संस्कृत महाकाव्यों का ऐतिहासिक मूल्याकंन पृ.सं. 154
107. महाकवि चन्द्रशेखर- सुर्जन चरित महाकाव्य, श्लोक सं. 19,139 पृ.सं. 155 भार्गव भूषण प्रेस गायघाट बनारस 1952
राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में जल विरासत - 12वीं सदी से 18वीं सदी तक (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
1 | हाड़ौती का भूगोल एवं इतिहास (Geography and history of Hadoti) |
2 | हाड़ौती क्षेत्र में जल का इतिहास एवं महत्त्व (History and significance of water in the Hadoti region) |
3 | हाड़ौती क्षेत्र में जल के ऐतिहासिक स्रोत (Historical sources of water in the Hadoti region) |
4 | हाड़ौती के प्रमुख जल संसाधन (Major water resources of Hadoti) |
5 | हाड़ौती के जलाशय निर्माण एवं तकनीक (Reservoir Construction & Techniques in the Hadoti region) |
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